Khub Ladi Mardani Poem in Hindi: सुभद्राकुमारी चौहान की ‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ कविता

1 minute read
Khub Ladi Mardani Poem in Hindi

“खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी…”- यह पंक्तियाँ सुनते ही हमारे मन में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की छवि उभर आती है, जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अंग्रेजों से अंतिम सांस तक लड़ीं। सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित यह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे प्रेरणादायक रचनाओं में से एक है। इसमें न केवल लक्ष्मीबाई के साहस, बलिदान और वीरता का चित्रण किया गया है, बल्कि यह कविता हर भारतीय के हृदय में देशभक्ति की ज्योति जलाने का कार्य भी करती है। इस ब्लॉग में इस कालजयी कविता (Khub Ladi Mardani Poem in Hindi) का अर्थ, महत्व और प्रभाव विस्तार से समझेंगे, ताकि हम झांसी की रानी की अदम्य वीरता को और करीब से जान सकें।

‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ कविता (Khub Ladi Mardani Poem in Hindi

‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ (Khub Ladi Mardani Poem in Hindi) यह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर नायकों में से एक, रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और साहस की पहचान बन गई है। सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित यह कविता आज भी देशभक्ति और नारी शक्ति की प्रतीक मानी जाती है। इस कविता ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों में जोश और उत्साह भरने का कार्य किया और आज भी यह हर पीढ़ी को प्रेरित करती है। इस प्रकार है:

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार’।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

– सुभद्राकुमारी चौहान

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी कविता

‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ कविता का सार

खूब लड़ी मर्दानी कविता (Khub Ladi Mardani Poem in Hindi) हिंदी की महान कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित एक ऐसी प्रेरणादायक कविता है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों में जोश और आत्मबल भरने का कार्य किया। इस कविता के माध्यम से उन्होंने झांसी की रानी रानी लक्ष्मीबाई के वीरत्व, साहस और बलिदान को अमर कर दिया।

इस कविता में रानी लक्ष्मीबाई को एक वीरांगना के रूप में चित्रित किया गया है, जिन्होंने अंग्रेज़ों की क्रूरता के विरुद्ध संघर्ष किया और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए युद्ध में कूद पड़ीं। यह कविता 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित है, जिसे अंग्रेजों ने दबाने का हरसंभव प्रयास किया, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीर नारियों के बलिदान ने इसे भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में अमिट बना दिया।

कविता में उस दौर की झलक मिलती है जब ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारी भारत पर कब्ज़ा करने लगे थे। झांसी पर भी अंग्रेजों की बुरी नजर थी, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया। उन्होंने युद्ध भूमि में अपने शौर्य से अंग्रेज़ी सेना को चुनौती दी और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अंतिम क्षण तक संघर्ष करती रहीं।

यह कविता केवल शब्दों का मेल नहीं, बल्कि रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान की गाथा है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाखों भारतीयों को प्रेरित किया। पहली बार 1920 के दशक में प्रकाशित इस कविता की सरल भाषा और प्रभावशाली अभिव्यक्ति ने इसे आम जनता के दिलों तक पहुँचाया। यही कारण है कि यह आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक बनी हुई है।

इस कविता का मुख्य उद्देश्य रानी लक्ष्मीबाई के संघर्ष और बलिदान को अमर बनाना था। यह न केवल भारतीय इतिहास की गवाही देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि एक नारी में असीम शक्ति और साहस होता है, जो पूरे साम्राज्य को चुनौती दे सकती है। कविता का हर शब्द रानी लक्ष्मीबाई की अपराजेय वीरता को दर्शाता है और हर भारतीय के हृदय में राष्ट्रभक्ति की भावना जाग्रत करता है।

रानी लक्ष्मीबाई मात्र 23 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हुईं, लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उन्होंने अपने शौर्य और बलिदान से भारतीय समाज को स्वतंत्रता संग्राम की राह दिखाने का कार्य किया। यह कविता उन तमाम बलिदानों और वीरता की कहानियों को सम्मान देती है, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। 

झाँसी की रानी कविता का महत्व

झाँसी की रानी कविता केवल अतीत की कहानी नहीं, बल्कि भविष्य की प्रेरणा है। यह हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं, बल्कि बलिदानों से प्राप्त होती है। यह कविता हर भारतीय के हृदय में जोश, सम्मान और कर्तव्यनिष्ठा की भावना उत्पन्न करती है, जिससे हम अपने देश की रक्षा और उन्नति के लिए सदैव तत्पर रहें। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वीरता और राष्ट्रभक्ति की अद्वितीय मिसाल है जो केवल एक साहित्यिक रचना ही नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों को श्रद्धांजलि देने का एक सशक्त माध्यम भी है। इसका महत्व इस प्रकार है:

  1. राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा: यह कविता देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित करती है। इसे पढ़ने या सुनने से प्रत्येक भारतीय के मन में अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम और सम्मान जाग्रत होता है। लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान को दर्शाते हुए यह कविता युवाओं को मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरित करती है।
  2. वीरांगना लक्ष्मीबाई का गौरवगान: कविता में रानी लक्ष्मीबाई के अदम्य साहस, शौर्य और नेतृत्व क्षमता का चित्रण किया गया है। उनके बलिदान की गाथा को सुंदर और प्रभावशाली शब्दों में ढाला गया है, जिससे वह जन-जन तक पहुँचे और हमेशा याद रखी जाए।
  3. भारतीय नारी शक्ति का प्रतीक: झाँसी की रानी केवल एक वीर योद्धा ही नहीं थीं, बल्कि वह भारतीय नारी शक्ति की प्रतीक भी थीं। इस कविता में उनकी बहादुरी को इस प्रकार दर्शाया गया है कि यह महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनने की प्रेरणा देती है। यह दर्शाती है कि नारी केवल कोमलता का नहीं, बल्कि अपार शक्ति और साहस का भी परिचय दे सकती है।
  4. स्वतंत्रता संग्राम का ऐतिहासिक दस्तावेज: यह कविता केवल एक काव्य रचना नहीं, बल्कि 1857 की क्रांति का एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी है। इसमें उन घटनाओं का वर्णन है, जब झाँसी की रानी ने अपने छोटे से दल के साथ ब्रिटिश सेना का डटकर सामना किया और आखिरी सांस तक लड़ती रहीं। इस प्रकार यह कविता भारत के स्वतंत्रता संग्राम की अमर गाथा को जीवंत बनाए रखती है।
  5. साहित्यिक महत्व: इस कविता का भाषा-शैली और छंद अनूठा है। वीर रस से भरपूर यह कविता इतनी प्रभावशाली है कि इसे पढ़ने वाला हर व्यक्ति इसकी लयबद्धता और ओजपूर्ण शब्दों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। यह हिंदी साहित्य की श्रेष्ठतम कविताओं में गिनी जाती है।

FAQs 

सुभद्राकुमारी चौहान किस प्रकार की कविताओं की रचना अधिक करती थीं?

सुभद्राकुमारी चौहान वीर रस तथा तथा वात्सल्य की कविताओं की रचना अधिक करती थीं, जिसमें क्रूरता और कुरीतियों के प्रति बग़ावत देखने को मिलती थी।

सुभद्रा की बालसखी कौन थी?

सुभद्रा की बालसखी महादेवी वर्मा थी, जिसका मुख्य कारण दोनों का कविताओं से जुड़ाव था।

सुभद्रा कुमारी चौहान की मृत्यु कब हुई थी?

सुभद्रा कुमारी चौहान 15 फरवरी 1948 को कार एक्सीडेंट में उनकी मृत्यु हो गयी थी।

“खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी” कविता किसकी है?

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी कविता (Khub Ladi Mardani Poem in Hindi) सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई है।

“खूब लड़ी मर्दानी” से आप क्या समझते हैं?

इस पंक्ति का अर्थ है कि रानी लक्ष्मीबाई ने वीरता और साहस के साथ अंग्रेजों से युद्ध किया। उन्होंने पुरुषों की तरह अदम्य साहस दिखाया और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

झांसी की रानी को मर्दानी क्यों कहा जाता है?

रानी लक्ष्मीबाई को “मर्दानी” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी वीरता, साहस और शक्ति से युद्ध में पुरुषों की तरह संघर्ष किया। उन्होंने घोड़े पर सवार होकर तलवार चलाना, युद्धनीति अपनाना और अंग्रेजों से बहादुरी से लड़ना दिखाया, जो आमतौर पर पुरुषों से अपेक्षित था।

मर्दानी का अर्थ क्या होता है?

“मर्दानी” शब्द का अर्थ होता है वीरता, साहस और शक्ति से परिपूर्ण महिला। यह शब्द विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए प्रयोग किया जाता है जो किसी कठिन परिस्थिति में अदम्य साहस और संघर्ष का परिचय देती हैं।

उम्मीद है, सुभद्राकुमारी चौहान की ‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ कविता (Khub Ladi Mardani Poem in Hindi) कविता ने आपको प्रेरित किया होगा। ऐसी ही अन्य प्रेरणादायक और ऐतिहासिक कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें और हिंदी साहित्य की अनमोल रचनाओं का आनंद लें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*