गणेश शंकर विद्यार्थी एक प्रमुख भारतीय पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे। उनकी रचनाएँ इतनी प्रभावशाली थीं कि उनसे ब्रिटिश सरकार भयभीत हो जाती थी। उनके क्रांतिकारी लेखन के कारण उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा जेल में डाल दिया गया था। सजा के अलावा गणेश शंकर विद्यार्थी को कई बार जुर्माना भी भरना पड़ा। उनकी कलम इतनी तेज़ थी कि उससे अंग्रेज शासक बहुत चिंतित हो गए। अब भी लोग गणेश शंकर विद्यार्थी और उनके अखबार ‘प्रताप’ को पत्रकारिता का सर्वोत्तम उदाहरण मानते हैं। जिसके बारे में आपको पता होना चाहिए। इसलिए आज के इस ब्लॉग में हम गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान दिवस और उनके बारे में जानेंगे।
गणेश शंकर विद्यार्थी के बारे में
गणेश शंकर विद्यार्थी एक प्रमुख भारतीय पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे। उनका जन्म 26 अक्टूबर 1890 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक कलर्क और शिक्षक के रूप में की, लेकिन जल्द ही उनकी रुचि पत्रकारिता और राजनीति में हो गई। उन्होंने 1913 में अपने स्वयं के हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र, प्रताप की स्थापना की, जो भारतीय राज्यों के उत्पीड़ित किसानों, श्रमिकों और लोगों की आवाज़ बन गया।
गणेश शंकर विद्यार्थी ने विक्टर ह्यूगो के उपन्यास नाइनटी-थ्री का हिंदी में अनुवाद भी किया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न आंदोलनों, जैसे होम रूल आंदोलन, असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और उनके लेखन और गतिविधियों के लिए कई मुकदमों का सामना करना पड़ा। 1930 में उन्हें उत्तर प्रदेश की प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया। स्वतंत्रता आंदोलनों से जुड़े दंगों में घायल होने के बाद 25 मार्च 1931 को कानपुर में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें एक निडर और समर्पित पत्रकार और देशभक्त के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान दिवस
गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान दिवस : गणेश शंकर विद्यार्थी ने कम उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन, पत्रकारिता और समाजसेवा के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ दी थी। स्वतंत्रता आंदोलनों से जुड़े दंगों में घायल होने के बाद 25 मार्च 1931 को कानपुर में उनकी मृत्यु हो गई। इसी कारण हर साल 25 मार्च को उन्हें बलिदान दिवस के रूप में श्रद्धांजलि दी जाती है। गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने नाम के साथ विद्यार्थी शब्द इसलिए जोड़ा क्योंकि उनका मानना था कि सीखना हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। विद्यार्थी जी कानपुर में प्रताप नामक समाचार पत्र प्रकाशित करते थे, जहाँ वे क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में समाचार साझा करते थे और इस वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।
गणेश शंकर विद्यार्थी की मृत्यु कैसे हुई?
आजादी के दंगों को रोकते समय उनकी जान चली गई थी और उनके निधन के समय महात्मा गाँधी ने कहा था कि गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या करने वालो को भी वैसी ही मौत मिले। गणेश शंकर विद्यार्थी की पुण्यतिथि को गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान दिवस के रूप में याद किया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।
FAQs
गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 में हुआ था।
गणेश शंकर विद्यार्थी का निधन 25 मार्च 1931 में हुआ था।
दंगे रोकते-रोकते ही उनकी मौत हुई थी। उन्होंने सैकड़ों लोगों की जान बचाई और 25 मार्च 1931 को कानपुर में लाशों के ढेर में उनकी लाश मिली, उनकी लाश इतनी फूल गई थी कि लोग पहचान भी नहीं पा रहे थे।
गणेश शंकर विद्यार्थी ने कानपुर से स्वयं अपना हिंदी साप्ताहिक प्रताप के नाम से निकाला।
आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान दिवस से जुड़ी पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।