भारत की साहसी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय – Subhadra Kumari Chauhan Ka Jivan Parichay

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Subhadra Kumari Chauhan Ka Jivan Parichay

देश में कितने ही स्वतंत्रता सेनानी हुए, जिन्होंने इस देश की आजादी के लिए अपने प्राण हंसते हुए त्याग दिए थे। इस देश में ऐसी ही एक कवि स्वतंत्रता सेनानी हुईं जिन्होंने देश की आजादी के लिए काफी कुछ किया। इनका नाम है सुभद्रा कुमारी चौहान। इन्होंने कविता, अपनी कहानियों और अपने साहस से लोगों में आजादी के लिए एक जज्बा पैदा किया था। आप अब इनके बारे में जानने को उत्सुक हो गए होंगे। तो आइए, जानिए सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan Ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार से जानकारी।

सुभद्रा कुमारी चौहान का आरंभिक जीवन

Subhadra Kumari Chauhan
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सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के निहालपुर गाँव में हुआ था। उनके पिताजी का नाम ‘ठाकुर रामनाथ सिंह’ था। सुभद्रा की चार बहनें और दो भाई थे। विद्यार्थी जीवन प्रयाग में ही बीता। ‘क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज’ में आपने शिक्षा प्राप्त की। सुभद्रा कुमारी की काव्य प्रतिभा बचपन से ही सामने आ गई थी। 1913 में नौ वर्ष की आयु में सुभद्रा की पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका ‘मर्यादा’ में प्रकाशित हुई थी। यह कविता ‘सुभद्राकुँवरि’ के नाम से छपी। यह कविता ‘नीम’ के पेड़ पर लिखी गई थी। पढ़ाई में प्रथम आती थीं। सुभद्रा कविता लिखने में बचपन से ही माहिर थीं। कविता रचना के कारण से स्कूल में उनकी बड़ी प्रसिद्धि थी।

Subhadra Kumari Chauhan और महादेवी वर्मा दोनों बचपन की सहेलियाँ थीं। सुभद्रा की पढ़ाई नवीं कक्षा के बाद छूट गई थी। बचपन से ही साहित्य में रुचि थी। प्रथम कविता रचना 15 वर्ष की आयु में ही लिखी थी। सुभद्रा कुमारी का स्वभाव बचपन से ही दबंग, बहादुर व विद्रोही था। वह बचपन से ही अशिक्षा, अंधविश्वास, आदि कुप्रथाओं के विरुद्ध लड़ीं।

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समाज की ओर कदम

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शिक्षा समाप्त करने के बाद 1919 में नवलपुर के सुप्रसिद्ध ‘ठाकुर लक्ष्मण सिंह’ के साथ इनका विवाह 15 वर्ष की उम्र में हो गया था। इनकी 5 संतानें हुई थीं। सुभद्राकुमारी चौहान अपने नाटककार पति लक्ष्मणसिंह के साथ शादी के डेढ़ वर्ष के होते ही सत्याग्रह में शामिल हो गईं और उन्होंने जेलों में ही जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण वर्ष गुज़ारे। गृहस्थी और नन्हें-नन्हें बच्चों का जीवन सँवारते हुए उन्होंने समाज और राजनीति, दोनों की सेवा की। देश के लिए कर्तव्य और समाज की ज़िम्मेदारी लेते हुए उन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को भुला दिया। Subhadra Kumari Chauhan जी समाज की पीड़ा को अच्छे से समझती थीं।

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स्वतंत्रता संग्राम के लिए आवाज़

1920-21 में Subhadra Kumari Chauhan Ka Jivan Parichay और लक्ष्मण सिंह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने थे। दोनों ने नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और घर-घर में कांग्रेस का संदेश पहुँचाया। त्याग और सादगी में सुभद्रा जी सफ़ेद खादी कपड़े पहनती थीं। उन को सादा वेशभूषा में देख कर बापू ने सुभद्रा जी से पूछ ही लिया, ‘बेन! तुम्हारा ब्याह हो गया है?’ सुभद्रा जी ने कहा, ‘हाँ!’ और फिर उत्साह से बताया कि मेरे पति भी मेरे साथ आए हैं। बापू ने सुभद्रा को डाँटा, ‘तुम्हारे माथे पर सिन्दूर क्यों नहीं है और तुमने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनीं? जाओ, कल किनारे वाली साड़ी पहनकर आना।’ सुभद्रा जी के सहज स्नेही मन और निश्छल स्वभाव का जादू सभी पर चलता था। उनका जीवन प्रेम से युक्त था और निरंतर निर्मल प्यार बाँटकर भी ख़ाली नहीं होता था।

1922 में जबलपुर का ‘झंडा सत्याग्रह’ देश का पहला सत्याग्रह था और सुभद्रा जी की पहली महिला सत्याग्रही थीं। सभाओं में सुभद्रा जी अंग्रेजों पर बरसती थीं। सुभद्रा जी में बड़े सहज ढंग से गंभीरता और चंचलता का अद्भुत संयोग था। वे जिस सहजता से देश की पहली स्त्री सत्याग्रही बनकर जेल जा सकती थीं, उसी तरह अपने घर में, बाल-बच्चों में और गृहस्थी के छोटे-मोटे कामों में भी रमी रह सकती थीं।

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लक्ष्मणसिंह चौहान जैसे जीवनसाथी और माखनलाल चतुर्वेदी जैसा पथ-प्रदर्शक पाकर वह स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आंदोलन में बराबर सक्रिय भाग लेती रहीं और जेल भी कई बार गईं। काफ़ी दिनों तक मध्य प्रांत असेम्बली की कांग्रेस सदस्या रहीं और साहित्य एवं राजनीतिक जीवन में समान रूप से भाग लेकर अन्त तक देश की एक जागरूक नारी के रूप में अपना कर्तव्य निभाती रहीं। गांधी जी की असहयोग की पुकार को पूरा देश सुन रहा था। सुभद्रा ने भी स्कूल से बाहर आकर पूरे मन-प्राण से असहयोग आंदोलन में अपने को दो रूपों में झोंक दिया –

  1. देश – सेविका के रूप में
  2. देशभक्त कवि के रूप में

जलियांवाला बाग,’ 1919 के नृशंस हत्याकांड से सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan Ka Jivan Parichay) के मन पर गहरा प्रभाव पहुंचा। उन्होंने तीन ज्वलंत कविताएँ लिखीं। ‘जलियाँवाले बाग़ में वसंत’ में उन्होंने लिखा-

परिमलहीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है
हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है।
आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना
यह है शोक स्थान यहाँ मत शोर मचाना।
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।

1920 में जब चारों ओर गांधी जी के नेतृत्व की धूम थी, तो उनकी मांग पर दोनों पति-पत्नि स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए प्रतिबद्ध हो गए। आजादी से उनकी कविताओं और भी देशभक्ति में रम गई थीं।

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सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं

सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan Ka Jivan Parichay) ने अपने जीवन में 88 कविताओं और 46 कहानियों की रचना की। सुभद्रा जी वीर रस की कविताएं लिखने के लिए जानी जाती थीं। यदि केवल लोकप्रियता की दृष्टि से ही विस्तार करें तो उनकी कविता पुस्तक ‘मुकुल’ 1930 के छह संस्करण उनके जीवन काल में ही हो जाना कोई सामान्य बात नहीं है। इनका पहला काव्य-संग्रह ‘मुकुल’ 1930 में प्रकाशित हुआ। इनकी चुनी हुई कविताएँ ‘त्रिधारा’ में प्रकाशित हुई हैं। ‘झाँसी की रानी‘ इनकी बहुचर्चित रचना है। राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी और जेल यात्रा के बाद भी उनके तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए-

  1. अनोखा दान
  2. आराधना
  3. इसका रोना
  4. उपेक्षा
  5. उल्लास
  6. कलह-कारण
  7. कोयल
  8. कठिन प्रयत्नों से सामग्री
  9. खिलौनेवाला
  10. गिरफ़्तार होने वाले हैं
  11. चलते समय
  12. चिंता
  13. जलियाँवाला बाग में बसंत
  14. जीवन-फूल
  15. झांसी की रानी
  16. झाँसी की रानी की समाधि पर
  17. झिलमिल तारे
  18. ठुकरा दो या प्यार करो
  19. तुम
  20. तुम मानिनि राधे
  21. तुम मुझे पूछते हो
  22. नीम
  23. परिचय
  24. पानी और धूप 
  25. पूछो 
  26. प्रथम दर्शन 
  27. प्रतीक्षा 
  28. प्रभु तुम मेरे मन की जानो
  29. प्रियतम से
  30. फूल के प्रति
  31. बादल हैं किसके काका?
  32. बालिका का परिचय
  33. बिदाई
  34. भैया कृष्ण!
  35. भ्रम
  36. मधुमय प्याली
  37. मुरझाया फूल
  38. मातृ-मन्दिर में 
  39. मेरा गीत 
  40. मेरा जीवन 
  41. मेरा नया बचपन 
  42. मेरी टेक
  43. मेरी कविता 
  44. मेरे पथिक
  45. मेरे भोले सरल हृदय ने
  46. यह कदम्ब का पेड़
  47. यह मुरझाया हुआ फूल है
  48. राखी
  49. राखी की चुनौती
  50. विजयी मयूर
  51. विदा
  52. वीरों का कैसा हो वसंत
  53. वेदना
  54. व्याकुल चाह
  55. सभा का खेल
  56. समर्पण
  57. साध
  58. साक़ी
  59. स्मृतियाँ
  60. स्वदेश के प्रति
  61. हे काले-काले बादल

राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी और जेल यात्रा के बाद भी उनके तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। यह हैं Subhadra Kumari Chauhan के कहानी संग्रह।

  1. बिखरे मोती (1932)
  2. उन्मादिनी (1934)
  3. सीधे सादे चित्र (1947)

प्रमुख कविताओं की पंक्तियाँ

Subhadra Kumari Chauhan की लगभग हर कविता राष्ट्रवाद में डूबी थी। इनकी हर कविता सुनकर दर्शकों के अंदर मानो एक सैलाब सा आ जाता था। पेश हैं आपके सामने उनकी कुछ कविताओं की पंक्तियाँ।

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झांसी की रानी
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
स्त्रियों के लिए
“सबल पुरुष यदि भीरु बनें, तो हमको दे वरदान सखी।
अबलाएँ उठ पड़ें देश में, करें युद्ध घमासान सखी।
पंद्रह कोटि असहयोगिनियाँ, दहला दें ब्रह्मांड सखी।
भारत लक्ष्मी लौटाने को , रच दें लंका काण्ड सखी।।”

मेरा नया बचपन

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।

गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी।।

चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।

कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?

ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?

बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी।।

किए दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।

किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया।।

रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।

बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे।।

मैं रोई, माँ काम छोड़कर आईं, मुझको उठा लिया।

झाड़-पोंछ कर चूम-चूम कर गीले गालों को सुखा दिया।।

दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर-युत दमक उठे।

धुली हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे।।

वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मैं मतवाली बड़ी हुई।

लुटी हुई, कुछ ठगी हुई-सी दौड़ द्वार पर खड़ी हुई।।

लाजभरी आँखें थीं मेरी मन में उमंग रँगीली थी।

तान रसीली थी कानों में चंचल छैल छबीली थी।।

दिल में एक चुभन-सी थी यह दुनिया अलबेली थी।

मन में एक पहेली थी मैं सब के बीच अकेली थी।।

मिला, खोजती थी जिसको हे बचपन! ठगा दिया तूने।

अरे! जवानी के फंदे में मुझको फँसा दिया तूने।।

सब गलियाँ उसकी भी देखीं उसकी खुशियाँ न्यारी हैं।

प्यारी, प्रीतम की रँग-रलियों की स्मृतियाँ भी प्यारी हैं।।

माना मैंने युवा-काल का जीवन खूब निराला है।

आकांक्षा, पुरुषार्थ, ज्ञान का उदय मोहनेवाला है।।

किंतु यहाँ झंझट है भारी युद्ध-क्षेत्र संसार बना।

चिंता के चक्कर में पड़कर जीवन भी है भार बना।।

आ जा बचपन! एक बार फिर दे दे अपनी निर्मल शांति।

व्याकुल व्यथा मिटानेवाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति।।

वह भोली-सी मधुर सरलता वह प्यारा जीवन निष्पाप।

क्या आकर फिर मिटा सकेगा तू मेरे मन का संताप?

मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी।

नंदन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।

‘माँ ओ’ कहकर बुला रही थी मिट्टी खाकर आई थी।

कुछ मुँह में कुछ लिए हाथ में मुझे खिलाने लाई थी।।

पुलक रहे थे अंग, दृगों में कौतुहल था छलक रहा।

मुँह पर थी आह्लाद-लालिमा विजय-गर्व था झलक रहा।।

मैंने पूछा ‘यह क्या लाई?’ बोल उठी वह ‘माँ, काओ’।

हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से मैंने कहा – ‘तुम्हीं खाओ’।।

पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया।

उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया।।

मैं भी उसके साथ खेलती खाती हूँ, तुतलाती हूँ।

मिलकर उसके साथ स्वयं मैं भी बच्ची बन जाती हूँ।।

जिसे खोजती थी बरसों से अब जाकर उसको पाया।

भाग गया था मुझे छोड़कर वह बचपन फिर से आया।।

स्मृतियाँ

क्या कहते हो? किसी तरह भी
भूलूँ और भुलाने दूँ?
गत जीवन को तरल मेघ-सा
स्मृति-नभ में मिट जाने दूँ?

शान्ति और सुख से ये
जीवन के दिन शेष बिताने दूँ?
कोई निश्चित मार्ग बनाकर
चलूँ तुम्हें भी जाने दूँ?

कैसा निश्चित मार्ग? ह्रदय-धन
समझ नहीं पाती हूँ मैं
वही समझने एक बार फिर
क्षमा करो आती हूँ मैं।

जहाँ तुम्हारे चरण, वहीँ पर
पद-रज बनी पड़ी हूँ मैं
मेरा निश्चित मार्ग यही है
ध्रुव-सी अटल अड़ी हूँ मैं।

भूलो तो सर्वस्व ! भला वे
दर्शन की प्यासी घड़ियाँ
भूलो मधुर मिलन को, भूलो
बातों की उलझी लड़ियाँ।

भूलो प्रीति प्रतिज्ञाओं को
आशाओं विश्वासों को
भूलो अगर भूल सकते हो
आंसू और उसासों को।

मुझे छोड़ कर तुम्हें प्राणधन
सुख या शांति नहीं होगी
यही बात तुम भी कहते थे
सोचो, भ्रान्ति नहीं होगी।

सुख को मधुर बनाने वाले
दुःख को भूल नहीं सकते
सुख में कसक उठूँगी मैं प्रिय
मुझको भूल नहीं सकते।

मुझको कैसे भूल सकोगे
जीवन-पथ-दर्शक मैं थी
प्राणों की थी प्राण ह्रदय की
सोचो तो, हर्षक मैं थी।

मैं थी उज्ज्वल स्फूर्ति, पूर्ति
थी प्यारी अभिलाषाओं की
मैं ही तो थी मूर्ति तुम्हारी
बड़ी-बड़ी आशाओं की।

आओ चलो, कहाँ जाओगे
मुझे अकेली छोड़, सखे!
बंधे हुए हो ह्रदय-पाश में
नहीं सकोगे तोड़, सखे!

जलियाँवाला बाग में बसंत

यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।
कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से,
वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।

परिमल-हीन पराग दाग़ सा बना पड़ा है,
हा! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है।

ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना,
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।

वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना,
दुःख की आहें संग उड़ा कर मत ले जाना।

कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें,
भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें।

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले,
तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले।

किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना,
स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना।

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर,
कलियाँ उनके लिये गिराना थोड़ी ला कर।

आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं,
अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं।

कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना,
कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना।

तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर,
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर।

यह सब करना, किन्तु यहाँ मत शोर मचाना,
यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना।

वीरों का कैसा हो बसंत

आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गजरता बार-बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत-
वीरों का कैसा हो बसंत

फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग
है वीर देश में किंतुं कंत-
वीरों का कैसा हो वसंत

भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान
मिलने को आए हैं आदि अंत-
वीरों का कैसा हो वसंत

गलबाँहें हों या हो कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण
अब यही समस्या है दुरंत-
वीरों का कैसा हो वसंत

कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग-जाग
बतला अपने अनुभव अनंत-
वीरों का कैसा हो वसंत

हल्दीघाटी के शिला खंड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत-
वीरों का कैसा हो बसंत

भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छंद नहीं
है कलम बँधी स्वच्छंद नहीं
फिर हमें बताए कौन? हंत-
वीरों का कैसा हो बसंत

पुरस्कार और सम्मान

Subhadra Kumari Chauhan ने देश की आज़ादी के लिए इतना किया तो वह पुरस्कार की हक़दार तो थीं ही। जानते हैं उनको मिले पुरस्कार और सम्मान के बारे में-

  • इन्हें ‘मुकुल’ तथा ‘बिखरे मोती’ पर अलग-अलग सेकसरिया पुरस्कार मिले।
  • 28 अप्रॅल 2006 में भारतीय तटरक्षक सेना ने सुभद्रा कुमारी चौहान को सम्मानित करते हुए नवीन नियुक्त तटरक्षक जहाज़ को उन का नाम दिया है।
  • 6 अगस्त 1976 में भारतीय डाक तार विभाग ने सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया था।
  • 27 नवंबर 1949 में जबलपुर के निवासियों ने चंदा इकट्ठा करके नगरपालिका प्रांगण में सुभद्रा जी की आदमकद प्रतिमा लगवाई जिसका अनावरण Subhadra Kumari Chauhan और महादेवी वर्मा ने किया।

देहांत

15 फरवरी 1948 को 43 वर्ष की आयु में कार एक्सीडेंट की वजह से उनका निधन हो गया था।

Source : ETV Bharat

Google ने सुभद्रा कुमारी चौहान को किया याद

Subhadra Kumari Chauhan
Source – Google Doodle

Google ने Doodle बनाकर Subhadra Kumari Chauhan को उनके 117वें जन्मदिन पर याद किया है। Subhadra Kumari Chauhan भारत की महान कवित्री के साथ-साथ देश की निडर स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। Google ने Doodle बनाकर इस महान कवित्री को उनके जन्मदिन पर याद किया है। सुभद्रा कुमारी जी देश की पहला महिला सत्याग्रही थीं।

FAQs

सुभद्रा कुमारी चौहान की भाषा शैली क्या थी?

सुभद्राजी की भाषा सीधी, सरल तथा स्पष्ट एवं आडम्बरहीन खड़ीबोली है। दो रस इन्होंने चित्रित किए हैं–वीर तथा वात्सल्य। अपने काव्य में पारिवारिक जीवन के मोहक चित्र भी इन्होंने अंकित किए, जिनमें वात्सल्य की मधुर व्यंजना हुई है।

सुभद्रा कुमारी चौहान को कौन सा पुरस्कार मिला?

इन्हें ‘मुकुल’ तथा ‘बिखरे मोती’ पर अलग-अलग सेकसरिया पुरस्कार मिले। 

सुभद्रा की बालसखी कौन थी?

Subhadra Kumari Chauhan की सबसे प्रिय बालसखी महादेवी वर्मा थी क्योंकि उनके मित्रता का कारण यह था कि वे दोनों ही कविताएं लिखती थीं।

सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाओं की क्या विशेषताएं थी?

सुभद्रा कुमारी चौहान के जीवन के तरह ही उनका साहित्य भी सरल और स्‍पष्‍ट है। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय आंदोलन, स्त्रियों की स्वाधीनता, जातियों का उत्थान आदि समाहित है।

सुभद्रा कुमारी चौहान की मृत्यु कब हुई थी?

सुभद्रा कुमारी चौहान 15 फरवरी 1948 को कार एक्सीडेंट में उनकी मृत्यु हो गयी थी।

आशा है कि आपको, भारत की साहसी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय (Subhadra Kumari Chauhan Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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