Sangvad (संघवाद) का अर्थ वैसे तो बड़ा सादा और स्पष्ट है मगर इसे हर जगह जोड़-तोड़ के पेश किया जाता रहा है। संघवाद में 2 स्तर हैं, एक है केंद्रीय और दूसरा राज्य स्तर। केंद्र का किरदार संघवाद भले ही राज्यीय या स्थानीय स्तर से ज़रूर बड़ा है लेकिन यह इन दोनों स्तर पर हावी नहीं होता है। भारत की तरह ही बेल्जियम में भी संघवाद हमारी तरह ही चलता है। आप इस ब्लॉग में संघवाद के बारे में विस्तार से जानिए कि Sangvad क्या है।
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संघवाद क्या है?
Sangvad क्या है, इसकी जानकारी नीचे दी गई है-
- संघवाद (Federalism) लैटिन शब्द ‘Foedus’ है जिसका अर्थ है एक प्रकार का समझौता या अनुबंध।
- महासंघ दो तरह की सरकारों के बीच सत्ता साझा करने और उनके संबंधित क्षेत्रों को नियंत्रित करने हेतु एक समझौता है।
- संघवाद सरकार का वह रूप है जिसमें देश के भीतर सरकार के कम-से-कम दो स्तर मौजूद हैं- पहला केंद्रीय स्तर पर और दूसरा स्थानीय या राज्यीय स्तर पर।
- भारत की स्थिति में संघवाद को स्थानीय, केंद्रीय और राज्य सरकारों के मध्य अधिकारों के वितरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
संघवाद के प्रकार
Sangvad के प्रकार नीचे दिए गए हैं-
सहकारी संघवाद
संघात्मक व्यवस्था में केंद्र व प्रांतीय सरकारों में शक्तियों का विभाजन करने के बाद सरकार के दोनों स्तरों पर सहयोग को बढ़ाने वाली व्यवस्थाएं भी की जाती हैं ताकि संघ के वांछित लक्ष्य आसानी से प्राप्त हो सकें। इस सहयोग की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि सरकार के दोनों स्तर समान लक्ष्यों की दिशा में अग्रसर होते हैं। संघात्मक व्यवस्था के सामान्य उद्देश्य दोनों सरकारों के अलग-अलग कार्यों के बाद भी उनके अन्तःक्षेत्राीय सम्बन्धों को अनिवार्य बना देते हैं।
सौदेबाजी का संघवाद
संघवाद की स्थापना का मूल आधार केंद्र व प्रांतीय सरकारों में पाया जाने वाला पारस्परिक सहयोग है, लेकिन कुछ देशों में आज पारस्परिक सहयोग का स्थान सौदेबाजी ने ले लिया है। एशिया और अफ्रीका के नवोदित देशों ने पाश्चात्य संघवाद को गहरा आघात पहुंचाया है। इन देशों में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दलीय व्यवस्था के नए प्रतिमान स्थापित हुए हैं। इन राज्यों में द्विस्तरीय प्रकृति वाले राजनीतिक दलों के जन्म लेने से संघात्मक व्यवस्था में सौदेगाजी का प्रचलन बढ़ा है।
एकात्मक संघवाद
संघात्मक व्यवस्था एक गतिशील व्यवस्था है। अनेक उप-व्यवस्थाओं को अपने में समेटते हुए यह जटिल प्रक्रिया को जन्म देती है। इस जटिल प्रक्रिया में प्रादेशिक सरकारें अपना पृथक व स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखने में परेशानी महसूस करती है। आज संघात्मक सरकार का व्यवहार अनेक गैर-राजनीतिक संस्थाओं व तत्वों से भी प्रभावित होने लगा है। संघात्मक व्यवस्था का बारीकी से अवलोकन करने पर यह तथ्य उजागर होता है कि संघात्मक व्यवस्था एकात्मक व्यवस्था की तरफ अग्रसर हो रही है। कई बार व्यवहार में केन्द्र व राज्यों की सरकारों का सीमांकन करना असम्भव होता है। यही स्थिति एकात्मक संघवाद की स्थिति होती है। पहले जो कार्य प्रादेशिक सरकारों द्वारा संपादित किए जाते थे, वे अब केन्द्रीय सरकार को पूरे करने पड़ रहे हैं।
सहकारी बनाम प्रतिस्पर्द्धी संघवाद
केंद्र और राज्य सरकार के बीच संबंधों के आधार पर Sangvad की अवधारणा को दो भागों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं:
सहकारी संघवाद
सहकारी Sangvad में केंद्र व राज्य एक-दूसरे के साथ क्षैतिज संबंध स्थापित करते हुए एक-दूसरे के सहयोग से अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते हैं। इसमें केंद्र और राज्य में से कोई भी किसी से श्रेष्ठ नहीं है।
- जानकारों के मुताबिक यह राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण और अमल में राज्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
- संघ और राज्य संवैधानिक रूप से संविधान की 7वीं अनुसूची में निर्दिष्ट मामलों पर एक-दूसरे के साथ सहयोग करने हेतु बाध्य हैं।
प्रतिस्पर्द्धी संघवाद
प्रतिस्पर्द्धी Sangvad में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के मध्य संबंध वर्टीकल (लंबवत) होते हैं जबकि राज्य सरकारों के मध्य संबंध हॉरिजॉन्टल (क्षैतिज) होते हैं।
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद की अवधारणा को देश में 1990 के दशक के आर्थिक सुधारों के बाद से महत्त्व प्राप्त हुआ।
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में राज्यों को आपस में और केंद्र के साथ लाभ के उद्देश्य से प्रतिस्पर्द्धा करनी होती है।
- सभी राज्य धन और निवेश को आकर्षित करने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जिससे विकास संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके है।
- उल्लेखनीय है कि प्रतिस्पर्द्धी संघवाद भारतीय संविधान की मूल संरचना का हिस्सा नहीं है।
संवैधानिक प्रावधान- केंद्र और राज्य संबंध
केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों का उल्लेख संविधान के भाग XI और XII में विधायी, प्रशासनिक तथा वित्तीय संबंधों के तहत किया गया है। Sangvad को यहाँ आप बारीकी से जानेंगे –
विधायी संबंध
विधायी संबंध के बारे में नीचे बताया गया है-
- केंद्र अथवा राज्य द्वारा किसी विषय पर कानून बनाने की शक्ति को विधायी शक्ति कहा जाता है।
- भारत में ऐसी प्रणाली का पालन होता है जिसमें विधायी शक्तियों का वर्णन करने वाली दो प्रकार की विषय सूची होती है, जिन्हें क्रमशः संघ सूची और राज्य सूची के रूप में जाना जाता है और एक समवर्ती सूची भी होती है।
- संघ सूची में राष्ट्रीय हित के 100 विषय शामिल हैं और यह तीनों सूचियों में सबसे बड़ी है। इस सूची से संबंधित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र के पास है।
- राज्य सूची में राज्यों के मध्य व्यापार, पुलिस, मत्स्य पालन, वन, स्थानीय सरकारें, थिएटर, उद्योग आदि 61 विषय शामिल हैं और राज्यों के पास इन विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है।
- समवर्ती सूची में स्टाम्प ड्यूटी, ड्रग्स एवं ज़हर, बिजली, समाचार पत्र, आपराधिक कानून, श्रम कल्याण जैसे कुल 52 विषय शामिल हैं।
प्रशासनिक संबंध
प्रशासनिक संबंध के बारे में नीचे बताया गया है-
- संविधान के अनुच्छेद 256-263 तक केंद्र तथा राज्यों के प्रशासनिक संबंधों की चर्चा की गई है।
- सामान्य रूप में संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है, परंतु प्रशासनिक शक्तियों के विभाजन में संघीय सरकार अधिक शक्तिशाली है।
- केंद्र को यह अधिकार दिया गया है कि वह आवश्यकतानुसार कभी भी राज्यों को निर्देश दे सकता है। इसके अलावा संसद को यह अधिकार है कि वह अंतर-राज्यीय नदी विवादों पर फैसला कर सकती है।
- भारतीय संविधान ने प्रशासनिक व्यवस्था में एकरूपता सुनिश्चित करने का भी प्रावधान किया है। इसमें आईएएस और आईपीए जैसी अखिल भारतीय सेवाओं का निर्माण और उन्हें राज्य के प्रमुख पद आवंटित करने संबंधी प्रावधान शामिल हैं।
- अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की भर्ती तो केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, परंतु उनकी नियुक्ति राज्यों में होती है।
वित्तीय संबंध
वित्तीय संबंध के बारे में नीचे बताया गया है-
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 268-293 तक केंद्र एवं राज्यों के मध्य वित्तीय संबंधों की व्याख्या की गई है। साथ ही संघ एवं राज्यों के मध्य वित्तीय संसाधनों का विभाजन किया गया है, जो कि भारत शासन अधिनियम, 1935 पर आधारित हैं।
- संविधान, द्वारा केंद्र और राज्य सरकारों को राजस्व का स्वतंत्र स्रोत प्रदान किया गया है।
- संविधान के अनुसार, संसद के पास संघ सूची में शामिल विषयों पर कर लगाने की शक्ति है।
- राज्य विधायिकाओं के पास राज्य सूची में शामिल विषयों पर कर लगाने की शक्ति है।
- संसद के पास अवशिष्ट विषयों से संबंधित मामलों पर भी कर लगाने का अधिकार है।
भारत के लिए संघवाद का महत्त्व
भारत के लिए Sangvad ज़रूरी है, जिससे कार्यप्रणाली सही ढंग से काम करता रहे। संघवाद में भले ही केंद्र को ज्यादा महत्व है, लेकिन यह सिर्फ केंद्र तक ही सीमित नहीं है। Sangvad केंद्रीय सरकार से होकर अलग स्तर पर जाता है –
- भारतीय प्रशासन में शक्ति केंद्र से स्थानीय निकायों यानी पंचायत तक प्रवाहित होती है, इसी कारण देश में विकेंद्रीकरण आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केंद्र सभी शक्तियों का अधिग्रहण न करे।
- यह प्रणाली कार्य के बोझ तले दबे प्रशासन की काफी मदद करती है।
- भारत में विभिन्न नस्लों और धर्मों के लोग मौजूद हैं। सरकार ने एक धर्मनिरपेक्ष विचार को अपनाया जो 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में जोड़ा गया।
भारत में संघवाद के समक्ष चुनौतियाँ
भारत में Sangvad के समक्ष चुनौतियां तो हैं, लेकिन यह भी ज़रूरी है कि चुनौतियां बनी रहें जिससे संघवाद के अस्तित्व पर सवाल न आएं।
- भारत में संघवाद के सामने क्षेत्रवाद सबसे बड़ी चुनौती है। विशेषज्ञों के अनुसार संघवाद सबसे अधिक लोकतंत्र में ही कामयाब रहता है, क्योंकि यह केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के केंद्रीकरण को कम करता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के विपरीत भारत में शक्तियों का वितरण संविधान की सातवीं अनुसूची में वर्णित तीन सूचियों के तहत किया जाता है।
- इसके अलावा समवर्ती सूची में वह विषय शामिल हैं जिनमें केंद्र व राज्य दोनों की ही भागीदारी की आवश्यकता होती है। विवाद में केंद्र को प्रमुख माना जाएगा।
- इस प्रकार शक्तियों के बँटवारे के कई अन्य प्रावधान भी हैं जिनमें केंद्र को वरीयता दी गई है, जो कि राज्यों के मध्य केंद्रीकरण का भय उत्पन्न करता है।
- एक सामान्य महासंघ में संविधान में संशोधन की शक्ति महासंघ और इसकी इकाइयों के बीच साझा आधार पर विभाजित होती है।
- भारत में प्रत्येक राज्य के लिए राज्यपाल का कार्यालय एक संवेदनशील मुद्दा रहा है, क्योंकि यह कभी-कभी भारतीय संघ के संघीय चरित्र के लिये खतरा बन जाता है।
- अरुणाचल प्रदेश में जनवरी 2016 में राष्ट्रपति शासन लागू करने (जबकि राज्य में एक निर्वाचित सरकार थी) को भारत के संवैधानिक इतिहास में एक विचित्र घटना माना जाता है।
- भारत में भाषाओं की विविधता से भी कभी-कभी संविधान की संघीय भावना को ठेस पहुँचती है। भारत में संवैधानिक रूप से स्वीकृत 22 भाषाएँ हैं। इसके अलावा देश में सैकड़ों भाषाएँ बोली जाती हैं।
संघवाद की विशेषताएं
आपके सामने हम Sangvad की विशेषताएं आपको बताएंगे जिससे आपको इसके बारे में अधिक जानने को मिलेगा। जानते हैं इसकी विशेषताएं।
- लिखित संविधान: किसी भी संघ का सबसे प्रमुख लक्षण होता है कि उनके पास एक लिखित संविधान हो जिससे कि जरूरत पड़ने पर केंद्र तथा राज्य सरकार मार्ग दर्शन प्राप्त कर सकें। भारतीय संविधान (Indian Constitution) एक लिखित संविधान है और दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है।
- कठोर संविधान: संघीय संविधान केवल लिखित ही नहीं है बल्कि कठोर भी होता है। संविधान में महत्वपूर्ण संशोधनों के लिए संसद की सहमति के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधान मण्डलों (Legislatures) की अनुमति भी आवश्यक हैं।
शक्तियों का विभाजन
हमारे संविधान में विधायी शक्तियों को तीन लिस्ट में बांटा गया है
- संघसूची (Union List)
- राज्य सूची (State Unit)
- समवर्ती सूची (Concurrent List)
- संघ सूची में 97 राष्ट्रीय महत्व (National Importance) के विषयों का उल्लेख है जिसमें रक्षा, रेल्वे, डाक एवं तार आदि विषय आते है।
- राज्य सूची में 66 स्थानीय महत्व (Local Importance) के विषय जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस आदि आते है।
- समवर्ती सूची में केंद्र तथा राज्य दोनों से संबंधित 47 महत्वपूर्ण विषय जैसे बिजली, मजदूर संगठन खाद्य पदार्थों में मिलावट आदि आते है।
द्वैध शासन (Diarchy) प्रणाली
इसमें दो सरकारें होती है एक राष्ट्रीय सरकार और दूसरे उन राज्यों की सरकारें जिनके मिलने से संघ का निर्माण हुआ हो। दो तरह के विधानमण्डल (Legislature) है आरै दो प्रकार के प्रशासन पाए जाते है।
संविधान की सर्वोच्चता
भारत में केंद्र और राज्य सरकारों की सर्वोच्चता नहीं है। संविधान ही सबसे सर्वोच्च है। क्योंकि केंद्र व राज्य दोनों को संविधान द्वारा ही शक्तियां प्राप्त होती है।
सुप्रीम कोर्ट की विशेष स्थिति
संघ के लक्षणों में एक महत्वपूर्ण लक्षण है कि उसके पास एक स्वतंत्र न्यायपालिका हो जो संविधान की व्यवस्था करें। केंद्र तथा राज्य के बीच हुए विवादों को सुलझाना सुप्रीम कोर्ट का मूल क्षेत्राधिकार हैं। यदि केंद्र अथवा राज्य सरकार द्वारा पारित कोई कानून संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन करता है तो सुप्रीम कोर्ट उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
एनसीईआरटी के सवाल : संघवाद कक्षा 10 के प्रशनोत्तर
उत्तर: बेल्जियम से मिलती जुलती विशेषता: सबको जोड़कर संघ बनाना।
उत्तर: शासन के एकात्मक स्वरूप में केंद्र सरकार बहुत शक्तिशाली होती है और शासन के निचले स्तरों को सही मायने में शक्ति नहीं मिलती। इस तरह के उदाहरण कई तानाशाही शासनों और राजतंत्रों में देखे जा सकते हैं; जैसे लीबिया, सउदी अरब, आदि।
क. राष्ट्रीय सरकार अपने कुछ अधिकार प्रांतीय सरकारों को देती है।
ख. अधिकार विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बँट जाते हैं।
ग. निर्वाचित पदाधिकारी ही सरकार में सर्वोच्च ताकत का उपयोग करते हैं।
घ. सरकार की शक्ति शासन के विभिन्न स्तरों के बीच बँट जाती है।
उत्तर: ख
उत्तर: संघीय सूची – रक्षा, बैंकिंग, संचार, विवाह
राज्य सूची – कृषि, पुलिस
समवर्ती सूची – शिक्षा, वन, व्यापार
राज्य सरकार – राज्य सूची
केंद्र सरकार – संघीय सूची
केंद्र और राज्य सरकार – समवर्ती सूची
स्थानीय सरकार – अवशिष्ट अधिकार
उत्तर: स्थानीय सरकार → अवशिष्ट अधिकार
FAQs
संघवाद को अंग्रेजी में Federalism कहते हैं।
प्रतिस्पर्द्धी संघवाद
संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची
100 विषय
छेत्रवाद
शासन की वह व्यवस्था जिसमें किसी देश की अवयव इकाइयों और एक केंद्रीय शक्ति के बीच सत्ता की साझेदारी हो उसे संघवाद कहते हैं।
संघवाद सरकार का वह रूप है जिसमें शक्ति का विभाजन आंशिक रूप से केंद्र सरकार और राज्य सरकार अथवा क्षेत्रीय सरकारों के मध्य होता है।
भारत में स्वतंत्रता से पूर्व संघात्मक प्रणाली का विकास : भारतीय शासन अधिनियम 1919 के माध्यम से 50 विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्रान्तों को प्रदान किया था। भारत में भारत सरकार अधिनियम के 1935 के माध्यम से सबसे पहले संघवाद शब्द का प्रयोग किया गया।
प्रथम, राजनयिक शक्तियों का संघीय एवं राज्य सरकारों के मध्य संवैधानिक विभाजन, द्वितीय, संघीय संविधान की प्रभुसत्ता अर्थात् प्रथम तो न संघीय और न राज्य सरकारें संघ से पृथक् हो सकती हैं।
किसी भी संघीय व्यवस्था में सामान्य तौर पर सरकार के दो स्तर होते हैं। एक स्तर पर पूरे देश के लिये एक सरकार होती है और दूसरे स्तर पर राज्य की सरकारें होती हैं।
संघवाद सरकार का वह रूप है जिसमें शक्ति का विभाजन आंशिक रूप से केंद्र सरकार और राज्य सरकार अथवा क्षेत्रीय सरकारों के मध्य होता है। संघवाद संवैधानिक तौर पर शक्ति को साझा करता है क्योंकि इसमें स्वशासन तथा साझा शासन की व्यवस्था होती है। आजादी के उपरांत से लेकर अब तक भारतीय संघवाद का स्वरूप बदलता रहा है।
भारतीय संघवाद की यह प्रमुख विशेषता है कि यहां एकात्मक की ओर झुकी है। इसलिए कुछ विद्वानों ने इससे आज संघ की संज्ञा प्रदान की है तो कुछ नहीं इसके शरीर को संघात्मक तथा आत्मा को एकात्मक की संज्ञा प्रदान की है।
संघवाद के प्रकार दिए गए हैं – सहकारी संघवाद, सौदेबाजी का संघवाद और एकात्मक संघवाद।
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