भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद जिले में स्थित इलाहाबाद किले का निर्माण 1583 ई॰ में मुगल सम्राट अकबर ने कराया था। यह किला दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना के संगम के तट पर स्थित है, जिससे यह किला ऐतिहासिक और मुगलकालीन उत्कृष्ट प्रतिभा को प्रदर्शित करता है। इलाहाबाद किले के निकट ही भारत का सबसे मशहूर प्रयागराज में कुंभ का मेला लगता है। यहाँ इलाहबाद का किला का इतिहास विस्तार से बताया जा रहा है।
किला | इलाहबाद का किला |
निर्माता | अकबर |
निर्माण वर्ष | 1583 ई |
नगर | इलाहबाद (प्रयागराज) |
संबंधित राज्य | उत्तर प्रदेश |
संबंधित वंश | मुग़ल वंश |
दूसरा प्रसिद्द नाम | अकबर का किला |
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इलाहबाद का किला
मुगल सम्राट अकबर ने 1583 ई. में इलाहाबाद किले का निर्माण करवाया और इसका नाम इलाहाबास रखा जिसका अर्थ है “भगवान द्वारा आशीर्वाद” जिससे इस किले का नाम बाद में इलाहाबाद पड़ा। परंतु स्थानीय लोगों की बताई गई बातों द्वारा अकबर को किले के निर्माण में बार-बार विफलताओं का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि किले की नींव हर बार रेत में डूब जाती थी।
लोगों का कहना है, कि अकबर को इस बात की जानकारी दी गई और बताया गया की किले के निर्माण के लिए एक मानव बलिदान की आवश्यकता है, जिसके साथ ही एक ब्राह्मण ने अपनी इच्छा से अपना बलिदान दिया था और बदले में अकबर ने प्रयागवालों को संगम तट पर तीर्थयात्रा शुरू करने का विशेष अधिकार दिया था। अकबर के बाद किले पर नवाबों का अधिकार रहा और इसी किले में शुजाउद्दौला की मृत्यु हुई थी जिसके बाद 1775 ई में आसफ-उद-दौला नवाबों का शासक बना। 1787 ई. में आसफ-उद-दौला की मृत्यु के बाद शाजत अली खान प्रथम ने किले पर शासन किया, इसके बाद अली खान ने 1801 ई. में किले को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में सोंप दिया था।
इलाहबाद के किले के निर्माण की कथा
इलाहाबाद किले की स्थापना मुगल बादशाह अकबर ने की थी, हालांकि इस पर इतिहासकारों में मतभेद है। समकालीन लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी ने ‘मुंतखवुल-तवारीख’ में लिखा है कि किले की नींव सन् 1583 में डाली गई थी। नदी की कटान से यहां की भौगोलिक स्थिति स्थिर न होने से इसका नक्शा अनियमित ढंग से तैयार किया गया था। वे लिखते हैं कि अनियमित नक्शे पर किले का निर्माण कराना ही इसकी विशेषता है। किले का कुल क्षेत्रफल तीस हजार वर्ग फुट है। इसके निर्माण में कुल लागत छह करोड़, 17 लाख, 20 हजार 214 रुपये आयी थी।
- किले में एक जनानी महल है, जिसे जहांगीर महल भी कहते हैं। अंग्रेजों ने भी इसे अपने माकूल बनाने के लिए काफी तोड़फोड़ की। इससे किले को काफी क्षति पहुंची थी। संगम के निकट स्थित इस किले का कुछ ही भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बाकी हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। इस किले में 3 बड़ी गैलरी हैं, जहां पर ऊंची मीनारें हैं।
इलाहबाद के किले के निर्माण का उद्देश्य
अकबर ने इस किले का निर्माण मुगलकाल में पूर्वी भारत [वर्तमान में पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार] से अफगान विद्रोह को खत्म करने के लिए किया था। अकबर ने प्रयाग यानी संगम से हटकर एक नए शहर की आधार सिला राखी थी जिसका वर्त्तमान स्वरूप नया इलाहाबाद है क्योकि इस भाग में पूरा पानी भरा रहता था। अकबर ने बंद बनवाकर इस समस्या को दूर किया और एक नए शहर की स्थापना किया जिसको इलाहाबाद नाम दिया। और जमीन को कृषि के लायक बनाया दिया।
इलाहबाद के किले से जुड़े रोचक तथ्य
यहाँ इलाहबाद के किले से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताया जा रहा है :
- अकबर द्वारा बनाए गए सभी किलों में इलाहाबाद का किला सबसे बड़ा किला है, जो प्राचीन मुगलकालीन की अद्भुत शैली को दर्शाता है।
- किले के मुख्य द्वार के अंदर एक अशोक स्तंभ हैं जो भारतीय इतिहास के प्राचीन बौद्ध काल में प्रयोग महत्ता का प्रमाण है।
- यह किला 1775 ई. में अंग्रेजों द्वारा बंगाल के शासक शुजाउद्दौला को केवल 50 लाख रुपए में बेच दिया गया था। परंतु 1798 ई. में शाजत अली से अंग्रेज़ो की संधि हुई और किला दौबरा अंग्रेज़ो के हाथ में आ गया।
- इस किले में तीन बड़ी गैलरी हैं जहां पर ऊंची मीनारें हैं, जो किले की सुंदरता को बढ़ाती है।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप यह किला संरक्षित है। परंतु वर्तमान में पर्यटकों के लिए इसके कुछ भाग ही केवल खुले हैं बाकी बचे हुए भाग का प्रयोग भारतीय सेना करती है।
- इसे किले में पर्यटकों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की अनुमति है। इसके अतिरिक्त किले में एक अक्षय वट मशहूर बरगद का पुराना पेड़ और पातालपुर मंदिर नाम से विख्यात एक मंदिर है।
- पार्क में पत्थर से बना 10.6 मीटर का विशाल अशोक स्तंभ है, इसके बारे में लोगों का कहना है कि इसका निर्माण 232 ईसा पूर्व किया गया था। विशेषकर पुरातात्विक विशेषज्ञ और इतिहासकारों के लिए यह स्तंभ महत्व रखता है।
इलाहबाद के किले की स्थापत्य कला
यहाँ इलाहबाद के किले की स्थापत्य कला के बारे में बताया जा रहा है :
- बताया जाता है कि 644 ईसा पूर्व में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था। तब कामकूप तालाब मैं इंसानी नरकंकाल देखकर दुखी हो गया था। उसने अपनी किताब में भी इसका जिक्र किया था। उसके जाने के बाद ही मुगल सम्राट अकबर ने यहां किला बनवाया।
- इस किले में स्थापत्य कला के साथ ही अपने गर्भ में जहांगीर, अक्षयवट, अशोक स्तंभ व अंग्रेजों की गतिविधियों की तमाम अबूझ कहानियों को भी समेटे हुए है।
- ये किला अपनी विशिष्ट बनावट, निर्माण और शिल्पकारिता के लिए जाना जाता है। नक्काशीदार पत्थरों की विशायलकाय दीवार से यमुना की लहरें टकराती है। इसके अंदर पातालपुरी में कुल 44 देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जहां लोग आज भी पूजा पाठ करते हैं।
इलाहबाद के किले के अंदर मौजूद दर्शनीय स्थल
इलाहबाद के किले में निम्नलिखित दर्शनीय स्थल मौजूद हैं :
- अकबर द्वारा बनाए गए इस किले के अंदर हिंदुओं की आस्था से जुड़े कई स्थान हैं.किले के अंदर धार्मिक अक्षय वट स्थित है, इसके साथ 44 देवी-देवताओं वाला पातालपुरी मंदिर भी मौजूद है.
- किले के अंदर सरस्वती कूप, जनानी महल जी की जहांगीर का महल है.यहां पारसी भाषा के कई शिलालेख, अशोक स्तंभ आदि मौजूद है. 2019 के कुंभ के दौरान आमलोग पातालपुरी,अक्षयवट, सरस्वती कूप के दर्शन कर सकते हैं
FAQs
इस मजबूत किले का निर्माण बादशाह अकबर ने 1583 में कराया था। यह संगम स्थल पर यमुना नदी के किनारे स्थित है। अपने समय में इसकी गिनती वास्तुकला, निर्माण और कारीगिरी के मामले में सर्वश्रेष्ठ किले के तौर पर होती थी।
इलाहबाद का असली नाम प्रयागराज था।
इलाहबाद अपने कुम्भ के मेले के लिए प्रसिद्ध है।
उम्मीद है कि इस ब्लॉग में आपको इलाहबाद का किला का इतिहास जानने को मिल गया होगा। ऐसे ही अन्य रोचक और महत्वपूर्ण ब्लॉग पढ़ने के लिए बने रहिये Leverage Edu के साथ बने रहिए।