Bharat Ki Jalvayu Ko Prabhavit Karne Wale Karak: भारत एक विशाल देश है, जिसकी जलवायु विविधताओं से भरपूर है। यहाँ गर्मी, सर्दी, वर्षा और शुष्क मौसम जैसे विभिन्न जलवायु प्रकार देखने को मिलते हैं। भारत की जलवायु को कई प्राकृतिक और भौगोलिक कारक प्रभावित करते हैं। इन कारकों की वजह से देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग मौसम देखने को मिलता है। बताना चाहेंगे कि भारत की जलवायु अनेक कारकों के संयोजन से प्रभावित होती है। देखा जाए तो भूगोल, समुद्र, पवन प्रणालियाँ, पर्वत, ऊँचाई और मानव गतिविधियाँ मिलकर देश की जलवायु को विविध बनाते हैं। इसलिए इस लेख में आपके लिए भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Bharat Ki Jalvayu Ko Prabhavit Karne Wale Karak) और उनसे संबंधित विस्तृत जानकारी दी गई है। भारत में कितने प्रकार की जलवायु पाई जाती है? के बारे में जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।
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भारत में कितने प्रकार की जलवायु पाई जाती है?
भारत विविध जलवायु वाले देशों में से एक है। इसकी भौगोलिक स्थिति, विस्तृत क्षेत्रफल और समुद्र, पर्वत, रेगिस्तान जैसी प्राकृतिक संरचनाएँ विभिन्न प्रकार की जलवायु को जन्म देती हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में मुख्य रूप से छह प्रकार की जलवायु पाई जाती है, जो इस प्रकार हैं –
- उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु (Tropical Monsoon Climate)
- उष्णकटिबंधीय शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क जलवायु (Tropical Dry & Semi-Arid Climate)
- उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु (Tropical Wet Climate)
- समशीतोष्ण जलवायु (Temperate Climate)
- महाद्वीपीय जलवायु (Continental Climate)
- टुंड्रा जलवायु (Tundra Climate)
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
यहाँ आपके लिए भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Bharat Ki Jalvayu Ko Prabhavit Karne Wale Karak) की जानकारी दी, जो आपके सामान्य ज्ञान को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाएगी।
अक्षांशीय स्थिति
भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और कर्क रेखा इसके मध्य से गुजरती है। इस कारण भारत के उत्तरी भागों में समशीतोष्ण जलवायु पाई जाती है, जबकि दक्षिणी भागों में उष्णकटिबंधीय जलवायु देखने को मिलती है। भारत की यह विशेष भौगोलिक स्थिति देश के विभिन्न हिस्सों में तापमान में अंतर उत्पन्न करती है।
हिमालय पर्वत का प्रभाव
हिमालय भारत की जलवायु को नियंत्रित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पर्वत श्रृंखला उत्तर से आने वाली ठंडी साइबेरियन हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोकती है, जिससे देश में अधिक गर्म और आर्द्र जलवायु बनी रहती है। साथ ही, हिमालय मानसूनी हवाओं को रोककर भारी वर्षा कराने में सहायक होता है, विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी राज्यों में।
वायुदाब और हवाओं से संबंधित कारक
विभिन्न ऋतुओं में पवनों की दिशा बदलती है, जिससे जलवायु पर प्रभाव पड़ता है। ग्रीष्म ऋतु में गर्म और शुष्क पछुआ हवाएँ उत्तर भारत में गर्मी बढ़ाती हैं, जबकि सर्दियों में पश्चिमी विक्षोभ ठंड लाते हैं।
ऊँचाई
भारत में विभिन्न प्रकार की पर्वतीय संरचनाएँ पाई जाती हैं, जो जलवायु को प्रभावित करती हैं। ऊँचाई के अनुसार ही तापमान में गिरावट आती है। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ऊँचाई वाले स्थानों में सर्दी अधिक होती है, जबकि राजस्थान के मैदानी इलाकों में अधिक गर्मी रहती है।
समुद्र तट और महासागरीय प्रभाव
भारत के तीन ओर समुद्र होने के कारण इसकी जलवायु पर महासागरीय प्रभाव पड़ता है। अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर की उपस्थिति मानसूनी पवनों के आगमन और दिशा को प्रभावित करती है। समुद्र से सटे क्षेत्रों में जलवायु अधिक आर्द्र और संतुलित रहती है, जबकि आंतरिक भागों में अधिक तापमान भिन्नता पाई जाती है।
मानसून
भारत की जलवायु पर मानसून का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। बताना चाहेंगे कि मानसून मुख्य रूप से दो प्रकार (दक्षिण-पश्चिम मानसून और उत्तर-पूर्व मानसून) का होता है:-
- दक्षिण-पश्चिम मानसून: यह जून से सितंबर के बीच सक्रिय रहता है और देश में अधिकांश वर्षा इसी से होती है।
- उत्तर-पूर्व मानसून: यह अक्टूबर से दिसंबर तक प्रभावी रहता है और विशेष रूप से तमिलनाडु तथा पूर्वी तट पर वर्षा लाता है।
महासागरीय धाराएँ
हिंद महासागर की महासागरीय धाराएँ भी भारत की जलवायु को प्रभावित करती हैं। बंगाल की खाड़ी से आने वाली गर्म धारा और अरब सागर की ठंडी धारा स्थानीय तापमान और नमी के स्तर को नियंत्रित करती हैं। इन धाराओं का प्रभाव विशेष रूप से तटीय राज्यों में देखा जाता है।
वनस्पति और मिट्टी
वनस्पति आवरण भी जलवायु को नियंत्रित करता है। घने जंगलों वाले क्षेत्रों में आर्द्रता अधिक होती है और तापमान नियंत्रित रहता है, जबकि रेगिस्तानी क्षेत्रों में तापमान में अधिक उतार-चढ़ाव होता है। भारत के पश्चिमी भाग में थार रेगिस्तान स्थित है, जहाँ दिन में अत्यधिक गर्मी और रात में ठंडक रहती है।
धरातलीय संरचना
भारत की स्थलाकृतिक संरचना भी जलवायु को प्रभावित करती है। भारत में पठारी, मैदानी, पहाड़ी और तटीय क्षेत्र पाए जाते हैं, जो स्थानीय जलवायु में अंतर पैदा करते हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट के कारण केरल में अधिक वर्षा होती है, जबकि राजस्थान में अरावली पर्वत की स्थिति वर्षा को सीमित कर देती है।
मानव गतिविधियाँ
हाल के वर्षों में मानव गतिविधियों ने भी जलवायु को प्रभावित किया है। वनों की कटाई, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहा है। यह परिवर्तन मानसून की अनिश्चितता, तापमान वृद्धि और अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं को जन्म दे रहा है। उदाहरण: दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण और राजस्थान में मरुस्थलीकरण।
भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकते हैं, जो इस प्रकार हैं –
- बेमौसम बारिश और सूखा: मानसून का पैटर्न अस्थिर होता जा रहा है। कभी अत्यधिक वर्षा से बाढ़ आती है, तो कभी सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- बर्फबारी में कमी और समुद्र स्तर में वृद्धि: समुद्र का स्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों में भू-क्षरण (Coastal Erosion) हो रहा है।
- कृषि उत्पादन पर प्रभाव: अनिश्चित मानसून और असामान्य वर्षा के कारण धान, गेहूँ और दालों की पैदावार प्रभावित हो रही है। उच्च तापमान के कारण मिट्टी की नमी कम हो रही है, जिससे फसलों की उत्पादकता घट रही है। बता दें कि जलवायु परिवर्तन के कारण कीट और रोगों की संख्या बढ़ रही है, जिससे किसानों को अधिक नुकसान हो रहा है।
- तापमान में वृद्धि: भारत में औसत तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। बता दें कि भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, पिछले सौ वर्षों में भारत का औसत तापमान लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। अत्यधिक गर्मी की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है, जिससे हीटवेव की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
- जल संसाधनों पर प्रभाव: जहाँ एक ओर हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे गंगा, ब्रह्मपुत्र और यमुना नदियों में जल प्रवाह प्रभावित हो रहा है। वहीं दूसरी ओर जल संकट की समस्या बढ़ रही है। राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है।
- जैव विविधता पर प्रभाव: जंगलों में आग की घटनाएँ बढ़ रही हैं, जिससे वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास प्रभावित हो रहा है। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट और हिमालय में कई दुर्लभ प्रजातियों की संख्या घट रही है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: बढ़ता तापमान और प्रदूषण से सांस संबंधी रोग (जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस) बढ़ रहे हैं। जहाँ एक ओर हीटवेव से हीटस्ट्रोक के मामले बढ़े हैं, जिससे बुजुर्गों और बच्चों को सबसे अधिक खतरा होता है। तो वहीं दूसरी ओर बाढ़ और जलभराव के कारण डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ फैल रही हैं।
- सामाजिक और आर्थिक प्रभाव: सूखा, बाढ़ और तूफान जैसी आपदाओं के कारण कृषि और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। बता दें कि गरीब और ग्रामीण समुदाय सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं, जिससे आजीविका का संकट उत्पन्न हो रहा है। शहरी क्षेत्रों में अत्यधिक गर्मी के कारण ऊर्जा की मांग (जैसे एयर कंडीशनिंग और कूलिंग सिस्टम) बढ़ रही है।
FAQs
उत्तर:- भारत की जलवायु को मुख्य रूप से अक्षांश, समुद्री प्रभाव, पवन प्रणाली, ऊँचाई, वनस्पति और मानव क्रियाओं जैसे कारक प्रभावित करते हैं।
उत्तर:- हिमालय ठंडी हवाओं को उत्तर से आने से रोकता है, जिससे भारत में सर्दी अपेक्षाकृत कम होती है। यह मानसूनी पवनों को भी रोककर वर्षा में सहायक होता है।
उत्तर:- भारत के चारों ओर समुद्र और हिमालय की उपस्थिति, विषुवतीय पवनें, तथा ITCZ (अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र) मानसूनी जलवायु के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं।
उत्तर:- बंगाल की खाड़ी की मानसूनी हवाएँ अधिक नमी लेकर उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा कराती हैं, जबकि अरब सागर से आने वाली हवाएँ पश्चिमी घाट और मध्य भारत में वर्षा लाती हैं।
उत्तर:- एल नीनो भारत में सूखे की स्थिति बना सकता है क्योंकि यह मानसूनी पवनों को कमजोर कर देता है, जबकि ला नीना अच्छी वर्षा लाने में सहायक होता है।
उत्तर:- राजस्थान में अरावली पर्वतमाला मानसूनी हवाओं को रोकने में प्रभावी नहीं होती, जिससे यह क्षेत्र शुष्क और कम वर्षा वाला बना रहता है।
उत्तर:- ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान कम होता है, जिससे पहाड़ी क्षेत्रों (जैसे हिमालय और पश्चिमी घाट) में ठंडी जलवायु पाई जाती है।
उत्तर:- भारत के विशाल भौगोलिक विस्तार, समुद्री प्रभाव, पर्वत श्रृंखलाओं की उपस्थिति और अलग-अलग पवन प्रणालियों के कारण जलवायु में विविधता देखी जाती है।
उत्तर:- बढ़ता औद्योगीकरण, वनों की कटाई और प्रदूषण से तापमान बढ़ रहा है, जिससे जलवायु परिवर्तन और असंतुलित वर्षा जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
उत्तर:- बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बनने वाले चक्रवात भारी वर्षा, तेज़ हवाएँ और बाढ़ लाकर स्थानीय जलवायु को अस्थायी रूप से प्रभावित करते हैं।
आशा है कि इस लेख में दी गई भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Bharat Ki Jalvayu Ko Prabhavit Karne Wale Karak) की जानकारी आपको पसंद आई होगी। UPSC और सामान्य ज्ञान से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ जुड़े रहें।