Nirmal Verma Ka Jivan Parichay : निर्मल वर्मा (Nirmal Verma) हिंदी साहित्य में ‘आधुनिक काल’ के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक माने जाते हैं। हिंदी साहित्य में कहानी और उपन्यास विधा में आधुनिकता का बोध लाने में उनका नाम अग्रणी है। निर्मल वर्मा ने हिंदी गद्यात्मक साहित्य में कई विद्याओं में साहित्य का सृजन किया, जिनमें कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, यात्रा वृतांत और अनुवाद कार्य शामिल हैं। वहीं, साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका हैं, इनमें ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ (वर्ष1999), ‘पद्म भूषण’ (वर्ष 2002) व ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (वर्ष 1985) जैसे सर्वोच्च सम्मान शामिल हैं।
निर्मल वर्मा हिंदी साहित्य के उन विख्यात लेखकों में से एक हैं, जिनकी अनेक रचनाएँ जिनमें ‘परिंदे‘ (कहानी), ‘वे दिन‘, ‘लाल टीन की छत‘ व ‘रात का रिपोर्टर’ (उपन्यास) तथा ‘चीड़ों पर चाँदनी’ (यात्रा-वृतांत) आदि देश के अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शमिल है। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी निर्मल वर्मा का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
आइए अब इस लेख में आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित साहित्यकार निर्मल वर्मा का जीवन परिचय (Nirmal Verma Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | निर्मल वर्मा (Nirmal Verma) |
जन्म | 3 अप्रैल, 1929 |
जन्म स्थान | शिमला, हिमाचल प्रदेश |
पिता का नाम | श्री नंद कुमार वर्मा |
शिक्षा | एम.ए |
पेशा | लेखक, पत्रकार |
भाषा | हिंदी |
विधाएँ | कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, यात्रा वृतांत और अनुवाद |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
उपन्यास | लाल टीन की छत, वे दिन, रात का रिपोर्टर व एक चिथड़ा सुख आदि। |
कहानी | परिंदे, पिछली गर्मियों में, जलती झाड़ी व कौवे और काला पानी आदि। |
नाटक | तीन एकांत (1976) |
यात्रा वृतांत | चीड़ो पर चाँदनी (1962) |
निबंध | शब्द और स्मृति, कला का जोखिम, सर्जना- पथ के सहयात्री आदि। |
संचयन | शताब्दी के ढलते वर्षों से, दूसरी दुनिया व प्रतिनिधि कहानियां आदि |
सम्मान | ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’, ‘पद्म भूषण’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’। |
निधन | 25 अक्टूबर, 2005 नई दिल्ली |
जीवनकाल | 76 वर्ष |
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निर्मल वर्मा का प्रारंभिक जीवन – Nirmal Verma Ka Jivan Parichay
आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात लेखक निर्मल वर्मा का जन्म (Nirmal Verma) 3 अप्रैल 1929 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था। उनके पिता ‘श्री नंद कुमार वर्मा’ सेना में अधिकारी थे। निर्मल वर्मा अपने आठ भाई बहनों में पांचवें स्थान पर थे। निर्मल वर्मा ने अपनी आरंभिक शिक्षा की शुरुआत अपने गृह क्षेत्र से की। इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए दिली आ गए और यहाँ उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘सेंट स्टीफेंस कॉलेज’ से इतिहास विषय में एम.ए किया। निष्णात की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया।
फिर वह वर्ष 1959 में अध्यापन के लिए चकोस्लोवाकिया चले गए और यहाँ उन्होंने चेक उपन्यासों और कहानियों का हिंदी अनुवाद किया। जिनमें जीरी फ्राईड (Jiri Fried) की (बाहर और परे), मिलान कुंदेरा (Milan Kundera) व जोसेफ स्कोवर्स्की (Josef Skvorecky) जैसे प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाएँ भी शामिल थी।
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पत्रकार के रूप में की करियर की शुरुआत
निर्मल वर्मा कई वर्षों तक यूरोप में रहने के बाद वर्ष 1970 में अपने देश लौटे आए और यहाँ उन्होंने पत्रकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। निर्मल वर्मा जी ने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ जैसे बड़े मीडिया संस्थानों के लिए यूरोप की राजनीति और संस्कृति पर कई लेख लिखें। इसी दौरान निर्मल वर्मा जी ने वर्ष 1973 में अपनी कहानी ‘माया दर्पण’ लिखी जिसपर बाद में हिंदी सिनेमा के मशहूर फिल्म निर्देशक ‘कुमार साहनी’ के निर्देशन में फिल्म भी बनी। बता दें कि इस फिल्म को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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निर्मल वर्मा का साहित्य में योगदान
निर्मल वर्मा जी ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य के सृजन में लगा दिया था। उन्होंने हिंदी कथा साहित्य में अपना विशेष योगदान दिया था। इसके साथ ही वह ‘नई कहानी आंदोलन’ के मुख्य रचनाकारों में से एक माने जाते थे। निर्मल वर्मा जी ने अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर भारतीय और पश्चिमी संस्कृतियों का गहनता से अध्ययन किया और उन समस्याओं को अपनी रचनाओं का मुख्य विषय बनाया।
उनकी रचनाएँ लोगों के दैनिक जीवन पर आधारित होती थी जिनमें जिंदगी की कुछ घटनाओं व समस्याओं का सहजता के साथ बया किया जाता था। निर्मल वर्मा जी की हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी भाषा के भी अच्छे जानकार थे। क्या आप जानते है कि हिंदी साहित्य जगत में उन्हें ‘अकेलेपन के लेखक’ के तौर पर भी जाना जाता हैं।
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निर्मल वर्मा की प्रमुख रचनाएं – Nirmal Verma Ki Rachnaye
निर्मल वर्मा जी ने हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं में साहित्य का सृजन किया लेकिन उन्हें सबसे अधिक प्रसिद्धि कथा साहित्य के क्षेत्र में मिली। यहीं कारण है कि उनकी हिंदी कथा साहित्य में उनकी रचनाएँ आज भी ‘मील का पत्थर’ मानी जाती हैं। आइए अब हम निर्मल वर्मा जी के संपूर्ण साहित्य के बारे में जानते हैं:-
कहानी संग्रह
- परिंदे – 1956
- जलती झाड़ी – 1965
- पिछली गर्मियों में – 1968
- बीच बहस में – 1973
- कौवे और काला पानी – 1983
- सूखा तथा अन्य कहानियां – 1995
उपन्यास
- वे दिन – 1958
- लाल टीन की छत – 1974
- एक चिथड़ा सुख – 1979
- रात का रिपोर्टर – 1989
- अंतिम अरण्य – 2000
निबंध
- शब्द और स्मृति – 1976
- कला का जोखिम – 1981
- ढलान से उतरते हुए – 1987
- भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र – 1991
- इतिहास, स्मृति, आकांक्षा – 1991
- आदि, अंत और आरंभ – 2001
- सर्जना-पथ के सहयात्री – 2005
- साहित्य का आत्म-सत्य – 2005
यात्रा वृत्तांत
- चीड़ों पर चाँदनी – 1962
- हर बारिश में – 1970
- धुंध से उठती धुन – 1996
नाटक
- तीन एकांत – 1976
संभाषण-साक्षात्कार-पत्र
- दूसरे शब्दों में – 1999
- प्रिय राम – अवसानोपरांत 2006
- संसार में निर्मल वर्मा – अवसानोपरांत 2006
संचयन
- दूसरी दुनिया – 1978
- प्रतिनिधि कहानियाँ – 1988
- शताब्दी के ढलते वर्षों से – 1995
- ग्यारह लंबी कहानियाँ – 2000
अनुवाद
- रोमियो जूलियट और अँधेरा
- बाहर और परे, कारेल चापेक की कहानियाँ
- बचपन, कुप्रिन की कहानियाँ
- इतने बड़े धब्बे
- झोंपड़ीवाले
- आर यू आर, एमेके : एक गाथा
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निर्मल वर्मा की भाषा शैली – Nirmal Verma Ki Bhasha Shaili
निर्मल वर्मा का न सिर्फ हिंदी, बल्कि अंग्रेजी भाषा पर भी समान अधिकार था। उनके शब्दचयन में जटिलता न होते हुए भी उनकी वाक्य रचना में मिश्र और संयुक्त वाक्यों की प्रधानता थी। उन्होंने स्थान-स्थान पर उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है, जिससे उनकी भाषा-शैली में अनेक नवीन प्रयोगों की झलक देखने को मिलती है।
सम्मान एवं पुरस्कार
निर्मल वर्मा (Nirmal Verma Ka Jivan Parichay) को हिंदी साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं :-
- ज्ञानपीठ पुरस्कार – 1999
- पद्म भूषण – 2002
- निर्मल वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार – 1995
- वर्ष 1985 में ‘कव्वे और काला पानी’ (Kavve Aur Kala Pani) उपन्यास पर उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार
- राम मनोहर लोहिया अतिविशिष्ठ सम्मान
- साधना सम्मान
- साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता
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नई दिल्ली में हुआ था निधन
निर्मल वर्मा जी ने अपना पूरा जीवन साहित्य के सृजन में लगा दिया था और यह साहित्यिक साधना जीवन के अंत तक चलती रही। वह अपने जीवन के अंत तक कार्य करते रहे और इसके साथ ही उनका अध्ययन और लेखन कार्य भी चलता रहा। किंतु 25 अक्टूबर 2005 को इस महान रचनाकार में सदा के लिए दुनिया से अलविदा कह दिया। लेकिन हिंदी साहित्य में उनके विशेष योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
FAQs
निर्मल वर्मा का जन्म 3 अप्रैल 1929 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था।
निर्मल वर्मा के पिता का नाम श्री नंद कुमार वर्मा था।
उनकी प्रथम कहानी संग्रह का नाम ‘परिंदे’ है जिसका प्रकाशन वर्ष 1960 में हुआ था।
निर्मल वर्मा जी को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान देने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2002 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
निर्मल वर्मा जी का प्रथम यात्रा वृतांत चीड़ों पर चाँदनी है जो वर्ष 1962 में प्रकाशित हुआ था।
परिंदे, जलती झाड़ी, पिछली गर्मियों में (कहानी-संग्रह) वे दिन, लाल टीन की छत, रात का रिपोर्टर (उपन्यास) और चीड़ों पर चाँदनी (यात्रा-वृतांत) उनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
यह निर्मल वर्मा का बहुचर्चित उपन्यास है।
चीड़ों पर चाँदनी, यात्रा वृत्तांत निर्मल वर्मा द्वारा लिखित है।
वे दिन, निर्मल वर्मा का प्रथम उपन्यास है।
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