सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की सबसे महान सभ्यता मानी जाती है। इसे ‘हड़प्पा संस्कृति’ के नाम से भी जाना जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन ज्ञात ‘शहरी सभ्यता’ भी मानी जाती है। यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी, इसका विस्तार उत्तर भारत से लेकर पाकिस्तान के सिंध प्रांत तक था। यहाँ सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं बताई जा रही है।
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सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं नीचे बताई जा रही है:
सामाजिक संगठन
सिंधु सभ्यता का समाज मुख्यतः वर्गहीन समाज था। यह सभ्यता अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिये जानी जाती है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने- अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित होते थे जिसमें अनुमानतः उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे। वहीं इस सभ्यता के अन्तर्गत समाज ‘मातृप्रधान’ था।
कृषि फसल एवं आहार
सिंधु सभ्यता के मनुष्य मुख्यतः कृषि के आधार पर ही अपना जीवनयापन किया करते थे इसमें मुख्य फसल गेहूँ, जौ, चावल, मटर, तिल, सरसों, मसूर सब्जियाँ और फल आदि थी। बता दें कि सिंधु सभ्यता के मनुष्यों ने सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की थी। इसके अलावा हड़प्पाई लोग कृषि के साथ -साथ बड़े पैमाने पर पशुपालन भी किया करते थे ।
वेशभूषा एव आभूषण
माना जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के मनुष्य शरीर पर दो वस्त्र धारण किया करते थे। प्रथम एक आधुनिक शाल के समान कपड़ा होता था जिसे वह कन्धे के ऊपर तथा दाहिनी भुजा के नीचे से निकालकर पहनते थे। जिससे दाहिना हाथ कार्य करने के लिए स्वतंत्र रहे। दूसरा वस्त्र शरीर के निचले भाग में पहना जाता था, जो आधुनिक धोती के समान होता था। बता दें कि इस काल में स्त्रियों और पुरुषों के वस्त्रों में विशेष अन्तर नहीं था। साधारणतः सूती कपड़े पहने जाते थे परन्तु ऊनी वस्त्रों का भी प्रचलन था।
ऐतिहासिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता में स्त्री-पुरुष अंगूठी, कड़े, कंगन, कण्ठाहार, कुण्डल आदि पहनते थे। वहीं स्त्रियाँ-चूड़ियाँ, कर्णफूल, हंसली, भुजबन्द, करधनी आदि भी पहनती थीं। ये आभूषण सोने, चाँदी, हाथी दाँत, हीरों आदि से बनाये जाते थे। वहीं निर्धन व्यक्ति ताँबे, मिट्टी, सीप आदि के आभूषण पहनते थे। वहीं घरेलू जीवन में सिंधु घाटी संस्कृति के लोग घड़े, कलश, थाली, गिलास, चम्मच, मिट्टी के कुल्हड़ का प्रयोग किया करते थे। इसके अलावा प्राप्त स्रोत से मिली जानकारी के अनुसार कभी-कभी सोने, ताँबे एवं चाँदी के बर्तनों का भी प्रयोग किया जाता था।
धार्मिक जीवन
सिंधु निवासी निम्नलिखित देवी-देवताओं की आराधना करते थे-
पेड़ों की पूजा – सिंधु घाटी सभ्यता के लोग प्रकृति प्रेमी थे। वे विशेष रूप से पीपल के पेड़ को पवित्र मानते थे और उसकी आराधना किया करते थे।
शिव की पूजा- मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई मुहर पर अंकित देवता को भगवान शिव का आदि रूप माना जाता है। विशेष बात यह है कि भगवान शिव आर्यों के भी आराध्य देव रहे हैं।
मातृ देवी की पूजा- सैन्धव संस्कृति से सर्वाधिक संख्या में नारी मृण्य मूर्तियाँ मिलने से मातृ देवी की पूजा का पता चलता है।
मूर्ति पूजा– हड़प्पा संस्कृति के समय से मूर्ति पूजा का प्रारम्भ हो गया था। बता दें कि हड़प्पा सभ्यता से कुछ आकृतियाँ प्राप्त हुई है। इसी प्रकार कुछ दक्षिण की मूर्तियों में धुयें के निशान बने हुए हैं जिसके आधार पर यहाँ मूर्ति पूजा का अनुमान लगाया जाता है। हड़प्पा काल के बाद उत्तर वैदिक युग में मूर्ति पूजा के प्रारम्भ का संकेत मिलता है हालांकि मूर्ति पूजा गुप्त काल से प्रचलित हुई जब पहली बार मन्दिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ।
जलपूजा– मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानागार के आधार पर ज्ञात होता है कि यहां जलपूजा का भी प्रचलन था।
सूर्य पूजा- मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्वास्तिक प्रतीकों के आधार पर। स्वास्तिक प्रतीक का सम्बन्ध सूर्य पूजा से लगाया जा सकता है।
नाग पूजा- मुहरों पर नागों के अंकन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता में नागों की भी पूजा की जाती होगी।
कला
कला एवं ललितकला की जानकारी हमें निम्नलिखित के द्वारा प्राप्त होती है:-
भवन निर्माण कला- विशाल अन्नागार, मकान, सुनियोजित नगर आदि उनकी कला के नमूने हैं।
मूर्तिकला– सिन्धु निवासी मूर्तियाँ बनाने में कुशल थे। उस समय की धातु, पाषाण एवं मिट्टी की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जिनमें देवी देवताओं की मूर्ति मिली है।
धातु कला- सिन्धु निवासी सोने, चाँदी, ताँबे. आदि के आभूषणों का निर्माण करते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांसे की नर्तकी की मूर्ति मिली है।
चित्रकला– इस सभ्यता के लोगों को चित्रकला का भी ज्ञान था। जिसकी पुष्टि प्राप्त बर्तनों एवं मुहरों पर बने चित्रों से होती है।
संगीत एवं नृत्यकला- संगीत सम्बन्धी उपकरण ढोल, तबला आदि खुदाई से प्राप्त हुए हैं। नृत्य मुद्रा में स्त्री की धातु मूर्ति इस बात का परिचायक है कि वे नृत्य कला में रुचि रखते थे।
ताम्रपत्र निर्माण कला- सिन्धु सभ्यता में अनेक ताम्रपत्र प्राप्त हुए हैं जो वर्गाकार हैं।
FAQs
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की थी।
सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का मुख्य कार्य कृषि था।
सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित प्रमुख स्थल वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है। यहाँ सबसे पहले उत्खनन कार्य किया गया था। यह रावी नदी के तट पर स्थित है।
सिंधु घाटी की सभ्यता का सबसे बड़ा नगर मोहनजोदड़ो है। इस सभ्यता को ‘सिंधु सरस्वती सभ्यता’ भी कहते हैं। कुछ विद्वान इसे हड़प्पा सभ्यता का हीं एक रूप मानते हैं ।
आशा है इस ब्लॉग से आपको सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं विषय के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी। भारत के इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।
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Nice information about shindu
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