क्या आपने ऐसे सेमीकंडक्टर डिवाइस के बारे में सुना है जो इलेक्ट्रॉन्स और इलेक्ट्रिसिटी के मूवमेंट को कंट्रोल कर सकता है यह इलेक्ट्रिसिटी को स्टार्ट व स्टॉप कर सकता है और यह करंट के अमाउंट को भी कंट्रोल कर सकता है जिसके कारण वह इलेक्ट्रॉनिक वेव पैदा कर सकता है। हाँ आपने बिलकुल सही सोचा इस डिवाइस का नाम है ट्रांजिस्टर (Transistor in Hindi) जिसके बारे में हम इस ब्लॉग में पढ़ने वाले है कि ट्रांजिस्टर क्या है और कैसे काम करता है इसके कितने प्रकार है तथा Transistor in Hindi से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी। आइए सन 1951 में विलियम तथा उसके टीम द्वारा बेल की प्रयोगशाला में किए अविष्कार Transistor in Hindi के बारे में पढ़ते है।
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ट्रांजिस्टर क्या है और कैसे काम करता है?
ट्रांजिस्टर एक सेमीकंडक्टर (अर्धचालक) डिवाइस है जो कि किसी भी इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल्स को एम्प्लॉय या स्विच करने के काम आता है। यह (सेमीकंडक्टर) अर्धचालक पदार्थ से बना होता है जिसे बनाने के लिए ज्यादातर सिलिकॉन और जेर्मेनियम का प्रयोग किया जाता हैं। इसके 3 टर्मिनल होते हैं। जो इसे किसी दूसरे सर्किट से जोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं । इन टर्मिनल को बेस, कलेक्टर और एमिटर कहा जाता है।
कंडक्टर क्या है?
कंडक्टर वे पदार्थ होते हैं जिनमें चालन के लिए मुक्त इलेक्ट्रॉन प्रयुक्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इनमें इलेक्ट्रिक करंट आसानी से पास किया जा सकता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सभी धातुएं धारा का गुड कंडक्टर होती है और चांदी सबसे अच्छा गुड कंडक्टर माना जाता है।
डीइलेक्ट्रिक क्या है?
डीइलेक्ट्रिक वे पदार्थ होते हैं जिनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन की संख्या बहुत कम होती है। इसमें इलेक्ट्रिक करंट आसानी से प्रवाहित नहीं हो पाता है यानी कि इसमें करंट का प्रवाह बहुत कम होता है। इसके सबसे बेहतरीन उदाहरण लकड़ी, रबड़, प्लास्टिक आदि है।
सेमिकंडक्टर क्या है?
सेमिकंडक्टर वे पदार्थ है जिनमें करंट का प्रवाह इलेक्ट्रिकल प्रॉपर्टीज़, कंडक्टर तथा इलेक्ट्रिकल पेशेंट्स के बीच होता है। दोस्तों आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सेमीकंडक्टर्स को सुगमता से कंडक्टर बनाया जा सकता है। इसके सबसे बेहतरीन उदाहरण सिलिकॉन तथा जर्मीनियम है।
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ट्रांजिस्टर का अविष्कार कब और किसने किया
सबसे पहले एक जर्मन भौतिक विज्ञानी ‘युलियस एडगर लिलियनफेल्ड’ (Julius Edgar Lilienfeld) ने वर्ष 1925 में फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांसिस्टर (FET) के लिए कनाडा में पेटेंट के लिए प्रार्थना-पत्र दिया था। लेकिन किसी तरह के सबूत ना होने के कारण उसे स्वीकार नहीं किया गया। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक दुनिया को बदलकर रख देने वाले ट्रांजिस्टर का आविष्कार जॉन बारडीन, वॉटर ब्रटेन और विलियम शॉकले ने वर्ष 1947 में बेल्ल लैब्स में किया था।
ट्रांजिस्टर के लाभ
ट्रांजिस्टर के लाभ निम्नलिखित है :-
- ट्रांजिस्टर तेज़ी से काम करते हैं।
- ट्रांजिस्टर सस्ते होते हैं इसलिए इसका उपयोग तकनीकी क्षेत्र में ज्यादा किया जाता है।
- ट्रांजिस्टर की अवधि लंबी होती है और यह जल्दी खराब नहीं होते हैं तथा निरंतर कार्य करते हैं।
- एक ट्रांजिस्टर लो वाल्टेज पर अच्छा कार्य कर लेता है।
- ट्रांजिस्टर का उपयोग हम एक स्विच की तरह करते हैं।
- ट्रांजिस्टर का उपयोग एंपलीफायर में भी किया जाता है।
- ट्रांजिस्टर ज्यादा इलेक्ट्रॉनों की हानि नहीं होने देता है।
- माइक्रोप्रोसेसर में हर एक चिप में ट्रांजिस्टर शामिल होते हैं।
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ट्रांजिस्टर क्लासिफिकेशन और टाइप्स
जैसा कि आप जानते हैं, ट्रांजिस्टर ने इलेक्ट्रॉनिक दुनिया में बहुत बड़ा बदलाव किया तो इसका जितना बड़ा बदलाव था उसी तरह इसे बहुत ज़्यादा श्रेणियों में बांटा गया नीचे आपको एक डायग्राम दिया गया है जिसकी मदद से आप इसे ज़्यादा आसानी से समझ पाएंगे।
ट्रांजिस्टर के आविष्कार से पहले वैक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन अब ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल वैक्यूम ट्यूब की जगह किया जा रहा है क्योंकि ट्रांजिस्टर आकार में बहुत मोटे और वजन में बहुत हल्के होते हैं और इन्हें ऑपरेट होने के लिए बहुत ही कम पावर की ज़रूरत पड़ती है। इसलिए ट्रांजिस्टर बहुत सारे उपकरण में इस्तेमाल किया जाता है जैसे एम्पलीफायर, स्विचन सर्किट, ओसीलेटरर्स और भी लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
इसके मुख्य दो ही प्रकार होते हैं :
- N-P-N
- P-N-P
N-P-N ट्रांजिस्टर क्या है?
जब P प्रकार के प्रदार्थ की परत को दो N प्रकार के प्रदार्थ की परतों के बीच में लगाया जाता है तो हमें N-P-N ट्रांजिस्टर मिलता है। इसमें इलेक्ट्रॉन बेस टर्मिनल के ज़रिए कलेक्टर से एमिटर की ओर बहते हैं।
P-N-P ट्रांजिस्टर क्या है?
जब N प्रकार के प्रदार्थ की परत को दो P प्रकार के प्रदार्थ की परतों के बीच में लगाया जाता है तो हमें P-N-P ट्रांजिस्टर मिलता है। इसमें ट्रांजिस्टर के दोनों प्रकार देखने में तो एक जैसे लगते हैं लेकिन जिस में सिर्फ जो एमिटर पर तीर का निशान है उसमें फर्क है PNP में यह निशान अंदर की तरफ है और NPN में यह निशान बाहर की तरफ है। तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कौन से ट्रांजिस्टर में तीर का निशान किस तरफ है। इसे याद करने की एक बहुत आसान सी ट्रिक है ।
NPN – ना पकड़ ना :- यहां पर हम इनकी फुल फॉर्म ना पकड़ ना की तरह इस्तेमाल करेंगे इसका मतलब पकड़ो मत जाने दो तो इसमें तीर का निशान बाहर की तरफ जा रहा है।
PNP – पकड़ ना पकड़ :- यहां पर हम इनकी फुल फॉर्म पकड़ ना पकड़ की तरह इस्तेमाल करेंगे इसका मतलब पकड़ लो तो इसमें तीर का निशान अंदर की तरफ रह जाता है।
तो ऐसे आप इसे याद रख सकते हैं और ट्रांजिस्टर के 3 टर्मिनल होते हैं। जो इसे किसी दूसरे सर्किट से जोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। इन टर्मिनल को बेस, कलेक्टर और एमिटर कहा जाता है।
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FET (फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर)
FET ट्रांजिस्टर का दूसरा टाइप है और इसमें भी 3 टर्मिनल होते हैं। जिसे गेट (G), ड्रेन (D) और सोर्स (S) कहते है और इसे भी आगे और कैटेगरी में बांटा गया है। जंक्शन फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर (JFET) और MOSFET ट्रांजिस्टर। इन्हें भी आगे और क्लासिफाइड किया गया है । JFET को डिप्लीशन मोड में और MOSFET को डिप्लीशन मोड और एनहैंसमेंट मोड में क्लासिफाइड किया गया है। और इन्हें भी आगे N-चैनल और P-चैनल में क्लासिफाइड किया गया है।
स्माल सिग्नल ट्रांजिस्टर
स्माल सिग्नल ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल सिग्नल को एम्प्लिफाय करने के साथ-साथ स्विचिंग के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। सामान्यत: यह ट्रांजिस्टर हमें बाज़ार में PNP और NPN रूप में मिलता है। इस ट्रांजिस्टर के नाम से ही पता लग रहा है कि यह ट्रांजिस्टर वोल्टेज और करंट को थोड़ा सा एम्प्लिफाय करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस ट्रांजिस्टर का उपयोग लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में किया जाता है जैसे कि LED डायोड ड्राइवर, रेलय ड्राइवर, ऑडियो म्यूट फंक्शन, टाइमर सर्किट्स, इंफ्रारेड डायोड एम्प्लीफायर इत्यादि ।
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स्माल स्विचिंग ट्रांजिस्टरस
इस ट्रांजिस्टर का प्राइमरी काम किसी भी सिग्नल को स्विच करना है उसके बाद में इसका काम एम्प्लिफाय का है। मतलब इस ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल ज्यादातर सिग्नल को स्विच करने के लिए ही किया जाता है। यह भी आपको मार्केट में एन पी एन और पी एन पी रूप में मिलता है।
पावर ट्रांजिस्टर
ऐसे ट्रांजिस्टर जो हाई पावर को एम्प्लिफाय करते हैं और हाई पावर की सप्लाई देते हैं उन्हें पावर ट्रांजिस्टर कहते हैं। इस तरह के ट्रांजिस्टर PNP ,NPN और डार्लिंगटन ट्रांजिस्टर के रूप में मिलते हैं । इसमें कलेक्टर के करंट की वैल्यूज़ रेंज 1 से 100A तक होती है और इसकी ऑपरेटिंग फ्रीक्वेंसी की रेंज 1 से 100MHz तक होती है ।
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ट्रांजिस्टर का यूज़ कहा होता है?
ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल किन किन प्रक्रियाओं से हो सकता है? जानिए इन पॉइंटर्स के माध्यम से :-
- ट्रांजिस्टर का उपयोग ज्यादातर इन्वर्टर के सर्किट में एक फ़ास्ट स्विच की तरह होता है।
- ट्रांजिस्टर का उपयोग एम्पलीफायर में वीक सिग्नल एम्प्लिफाय करने के लिए किया जाता है।
- ट्रांजिस्टर का उपयोग विभिन्न प्रकार के डिजिटल गेट बनाने के लिए किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त ट्रांजिस्टर का उपयोग विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बनाने के लिए किया जाता है।
ट्रांजिस्टर के नुकसान
जैसा की हम सभी जानते है कि हर सिक्के के दो पहलु होते है, ठीक इसी तरह से ट्रांजिस्टर के जहाँ बहुत से फायदे होते है। वही दूसरी तरफ ट्रांजिस्टर की अपनी कुछ ऐसी सीमाएं होती है जिसके बाहर जाकर वह काम नहीं कर सकता है। आइए दोस्तों जानते है की ट्रांजिस्टर की क्या सीमा होती है।
- ट्रांजिस्टर का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि इसमें उच्च इलेक्ट्रान की गतिशीलता की कमी होती है।
- इसका दूसरा नुकसान ये है कि यह बड़ी ही आसानी से किसी भी इलेक्ट्रिकल और थर्मल घटना से डैमेज हो सकता है।
- इसके अलावा ट्रांजिस्टर बड़ी आसानी से कॉस्मिक रे और रेडिएशन से प्रभावित हो सकता है।
FAQs
ट्रांजिस्टर अर्धचालक पदार्थ से मिलकर बनता है। इसे बनाने के लिए ज्यादातर सिलिकॉन और जर्मेनियम का प्रयोग किया जाता है। इसमें तीन सिरे या टर्मिनल होते हैं जिनका इस्तेमाल दूसरे सर्किट से जोड़ने में किया जाता है। ये तीन टर्मिनल हैं : बेस, कलेक्टर और एमीटर।
ट्रांजिस्टर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है। यह p और n प्रकार के अर्धचालक के माध्यम से बनाया गया है। जब अर्धचालक को एक ही प्रकार के अर्धचालकों के बीच केंद्र में रखा जाता है, तो इस व्यवस्था को ट्रांजिस्टर कहा जाता है। हम कह सकते हैं कि एक ट्रांजिस्टर दो डायोड का संयोजन है जो बैक टू बैक जुड़ा हुआ है।
मॉसफेट मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं :-
1:- P- चैनल मॉसफेट
2:-N- चैनल मॉसफेट
1:-गेट, 2:ड्रेन, 3:सोर्स,
मॉसफेट में P- चैनल या N- चैनल उसका पता लगाना। .
रेडियो तरंगों के माध्यम से सुने जाने वाले संवाद या संगीत को संक्षेप में रेडियो कहा जाता था, बाद में जब सेमि कंडक्टरों से बने ट्रांजिस्टर ने वाल्व का स्थान लिया तब रेडियो को ट्रांजिस्टर कहा जाने लगा। ट्रांजिस्टर वाले रेडियो स्थान भी कम घेरते हैं और बिजली की खपत भी कई गुना काम होती है।
PNP और NPN ट्रांजिस्टर के बीच का अंतर यह है कि NPN ट्रांजिस्टर में कलेक्टर से एमिटर के बीच करंट का प्रवाह तब होता है जब हम बेस पर पॉज़िटिव सप्लाई देते है। जबकि PNP ट्रांजिस्टर में एमिटर से कलेक्टर के बीच करंट का प्रवाह तब होता है जब हम बेस पर नेगेटिव सप्लाई देते है।
आशा है कि आपको Transistor in Hindi पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसी ही अन्य ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारियों के लिए Leverage Edu के साथ बने रहिए।
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आपका धन्यवाद
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Thank you sir
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आपका बहुत-बहुत आभार।
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10 comments
Bahut badhiya jankari
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