19वीं सदी में महिला शिक्षा और सामाजिक बदलाव की शुरुआत करने वाली सावित्रीबाई फुले भारतीय समाज के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उन्होंने महिलाओं को शिक्षित बनाने, उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने और समाज में फैले अन्याय का विरोध करने के लिए लगातार संघर्ष किया। अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर उन्होंने लड़कियों के लिए पहला स्कूल शुरू किया और शिक्षा को हर महिला तक पहुँचाने का मिशन बनाया। सावित्रीबाई फुले का जीवन आज भी समानता, साहस और परिवर्तन का प्रेरक संदेश देता है। स्कूलों और प्रतियोगी परीक्षाओं में उन पर निबंध लिखने का विषय अक्सर पूछा जाता है। इस लेख में छात्रों के लिए सावित्रीबाई फुले पर निबंध के कुछ सैंपल दिए गए हैं, जिनकी मदद से वे आसानी से अपना निबंध तैयार कर सकते हैं।
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सावित्रीबाई फुले पर 100 शब्दों में निबंध
सावित्रीबाई फुले भारत की अग्रणी महिला शिक्षिकाओं में से एक थीं और उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए एक नया रास्ता बनाया। उनका जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में हुआ था। 1848 में उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। उस समय लड़कियों को पढ़ने देना समाज को पसंद नहीं था, लेकिन सावित्रीबाई ने हर विरोध का डटकर सामना किया। वे रोज स्कूल जाकर बेटियों, वंचित और वंचित समुदायों के बच्चों को पढ़ातीं और उन्हें आगे बढ़ने की हिम्मत देतीं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि शिक्षा से बराबरी और बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
सावित्रीबाई फुले पर 200 शब्दों में निबंध
सावित्रीबाई फुले 19वीं सदी की ऐसी समाज सुधारक थीं जिन्होंने भारतीय समाज में महिला शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में जन्मी सावित्रीबाई ने बहुत कम उम्र में विवाह किया। बाद में उनके पति ज्योतिराव फुले ने उन्हें शिक्षा दिलाई और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। 1848 में दोनों ने पुणे में लड़कियों के लिए पहला विद्यालय खोला, जो उस समय एक ऐतिहासिक कदम था।
समाज में महिलाओं की शिक्षा को लेकर भारी विरोध था। कहा जाता है कि उन्हें कई तरह के सामाजिक विरोध और अपमान का सामना करना पड़ता था, फिर भी वे हिम्मत के साथ स्कूल जाती रहीं और विरोध की स्थितियों के लिए अतिरिक्त साड़ी साथ रखती थीं। सावित्रीबाई का उद्देश्य सिर्फ शिक्षित करना नहीं था, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों—विशेषकर दलित और गरीब महिलाओं—को सम्मान और अवसर दिलाना था।
सावित्रीबाई का काम केवल शिक्षा तक सीमित नहीं था; उन्होंने बाल विवाह, जाति आधारित भेदभाव और सामाजिक रूढ़ियों का भी विरोध किया। उनका जीवन महिलाओं और समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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सावित्रीबाई फुले पर 500 शब्दों में निबंध
सावित्रीबाई फुले पर 500 शब्दों में निबंध इस प्रकार से है:
प्रस्तावना
सावित्रीबाई फुले भारतीय समाज में महिला शिक्षा और सामाजिक सुधार की आधारशिला मानी जाती हैं। जिस समय महिलाएँ घर से बाहर निकलने तक की स्वतंत्रता नहीं रखती थीं, उस दौर में सावित्रीबाई ने लड़कियों के लिए शिक्षा का दरवाज़ा खोला। उनका जीवन संघर्ष, साहस और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है।
प्रारंभिक जीवन
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को सतारा जिले के नायगांव में हुआ। उनका बचपन साधारण परिवार में बीता। विवाह के बाद उनके पति ज्योतिराव फुले ने उनकी शिक्षा का जिम्मा लिया और उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। आगे चलकर सावित्रीबाई ने शिक्षिका का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया।
महिला शिक्षा की शुरुआत
1848 में सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ने पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। यह स्कूल भारत में लड़कियों की शिक्षा के शुरुआती आधुनिक संस्थानों में से एक था। उस समय समाज में ऐसे कदम का भारी विरोध था। महिलाएँ पढ़ें, यह कई लोगों को स्वीकार नहीं था।
स्कूल जाते समय ग्रामीण लोग उन पर कीचड़ और गंदगी फेंकते थे, इसलिए वे अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी रखती थीं। इन सब कठिनाइयों के बावजूद सावित्रीबाई ने शिक्षा का कार्य जारी रखा। उनके प्रयासों से आगे चलकर कई विद्यालय स्थापित हुए।
सामाजिक सुधारों में योगदान
सावित्रीबाई का काम केवल शिक्षा तक सीमित नहीं था। उन्होंने:
- फुले दम्पति द्वारा बालहत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की गई।
- जाति आधारित भेदभाव का विरोध किया
- उन्होंने विधवा पुनर्विवाह आंदोलन में अपने पति के साथ सहयोगी भूमिका निभाई।
- स्त्री अधिकारों के लिए आवाज उठाई
महामारी के समय सेवा
1897 में पुणे में प्लेग फैला। सावित्रीबाई और उनके दत्तक पुत्र यशवंतराव ने बीमारों की सेवा की और प्लेग पीड़ितों के लिए केंद्र खोला। संक्रमित बच्चे को उठाकर ले जाने के दौरान वे स्वयं संक्रमण की शिकार हो गईं और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।
सम्मान और विरासत
उनके योगदान के सम्मान में 1998 में भारत सरकार ने उनका डाक टिकट जारी किया। 2014–15 में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर “सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय” कर दिया गया।
निष्कर्ष
सावित्रीबाई फुले का जीवन इस बात का प्रमाण है कि एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति समाज में गहरा परिवर्तन ला सकता है। उन्होंने न केवल महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाया, बल्कि समाज में समानता, न्याय और मानवता की नींव मजबूत की। उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों को रास्ता दिखाता रहेगा।
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FAQs
उनका लक्ष्य स्त्रियों और अंततः समाज का विकास करना था।
सावित्रीबाई फुले ने भारत में महिला शिक्षा की नींव रखी और देश की पहली महिला शिक्षिका बनकर लड़कियों के लिए स्कूल शुरू किए।
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति जोतीराव फुले और सहयोगियों की मदद से घर पर ही पढ़ना-लिखना शुरू किया और आगे शिक्षक प्रशिक्षण भी प्राप्त किया, जिससे वे एक योग्य शिक्षिका बन सकीं।
उन्होंने शिक्षा, महिलाओं की स्थिति, वंचित समुदायों के अधिकार, विधवा पुनर्विवाह और बाल संरक्षण जैसे क्षेत्रों में काम किया और समाज में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया।
उस समय समाज में यह मान्यता थी कि लड़कियों को पढ़ाना गलत है। इसलिए जब सावित्रीबाई स्कूल जाती थीं तो लोग उन पर गंदगी और मिट्टी फेंकते थे। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और एक अतिरिक्त साड़ी लेकर रोज स्कूल जाती थीं ताकि अपना शिक्षा का काम जारी रख सकें।
आशा है कि इस लेख में दिए गए सावित्रीबाई फुले पर निबंध के सैंपल आपको पसंद आए होंगे। अन्य निबंध के लेख पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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