हिंदी कक्षा 10 “संचयन भाग-2” के पाठ-2 “Sapno Ke Se Din Class 10″ कहानी के पाठ प्रवेश, कठिन-शब्दों के अर्थ, लेखक के बारे में और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर, इन सभी के बारे में जानेंगे। तो चलिए जानते हैं ” Sapno Ke Se Din Class 10″ कहानी के बारे में विस्तार से।
बोर्ड | CBSE |
कक्षा | कक्षा 10 |
पाठ का नाम | सपनों के से दिन |
टेक्स्टबुक | हिंदी संचयन |
श्रेणी | NCERT सॉल्यूशन |
पाठ संख्या | पाठ 2 |
लेखक | गुरदयाल सिंह |
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लेखक परिचय
लेखक – गुरदयाल सिंह (Sapno Ke Se Din Class 10)
जन्म – 10 जनवरी 1933
पाठ प्रवेश (सपनों के-से दिन)
मशहूर पंजाबी साहित्यकार गुरदयाल सिंह जी का जन्म 10 जनवरी 1933 को उनके नानका गाँव भैनी फत्ता जिला बरनाला में हुआ था। इन्होंने कई उपन्यास और कहानियां लिखी हैं जिनमें Sapno Ke Se Din Class 10 भी लोकप्रिय है। गुरदयाल सिंह ने अपनी प्रथम कहानी भागों वाले प्रो.मोहन सिंह के साहित्य मैगजीन पंज दरिया में प्रकाशित की थी। उनके पंजाबी साहित्य में आने से पंजाबी उपन्यास में बुनियादी तबदीली आई थी। इन्हें 1999 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
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पाठ प्रवेश (सपनों के से दिन)
बचपन में भले ही सभी सोचते हों की काश! हम बड़े होते तो कितना अच्छा होता। परन्तु जब सच में बड़े हो जाते हैं, तो उसी बचपन की यादों को याद कर-करके खुश हो जाते हैं। बचपन में बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जो उस समय समझ में नहीं आती क्योंकि उस समय सोच का दायरा सिमित होता है। और ऐसा भी कई बार होता है कि जो बातें बचपन में बुरी लगती है वही बातें समझ आ जाने के बाद सही साबित होती हैं।
प्रस्तुत पाठ में भी लेखक अपने बचपन की यादों का जिक्र कर रहा है कि किस तरह से वह और उसके साथी स्कूल के दिनों में मस्ती करते थे और वे अपने अध्यापकों से कितना डरते थे। बचपन में लेखक अपने अध्यापक के व्यवहार को नहीं समझ पाया था उसी का वर्णन लेखक ने इस पाठ में किया है।
पाठ सारांश
Sapno Ke Se Din Class 10 पाठ सारांश नीचे दिया गया है-
- सपनों के से दिन कहानी दुनिया के हर आम बच्चे की कहानी है। इस कहानी में लेखक ने उस हर छोटे-बड़े पहलू को उजागर किया है जो हम शायद नज़र अंदाज कर देते हैं। लेखक ने इस कहानी को साधारण व सरल भाषा में लिखा है। यह कहानी आज़ादी से पहले हमारे गाँव के जीवन, सोच, परिवेश, उनकी धारणाओं, समस्याओं आदि को उजागर करती है। यह कहानी एक गाँव के जीवन से आरंभ होती है। जहाँ बच्चों के लिए पढ़ना घर में कैद करने के समान है।
- इसका कारण शिक्षा का उबाव होना नहीं है अपितु शिक्षा देने वाले अध्यापकों के सख्त व्यवहार के कारण है। विद्यालय वह स्थान है जहाँ विद्यार्थी आकार व रूप पाता है। उसके उज्जवल भविष्य की नींव उसका विद्यालय रखता है। यहाँ दो अध्यापकों के माध्यम से कवि हमारे आगे समस्या व निवारण दोनों रखता है।
- विद्यालय में एक प्रधानाचार्य शर्मा जी हैं जो नम्र व स्नेही स्वभाव के हैं। उनका मानना है की बच्चों की उम्र सख्त व्यवहार करके समझना नहीं है अपितु उन्हें स्नेह व प्रेम से समझना है। वह बच्चों के साथ सख्तपूर्ण व्यवहार व सज़ा देने के सख्त विरोधी है। इसी कारण बच्चे उनसे प्यार करते हैं। उनकी कक्षा में पढ़ते हैं। उसके विपरीत उनके विद्यालय के दूसरे अध्यापक प्रीतम चंद हैं जो बच्चों के सख्त व्यवहार ही नहीं करते हैं अपितु उन्हें कड़ी व क्रूरपूर्ण सज़ा भी देते हैं।
- सभी बच्चे उनसे डरते हैं व उनके व्यवहार के कारण पढ़ाई से दूर भागते हैं। शर्मा जी जिस दिन उनकी इस तरह के व्यवहार से अवगत होते हैं, वह उनकी सेवा स्थागित कर देते हैं। यह कहानी आज के अध्यापकों को एक संदेश देती है की बच्चों का बाल मन स्नेह देने के लिए है सख्त सजा देने के लिए नहीं।
लघु सारांश
Sapno Ke Se Din Class 10 पाठ का लघु सारांश इस प्रकार है:
- कहानी सपने के से दिन लेखक गुरदयाल सिंह के बचपन का एक स्मरण है। वो अपने स्कूल के दिनों को याद करते हैं। वह बहुत संपन्न परिवार से न थे। वह ऐसे गाँव से थे जहाँ कुछ ही लड़के पढाई में रूचि रखते थे। कई बच्चे स्कूल कभी जाते ही नहीं या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते। द्वितीय विश्व युद्ध का जमाना था और उन दिनों चीजें महँगी हुआ करती थी। पढाई की चीजें में जितना दाम लगता उतने में एक सेर घी आ जाता था।
- वे अपने परिवार के पहले लड़के थे जो स्कूल जाते थे। वे याद करते हैं की सभी विद्यार्थी स्कूल को कैद समझते और पढ़ने में कुछ ही लड़कों को रूचि होती। उन्हें अपना खेल कूद याद आता है कि कैसे सभी बच्चे खेलते समय अक्सर ही चोटिल हो जाया करते और इस पर भी इन्हें अपने अपने घरों में मार पड़ती। स्कूल के अलियार के फूल की सुगंध वो आज भी महसूस करते हैं।
- पूरे साल में सिर्फ एक दो महीने ही पढ़ाई होती और लंबी छुट्टियाँ पड़ती थी। छुट्टियों में वे गृहकार्य न कर पूरी छुट्टियाँ खेलने में निकाल देते और शेष कुछ दिनों में जैसे तैसे पूरा करते। स्कूल न जाने का एक बड़ा कारण था मास्टर से पिटाई का भय। उन्हें अक्सर ही शिक्षकों से मार खाना पड़ता। कुछ शिक्षक ऊँची श्रेणी में भी पढ़ाते। उनके हेडमास्टर श्री मदनमोहन शर्मा नरम दिल के थे जो बच्चो को सजा देने में यकीन नहीं रखते थे पर उन्हें याद है अपने पीटी सर प्रीतमचंद जो काफी सख्त थे और स्काउट कराते। वो बच्चो की खाल उधेड़ने को सदा तैयार रहते।
- लेखक और उनके साथियों को स्काउट करना बहुत पसंद था। खाकी वर्दी पहने गले में दोरंगे रूमाल लटकाए और नीली पीली झंडियाँ पकड़ कर अभ्यास करना उन्हें उत्साहित करता। ऐसा लगता था मानो एक फ़ौजी हों। मास्टर जी की एक शाबाशी उन्हें एहसास कराती जैसे फ़ौज के सारे तमगे जीत लिए हों। अंग्रेजों के अफ्सर बच्चों को फ़ौज में भर्ती होने को आकर्षित करते पर कुछ ही लड़के थे जो उनके सूट और बूट की लालच में आकर भर्ती होते। मास्टर जी का भारी बूट उन्हें भाता पर घरवाले लाने नहीं देते। इसके बाद भी लेखक और उनके सहपाठी पीटी मास्टर से नफरत करते जिसकी वजह थी उनका उन्हें बुरी तरह पीटना।
- जब वे सब चौथी श्रेणी में पढ़ते थे तब पीटी मास्टर उन्हें फ़ारसी पढ़ाते थे जो एक कठिन विषय था। एक शब्दरूप याद करने को उन्हीं ने दिया था जिसे कुछ ही बच्चे याद कर पाए और तब मास्टर साहब ने सबको मुर्गा बनने को कहा। जब हेडमास्टर शर्मा जी ने यह देखा तो बहुत गुस्सा हुए और उन्हें निलंबित करने को एक आदेश पत्र लिख दिया जिसपे शिक्षा विभाग के डायरेक्टर की मंजूरी आवश्यक थी। उसके बाद पीटी मास्टर कभी स्कूल न आए। लेखक को इतना याद है कि सख्त पीटी मास्टर अपने तोतों से मीठी मीठी बातें किया करते थे जो उन्हें हैरान करती थीं।
कठिन-शब्दों के अर्थ
Sapno Ke Se Din Class 10 के कठिन-शब्दों के अर्थ नीचे दिए गए हैं-
- पिंडलियाँ – घुटने और टखने के बीच का पिछला मांसल भाग
- गुस्सैल – गुस्से वाला
- ट्रेनिंग – प्रशिक्षण
- बाल-मनोविज्ञान – बच्चों के मन का विज्ञान या ज्ञान
- परचूनिये – राशन की दुकान वाला
- आढ़तिये – जो किसानों की फसलों को खरीदते और बेचते हैं
- लंडे – हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी प्राचीन लिपि
- बहियाँ – खाता
- मुनीमी – दुकानदारी
- लोकोक्ति – लोगों के द्वारा कही गयी उक्ति/बात
- खेडण – खेलने के
- अलियार – गली की तरह का लंबा सीधा रास्ता
- चपड़ासी – चपरासी `
- श्रेणी – कक्षा
- सयाने – समझदार
- ननिहाल – नानी के घर
- पिछड़ा – जो उन्नति न कर सका हो।
- गंदले – गंदा, मटमैला
- दुम – पूँछ
- सलाह – विचार-विमर्श,परामर्श
- ढाँढ़स – धीरज दिलाना, हौसला देना
- हिसाब के मास्टर जी – गणित के अध्यापक
- दोपहरी – दिन में ही
- हाँड़ी – मटका
- ठिगने – छोटे कद का
- बालिश्त – बित्ता
- कतार – पंक्ति
- घुड़की – धमकी भरी डाँट
- ठुट्टों – लात-घुस्से
- खाल उधेड़ना – कड़ा दंड देना, बहुत अधिक मारना-पीटना
- तमगा – पदक, मैडल
- डिसीप्लिन – अनुशासन
- गुडविल – साख, प्रख्याति
- सतिगुर – सतगुरु
- फटकारना – डाँटना
- धनाढ्य – अधिक धन वाले
- दिलचस्पी – रूचि
- रकम – सम्पति, दौलत
- चाव – शौक, इच्छा
- ज़िक्र – चर्चा
- हरफनमौला – सर्वगुण सम्पन्न, हर क्षेत्र में आगे रहे वाला
- ह्विसल – सीटी
- बूट – जूते
- अकड़ – घमण्ड
- विलायत – प्रदेश
- शामियाना – तम्बू
- मसखरे – विदूषक या हँसी-मजाक करने वाले व्यक्ति
- रंगरूट – सेना या पुलिस आदि में नया भर्ती होने वाला सिपाही
- अठे – यहाँ
- लीतर – फटे-पुराने खस्ताहाल जूते
- उठै – वहाँ
- ठिगना – छोटा
- गठीला – पुष्ट
- स्वाभाविक – प्राकृतिक
- आदेश – आज्ञा
- ज़बानी – केवल जुबान के द्वारा
- गुर्राए – गुस्से में चिल्लाना
- दफ़्तर – कार्यालय, ऑफिस
- बर्बरता – असभ्यता एवं जंगलीपन
- मुअत्तल – निलंबित या निकाल देना
- मंजूरी – स्वीकृति
- महकमाए-तालीम – शिक्षा विभाग
- चौबारा – वह कमरा जिसमें चारों और से खिड़कियाँ और दरवाजें हों
- रति भर – थोड़ी सी भी
- बिल्ला – पट्टी या डंडा
- अलौकिक – अद्भुत या अपूर्व
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महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
सपनों के से दिन पाठ के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर इस प्रकार हैं:
प्रश्न 1 – कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?
उत्तर – कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती। यह बात लेखक के बचपन की एक घटना से सिद्ध होता है -लेखक के बचपन के ज्यादातर साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। जब लेखक छोटा था तो उनकी बातों को बहुत कम ही समझ पाता था और उनके कुछ शब्दों को सुन कर तो लेखक को हँसी आ जाती थी। परन्तु जब सभी खेलना शुरू करते तो सभी एक-दूसरे की बातों को बहुत अच्छे से समझ लेते थे। उनका व्यवहार एक दूसरे के लिए एक जैसा ही रहता था।
प्रश्न 2 – पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे, वे लड़कों की पंक्तियों के पीछे खड़े-खड़े यह देखते रहते थे कि कौन सा लड़का पंक्ति में ठीक से नहीं खड़ा है। सभी लड़के उस ‘पीटी’ से बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा था और न सुना था। यदि कोई लड़का अपना सिर भी इधर-उधर हिला लेता या पाँव से दूसरे पाँव की पिंडली खुजलाने लगता, तो वह उसकी ओर बाघ की तरह झपट पड़ते और ‘खाल खींचने’ (कड़ा दंड देना, बहुत अधिक मारना-पीटना) के मुहावरे को सामने करके दिखा देते। यही कारण था कि जब स्कूल में स्काउटिंग का अभ्यास करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता, तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों।
प्रश्न 3 – नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?
उत्तर – हर साल जब लेखक अगली कक्षा में प्रवेश करता तो उसे पुरानी पुस्तकें मिला करतीं थी। उसके स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी एक बहुत धनी लड़के को उसके घर जा कर पढ़ाया करते थे। हर साल अप्रैल में जब पढ़ाई का नया साल आरम्भ होता था तो शर्मा जी उस लड़के की एक साल पुरानी पुस्तकें लेखक के लिए ले आते थे। उसे नयी कापियों और पुरानी पुस्तकों में से ऐसी गंध आने लगती थी कि उसका मन बहुत उदास होने लगता था। आगे की कक्षा की कुछ मुश्किल पढ़ाई और नए मास्टरों की मार-पीट का डर और अध्यापक की ये उम्मीद करना कि जैसे बड़ी कक्षा के साथ-साथ लेखक सर्वगुण सम्पन्न या हर क्षेत्र में आगे रहे वाला हो गया हो। यदि लेखक और उसके साथी उन अध्यापकों की आशाओं पर पूरे नहीं हो पाते तो कुछ अध्यापक तो हमेशा ही विद्यार्थियों की ‘चमड़ी उधेड़ देने को तैयार रहते’ थे।
प्रश्न 4 – स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता है?
उत्तर – जब लेखक धोबी द्वारा धोई गई वर्दी और पालिश किए चमकते जूते और जुराबों को पहनकर स्काउटिंग की परेड करते तो लगता कि वे भी फौजी ही हैं। मास्टर प्रीतमसिंह जो लेखक के स्कूल के पीटी थे, वे लेखक और उसके साथियों को परेड करवाते और मुँह में सीटी ले कर लेफ्ट-राइट की आवाज़ निकालते हुए मार्च करवाया करते थे। फिर जब वे राइट टर्न या लेफ्ट टार्न या अबाऊट टर्न कहते तो सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते और ऐसे घमंड के साथ चलते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों, जैसे किसी देश का फौज़ी जवान होता है, अर्थात लेखक कहना चाहता है कि सभी विद्यार्थी अपने-आप को फौजी समझते थे।
प्रश्न 5 – हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअतल कर दिया?
उत्तर – मास्टर प्रीतमचंद लेखक की चौथी कक्षा को फ़ारसी पढ़ाने लगे थे। अभी मास्टर प्रीतमचंद को लेखक की कक्षा को पढ़ते हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ होगा कि प्रीतमचंद ने उन्हें एक शब्दरूप याद करने को कहा और आज्ञा दी कि कल इसी घंटी में केवल जुबान के द्वारा ही सुनेंगे। दूसरे दिन मास्टर प्रीतमचंद ने बारी-बारी सबको सुनाने के लिए कहा तो एक भी लड़का न सुना पाया। मास्टर जी ने गुस्से में चिल्लाकर सभी विद्यार्थियों को कान पकड़कर पीठ ऊँची रखने को कहा। जब लेखक की कक्षा को सज़ा दी जा रही थी तो उसके कुछ समय पहले शर्मा जी स्कूल में नहीं थे। आते ही जो कुछ उन्होंने देखा वह सहन नहीं कर पाए। शायद यह पहला अवसर था कि उन्होंने पीटी प्रीतमचंद की उस असभ्यता एवं जंगलीपन को सहन नहीं किया और वह भड़क गए थे। यही कारण था कि हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को मुअतल कर दिया।
प्रश्न 6 – लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?
उत्तर – बचपन में लेखक को स्कूल जाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था परन्तु जब मास्टर प्रीतमसिंह मुँह में सीटी ले कर लेफ्ट-राइट की आवाज़ निकालते हुए मार्च करवाया करते थे और सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते और ऐसे घमंड के साथ चलते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों, जैसे किसी देश का फौज़ी जवान होता है । स्काउटिंग करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों। यह शाबाशी लेखक को उसे दूसरे अध्यापकों से मिलने वाले ‘गुड्डों’ से भी ज्यादा अच्छा लगता था। यही कारण था कि बाद में लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगने लगा।
प्रश्न 7 – लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुटियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?
उत्तर – जैसे-जैसे लेखक की छुट्टियों के दिन ख़त्म होने लगते तो वह दिन गिनने शुरू कर देता था। हर दिन के ख़त्म होते-होते उसका डर भी बढ़ने लगता था। अध्यापकों ने जो काम छुट्टियों में करने के लिए दिया होता था, उसको कैसे करना है और एक दिन में कितना काम करना है यह सोचना शुरू कर देता। जब लेखक ऐसा सोचना शुरू करता तब तक छुट्टियों का सिर्फ एक ही महीना बचा होता। एक-एक दिन गिनते-गिनते खेलकूद में दस दिन और बीत जाते। फिर वह अपना डर भगाने के लिए सोचता कि दस क्या, पंद्रह सवाल भी आसानी से एक दिन में किए जा सकते हैं। जब ऐसा सोचने लगता तो ऐसा लगने लगता जैसे छुट्टियाँ कम होते-होते भाग रही हों। दिन बहुत छोटे लगने लगते थे। लेखक ओमा की तरह जो ठिगने और बलिष्ट कद का उदंड लड़का था उसी की तरह बनने की कोशिश करता क्योंकि वह छुट्टियों का काम करने के बजाय अध्यापकों की पिटाई अधिक ‘सस्ता सौदा’ समझता था। और काम न किया होने के कारण लेखक भी उसी की तरह ‘बहादुर’ बनने की कल्पना करने लगता।
प्रश्न 8 – पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – लेखक ने कभी भी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में मुस्कुराते या हँसते नहीं देखा था। उनके जितना सख्त अध्यापक किसी ने पहले नहीं देखा था। उनका छोटा कद, दुबला-पतला परन्तु पुष्ट शरीर, माता के दानों से भरा चेहरा यानि चेचक के दागों से भरा चेहरा और बाज़ सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले जूत-ये सभी चीज़े बच्चों को भयभीत करने वाली होती थी। उनके जूतों की ऊँची एड़ियों के निचे भी खुरियाँ लगी रहतीं थी। अगले हिस्से में, पंजों के निचे मोटे सिरों वाले कील ठुके होते थे। वे अनुशासन प्रिय थे यदि कोई विद्यार्थी उनकी बात नहीं मानता तो वे उसकी खाल खींचने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। वे बहुत स्वाभिमानी भी थे क्योंकि जब हेडमास्टर शर्मा ने उन्हें निलंबित कर के निकाला तो वे गिड़गिड़ाए नहीं, चुपचाप चले गए और पहले की ही तरह आराम से रह रहे थे।
प्रश्न 9 – विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में जिन युक्तियों को अपनाया गया है उसमें मारना-पीटना और कठोर दंड देना शामिल हैं। इन कारणों की वजह से बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। परन्तु वर्तमान में इस तरह मारना-पीटना और कठोर दंड देना बिलकुल मना है। आजकल के अध्यापकों को सिखाया जाता है कि बच्चों की भावनाओं को समझा जाए, उसने यदि कोई गलत काम किया है तो यह देखा जाए कि उसने ऐसा क्यों किया है। उसे उसकी गलतियों के लिए दंड न देकर, गलती का एहसास करवाया जाए। तभी बच्चे स्कूल जाने से डरेंगे नहीं बल्कि ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल जाएँगे।
प्रश्न 10 – प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज्यादा रूचि लेने पर रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं।
(क) खेल आपके लिए क्यों जरुरी है?
उत्तर – खेल जितना मनोरंजक होता है उससे कही अधिक सेहत के लिए आवश्यक होता है। कहा भी जाता है कि ‘स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है।’ बच्चों का तन जितना अधिक तंदुरुस्त होगा, उनका दिमाग उतना ही अधिक तेज़ होगा। खेल-खेल में बच्चों को नैतिक मूल्यों का ज्ञान भी होता है जैसे- साथ-साथ खेल कर भाईचारे की भावना का विकास होता है, समूह में खेलने से सामाजिक भावना बढ़ती है और साथ-ही-साथ प्रतिस्पर्धा की भावना का भी विकास होता है।
(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिनसे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?
उत्तर – जितना खेल जीवन में जरुरी है, उतने ही जरुरी जीवन में बहुत से कार्य होते हैं जैसे- पढाई आदि। यदि खेल स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, तो पढाई भी आपके जीवन में कामयाबी के लिए बहुत आवश्यक है। यदि हम अपने खेल के साथ-साथ अपने जीवन के अन्य कार्यों को भी उसी लगन के साथ पूरा करते जाएँ जिस लगन के साथ हम अपने खेल को खेलते हैं तो अभिभावकों को कभी भी खेल से कोई आपत्ति नहीं होगी।
प्रश्न 11 – ‘बच्चों की यह स्वाभाविक विशेषता होती है कि खेल ही उन्हें सबसे अच्छा लगता है।’ सपनों के-से दिन नामक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ नामक पाठ से ज्ञात होता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिल-जुलकर खेलते थे। खेल खेल में जब उन्हें चोट लग जाती थी और धूल एवं रक्त जमे कई जगह से छिले पाँव लेकर घर जाते थे तो सभी की माँ-बहनें और बाप उन पर तरस खाने की जगह बुरी तरह से पिटाई करते थे, फिर भी वे अगले दिन फिर खेलने चले आते थे। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चों को खेलना सबसे अधिक अच्छा लगता है।
प्रश्न 12 – लेखक के बचपन के समय बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए?
उत्तर- अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें अधिकांश तो स्कूल जाते ही न थे और जो कभी गए भी वे पढ़ाई में अरुचि होने के कारण किसी दिन अपना बस्ता तालाब में फेंककर आ गए और फिर स्कूल गए ही नहीं। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के बचपन के दिनों में बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।
प्रश्न 13 – लेखक के बचपन में बच्चों के न पढ़ पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे। इससे आप कितना सहमत हैं?
उत्तर- लेखक के बचपन में अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रयास नहीं करते थे। परचूनिये और आढ़तीये जैसे कारोबारी भी अध्यापक से कहते थे कि मास्टर जी, हमने इसे कौन-सा तहसीलदार लगवाना है। थोड़ा बड़ा हो जाए तो पंडत घनश्याम दास से मुनीमी का काम सिखा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।
प्रश्न 14 – गरमी की छुट्टियों के पहले और आखिरी दिनों में लेखक ने क्या अंतर बताया है?
उत्तर- लेखक ने बताया है कि तब गरमी की छुट्टियाँ डेढ़-दो महीने की हुआ करती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह तक बच्चे खूब खेल-कूद किया करते थे। वे सारा समय खेलने में बिताया करते थे। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।
प्रश्न 15 – प्रीतमचंद के निलंबन के बाद भी बच्चों के मन में उनका डर किस तरह समाया था?
उत्तर- विद्यालय के लड़के पीटी मास्टर प्रीतमचंद की पिटाई से इतने डरे हुए थे कि यह पता होते हुए भी कि पीटी मास्टर प्रीतमचंद को जब तक नाभा से डायरेक्टर ‘बहाल’ नहीं करेंगे तब तक वह स्कूल में कदम नहीं रख सकते, जब भी फ़ारसी की घंटी बजती तो बच्चों की छाती धक्-धक करती फटने को आती। परंतु जब तक शर्मा जी स्वयं या मास्टर नौहरिया राम जी कमरे में फ़ारसी पढ़ाने न आ जाते, उनके चेहरे मुझए रहते। इस तरह उनका डर बच्चों के मन में जमकर बैठ चुका था।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1: ‘बच्चों की यह स्वाभाविक विशेषता होती है कि खेल ही उन्हें सबसे अच्छा लगता है।’ सपनों के-से दिन नामक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ नामक पाठ से पता चलता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिल-जुलकर खेलते थे। खेल खेल में जब उन्हें चोट लग जाती थी और धूल एवं खून लगे, कई जगह से छिले पाँव लेकर घर जाते थे तो सभी की माँ-बहनें और बाप उन पर तरस खाने की जगह बुरी तरह से पिटाई करते थे, फिर भी वे अगले दिन फिर खेलने चले आते थे। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चों को खेलना सबसे अधिक अच्छा लगता है।
प्रश्न 2: लेखक के बचपन के समय बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें अधिकांश तो स्कूल जाते ही न थे और जो कभी गए भी वे पढ़ाई में अरुचि होने के कारण किसी दिन अपना बस्ता तालाब में फेंककर आ गए और फिर स्कूल गए ही नहीं। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के बचपन के दिनों में बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।
प्रश्न 3: लेखक के बचपन में बच्चों के न पढ़ पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे, इससे आप कितना सहमत हैं?
उत्तर- लेखक के बचपन में अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रयास नहीं करते थे। परचूनिये और आढ़तीये जैसे कारोबारी भी अध्यापक से कहते थे कि मास्टर जी, हमने इसे कौन-सा तहसीलदार लगवाना है। थोड़ा बड़ा हो जाए तो पंडत घनश्याम दास से मुनीमी का काम सिखा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।
प्रश्न 4: गर्मी की छुट्टियों के पहले और आखिरी दिनों में लेखक ने क्या अंतर बताया है?
उत्तर- लेखक ने बताया है कि तब गरमी की छुट्टियाँ डेढ़-दो महीने की हुआ करती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह तक बच्चे खूब खेल-कूद किया करते थे। वे सारा समय खेलने में बिताया करते थे। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।
प्रश्न 5: लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ किसे और क्यों कहा?
उत्तर- लेखक ने सस्ता सौदा’ उस समय के मास्टरों द्वारा की जाने वाली पिटाई को कहा है। इसका कारण यह है कि उस समय के अध्यापक गरमी की छुट्टियों के लिए दो सौ सवाल दिया करते थे। बच्चे इसके बारे में तब सोचते जब उनकी छुट्टियाँ पंद्रह-बीस बचती। वे सोचते थे कि एक दिन में दस सवाल करने पर भी बीस दिन में पूरा हो जाएगा। दस दिन छुट्टियाँ और बीतने पर वे बीस सवाल प्रतिदिन पूरा करने की बात सोचते पर काम न करते। अंत में मास्टरों की पिटाई को सस्ता सौदा समझकर उसे ही स्वीकार कर लेते थे।
Sapno Ke Se Din Class 10 MCQs
सपनों के से दिन के लिए MCQs नीचे दिए गए हैं-
A) मिथिलेश्वर
B) रही मासूम
C) गुरदयाल सिंह
D) कोई नहीं
उत्तर: C) गुरदयाल सिंह
A) मास्टर प्रीतम चंद
B) हरीश चंद
C) मुकुंद लाल
D) कोई नहीं
उत्तर: A) मास्टर प्रीतम चंद
A) लड़कों को
B) कौन सा लड़का कतार में ठीक से नहीं खड़ा
C) कोई नहीं
D) कता
उत्तर: B) कौन सा लड़का कतार में ठीक से नहीं खड़ा
A) मास्टर प्रीतम चंद की घुड़की के डर से
B) मार के डर से
C) कोई नहीं
D) घुड़की के डर से
उत्तर: A) मास्टर प्रीतम चंद की घुड़की के डर से
A) खाल खींचने
B) खाल झाड़ने
C) कान मरोड़ने
D) कोई नहीं
उत्तर: A) खाल खींचने
A) जब कोई लड़का अपना सर हिलाता
B) ज ब कोई लड़का पिंडली खुजलाता
C) कोई नहीं
D) दोनों
उत्तर: D) दोनों
A) मानसिक
B) कोई भी दंड
C) शारीरिक दंड
D) कोई नहीं
उत्तर: C) शारीरिक दंड
A) आज़ादी के दिनों का
B) अंग्रेजो के दिनों का
C) अपने स्कूल के दिनों का
D) कोई नहीं
उत्तर: C) अपने स्कूल के दिनों का
A) कंप्यूटर क्लास
B) जिम
C) अपने साथिओं के साथ खेलना
D) कोई नहीं
उत्तर: C) अपने साथिओं के साथ खेलना
A) उसे पढ़ने का शौंक था
B) किताबे इकठी करने का शौंक था
C) लेखक के परिवार की आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं थी
D) कोई नहीं
उत्तर: C) लेखक के परिवार की आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं थी
A) अपने घर वालो की मदद से
b) दोस्तों की मदद से
c) हेडमास्टर साहिब की मदद से
D) कोई नहीं
उत्तर: c) हेडमास्टर साहिब की मदद से
A) बच्चो को अपने साथ काम में लगा लेते थे
B) उनको लगता था इन्होने कौन सा है तहसीलदार बनना है
C( दोनों
D) कोई नहीं
उत्तर: C( दोनों
A) बच्चे अपनी दुनिया में मस्त होते है
B) बच्चे अल्हड़ होते हैं
C) दोनों
D) कोई नहीं
उत्तर: C) दोनों
A) कड़क
B) कठोर बहुत ही मृदुल था ,
C) वे बच्चों को बिलकुल डांटते नहीं थे
D) कोई नहीं
उत्तर: C) वे बच्चों को बिलकुल डांटते नहीं थे
A) बहुत ही गहरा
B) शिक्षा बहुत मायने रखती थी
C) लोग शिक्षा के महत्त्व से पूरी तरह अन्जान थे
D) कोई नहीं
उत्तर: C) लोग शिक्षा के महत्त्व से पूरी तरह अन्जान थे
A) लेखक ने हमारे बचपन की बात लिख दी
B) अच्छा
C) बुरा
D) कोई नहीं
उत्तर: A) लेखक ने हमारे बचपन की बात लिख दी
A) बच्चो को खेल प्यारा होता है
B) उनको पिटाई जैसी ही लगती है
C) दोनों
D) कोई नहीं
उत्तर: C) दोनों
A) अपने नेता ओमा के सर की टक्कर को
B) रेल की सीटी को
C) रेल इंजन को
D) कोई नहीं
उत्तर: A) अपने नेता ओमा के सर की टक्कर को
A) निडर और बहादुर
B) शरारती
C) तेज तर्रार
D) कोई नहीं
उत्तर: A) निडर और बहादुर
A) नीम के पत्तो की
B) फूलो की तेज गंद
C) दोनों
D) कोई नहीं
उत्तर: C) दोनों
(a) पिता जी के बारे में
(b) नानी के घर के बारे में
(c) ओमा और बहादुर लड़को के बारे में जो स्कूल की पिटाई को स्कूल का काम करने से ज्यादा अच्छा मानते थे
(d) कोई नहीं
उत्तर: c
(a) नौटंकी करने
(b) फ़ौज के सुख, आराम और बहादुरी को दिखने के लिए
(c) कोई नहीं
(d) बहादुरी को दिखने के लिए
उत्तर: b
(a) अभिभावक बच्चो के काम में रूचि नहीं रखते थे
(b) बच्चो को अपना अधिकार समझते थे
(c) शाबाशी भी नहीं देते थे
(d) सभी
उत्तर: d
(a) नानी के घर जाकर
(b) मौज मस्ती करते हुए
(c) दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर: c
(a) बच्चो के पास खुला समय नहीं है
(b) बच्चे भोले होते थे
(c) बच्चे माता पिता का कहना मानते थे
(d) बच्चो के पास खुला समय नहीं है
उत्तर: a
अन्य पाठों की लिस्ट
1. मिथिलेश्वर – हरिहर काका
2. राही मासूम रजा – टोपी शुक्ला
FAQs
सपनों के से दिन के लेखक मशहूर पंजाबी साहित्यकार गुरदयाल सिंह जी हैं।
सपनों के से दिन 10वीं कक्षा का पाठ है।
लेखक जब चौथी श्रेणी में पढ़ते थे तब उनके मास्टर उन्हें फ़ारसी भाषा पढ़ाते थे।
आशा है कि इस ब्लॉग से आपको Sapno Ke Se Din Class 10 के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिली होगी। यदि आप विदेश में पढ़ाई करना चाहते हैं तो आज ही हमारे Leverage Edu एक्सपर्ट्स को 1800572000 पर कॉल करें और 30 मिनट का फ्री सेशन बुक करें।
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You should upload short summary so that we can revise chapter in short time.
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राजेंद्र सूद जी, हमने इस ब्लॉग में पाठ का सारांश दिया हुआ है लेकिन आपको उससे सम्बंधित कोई दिक्कत होती है तो आप कमेंट सेशन में लिखकर बता सकते हैं।
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2 comments
You should upload short summary so that we can revise chapter in short time.
राजेंद्र सूद जी, हमने इस ब्लॉग में पाठ का सारांश दिया हुआ है लेकिन आपको उससे सम्बंधित कोई दिक्कत होती है तो आप कमेंट सेशन में लिखकर बता सकते हैं।