सातवाहन वंश: जानिए सातवाहन वंश के इतिहास और इसके योगदान से जुड़ी अहम घटनाओं के बारे में

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सातवाहन वंश का इतिहास

सातवाहन वंश का इतिहास उन चुनिंदा राजवंशों की श्रेणी में आता है, जिन्होंने भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कर के युगों-युगों तक वैभव‌ और ऐश्वर्य कमाया। सातवाहन भारत के प्राचीनतम राजवंशों में से एक है, जिसने अपने शासनकाल के दौरान शक आक्रांताओं को सहजता से भारत में राज स्थापित नहीं करने दिया। यह राजवंश हिन्दू धर्म का अनुयाई था और इस राजवंश ने अशोक की मृत्यु के बाद खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। आज के इस ब्लॉग में आपको सातवाहन वंश का इतिहास पढ़ने को मिलेगा।

सातवाहन वंश की शासन अवधि60 ई.पू. से 240 ई.
सातवाहन वंश की राजकीय भाषाप्राकृत और ब्राह्मी लिपि
सातवाहन वंश की राजधानीप्रतिष्ठान (औरंगबाद, महाराष्ट्र)
सातवाहन वंश के संस्थापक का नाम सिमुक
सातवाहन वंश के महानतम शासक का नाम गौतमी पुत्र शातकर्णी
सातवाहन वंश के अंतिम शासकविजय

सातवाहन वंश का उदय

सातवाहन वंश का उदय बेहद रोचक और अविस्मरणीय गाथाओं से परिपूर्ण हैं। इतिहास के पन्ने पलटकर देखा जाए तो अशोक की मृत्यु के बाद इस वंश ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। कालांतर से ही इन्होंने हिन्दू धर्म का पालन करता था, हालाँकि यह वंश का इतिहास कई जैन और बौद्ध मंदिरों के निर्माण की गौरव गाथा भी गाता है।

इस राजवंश की स्थापना राजा सिमुक ने लगभग 2200 वर्षों पहले की, जिसका स्वप्न था स्वराज हो और शक आक्रांताओं से भारत राष्ट्र को बचाया जा सके। इस वंश के उदय के समय राजा सिमुक के समक्ष दो बड़ी चुनौतियों के रूप में एक ओर कण्व वंश के शासक सुशर्मा थे, तो वहीं दूसरी ओर शक शासक थे जो कि बेहद प्रभावी थे। इन सब चुनौतियों को पार करके राजा सिमुक ने सातवाहन वंश की नीवं रख कर, इतिहास में खुद को अमर कर डाला।

सातवाहन वंश का इतिहास

सातवाहन वंश का इतिहास एक ऐसे महान सम्राट के कड़े संघर्षों के आधार पर पनपा है, जिन्होंने सातवाहन साम्राज्य की स्थापना के लिए अपने कौशल, कूटनीति और कर्तव्यों का भलिभांति पालन किया। सातवाहन वंश को ‘आन्ध्र वंश’ तथा ‘दक्कनी वंश’ के नाम से भी जाना जाता है। इस राजवंश के शासनकाल में अनेकों बौद्ध और जैन मंदिरों का निर्माण हुआ।

सातवाहन वंश की स्थापना के लिए राजा सिमुक ने अपनी सेना को एकत्रित करके कण्व वंश के शासक सुशर्मा के विरुद्ध युद्ध का आगाज़ किया, इस युद्ध में राजा सिमुक की जीत हुई। इसके बाद राजा सिमुक ने शक शासकों की कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर उन पर जीत हासिल की। राजा सिमुक ने पराक्रम और शौर्य की अद्भुद और अविश्वसनीय जीत के बाद ही एक नए राजवंश की स्थापना की, जिसे सातवाहन वंश के नाम से जाना गया। सातवाहन राजवंश की राजधानी प्रारंभ में प्रतिष्ठान (औरंगबाद, महाराष्ट्र) थी।

सातवाहन के संस्थापक सिमुक के बारे में वायुपुराण में भी जानकारी मिलती हैं, वायुपुराण के अनुसार राजा सिमुक ने कण्व वंश और शक शासकों को हराने के बाद ही अपने राजवंश की नीवं रखी। राजा सिमुक ने विदिशा के आस पास के लगभग सभी क्षेत्रों को जीतकर अपने राज्य में शामिल किया, राजा सिमुक ने लगभग 23 वर्षों तक शासन किया था। राजा सिमुक सातवाहन के बारे में नानाघाट चित्र फलक नामक अभिलेख में भी जानकारी मिलती हैं कि इन्होंने अपने शासनकाल के दौरान अनेकों जैन और बौद्ध मन्दिरों का निर्माण करवाया था।

सातवाहन वंश के मुख्य शासक

सातवाहन वंश का इतिहास इस वंश के मुख्य शासकों पर आधारित है, इन मुख्य शासकों ने सातवाहन वंश का विस्तार करा। सातवाहन वंश के मुख्य शासक कुछ इस प्रकार है-

  • सम्राट सिमुक
  • महाराजा कृष्ण
  • महाराजा सातकर्णि
  • सम्राट गौतमीपुत्र सातकर्णि
  • महाराजा वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी
  • सम्राट वशिष्ठिपुत्र सातकर्णि
  • महाराजा शिवस्कंद सातकर्णि
  • महाराजा यज्ञश्री शातकर्णी
  • महाराजा विजय

सातवाहन वंश की उपलब्धियां

सातवाहन वंश का इतिहास इस राजवंश की उपलब्धियों पर भी आधारित है, आप सातवाहन वंश द्वारा लोकहित में प्राप्त उपलब्धियों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से ध्यान पूर्वक देख सकते हैं।

  • सातवाहन वंश के शासकों को हिन्दू धर्म का अनुयाई कहा जाता है, जिसके बाद भी उन्होंने कई जैन मंदिरों और बौद्ध मंदिरों का निर्माण कराया, जिसका प्रमाण कई पौराणिक ग्रंथों और नासिक के शिलालेखों से मिलता है।
  • सातवाहन वंश के शासकों ने कृषि को अपना मुख्य आधार बनाया तांकि उनकी प्रजा आर्थिक तौर पर संपन्न और सुरक्षित रह सके।
  • सातवाहन वंश के शासकों ने प्रजा को कपास उत्पादन के लिए सक्रिय किया, साथ ही खेती में सिंचाई के लिए कुओं तथा अन्य पारम्परिक जलस्रोतों का उपयोग किया।
  • सातवाहन वंश के शासकों ने वाणिज्य और उद्योग को बढ़ावा दिया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापारियों और अन्य पेशेवरों के हितों की रक्षा के लिए संघ, या गिल्ड की स्थापना की गई थी। जिसके तहत प्रत्येक गिल्ड की अपने व्यापर के प्रति जवाबदेही बनी।

सातवाहन वंश का साम्राज्य विस्तार

सातवाहन वंश का इतिहास इस वंश की साम्राज्य विस्तार की नीतियों के साथ ही शुरू होता है, इस वंश के सबसे प्रतापी राजा गौतमीपुत्र सातकर्णि को माना जाता है, जिन्होंने शकों को आधारविहीन करके अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। गौतमीपुत्र सातकर्णि के सम्राट बनने से पहले लगभग आधी शताब्दी तक उठापठक चली जिसमें सातवाहन वंश का मानमर्दन हुआ। जिसके बाद गौतमीपुत्र सातकर्णि राजा बने और अपने विजय अभियान पर निकल पड़े, जिसमें वह सफल भी हुए।

गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी सातवाहन (सेंगर वंश) वंश का सबसे महान शासक था, जिसने लगभग 25 वर्षों तक शासन करते हुए न केवल अपने साम्राज्य की खोई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित किया, बल्कि अपने साम्राज्य को एक भव्यता प्रदान की। गौतमीपुत्र सातकर्णि की विजयगाथाओं का उल्लेख उनकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों में मिलता है।

गौतमीपुत्र सातकर्णि को ‘त्रि-समुंद्र-तोय-पीत-वाहन‘ उपाधि प्राप्त हुई, जिसका अर्थ था कि गौतमीपुत्र सातकर्णि का प्रभाव पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक है। सातवाहन वंश के शासकों ने अपनी राज्य सीमा विस्तार के लिए समय-समय पर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन भी किया। जिसके परिणामस्वरूप उनके राज्य का बहुत विस्तार हुआ।

सातवाहन वंश का पतन

इस वंश का इतिहास उनके पतन के साथ समाप्त हो जाता है। परिस्थितियां हमेशा बदलती रहती हैं, समय कभी भी एक सा नहीं रहता। जिस प्रकार एक महान राजवंश का उदय हुआ था, उसी प्रकार समय के शांत हो जाने पर इसका पतन भी हुआ। इस वंश के पतन के मुख्य कारणों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-

  • पतन का मुख्य कारण छोटे-छोटे राज्यों द्वारा खुद को स्वतंत्र घोषित करना था, जिनमें आभीर, इक्ष्वाकु और चूटू, शातकर्णी आदि थे।
  • पतन का दूसरा कारण था कि सिंहासन पर बैठे अयोग्य शासक विशाल साम्राज्य को संभाल नहीं सकें।
  • इक्ष्वाकु वंश के लोग सातवाहन वंश में सामंत हुआ करते थे, लेकिन कमज़ोर शासन के कारण इन्होंने भी आसानी से स्वतंत्र सत्ता हासिल कर ली।
  • इस वंश के बाद के राजाओं का रवैया प्रजा के सुख पर ध्यान न रखने का था, इसी कारण प्रजा ने उन राजाओं को नकार दिया।
  • लगभग 300 वर्षों तक शासन करने के बाद सातवाहन वंश के बाद के राजाओं ने कुमार्ग को अपनाया और प्रजा से पहले खुद का हित सर्वोपरि रखा।
  • इतने लंबे कालखंड तक शासन करने से सातवाहन वंश के राजा धीरे धीरे दुराचारी भी बनते गए।
  • सामंतो और मंत्रियों में सत्ता का लालच इस कदर बड़ा कि उन्होंने विद्रोह के मार्ग पर चलकर सातवाहन वंश का पतन कर दिया।

कक्षा 11 बुक पीडीएफ

सातवाहन वंश कक्षा 11 बुक पीडीएफ यहाँ दी गई है:

FAQs

सातवाहन वंश के संस्थापक कौन थे?

सातवाहन वंश के संस्थापक राजा सिमुक ने की थे।

सातवाहन वंश के प्रमुख राजा कौन-कौन थे?

सातवाहन वंश के प्रमुख राजा “सीमुक, शातकर्णी प्रथम, गौतमी पुत्र शातकर्णी, वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी, यज्ञश्री शातकारणी” थे।

सातवाहन वंश का सबसे महानतम शासक कौन था?

सातवाहन वंश का सबसे महानतम शासक कौन था?

सातवाहन वंश की राजधानी कहाँ थी?

सातवाहन वंश की मूल रूप से 2 राजधानियां थी, जिसमें से एक राजधानी आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित थी। तो वहीं दूसरी राजधानी महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में गोदावरी नदी के तट पर स्थित थी।

सातवाहन वंश में कितने शासक हुए?

सातवाहन वंश में कुल 27 शासक हुए।

आशा है कि सातवाहन वंश का इतिहास आपके ज्ञान को बढ़ाएगा। इस ब्लॉग का लिखा हुआ एक-एक शब्द आपको जानकारी से भरपूर और अच्छा लगा होगा। इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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