Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay: मुंशी प्रेमचंद का नाम हिंदी साहित्य के महानतम लेखकों में शुमार किया जाता है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य की साधना में ही समर्पित कर दिया था। हिंदी और उर्दू साहित्य में मुंशी प्रेमचंद के विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। बता दें कि मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य में सबसे अधिक लोकप्रिय और सबसे ज्यादा पढ़ें जाने वाले लेखकों में से एक हैं। उन्होंने अपने जीवन में 300 से अधिक कहानियां, एक दर्जन से अधिक उपन्यास, निबंध, आलोचना, लेख और संस्मरण जैसी अनेक विधाओं में साहित्य का सृजन किया था।
इसके साथ ही उन्होंने हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया था जहाँ मुंशी जी ने ‘माधुरी’, ‘हंस’ और ‘मर्यादा’ जैसी लोकप्रिय पत्रिकाओं का संपादन किया था। क्या आप जानते हैं उपन्यास के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान को देखकर बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार ‘शरतचंद्र चट्टोपाध्याय’ ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहकर संबोधित किया था।
आपको बता दें कि मुंशी प्रेमचंद की अनेक रचनाओं को विद्यालय के अलावा बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
आइए अब हिंदी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
वास्तविक नाम | धनपत राय श्रीवास्तव (Dhanpat Rai Srivastava) |
प्रचलित नाम | नवाब राय, मुंशी प्रेमचंद |
जन्म | 31 जुलाई, 1880 |
जन्म स्थान | लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) |
पिता का नाम | अजायब राय |
माता का नाम | आनंदी देवी |
पत्नी का नाम | शिवरानी देवी |
संतान | श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव |
पेशा | लेखक, अध्यापक, पत्रकार |
काल | आधुनिक काल |
विधा | कहानी, उपन्यास और निबंध |
भाषा | उर्दू, हिंदी |
प्रमुख कहानियां | पंच परमेश्वर, पंच परमेश्वर, दो बैलों की कथा, ठाकुर का कुआं, सवा सेर गेहुँ ,नमक का दरोगा आदि। |
प्रमुख उपन्यास | रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, सेवासदन, गोदान आदि |
नाटक | कर्बला, वरदान, संग्राम, प्रेम की वेदी |
संपादन | माधुरी, मर्यादा, हंस, जागरण |
प्रगतिशील लेखक संघ | प्रथम अध्यक्ष (1936) |
निधन | 08 अक्टूबर, 1936 वाराणसी |
जीवनकाल | 56 वर्ष |
This Blog Includes:
- मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय – Munshi Premchand Ka Jivan Parichay
- वकील बनने का था सपना
- मुंशी प्रेमचंद का विवाह
- मिल गया नया नाम ‘प्रेमचंद’
- असहयोग आंदोलन
- फ़िल्मी दुनिया नहीं आई रास
- प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं – Munshi Premchand Ki Rachnaye
- संपादन कार्य
- मुंशी प्रेमचंद का निधन
- सम्मान
- मुंशी प्रेमचंद के अनमोल विचार
- FAQs
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय – Munshi Premchand Ka Jivan Parichay
हिंदी साहित्य के विख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गांव में हुआ था। प्रेमचंद का मूल नाम ‘धनपतराय’ था किंतु वे अपनी कहानियां उर्दू में ‘नवाबराय’ नाम से लिखते थे। उनके पिता का नाम ‘अजायब राय’ था और वह डाकखाने में साधारण सी नौकरी करते थे। बचपन से ही प्रेमचंद का जीवन संघर्षो भरा रहा था। वे जब 08 वर्ष के थे तभी उनकी माता ‘आनंदी देवी’ का देहांत हो गया था। उनके पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया लेकिन प्रेमचंद माँ के प्यार और स्नेह से हमेशा वंचित रहे।
वकील बनने का था सपना
मुंशी प्रेमचंद का मात्र 15 वर्ष की आयु में बाल विवाह हो गया था। उस समय वह हाई स्कूल में थे लेकिन एक वर्ष के बाद ही उनके निधन हो गया। इसके बाद अचानक ही पूरी गृहस्थी और खर्च का बोझ मुंशी जी के कंधों पर आ गया। वह बचपन से ही पढ़ने के शौकीन थे उन्होंने वर्ष 1898 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए।
परिवार की देखरेख के साथ साथ मुंशी जी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और वर्ष 1910 में फ़ारसी, दर्शन, अंग्रेज़ी, और इतिहास विषय के साथ इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। इसके बाद वर्ष 1919 में उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की और शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नौकरी करने लगे। क्या आप जानते हैं कि मुंशी प्रेमचंद एक वकील बनना चाहते थे लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उनका यह सपना हमेशा के लिए अधूरा रह गया।
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मुंशी प्रेमचंद का विवाह
पारिवारिक समस्याओं और आर्थिक तंगी के कारण उनकी पत्नी अपने मायके चली गई और कभी वापस नहीं लौटी। इसके बाद मुंशी प्रेमचंद ने सन 1906 में दूसरा विवाह ‘शिवरानी देवी’ से किया जो एक बाल विधवा थी। इस विवाह से उनकी तीन संतानें हुईं जिनके नाम हैं, श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी।
बता दें कि ‘शिवरानी देवी’ द्वारा लिखित ‘प्रेमचंद घर में’ नाम से मुंशी प्रेमचंद की जीवनी सन 1944 में प्रकाशित हुई जिसमें मुंशी जी के व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया गया जिससे लोग अभी तक अनभिज्ञ थे। इसके बाद उनके पुत्र ‘अमृत राय’ ने ‘कलम का सिपाही’ नाम से उनकी जीवन लिखी जो सन 1962 में प्रकाशित हुई।
मिल गया नया नाम ‘प्रेमचंद’
मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की साधना मात्र 13 वर्ष की अल्प आयु से ही शुरू कर दी थी। उन्होंने अपनी शुरूआती रचनाएँ उर्दू भाषा में ‘नवाबराय’ नाम से लिखनी शुरू की थी। ये वो दौर था जब मुल्क ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था और देशभर में आजादी के लिए अनेकों आंदोलन हो रहे थे। प्रेमचंद ने भी आवाम पर हो रहे शोषण, दुख, दर्द और ज़्यादती को गहराई से समझा और उसे अपनी लेखनी का आधार बनाया। वर्ष 1910 में उनकी उर्दू रचना ‘सोजे़ वतन’ की प्रतियों को ब्रिटिश हुकुमत ने जब्त कर लिया और उस पर प्रतिबंध लगा दिया।
किंतु मुंशी जी अपनी रचनाएँ लिखते रहे। लेकिन उनके मित्र ‘दयानारायण निगम’ जो उर्दू भाषा में प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘ज़माना’ के संपादक थे उन्होंने मुंशी जी को प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी। जिसे मुंशी जी ने स्वीकार कर लिया और इस तरह वह नवाबराय से ‘प्रेमचंद’ हो गए और अपने जीवन के बाद भी इसी नाम से जाने गए।
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असहयोग आंदोलन
मुंशी प्रेमचंद ने अपनी सभी शुरूआती रचनाएँ उर्दू भाषा में की जिनका बाद में हिंदी में अनुवाद हुआ। उनका प्रथम हिंदी उपन्यास वर्ष 1918 में ‘सेवासदन’ नाम से प्रकाशित हुआ। इसके बाद वर्ष 1921 में ‘महात्मा गांधी’ जी के आवाहन पर देशभर में ‘असहयोग आंदोलन’ हो रहा था। इस आंदोलन में मुंशी प्रेमचंद ने भी भाग लिया और अपनी सरकारी नौकरी में इंस्पेक्टर के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। फिर उन्होंने लेखन को ही अपना पेशा बना लिया और सहित्य साधना में ही जुट गए। वर्ष 1930 के ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ (Civil Disobedience) के शुरू होते-होते उन्होंने ‘हंस’ पत्रिका का प्रकाशन भी आरंभ कर दिया था।
फ़िल्मी दुनिया नहीं आई रास
क्या आप जानते हैं कि मुंशी प्रेमचंद सन 1934 में फिल्म कंपनी के आमंत्रण पर 8 हजार वार्षिक के अनुबंध पर मुंबई गए थे। लेकिन फ्लिमों में लिखी जाने वाली कहानियों के विषयों से असहमत होने के कारण यह काम उन्हें बिल्कुल भी रास न आया। इसलिए वह एक वर्ष बाद ही अपने गांव लमही लौटे आए और फिर कभी कोई नौकरी नहीं की।
प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं – Munshi Premchand Ki Rachnaye
Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay के बाद अब हम उनकी साहित्यिक रचनाएं के बारे में जानेंगे। मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन में 300 से अधिक कहानियां, एक दर्जन से अधिक उपन्यास, निबंध, आलोचना, लेख और संस्मरण जैसी अनेक विधाओं में साहित्य का सृजन किया। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया। आइए अब हम उनकी सभी विधाओं में की गई प्रमुख रचनाओं (Books Written By Premchand in Hindi) के बारे में जानते हैं:-
मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास – Munshi Premchand Ki Upanyas
मुंशी प्रेमचंद जी ने एक दर्जन से अधिक उपन्यासों की रचना की थी। जिसमें सन 1918 में प्रकाशित उनका पहला उपन्यास ‘सेवासदन’ और अंतिम उपन्यास सन 1936 में प्रकाशित ‘गोदान’ था। वहीं ‘गोदान’ को हिंदी साहित्य की अमर कृति भी माना जाता है। यहाँ मुंशी जी के सभी उपन्यासों की सूची दी जा रही है। जिसे आप नीचे दी गयी टेबल में देख सकते हैं:-
उपन्यास का नाम | प्रकाशन |
सेवासदन | सन 1918 |
वरदान | सन 1920 |
प्रेमाश्रम | सन 1922 |
रंगभूमि | सन 1925 |
कायाकल्प | सन 1926 |
निर्मला | सन 1927 |
गबन | सन 1931 |
कर्मभूमि | सन 1933 |
गोदान | सन 1936 |
मंगलसूत्र | सन 1944 (अधूरा) |
रूठी रानी | (मुंशी प्रेमचंद का एकमात्र ऐतिहासिक उपन्यास) |
प्रतिज्ञा |
मुंशी प्रेमचंद की कहानियां – Munshi Premchand Ki Kahaniyan
मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्यिक जीवन में 300 से अधिक कहानियों की रचना की थी। जो ‘मानसरोवर’ नामक पुस्तक द्वारा आठ खंडों में प्रकाशित हुई है। यहाँ हम मुंशी जी की कुछ लोकप्रिय कहानियों के बारे में बता रहे है। जिनमें आप अपनी प्रतिनिधि कहानियों के बारे में जान पाएंगे।
- दो बैलों की कथा
- पंच परमेश्वर
- ईदगाह
- ठाकुर का कुआं
- पूस की रात
- बड़े घर की बेटी
- नमक का दरोगा
- कफ़न
- कर्मों का फल
- बूढ़ी काकी
- नशा
- स्वामिनी
- सवा सेर गेहूँ
- गुल्ली-डंडा
- दुनिया का सबसे अनमोल रत्न
- मैकू
- दुर्गा का मंदिर
- दो भाई
- जुलूस
- समर-यात्रा
- हार की जीत
- परीक्षा
- सच्चाई का उपहार
- धर्मसंकट
- उपदेश
- त्रिया-चरित्र
- क़ातिल
- क्रिकेट मैच
- कर्मों का फल
- इस्तीफा
- कुसुम
- रियासत का दीवान
- दूध का दाम
- दामुल का कैदी
- विद्रोही
- अभिलाषा
- प्रेम का उदय
- दारोगाजी
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मुंशी प्रेमचंद के नाटक
Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay की जानकारी के बाद अब हम उनके द्वारा रचित नाटकों के बारे में जानते है:-
नाटक का नाम | प्रकाशन |
संग्राम | सन 1923 |
कर्बला | सन 1924 |
प्रेम की वेदी | सन 1933 |
मुंशी प्रेमचंद के निबंध
प्रेमचंद एक सवेदनशील लेखक होने के साथ साथ एक सजग नागरिक व संपादक भी थे। उन्होंने कई गंभीर विषयों पर लेख/निबंध लिखें हैं। जिसमें कुछ प्रमुख निबधों के बारे में नीचे दिए गए बिंदुओं में बताया जा रहा है:-
- साहित्य का उद्देश्य
- पुराना जमाना नया जमाना
- स्वराज के फायदे
- कहानी कला (तीन भागों में)
- उपन्यास
- हिंदी-उर्दू की एकता
- महाजनी सभ्यता
- कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार
- जीवन में साहित्य का स्थान
मुंशी प्रेमचंद का बाल साहित्य
मुंशी जी ने बाल साहित्य की भी रचना की थी। यहाँ उनके बाल साहित्य की रचनाओं के बारे में जानकारी दी जा रही है:-
- रामकथा
- दुर्गादास
- कुत्ते की कहानी,
- जंगल की कहानियाँ
प्रेमचंद के विचार
यहाँ मुंशी प्रेमचंद के लेखों में उनके द्वारा व्यक्त विचारों के संकलन की जानकारी दी जा रही है। जो कि इस प्रकार हैं:-
- ‘प्रेमचंद : विविध प्रसंग’ – अमृतराय द्वारा संपादित
- प्रेमचंद के विचार (तीन खंडों में)
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संपादन कार्य
मुंशी प्रेमचंद जी ने साहित्य की रचना के साथ-साथ ‘माधुरी’ और ‘मर्यादा’ नामक पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया। इसके साथ ही उन्होंने स्वयं का प्रेस खोलकर ‘जागरण’ नामक समाचार पत्र और ‘हंस’ नामक मासिक साहित्यिक पत्रिका निकाली।
मुंशी प्रेमचंद का निधन
मुंशी प्रेमचंद ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य की साधना में समर्पित कर दिया था और यह साधना जीवन की अंतिम घड़ी तक निरंतर जारी रही। सन 1936 के जून मास से ही उनका स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन बिगड़ने लगा था। किंतु वह अपनी साहित्य साधना से तनिक भी विचलित नहीं हुए और इस दौरान ही उन्होंने ‘मगलसूत्र’ उपन्यास की रचना करना शुरू कर दिया था। लेकिन अब उनका स्वाथ्य तेजी से बिगड़ने लगा था और 08 अक्टूबर, 1936 को हिंदी साहित्य के महान लेखक ने दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दिया और साहित्यिक रचनाओं में हमेशा के लिए अमर हो गए।
सम्मान
भारतीय डाक विभाग ने उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था।
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मुंशी प्रेमचंद के अनमोल विचार
Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay जानने के बाद अब आइए अब हम उनके अनमोल विचार के बारे में जानते है, जिसे आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं:-
- सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है।
- दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं उसकी दौलत का सम्मान है।
- मैं एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।
- सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं।
- जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है।
- यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं।
- संसार के सारे नाते स्नेह के नाते हैं, जहां स्नेह नहीं वहां कुछ नहीं है।
- चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएं।
- कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं।
- ग़लती करना उतना ग़लत नहीं जितना उन्हें दोहराना है।
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FAQs
उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गांव में हुआ था।
मुंशी प्रेमचंद का मूल नाम ‘धनपत राय श्रीवास्तव’ था।
मुंशी प्रेमचंद हिंदी और उर्दू फिक्शन के महान साहित्यकार थे। प्रेमचंद ने अपने जीवन में करीब 300 शॉर्ट स्टोरी और दो दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे थे।
उनके पहले उपन्यास का नाम सेवासदन था जिसका प्रकाशन वर्ष 1918 में हुआ था।
दो बैलों की कथा, पंच परमेश्वर, ईदगाह, ठाकुर का कुआं, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा और कफ़न उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं।
उनके पिता का नाम ‘अजायब राय’ और माता का नाम ‘आनंदी देवी’ था।
उनकी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था।
08 अक्टूबर, 1936 को 56 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था।
आशा है कि आपको उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay) पर यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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Bahut achcha lekh hai
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Bahut achcha lekh hai