कक्षा 11 हिंदी में कई महत्वपूर्ण पाठ हैं, जिनमें से एक नमक का दरोगा पाठ भी महत्वपूर्ण है। हर वर्ष इस पाठ में से कई सवाल पूछे जाते हैं। यहां हम हिंदी कक्षा 11 “आरोह भाग- ” के पाठ-1 “नमक का दरोगा कक्षा″ कहानी के सार कठिन-शब्दों के अर्थ , लेखक के बारे में और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर, इन सभी के बारे में जानेंगे। चलिए जानते हैं ” Namak Ka Daroga″ कहानी के बारे में विस्तार से।
कक्षा | 11 |
विषय | हिंदी |
पाठ संख्या | 1 |
पाठ का नाम | नमक का दरोगा |
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लेखक परिचय
Namak Ka Daroga पाठ का लेखक परिचय इस प्रकार है:
प्रेमचंद्र
मूल नाम- धनपतराय
जन्म – सन 1880, उत्तर प्रदेश के लमही गाँव
प्रमुख रचनाएँ- सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा, नमक का दरोगा आदि।
मृत्यु – 1936
प्रेमचंद्र हिंदी साहित्य के विख्यात हस्ती है इनका बचपन आभाव में बीता ये अंग्रेजी में एम.ए. करना चाहते थे। लेकिन आजीविका चलाने के लिए नौकरी करनी पड़। असहयोग आंदोलन के कारन इन अपनी सरकारी नौकरी छोड़नी पड़ी। उनका सामाजिक और राजनैतिक संघर्ष उनकी कविताओं में साफ़ झलकता है।
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नमक का दरोगा पाठ का सारांश
Namak Ka Daroga पाठ का सारांश इस प्रकार है:
- यह कहानी हमें कर्मों के फल के महत्व के बारे में समझाती है। यह कहानी अधर्म पर धर्म औरअसत्य पर सत्य की जीत को दर्शाती है। भले ही इंसान खुद कितना भी बुरा काम क्यों न कर ले लेकिन उसे भी अच्छाई पसंद आती है। खुद कितना भी भ्रष्ट क्यों न हो लेकिन वह पसंद ईमानदार लोगों को ही करता है। कुछ लोग कितने भी ऊंचे पद पर क्यों न बैठे हो जाएं और कितना अच्छा वेतन क्यों न पाते हों लेकिन उनके मन में ऊपरी आय का लालच हमेशा बना रहता है। इस कहानी के द्वारा लेखक ने प्रशासनिक स्तर और न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार और उसकी सामाजिक सुविकृति को बड़े ही साहसिक तरीके से उजागर किया है।
- ये कहानी आज़ादी के पहले की है अंग्रेजों ने नमक पर अपना एकाधिकार जताने के लिए अलग नमक विभाग बना दिया। नमक विभाग के बाद लोगों ने कर से बचने के लिए नमक का चोरी छुपे व्यापार भी करने लगे जिसके कारण भ्रष्टाचार भी फैलने लगा। कोई रिश्वत देकर अपना काम निकलवाता, कोई चालाकी और होशियारी से। नमक विभाग में काम करने वाले अधिकारी वर्ग की कमाई तो अचानक कई गुना बढ़ गई थी। अधिकतर लोग इस विभाग में काम करने के इच्छुक रहते थे क्योंकि इसमें ऊपर की कमाई काफी होती थी। लेखक कहते हैं कि उस दौर में लोग महत्वपूर्ण विषयों के बजाय प्रेम कहानियों व श्रृंगार रस के काव्यों को पढ़कर भी उच्च पद प्राप्त कर लेते थे।
- उसी समय मुंशी वंशीधर नौकरी के तलाश कर रहे थे। उनके पिता अनुभवी थे अपनी वृद्धावस्था का हवाला देकर ऊपरी कमाई वाले पद को बेहतर बताया। वे कहते हैं कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वह अपने पिता से आशीर्वाद लेकर नौकरी की तलाश कर रहे होते है और भाग्यवश उन्हें नमक विभाग में नौकरी प्राप्त होती है जिसमें ऊपरी कमाई का स्रोत अच्छा है ये बात जब पिता जी को पता चली तो बहुत खुश हुए।
- छ: महीने अपनी कार्यकुशलता के कारण अफसरों को प्रभावित कर लिया था। ठंड के मौसम में वंशीधर दफ्तर में सो रहे थे। यमुना नदी पर बने नावों के पुल से गाड़ियों की आवाज सुनकर वे उठ गए। यमुना नदी पर बने नावों के पुल से गाड़ियों की आवाज सुनकर वे उठ गए। पंडित अलोपीदान इलाके के प्रतिष्ठित जमींदार थे। जब जांच की तो पता चला कि गाड़ी में नमक के थैले पड़े हुए हैं। पडित ने वंशीधर को रिश्वत ले कर गाड़ी छोड़ने को का लेकिन उन्होंने साफ़ मन कर दिया। पंडित जी को गिरफ्तार कर लिया गया।
- अगले दिन ये खबर आग की तरह से फेल गई। अलोपीदीन को अदालत लाया गया। लज्जा के कारण उनकी गर्दन शर्म से झुक गई। सारे वकील और गवाह उनके पक्ष में थे, लेकिन वंशीधर के पास के केवल सत्य था। पंडितजी को सबूतों के आभाव की वजह से रिहा कर दिया।
- पंडित जी ने बाहर आ कर पैसे बांटे और वंशीधर को व्यंगबाण का सामना करना पड़ा एक हफ्ते के अंदर उन्हें दंड स्वरूप नौकरी से हटा दिया। संध्या का समय था। पिता जी राम-राम की माला जप रहे थे तभी पंडित जी रथ पर झुक कर उन्हें प्रणाम किया और उनकी चापलूसी करने लगे और अपने बेटे को भलाबुरा कहा। उन्होने कहा मैंने कितने अधिकारियो को पैसो के बल पर खरीदा है लेकिन ऐसा कर्तव्यनिष्ठ नहीं देखा पंडित जी वंशीधर की कर्तव्यनिष्ठा के कायल हो गए। वंशीधर ने पंण्डित जी को देखा तो उनका सम्मानपूर्वक आदर सत्कार किया।
- उन्हें लगा कि पंडितजी उन्हें लज्जित करने आए हैं। लेकिन उनकी बात सुनकर आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने कहा जो पंडितजी कहेंगे वही करूंगा। पंडितजी ने स्टाम्प लगा हुआ एक पत्र दिया जिसमें लिखा था कि वंशीधर उनकी सारी स्थाई जमीन के मैनेजर नियुक्त किए गए हैं। वंशीधर की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने का वो इस पद के काबिल नहीं है। पंडित जी ने कहा मुझे न काबिल व्यक्ति ही चाहिए जो धर्मनिष्ठा से काम करे।
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कठिन शब्द उनके अर्थों के साथ
Namak Ka Daroga में कठिन शब्द उनके अर्थों के साथ दिए गए हैं-
- निषेद – मनाही
- सुख -संवाद – सखु देनेवाला समाचार
- कानाफूसी – धीरे धीरे बात करना
- अविचलित – स्थिर
- विस्मित – हैरान
- तजवीज – सुझाव
- प्रवबल्य -प्रधानता
- बरकत – तरक्की
- संकुचित – छोटा – सा
- आत्मावलम्बन – खुद पर भरोसा करने वाला
- शूल – अत्याधिक पीड़ा
- अगाध – गहरा
- कगारे पर का वृक्ष – वृद्धावस्थ
मुंशी वंशीधर ने अपना मित्र और पथ प्रदर्शक किसे बनाया?
मुंशी वंशीधर ने धैर्य को अपना मित्र, बुद्धि को अपना पथ प्रदर्शक और आत्मावलम्बन को अपना सहायक बनाया था। मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘नमक का दरोगा’ कहानी में मुंशी वंशीधर एककर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार दरोगा थे। जिन्होंने पंडित अलोपीदीन के भ्रष्टाचार के सामने हार नहीं मानी और ईमानदारी से अपने कर्तव्य को निभाया। इस कारण उन्हें अपने पद से भी हाथ धोना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। जब मुझे बंशीधर की दरोगा की नौकरी लगी थी तो उनके पिता ने उन्हें ऊपरी कमाई करने का सुझाव दिया था, लेकिन मुंशी वंशीधर ईमानदार और अपने सिद्धांतों के पालन करने वाले थेष उनके लिए धैर्य उनका मित्र, बुद्धि उनकी पथ प्रदर्शक और आत्मावलंबन उनका सहायक था। उन्होंने अपने दरोगा पद पर ऊपरी आय और रिश्वतखोरी जैसे कार्य नही किये और ईमानदारी से अपना कर्तव्य पालन किया।
नमक का दरोगा कहानी का उद्देश्य
नमक का दरोगा की कहानी उद्देश्य ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठ एवं समाज का निर्माण में योगदान देना है। इस कहानी के लेखक प्रेमचंद्र नें कर्मों के फल के महत्व के बारे में बताया है। यह कहानी अधर्म पर धर्म औरअसत्य पर सत्य की जीत को दर्शाती है।
प्रश्नोत्तर
उत्तर-कहानी का नायक बंशीधर ने मुझे सबसे ज़्यदा प्रभावित किया क्योकि वो ईमानदार , कर्मयोगी , कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्ति थे। उनके घर की आर्थिक हालत थी नहीं थी फिर भी उन्होंने ईमानदारी नहीं छोड़ी। उनके पिता उन्हें ऊपरी आय पर नज़र रखने की सलाह देते थे मगर उन्हें ये बाते नहीं मानी। आज के युग में ऐसे कर्मयोगी लोगो की ज़रुरत है।
उत्तर-पंडित अलोपीदीन को धन का बहुत घमंड था इसीलिए उसने दरोगा बंशीधर को भी रिश्वत देने की कोशिश की।गिरफ्तार होने के बाद जब उसे अदालत में लाया गया तो उसने वहां पर भी वकीलों और गवाहों खरीद लिया ,अपने आप को सभी आरोपों से बरी करा लिया। जो उसके भ्रष्ट , बेईमान और चालाक होने का सबूत देते हैं।
लेकिन उसके व्यक्तित्व का एक उजला पक्ष भी है जो बेहद प्रशंसनीय है। वंशीधर को दरोगा की नौकरी से निकलवाने के बाद पंडित अलोपीदीन को मन ही मन बहुत पछतावा हुआ। क्योंकि वह जानता था कि आज के वक्त में बंशीधर जैसे ईमानदार व कर्तव्यपरायण व्यक्ति मिलना मुश्किल है। इसीलिए उसने उसे अपनी सारी जायदाद का स्थाई मैनेजर नियुक्त कर दिया।
उत्तर- (क) वृद्ध मुंशी- नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान देना। यह तो पीर की मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूंढना जहां कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है। जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है……”।
बंशीधर के पिता के इस कथन से पता चलता है कि समाज में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी थी। वह अपने बेटे को ऐसी नौकरी करने की सलाह देते हैं जहां पद प्रतिष्ठा भले ही कम हो मगर ऊपरी आमदनी ज्यादा होती हो।
(ख) वकील- “वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े”।
उत्तर- इस कथन से न्यायिक व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार का पता चलता है। जहां पंडित अलोपीदीन ने वकीलों को बड़ी आसानी से अपने पैसे के बल पर खरीद लिया था।
ग) शहर की भीड़ -“जिसे देखिए , वही पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका टिप्पणी कर रहा था। निंदा की बौछारों हो रही थी। मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम पर बेचने वाला ग्वाला , कल्पित रोजाना पर्चे भरने वाले अधिकारी वर्ग , रेल में बिना टिकट सफर करने वाले बाबू लोग , जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार , यह सब-के-सब देवताओं की भांति गर्दन चला रहे थे….” ।
उत्तर- इन पंक्तियों से पता चलता है कि समाज के हर वर्ग के लोग कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार में लिफ्त थे। चाहे वह दूधवाला हो या ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करने वाला। लेकिन ये सब वो लोग थे जिन्हें अपनी गलतियां नजर नहीं आती थी लेकिन दूसरों का तमाशा देखने के लिए सबसे आगे रहते थे।
“नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है , इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है , इसी से उसकी बरकत होती है , तुम स्वयं विद्वान हो , तुम्हें क्या समझाऊँ”।
(क) यह किसकी उक्ति है?
उत्तर- यह दरोगा बंशीधर के पिता का कथन है।
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है ?
खर्च होता चला जाता है और महीने के अंत तक यह पूरी तरह से समाप्त हो जाता है। इसीलिए ऐसे “पूर्णमासी का चाँद” कहा गया हैं।
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं ?
उत्तर-नहीं , मैं दरोगा बंशीधर के पिता के इस कथन से पूरी तरह से असहमत हूं। रिश्वत लेना और भ्रष्टाचार करना , दोनों ही गलत है। अगर व्यक्ति अपनी जरूरतों को नियंत्रित करते हुए चले तो अपनी मेहनत और ईमानदारी से वह जो भी कमाता है उसमें उसका आराम से गुजारा हो सकता है। और मेहनत से कमाये हुए धन से जीवन में सुख-शान्ति बनी रहती है।
उत्तर-नमक का दरोगा के दो अन्य शीर्षक निम्न है।
1. धर्मनिष्ठ दरोगा – यह कहानी पूरी तरह से बंशीधर की ईमानदारी पर टिकी है। जो भ्रष्ट लोगों के बीच में रहकर भी अपने कर्तव्य को पूर्ण ईमानदारी के साथ निभाता है।
2. ईमानदारी का फल – दरोगा बंशीधर की ईमानदारी के कारण ही उसे अंत में पंडित अलोपीदीन अपना मैनेजर नियुक्त करता हैं।
उत्तर-पंडित अलोपीदीन खुद एक भ्रष्ट , बेईमान व चालाक व्यक्ति था।यह समझता था कि पैसे के बल पर किसी भी व्यक्ति को खरीदा जा सकता है या कोई भी काम करवाया जा सकता हैं। लेकिन जब उसने अपने जीवन में पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति (दरोगा वंशीधर) को देखा जिसकी ईमानदारी को वह अपने पैसे से नहीं खरीद पाया तो वह आश्चर्य चकित रह गया।पंडित अलोपीदीन यह भी जानता था कि आज के समय में इस तरह के ईमानदार , कर्तव्य परायण व धर्मनिष्ठ व्यक्ति मिलना मुश्किल है। मैं भी इस कहानी का अंत कुछ इसी तरह से करता/ करती ।
इस कथन का तात्पर्य है कि इस क्षेत्र के नमक के दरोगा को रिश्वत देना आवश्यक है अर्थात् बिना रिश्वत दिए वह मुफ्त में घाट नहीं पार करने देंगे।
इस कथन के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि संसार में परनिंदा हर समय होती रहती है। रात के समय हुई घटना की चर्चा आग की तरह सारे शहर में फैल गई। हर आदमी मजे लेकर यह बात एक-दूसरे बता रहा था।
इसका अर्थ है-स्वयं को निर्दोष समझना। देवता स्वयं को निर्दोष मानते हैं, अत: वे मानव पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं। पंडित अलोपीदीन के पकड़े जाने पर भ्रष्ट भी उसकी निंदा कर रहे थे।
पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला, नकली बही-खाते बनाने वाला अधिकारी वर्ग, रेल में बेटिकट यात्रा करने वाले बाबू जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार-ये सभी गरदनें चला रहे थे।
पंडित अलोपीदीन को अदालत रूपी वन का सिंह कहा गया, क्योंकि यहाँ उसके खरीदे हुए अधिकारी, अमले, अरदली, चपरासी, चौकीदार आदि थे। वे उसके हुक्म के गुलाम थे।
कचहरी को अगाध वन कहा गया है, क्योंकि न्याय की व्यवस्था जटिल व बीहड़ होती है। हर व्यक्ति दूसरे को खाने के लिए बैठा है। वहाँ पैसों से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है, जिससे जनसाधारण न्याय-प्रणाली का शिकार बनकर रह जाता है।
लोग अलोपीदीन की गिरफ्तारी से हैरान थे, क्योंकि उन्हें उसकी धन की ताकत व बातचीत की कुशलता का पता था। उन्हें उसके पकड़े जाने पर हैरानी थी क्योंकि वह अपने धन के बल पर कानून की हर ताकत से बचने में समर्थ था।
बूढ़े मुंशी जी अपने बेटे वंशीधर की पढ़ाई-लिखाई को व्यर्थ मानते हैं। वे उसे अफसर बनाकर रिश्वत की कमाई से अपनी हालत सुधारना चाहते थे। वंशीधर ने उनकी कल्पना के उलट किया।
ईश्वर प्रदत्त वस्तु नमक है। सरकार ने नमक विभाग बनाकर उसके निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध के कारण लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। इससे रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला।
इस समय फारसी का प्रभाव था। फारसी पढ़े लोगों को अच्छी नौकरियां मिल जाती थीं। प्रेम की कथाएँ और श्रृंगार रस के काव्य पढ़कर फ़ारसी जानने वाले सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे।
MCQs
- Namak Ka Daroga पाठ के लेखक ?
(A) प्रेमचंद्र
(B) कृष्ण चन्दर
(C) शेखर जोशी
(D) कृष्ण नाथ
उत्तर – (A) प्रेमचंद्र
2. किस ईश्वर प्रदत्त वास्तु का व्यहवार करना निषेध हो गया था –
(A) जल
(B) वायु
(C) नमक
(D) धरती
उत्तर – (C) नमक
3.किन के पौ बारह थे-
(A) गृहणियों के
(B) अधिकारीयों के
(C) पतियों के
(D) बच्चों के
उत्तर – (B) अधिकारीयों के
4. नमक विभाग में दरोगा के पद के लिए कौन ललचाते थे –
(A) डॉक्टर
(B) प्रोफेसर
(C) इंजीनियर
(D) वकील
उत्तर – (D) वकील
5. नामक विभाग में किसे दरोगा की नौकरी मिली –
(A) अलोपीदीन को
(B) वंशीधर को
(C) बदलू सिंह को
(D) दातादीन को
उत्तर -(B) वंशीधर को
6. नमक की कालाबाजारी कौन कर रहा था –
(A) अलोपदीन
(B) रामदीन
(C) दातादीन
(D) मातादीन
उत्तर -(A) अलोपदीन
7. दुनिया सोती थी मगर दुनिया ________ जागती थी –
(A) आँख
(B) कान
(C) जीभ
(D) नाक
उत्तर – (C) जीभ
8. किसका लाखों का लेन देन था –
(A) वंशीधर का
(B) मुरलीधर का
(C) मातादीन का
(D) अलोपदीन का
उत्तर- (D) अलोपदीन का
9. अलोपदीन को दरोगा को किस बल पर खरीद लेने का विश्वास था –
(A) बल
(B) छल
(C) रिश्वत
(D) सम्बन्ध
उत्तर -(c) रिश्वत
10. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के खिलौने है – यह कथन किसका था –
(A) वंशीधर
(B) अलोपदीन
(C) बदलूसिंह
(D) वंशीधर के पिता का
उत्तर – (B) अलोपदीन
11. अलोपदीन क्या देखर मूर्छित होकर गिर पड़े –
(A) हथकड़ियाँ
(B) पुलिस
(C) डाकू
(D) लठैत
उत्तर – (A) हथकड़ियाँ
12.’चालीस हज़ार नहीं , चालीस लाख भी नहीं ‘- यह कथन किस का है –
(A) मजिस्ट्रटे का
(B) वंशीधर का
(C) बदलू सिंह का
(D) अलोपदीन का
उत्तर – (B) वंशीधर का
13. वंशीधर के पिता किसकी अगवानी के लिए दौड़ रहे थे –
(A) वंशीधर की
(B) मजिस्ट्रटे की
(C) अलोपादीन की
(D) मातादीन की
उत्तर – (C) अलोपदीन की
14. प्रेमचंद्र जन्म कब हुआ था –
(A) 1880 में
(B) 1888 में
(C) 1800 में
(D) 1860 में
उत्तर – (A) 1880 में
15. प्रेमचंद्र का निधन कब हुआ –
(A) 1933 में
(B) 1934 में
(C) 1935 में
(D) 1936 में
उत्तर -(D) 1936 में
16. वंशीधर के पिता के विचार से ऊपरी आय क्या है?
क) पीर का मजार
ख) बहता स्रोत
ग) चंद्रमा
घ) खिलौना
उत्तर: ख
17. वंशीधर को किस कार्यालय में नौकरी मिली?
क) पुलिस विभाग में
ख) न्यायालय में
ग) नमक विभाग में
घ) कहीं पर भी नहीं
उत्तर: ग
18. वंशीधर के पिता ने उन्हें कैसा कार्य ढूंढने की सलाह दी?
क) जिसमें केवल वेतन प्राप्त हो।
ख) जिसमें ऊपरी आय मिलने की संभावना हो।
ग) जिसमें ईमानदारी से कार्य किया जाए।
घ) जिसमें कोई कार्य न करना पड़े।
उत्तर: ख
19. मुकदमा चलाने पर अदालत ने किसे दोषी ठहराया?
क) वंशीधर
ख) अलोपीदीन
ग) वकील
घ) किसी को भी नहीं
उत्तर: क
20. पंडित अलोपीदीन कौन थे?
क) दारोगा
ख) न्यायाधीश
ग) जमींदार
घ) किसान
उत्तर: ग
21. किस ईश्वर प्रदत्त वस्तु का व्यवहार करना निषेध हो गया था –
(क) जल
(ख) वायु
(ग) नमक
(घ) धरती
उत्तर – ग
22. बंशीधर के पिता ने मासिक वेतन को क्या कहा है?
क) चाँद
ख) अमावस्या का चांद
ग) पूर्णमासी का चांद
घ) बहता स्रोत
उत्तर – ग
23. घाट के देवता को भेंट चढ़ाने से क्या तात्पर्य है?
क) भगवान को भोग चढ़ाना
ख) नदी किनारे श्राद्ध करना
ग) ब्राह्मण को दान देना
घ) नमक के दरोगा को रिश्वत देना
उत्तर – घ
24. अलोपीदीन अंत में कितनी रिश्वत देने के लिए तैयार हो गए?
क) 40 हजार
ख) 30 हजार
ग) 20 हजार
घ) 5 हजार
उत्तर – क
25. लोगों को किस बात पर आश्चर्य हो रहा था?
क) अलोपीदीन की गिरफ्तारी पर *
ख) वंशीधर की ईमानदारी पर
ग) न्यायाधीश के न्याय पर
घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर – क
FAQs
‘नमक का दरोगा’ कहानी की मूल संवेदना समाज और शासन-प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को उजागर करना और उस पर व्यंग्यात्मक कटाक्ष करना है।
यह कहानी धन के ऊपर धर्म के जीत की है। कहानी में मानव मूल्यों का आदर्श रूप दिखाया गया है और उसे सम्मानित भी किया गया है।
उनके दफ्तर से एक मील पहले जमुना नदी थी जिस पर नावों का पुल बना हुआ था। गाड़ियों की आवाज़ और मल्लाहों की कोलाहल से उनकी नींद खुली। बंदूक जेब में रखा और घोड़े पर बैठकर पुल पर पहुँचे वहाँ गाड़ियों की एक लंबी कतार पुल पार कर रही थीं।
लोग पटवारीगिरी के पद को छोड़कर नमक विभाग की नौकरी करना चाहते थे, क्योंकि इसमें ऊपर की कमाई होती थीं। लोग इनकों घूस देकर अपना काम निकलवाते थे।
पंडित अलोपीदीन कानपुर शहर के रहने वाले थे।
नमक की कालाबाजारी दातादीन कर रहा था।
नमक की गाड़ियां जमुना नदी के ऊपर बने पुल से होकर जा रहीं थी।
नमक का दारोगा प्रेमचंद द्वारा रचित लघुकथा है।
मुंशी वंशीधर ने भी फारसी पढ़ी और रोजगार की खोज में निकल पड़े। उनके घर की आर्थिक दशा खराब थी। उनके पिता ने घर से निकलते समय उन्हें बहुत समझाया जिसका सार यह था कि ऐसी नौकरी करना जिसमें ऊपरी कमाई हो और आदमी तथा अवसर देखकर घूस जरूर लेना।
नमक का दरोगा कहानी का उद्देश्य होता है कि ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठ समाज का निर्माण करना।
नमक का दरोगा कहानी में चार प्रमुख पात्र हैं – अलोपीदीन, मुंशी वंशीधर, बूढ़े मुंशी जी और नमक।
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