भारत पर जब-जब किसी विदेशी ने कुदृष्टि रखने की कोशिश की, तब-तब भारत माँ के वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी भारत की स्वतंत्रता और अखंडता की रक्षा की। लेकिन क्या आप जानते हैं कि विश्व कल्याण की भावना रखने वाले भारत को, पड़ोसी देश चीन ने हमेशा पीट पीछे धोखा दिया है। इस पोस्ट के माध्यम से आप भारत-चीन युद्ध का वो इतिहास जान पाएंगे, जिसे पंचशील समझौता भी नहीं रोक पाया था। भारत-चीन युद्ध का सम्पूर्ण इतिहास पढ़ने के लिए ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़ें।
कब हुआ था भारत-चीन युद्ध?
इतिहास गवाह है जब-जब भारत ने अपने पड़ोसियों पाकिस्तान और चीन पर भरोसा किया है, तब-तब भारत को इन दोनों पड़ोसियों से धोखा मिला है। ऐसा ही एक युद्ध भारत-चीन के बीच भी हुआ, भारत-चीन युद्ध को इस 20 अक्टूबर को 61 वर्ष हो पूरे हो जायेंगे। यह एक ऐसा युद्ध था, जिसको भारत और चीन ने पहली बार लड़ा था। 20 अक्टूबर 1962 को भारत और चीन के बीच एक युद्ध का शंखनाद हुआ, जिसमें दोनों ओर से ही हजारों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
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किन कारणों से हुआ था भारत-चीन युद्ध?
भारत-चीन युद्ध 20 अक्टूबर 1962 को शुरू हुआ था, जो कि लगभग एक महीने चलने वाला युद्ध था। एक महीने तक चलने वाले इस युद्ध में भारत की ओर से करीब 11-12 हजार सैनिकों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए चीन की ओर से लड़ रहे 80 हजार से ज्यादा सैनिकों का सामना किया था। युद्ध के कारणों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
- चीन के भारतीय इलाकों पर कब्जों के दावों के बाद से ही, दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सामने आ गई थीं।
- इस युद्ध के कारणों में से एक यह भी है कि भारतीय गोरखा सैनिकों ने 4 जुलाई 1962 में घाटी में पहुंचने के लिए एक पोस्ट बनाई थी। इस पोस्ट ने समांगलिंग के एक चीनी पोस्ट के कम्युनिकेशन नेटवर्क को काट दिया। जिसे चीन ने अपने ऊपर हमला बताया था।
- जिसके बाद चीन के सैनिकों ने गोरखा पोस्ट को 100 गज की दूरी पर घेर लिया, भारत ने चीन को धमकी दी थी कि वह इसे किसी भी कीमत पर खाली कराकर रहेगा।
- इसके बाद भारत ने चार महीने तक इस पोस्ट पर हेलिकॉप्टर के जरिए खाद्य और सैन्य सप्लाई जारी रखी थी।
- इससे बौखलाए चीन अरुणाचल के तवांग और जम्मू कश्मीर के चुशूल में भारतीय सीमा के अंदर घुस आया, और युद्ध आरम्भ हो गया।
- युद्ध का एक मुख्य कारण यह भी था कि अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश की संप्रुभता के लिए भी दोनों सेना में तनातनी हुई।
- विस्तारवादी नीति का अनुसरण करने वाले चीन का मकसद तिब्बत पर कब्ज़ा करना था, जिससे 1959 में दलाई लामा और उनके अनुयायियों को भारत में शरण दी गयी। भारत द्वारा मिलने वाली शरण को भी युद्ध का एक कारण माना जाता है।
- पूरे एक माह तक चलने वाले इस युद्ध में हजारों सैनिकों ने अपना बलिदान दिया। जिसके बाद चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
- युद्ध विराम के साथ ही चीन ने विवादित क्षेत्र से हटने पर भी सहमति जताई। जिसके बाद 21 नवंबर 1962 को भारत-चीन युद्ध समाप्त हो गया।
भारत-चीन युद्ध का संक्षिप्त इतिहास
भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की नीतियां पंचशील नीतियां थी, जिनका लक्ष्य भारत और चाइना के बीच बेहतर संबंधों और नई कीर्ति को स्थापित करना था। लेकिन चाइना ने इस बात की भी कोई कीमत न समझी और भारत के पीठ में छुरा घोंपने का काम किया। पंचशील समझौता भारत और चीन के क्षेत्र तिब्बत के बीच भी आपसी संबंधों और व्यापार को लेकर था।
1962 के भारत-चीन युद्ध ने इस प्रकार की विदेश नीति को भारी झटका दिया, जिसके बाद भारत ने अपनी नीतियों में बदलाव किया। भारत चीन के बीच युद्ध का मुख्य कारण अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों की संप्रभुता को लेकर विवाद था। अक्साई चिन, जिसे भारत लद्दाख का हिस्सा मानता है और चीन शिनजियांग प्रांत का हिस्सा मानता है, यहीं से मुख्य टकराव शुरू हुआ और जो कि युद्ध में बदल गया।
चीन के हमले ने यह साबित कर दिया कि नेहरूवादी विदेश नीति भारत की सुरक्षा नहीं कर सकती है और रक्षा और सैन्य शक्ति दिल्ली के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए। इस युद्ध ने साबित किया कि चीन के साथ भारत की साझेदारी एक गलती थी, संकट के वक्त दिल्ली का नैतिक-राजनीतिक और तीसरा विश्ववाद का कॉन्सेप्ट झूठा साबित हुआ। 20 अक्टूबर 1962 को भारत और चीन के बीच लगभग एक महीना एक दिन तक निरंतर युद्ध चला, जिसका युद्ध विराम चीन की ओर से 21 नवंबर 1962 को किया गया।
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क्या रहे भारत-चीन युद्ध के परिणाम
1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान न तो देश की नीतियां युद्ध के लिए तैयार थी और न ही सेना के पास पर्याप्त संसाधन थे। जिसके बावजूद भारतीय सेना ने अपने साहस से मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को न्योछाबर किया। परिणाम यह रहा कि चीन के 80 हजार से अधिक सैनिकों से भारत के करीब 11-12 हजार सैनिकों ने सामना किया। इस युद्ध में दोनों ओर से हजारों सैनिकों को वीरगति प्राप्त हुई।
आशा है कि आपको भारत-चीन युद्ध का यह ब्लॉग जानकारी से भरपूर लगा होगा। इसी प्रकार इतिहास से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।