हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान देने वाले अमृतलाल नागर जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के गोकुलपुरा गाँव में 17 अगस्त 1916 को हुआ। उन्होंने अपने जीवन में उपन्यास, कहानी, नाटक, व्यंग्य, बाल साहित्य, अनुवाद सहित कई रचनाओं का सर्जन किया। अमृतलाल नागर के उपन्यास ‘बूँद और समुद्र’, ‘सुहाग के नूपुर’ सहित कई रचनाओं के लिए पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं उन्हें हिंदी साहित्य मेले, प्रयाग द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से भी सम्मानित किया गया है। इस ब्लॉग में अमृतलाल नागर के उपन्यासों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
This Blog Includes:
अमृतलाल नागर के उपन्यास की सूची
अमृतलाल नागर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य की कई विधाओं में साहित्य का सृजन किया हैं। इनमें मुख्य रूप से उपन्यास, कहानी, व्यंग्य, बाल साहित्य, अनुवाद और नाटक विधाएँ शामिल हैं। यहां अमृतलाल नागर के उपन्यास के बारे में बताया गया है जो इनके समय के मनुष्य और मनुष्यता की छवि को प्रस्तुत करते हैं –
उपन्यास | प्रकाशन |
महाकाल | वर्ष 1947 |
सेठ बांकेमल | वर्ष 1955 |
बूँद और समुंद्र | वर्ष 1956 |
शतरंज के मोहरे | वर्ष 1958 |
सुहाग के नूपुर | वर्ष 1960 |
अमृत और विष | वर्ष 1966 |
सात घूँघट वाला मुखड़ा | वर्ष 1968 |
एकदा नैमिषारण्ये | वर्ष 1968 |
मानस का हंस | वर्ष 1971 |
नाच्यौ बहुत गोपाल | वर्ष 1978 |
खंजन नयन | वर्ष 1981 |
बिखरे तिनके | वर्ष 1982 |
अग्निगर्भा | वर्ष 1983 |
करवट | वर्ष 1985 |
पीढ़ियाँ | वर्ष 1990 |
महाकाल
यह उपन्यास 1943 में बंगाल में पड़े भीषण अकाल की विभीषिका को दर्शाता है। इसे 1970 में ‘भूख’ नाम से पुनर्प्रकाशित किया गया। यह कहानी मोहनपुर गाँव के अध्यापक पांचू गोपाल पर केंद्रित है, जो अपने आदर्शों के साथ गाँव के लोगों को भूख से मरते देखता है। अकाल के समय में मानवता और रिश्ते बौने हो जाते हैं और लोग पेट भरने के लिए स्त्रियों से वेश्यावृत्ति कराने पर मजबूर होते हैं। पांचू का बेटा भी अपनी पत्नी को ऐसा करने पर मजबूर हो जाता है। वहीं, जमींदार और व्यापारी कालाबाजारी कर अपनी तिजोरियाँ भरते हैं। यह उपन्यास सामंती व्यवस्था की अमानवीयता को उजागर करता है, जहाँ भूख इंसानियत पर हावी हो जाती है।
सेठ बांकेमल
अमृतलाल नागर का दूसरा उपन्यास ‘सेठ बांकेमल’ व्यंग्य प्रधान है, जिसमें दो मुख्य पात्र सेठ बांकेमल जो परम्परा के समर्थक हैं जबकि दूसरे पात्र पारसनाथ चौबे आधुनिकता के। यह उपन्यास बातचीत की शैली में लिखा गया है 16 कहानियाँ शामिल हैं : बम्बई फोकस, दिल्ली का धावा, गोकुल की गोपियां, चौबे जी ने लंगोट कसा, भतीजे को पैसा ले भागा, राजा साहब की नाक कटी, सुभाष बाबू भाग गए, पंचायत राज, डाग्डर मुंगाराम, लव इज़ यूनीवर्सल, बावन नम्बर, साझां बार-साय ने कलेजा कूटा, कृष्ण जी मुहम्मद बने, पाँच का दांव, जोसे जवानी और तीर तलवार की आसकी मासकी।
इस उपन्यास में अमृतलाल नागर की कहानियाँ सुनाने की कला साफ दिखाई देती है, जो पाठक को अपने साथ बहा ले जाती है। यह उपन्यास परम्परा और आधुनिकता के बीच के संघर्ष को दिखाते हुए बदलते समय की तस्वीरें पेश करता है। नागर जी इसे व्यंग्य मानते थे।
बूँद और समुंद्र
अमृतलाल नागर का यह उपन्यास सन् 1956 में प्रकाशित हुआ था। लखनऊ का चौक मुहल्ला इस उपन्यास का कथा केंद्र है। इस उपन्यास में उस समय के लखनऊ के समाज को जीवंत रूप में देखा जा सकता है। लखनऊ की गलियाँ, वहाँ की भाषा, पहनावा और रीति-रिवाज इसे खास बनाते हैं। 68 अध्यायों और लगभग 600 पृष्ठों में फैले इस उपन्यास में अमृतलाल नागर की कहानियाँ सुनाने की कला दिखाई देती है।
इस उपन्यास में अमृतलाल नागर एक कहानी के भीतर से कई और कहानियाँ बुनते हैं और उन्हें नई दिशा में ले जाते हैं।
उपन्यास के केंद्र में ताई का चरित्र है, जो लखनऊ के रईस राजा बहादुर सर द्वारकादास अग्रवाल की पत्नी हैं। पुत्र की लालसा में राजा बहादुर दूसरा विवाह कर लेते हैं, जिससे ताई परित्यक्ता बन जाती है। ताई टोने-टोटके और तंत्र-मंत्र का सहारा लेती है और अपनी निःसंतानता की कमी को बिल्ली के बच्चों और बाद में कन्नोमल के बेटे सज्जन को अपनाकर पूरा करती है। ताई बाहर से सख्त लेकिन भीतर से कोमल हैं। सज्जन और उसका मित्र महिपाल, जो गाँधी से प्रभावित है, इस उपन्यास के अन्य महत्वपूर्ण पात्र हैं। महिपाल आज़ादी के आंदोलन में भाग लेता है और बिना दहेज विवाह करता है, पर धीरे-धीरे बदल जाता है और सज्जन के खिलाफ प्रचार में शामिल हो जाता है। सज्जन महिला सेवा मंडल में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करता है और चौक वार्ड सहकारी बैंक बनाता है। ताई का चरित्र उपन्यास के केंद्र में रहता है, जो समाज के अंतर्विरोधों को उजागर करता है।
शतरंज के मोहरे
उपन्यास ‘शतरंज के मोहरे’ 1958 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास की पृष्ठभूमि अवध है और यह 1820 से 1837 के बीच लखनऊ के नवाब ग्यासुद्दीन हैदर और नवाब नसीरुद्दीन हैदर के शासन पर केंद्रित है। अमृतलाल नागर ने इस समय को अपनी कल्पना से जीवंत कर दिया है। यह वह दौर था जब ब्रिटिश शासन भारत में मजबूत हो चुका था और छोटी रियासतों के शासक अंग्रेजों की राजनीति के मोहरे बन गए थे। राजनीति सिर्फ दरबार के बाहर ही नहीं, बल्कि अंदर और हरम में भी षड्यंत्रों से भरी थी, जहाँ नित नई चालें चली जाती थीं। ‘शतरंज के मोहरे’ में एक तरफ नवाबों और शासकों का विलासी जीवन दिखता है, तो दूसरी तरफ आम लोगों का संघर्ष भरा जीवन भी नजर आता है।
सुहाग के नूपुर
अमृतलाल नागर का यह उपन्यास पहली शताब्दी के महाकवि इंलगोवन द्वारा रचित महाकाव्य ‘शिलप्पदिकारम’ पर आधारित है। यह कहानी नगर के धनी व्यक्ति चेट्टी के बेटे कोवलन, उसकी पत्नी कन्नगी और नगरवधु माधवी के प्रेम त्रिकोण पर केंद्रित है।
इस कथा में कन्नगी का अपने पति कोवलन के लिए प्रेम, त्याग, और समर्पण दिखाया गया है, जबकि माधवी का कोवलन के प्रति एकाधिकार की भावना और उससे विवाह करने की इच्छा दर्शाई गई है। कोवलन पत्नी और प्रेमिका के बीच निर्णय नहीं कर पाता है। उसके भीतर वासना और दायित्व के बीच संघर्ष चलता रहता है।
माधवी भरपूर प्रयास करती है कि कोवलन अपनी पत्नी को छोड़कर उसके साथ रहे, लेकिन समाज के दबाव और कन्नगी की सेवा उसे ऐसा करने से रोकती है। कोवलन अपनी बुरी आदतों के कारण सब कुछ खो देता है। कन्नगी अपने नुपुर (पायल) देकर उसके नष्ट हुए व्यवसाय को फिर से खड़ा करने की हिम्मत देती है और अंत में अपने पति को हमेशा के लिए पा लेती है। उधर, माधवी निरंतर प्रयास के बावजूद हार जाती है और पागल हो जाती है।
यह उपन्यास परंपरा, समाज, मूल्य और व्यक्ति के संघर्ष को चित्रित करता है।
अमृत और विष
यह उपन्यास 1966 में प्रकाशित हुआ था और ‘अमृत और विष’ अपनी विषयवस्तु और आकार में एक विस्तृत रचना है। इसमें जीवन के संघर्ष को समुद्र मंथन के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जहाँ अमृत यानी सफलता, प्रेम, सार्थकता, सत्य, भाईचारा, सद्भावना और उन्नति प्राप्त होते हैं, वहीं विष यानी झूठ, फरेब, असफलता, विद्वेष, भ्रष्टाचार और षड्यंत्र भी मिलते हैं। उपन्यासकार का कहना है कि मनुष्य को इन दोनों पहलुओं को समान रूप से देखना चाहिए। जीवन में ऊँचे आदर्शों और मूल्यों को बनाए रखने के लिए कई बार बलिदान और त्याग की आवश्यकता होती है।
‘अमृत और विष’ पुराने जड़ मूल्यों के विष के मुकाबले नए मानवीय मूल्यों को रखता है। इस उपन्यास में कथा के भीतर कई कथाएँ हैं। लेखक अरविंद शंकर और उनके उपन्यास के माध्यम से लेखक और रचनाकार के जीवन के विविध संघर्षों को दर्शाया गया है।
मुख्य पात्र रमेश और लक्ष्मीनारायण खन्ना युवा विद्रोही चेतना के प्रतीक हैं, जो अपने समय में बदलाव लाना चाहते हैं। यह उपन्यास साम्प्रदायिकता के खिलाफ सभी धर्मों के समान आदर और राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ शुचिता पर महत्वपूर्ण बहसें प्रस्तुत करता है। यह रचना अमृतलाल नागर की उत्कृष्ट कहानी कहने की कला का प्रमाण है।
सात घूँघट वाला मुखड़ा
अमृतलाल नागर के उपन्यास की श्रेणी में यह 1966 में प्रकाशित एक छोटा उपन्यास हुआ है। यह कहानी बेगम समरू के जीवन को इतिहास, कल्पना और किंवदंतियों के माध्यम से प्रस्तुत करती है। यह समय मुगल साम्राज्य के पतन का था, जब छोटी रियासतें सत्ता की ओर बढ़ रही थीं। दरबार में षड्यंत्र और साजिशें चल रही थीं, जबकि ब्रिटिश साम्राज्य भी अपनी जड़ें फैला रहा था।
कहानी का मुख्य पात्र मुन्नी, एक साधारण कश्मीरी सौदागर की खूबसूरत बेटी है, जो मलिका बनने का सपना देखती है। उपन्यास में आगरा, दिल्ली और सरधना जैसे स्थानों का उल्लेख है। एक फ्रांसीसी जनरल, वॉल्टर रेनहार्ड, अपनी चालाकी से अंग्रेजों के 148 सैनिकों की हत्या करता है और बाद में नवाब समरू बन जाता है।
मुन्नी का अपहरण होता है और वह बशीर खान से प्रेम कर बैठती है, लेकिन बशीर उसे बेगम समरू के हाथों बेच देता है। बेगम समरू अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए नवाब को दिल्ली की गद्दी पर बैठाने की योजना बनाती है।
उपन्यास में राजनीतिक षड्यंत्र, प्रेम और महत्वाकांक्षा के जटिल रिश्तों का चित्रण है। अंत में, टॉमस और लवसूल के बीच संघर्ष के कारण नवाब की सेना टूट जाती है, और बेगम समरू अकेली पड़ जाती है। यह कहानी रिश्तों और भावनाओं पर विचार करने के लिए पाठक को प्रेरित करती है।
एकदा नैमिषारण्ये
अमृतलाल नागर का यह उपन्यास 1972 में प्रकाशित हुआ। इसमें सम्राट चंद्रगुप्त के समय का जनजीवन और उनके समय के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है। उपन्यास में व्यास, नारद और गणपति भी नए रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। ‘एकदा नैमिषारण्ये’ उपन्यास में भारतीय संस्कृति की परंपराओं का सुंदर वर्णन किया गया है।
मानस का हंस
‘मानस का हंस’ उपन्यास ने अमृतलाल नागर को अपार प्रतिष्ठा दिलाई। इस उपन्यास में हिंदी साहित्य के महान कवि तुलसीदास की जीवनी को अद्भुत तरीके से पेश किया गया है। यह उपन्यास 1972 में मानस चतुश्शती के दिन प्रकाशित हुआ। इसमें बालक रामबोला से लेकर महाकवि तुलसीदास बनने की यात्रा का वर्णन है, जिसमें संघर्ष, अपमान, उपेक्षा, दृढ़ निश्चय, प्रतिभा, जीवन की इच्छा और भगवान राम के प्रति अटूट आस्था का समावेश है। यह कथा मनुष्य के उत्थान और पतन, सत्य और असत्य, और रूढ़िवादिता और प्रगतिशीलता के सभी पहलुओं को दिखाती है।
नाच्यौ बहुत गोपाल
इस उपन्यास को लिखने के लिए अमृतलाल नागर ने मलिन बस्तियों में रहकर अनुभव किया, अनेक साक्षात्कार और शोध किए फिर तीन साल की मेहनत के बाद ‘अब मैं नाच्यौ बहुत गोपाल’ का सृजन किया जो सन् 1977 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में दलित समाज में भी अपमानित की जाने वाली मेहतर जाति के संघर्ष को चित्रित किया गया है। अमृतलाल नागर ने मेहतर जाति के इतिहास, वर्तमान की दशा और उनके भविष्य के लिए किए जा रहे संघर्ष को उपन्यास में दर्ज करने का प्रयास किया है।
खंजन नयन
‘मानस का हंस’ की तरह ‘खंजन नयन’ भी भक्तिकालीन साहित्य की एक महत्वपूर्ण कृति है, जो महाकवि सूरदास के जीवन पर आधारित है। यह उपन्यास 1981 में प्रकाशित हुआ, जिसमें अमृतलाल नागर ने सूरदास के जीवन को इतिहास, कल्पना, जनश्रुति और साहित्य के माध्यम से नया रूप दिया है।
‘खंजन नयन’ में इतिहास की धूल को हटाकर सूरदास के समय की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों, साहित्यिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों, धार्मिक रूढ़ियों और प्रथाओं, और धार्मिक दार्शनिक वाद-विवादों को पाठकों के सामने रखा गया है। नागर सूरदास के जीवन को शब्दों में सजीव करते हुए कई बार प्रचलित मान्यताओं और कथाओं से टकराते हैं। उनकी तर्कशक्ति और इतिहास की गहरी समझ उन्हें इन बाधाओं को पार करने में मदद करती है।
बिखरे तिनके
अमृतलाल नागर का ‘बिखरे तिनके’ उपन्यास वर्ष 1982 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में सर्वथा नवीनतम धरातल पर मानवीय संवेदना के-जीते-जागते पात्र अपनी विशिष्ट शैली में प्रस्तुत किए हैं। इस उपन्यास में आज के समाज का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है।
अग्निगर्भा
अमृतलाल नागर के उपन्यास की श्रेणी में यह उपन्यास स्त्री जीवन के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित है। यह उपन्यास वर्ष 1983 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास भारतीय समाज में स्त्री के संघर्ष, त्याग और जिजीविषा को सामने लाता है।
करवट और पीढ़ियाँ
‘करवट’ और ‘पीढ़ियाँ’ अमृतलाल नागर के दो महत्वपूर्ण उपन्यास हैं, जो एक-दूसरे के पूरक हैं। ‘करवट’ 1805 से 1905 तक के इतिहास को दिखाता है, जबकि ‘पीढ़ियाँ’ 1905 से 1942 तक का इतिहास कहता है। इन दोनों में लखनऊ के टंडन परिवार की कहानी है।
‘करवट’ उपन्यास लाला मुसद्दी लाल, उनके बेटे बंसीधर टंडन और देश दीपक टंडन के जीवन को दर्शाता है। यह उपन्यास दिखाता है कि कैसे ब्रिटिश शासन के समय मध्यवर्ग का जीवन था। इसमें ब्रिटिश राज के दौरान हो रही लूट और भारतीय उद्योगों के प्रति हो रहे अन्याय का वर्णन है। धीरे-धीरे, बंसीधर टंडन ब्रिटिश राज से निराश होकर आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो जाता है।
‘पीढ़ियाँ’ उपन्यास ‘करवट’ से शुरू होता है। इसमें बंसीधर का पोता जयंत जन्म लेता है, उसी वर्ष जब ‘करवट’ समाप्त होता है। यह उपन्यास भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण दौर की कहानी है, जिसमें सत्य, अहिंसा, और सविनय अवज्ञा जैसे मूल्य शामिल हैं। इस समय भारतीय समाज ब्रिटिश शासन से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहा है। ‘पीढ़ियाँ’ राजनीतिक बदलावों के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक मूल्यों को भी दिखाता है।
FAQs
अमृतलाल नागर का प्रथम प्रकाशित उपन्यास महाकाल है जो वर्ष 1947 में प्रकाशित हुआ था।
अमृतलाल नागर का ‘खंजन नयन’ महाकवि सूरदास पर आधारित है।
अमृतलाल नागर को साहित्य अकादमी पुरस्कार वर्ष 1967 में मिला।
संबंधित आर्टिकल
उम्मीद है, अमृतलाल नागर के उपन्यास पर लिखा यह ब्लॉग आपके के लिए जानकारीपूर्ण रहा होगा। ऐसे ही हिंदी साहित्य से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।