भारत का प्राचीन और प्रसिद्ध त्यौहार होली दुनिया भर में 50 से अधिक देशों में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। लेकिन कान्हा की नगरी मथुरा, वृंदावन और बरसाना में रंगो के इस पर्व का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। खासकर ब्रज, जो भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है, यहाँ होली के दौरान जितना जोश और उमंग देखने को मिलता है, वैसा रंग दुनिया में कहीं नहीं देखा जाता। इस लेख के माध्यम से आप जान पाएंगे बृज में होली कैसे मनाई जाती है और आखिर क्यों प्रसिद्ध है Braj ki Holi 2024? आईये जानते हैं विस्तार से।
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बृज में होली कैसे मनाई जाती है?
बृज में होली रंगों, गीतों, नृत्य, उत्सव, भक्ति, संस्कृति, पर्यटन और लोकप्रियता का एक अनूठा मिश्रण है। यही वजह है कि Braj ki Holi दुनियाभर में प्रसिद्ध है। बृज में होली अनेक प्रकार से मनाई जाती है जैसे:- रंगो की होली , लठ्ठमार होली , लड्डू होली , हुरंगा , होलिका दहन आदि। यह त्यौहार पूरे 40 दिन तक चलता है।
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ब्रज की होली के बारे में
मथुरा, वृन्दावन और बरसाना की होली दुनिया भर में प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण और राधा सखियों और गोपियों के साथ होली खेलते थे। भगवान कृष्ण के जन्म स्थान ब्रज में सिर्फ रंगों से ही नहीं बल्कि कई अन्य तरीकों से भी होली खेली जाती है। बता दें कि यहाँ लड्डूमार होली से लेकर गोबर की होली तक का प्रचलन है। इस अनोखे परंपरा की शुरुआत वसंत पंचमी के दिन से होती है और रंग पंचमी वाले दिन इस उत्सव का समापन होता है।
ब्रज की होली का इतिहास
ब्रज की होली का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण और राधा वृंदावन में फूलों से खेलते थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार कान्हा एक बार राधारानी से मिलने न जा सके। इसपर राधा रानी उदास हो गईं, जिससे फूल, जंगल सब सूखने लगे। इसके बाद जब भगवान कृष्ण राधा रानी से मिलने पहुंचे। वहीं सभी मुरझाए फूल फिर से खिल उठे। उन्हीं खिले हुए फूलों से राधा रानी और कान्हा ने होली खेली।
वहीं एक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब नंदगांव के कन्हैया अपने सखाओं के साथ राधा रानी के गांव बरसाना जाकर राधा रानी और गोपियों पर रंग लगाया करते थे। तो राधा रानी श्री कृष्ण की शरारतों से परेशान होकर उनपर लाठियों बरसाती थी। ऐसे में कान्हा और उनके सखा खुद को बचाने के लिए ढाल का इस्तेमाल करते हैं। यहीं से इस लठमार होली की परंपरा की शुरुआत हुई।
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Braj Ki Holi 2024 कैलेंडर
Braj Ki Holi 2024 का कैलेंडर इस प्रकार से है :
दिन | कार्यक्रम |
17 मार्च 2024 दिन रविवार | बरसाना के श्रीजी मंदिर में लड्डू होली। |
18 मार्च 2024 दिन सोमवार | बरसाना की मुख्य लट्ठमार होली। |
19 मार्च 2024 दिन मंगलवार | नंदगांव के नंद भवन में लट्ठमार होली। |
20 मार्च 2024 दिन बुधवार | वृन्दावन में रंगभरी एकादशी |
21 मार्च 2024 दिन गुरुवार | गोकुल में छड़ीमार होली और बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली होगी। |
22 मार्च 2024 दिन शुक्रवार | गोकुल होली मनाई जाएगी और रमण रेती दर्शन किए जाएंगे। |
24 मार्च 2024 दिन रविवार | होलिका दहन (होली अग्नि), द्वारकाधीश मंदिर डोला और मथुरा विश्राम घाट, बांके बिहारी वृन्दावन में होलिका दहन किया जाएगा। |
25 मार्च 2024 दिन सोमवार | पूरे ब्रज में होली का उत्सव मनाया जाएगा और रंग-बिरंगे रंग और पानी की होली खेली जाएगी। |
26 मार्च 2024 दिन मंगलवार | दाऊजी का हुरंगा। |
30 मार्च 2024 | रंग पंचमी पर रंगनाथ जी मंदिर में होली। |
ब्रज की होली के बारे में रोचक तथ्य
ब्रज की होली के बारे में रोचक तथ्य निम्नलिखित है :
- बसंत पंचमी के साथ ही ब्रज में होली की शुरुआत हो जाती है और यह लगभग 40 दिनों तक मनाया जाता है।
- ब्रज की होली में लठमार होली विशेष मानी जाती है।
- ब्रज की होली भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम का प्रतीक है।
- ब्रज में होली के दौरान कई प्रकार के गीत और नृत्य किए जाते हैं।
- ब्रज में होली को “फाग” भी कहा जाता है।
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FAQs
होली के पावन अवसर पर भगवान विष्णु, भगवान कृष्ण और देवी राधा की पूजा की जाती है।
होली का उत्सव होलिका दहन अनुष्ठान के साथ शुरू होता है जो कि होलिका, दुष्ट दानव, और उस अग्नि से भगवान विष्णु द्वारा प्रह्लाद की रक्षा के सम्मान में मनाया जाता है। लोग लकड़ी इकट्ठा करके अलाव जलाते हैं और उसके चारों ओर गीत गाकर खुशियां मनाते हैं। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
होली का त्यौहार हर साल फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मार्च में आता है।
आशा है कि आपको इस ब्लॉग में आपको Braj ki Holi 2024 से संबंधित जानकारी मिल गयी होगी। इसी तरह ट्रेंडिंग इवेंट से संबंधित अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।