भारतीय इतिहास महान योद्धाओं, शूरवीरों और क्रांतिकारियों की उपलब्धियों और वीरता के लिए जाना जाता हैं। इन्हीं शूरवीरों का नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। इनमें पुरुषों के साथ साथ कई महिलाओं के नाम भी शामिल हैं, जो एक कुशल योद्धा के रूप में अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा चुकी हैं। झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, महारानी ताराबाई उन्हीं योद्धाओं में से एक है। आज हम आपको ऐसी ही एक महिला योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने राज्य की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हो गई थी। तो आइए जानते है अपने समय की सबसे बहादुर और साहसी रानी दुर्गावती के बारे में।
नाम | रानी दुर्गावती |
जन्म | 5 अक्टूबर सन 1524 |
जन्म स्थान | कालिंजर किला (उत्तर प्रदेश) |
पिता का नाम | कीर्तिसिंह चंदेल |
पति का नाम | दलपत शाह |
संतान का नाम | वीर नारायण |
प्रसिद्धी | गोंडवाना राज्य की शासक, वीरांगना |
मृत्यु | 24 जून 1564 |
विशेष योगदान | इन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। |
This Blog Includes:
रानी दुर्गावती की शुरूआती जीवन
‘रानी दुर्गावती’ का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को महोबा शहर (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में हुआ था। दुर्गाष्टमी के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, योग्य एवं साहसी लड़की थी जो राजा ‘कीर्तिसिंह चंदेल’ की एकमात्र संतान थीं। रानी दुर्गावती का बचपन उस माहौल में बीता जिस राजवंश ने अपने मान सम्मान के लिये कई लडाइयां लड़ी थी।
इस कारण उन्होंने बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी प्राप्त की। उन्हें तीरंदाजी, तलवारबाजी और बन्दूक का इतना अच्छा खासा अभ्यास था कि मात्र 13-14 वर्ष की उम्र में ही बड़े से बड़े जंगली जानवरों का शिकार आसानी से कर लेती थी। उनकी पढ़ाई-लिखाई में नहीं बल्कि वीरता और साहस से भरी कहानी सुनने और पढ़ने में रुचि थी। वह अपने पिता के साथ ज्यादा वक्त गुजारती थी और कुछ समय बाद वह अपने पिता के काम में हाथ भी बंटाने लगी। इस तरह उनका शुरूआती जीवन बहुत ही अच्छा बीता।
रानी दुर्गावती का विवाह
रानी दुर्गावती के विवाह के योग्य होने के बाद उनके पिता ने 1542 ई. में उनका विवाह गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र ‘दलपत शाह’ के साथ करवा दिया। दलपत शाह बहुत ही वीर और साहसी थे जिससे रानी दुर्गावती भी बहुत प्रभावित थी। शादी के कुछ समय बाद रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम ‘वीर नारायण’ रखा गया। इसके बाद सन 1550 ई. में राजा दलपत शाह की भी मृत्यु हो गई।
तब वीर नारायण मात्र 5 साल के थे। इस मुश्किल घड़ी में भी रानी दुर्गावती जी ने हिम्मत नही हारी और अपने 5 वर्षीय पुत्र को गोंडवाना राज्य का राजा घोषित कर राज काज अपने हाथों में ले लिया। इस तरह उन्होंने लगभग 15 साल तक गोंडवाना में शासन किया। एवं राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां भी लड़ी।
रानी दुर्गावती का शासनकाल
1550 ईस्वी में अपने पति दलपतशाह की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती, अपने पुत्र वीर नारायण को गद्दी पर बैठाकर खुद सत्ता सँभालने लगी। गोंडवाना राज्य की शासिका बनने के बाद वह अपने राज्य में एक बड़ी एवं सुसज्जित सेना को बनाने में कामियाब रहीं और साथ साथ अपने राज्य में कई मंदिरों, भवनों और धर्मशालाओं का भी निर्माण करवाया।
सन 1556 में जब सुजात खान ने रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला किया तो रानी दुर्गावती ने इसका डटकर सामना किया और युद्ध जीत गई। युद्ध जितने के बाद उन्हें देशवासियों द्वारा सम्मानित किया गया और इस तरह वह कई लड़ाईयां जीतती गई और उनकी लोकप्रियता में वृद्वि होती गई। इसके फलस्वरूप कुछ सालो में ही गोंडवाना राज्य, खुशहाल राज्य के रूप में अपनी चर्चा चारो ओर बटोरने लगा।
रानी दुर्गावती की वीरता की गाथा
गोंडवाना राज्य के इस तरह चर्चित होने पर आसपास के राज्य उनसे घृणा करने लगे। ऐसे में वह गोडंवाना राज्य पर आक्रमण करने की तैयारी करने लगे। जब रानी दुर्गावती इस बात से अवगत हुई तब उन्होंने स्वंय ही दुश्मन राज्यों पर आक्रमण करने शुरू कर दिए। उन्होने एक एक करके बड़ी वीरता के साथ सभी दुश्मनों को पराजित किया और इस तरह रानी दुर्गावती की वीरता और सूझबूझ से गोडंवाना बहुत बडा राज्य बन गया।
ऐसे में जब इस राज्य के वैभव की भनक मुगल सम्राट अकबर को लगी तो अकबर के मन में भी लोभ उत्पन्न हो गया। वह रानी दुर्गावती की वीरता और उनके गुणों की गाथा सुन चुका था और उनसे मिलना चाहता था। उसने सोचा कि रानी को विवश किया जाए लेकिन इससे पहले अकबर भी अपनी बुद्धिमत्ता और वीरता रानी को दिखाना चाहता था। बहुत सोच विचार के बाद अकबर ने रानी को एक बंद पिटारी में उपहार भेजा।
जब दुर्गावती ने वह पिटारी खोली तो देखा उसके अंदर एक चरखा रखा हुआ था। रानी बड़ी बुद्धिमान थी। उन्होने इस उपहार का अर्थ लगाया कि स्त्रियों को घर में बैठकर चरखा चलाना चाहिए। इसके बाद रानी ने भी अपनी ओर से एक सदूक़ में उपहार अकबर के पास भेजा। अकबर ने जब वह संदूक खोलकर देखा तो उसके भीतर रूई धुनने की धन्नी और धुनने के लिए मोटा डंडा था। अकबर के इसका अर्थ लगाया कि तुमहारा काम रूई धुनना और कपडे बुनना है। तुम्हे राज काज से क्या लेना।
यह देख अकबर क्रोधित हो गया और उसने तुरंत अपने सेनापति को गोडंवाना राज्य पर आक्रमण कर दुर्गवती को दरबार में पेश करने का आदेश दे दिया। सेनापति आसफ खां ने अकबर की आज्ञा का पालन किया और बड़ी से बड़ी सेना लेकर गोडंवाना पहुँच गया लेकिन आक्रमण से पहले उन्होंने दुर्गावती को समझाना उचित समझा। आसफ खां ने रानी के पास एक संदेश भेजा, जिसमें लिखा था कि तुम बादशाह की अधीनता स्वीकार कर आगरा चलो। तुम्हारा राज्य तुम्हारे ही पास रहेगा और आगरा में भी तुम्हारा सम्मान किया जाएगा।
इसके बाद रानी दुर्गावती ने आसफ खां को करारा जवाब दिया। उन्होने कहा- “मेरे देश की धरती को कोई भी बेड़ियों में नही बांध सकता। मैं अपने देश की स्वतंत्रा के लिए अंतिम सांस तक युद्ध करूगीं। तुम तो गुलाम हो। तुम अकबर की नौकरी छोडकर मेरी सेना में आ जाओ। मै तुम्हे अच्छा वेतन दूंगी।” रानी की यह बात सुनकर आसफ खां आगबबूला हो गया और युद्ध शुरू कर दिया। रानी भी बड़ी वीरता के साथ आसफ खां की सेना का मुकाबला करने लगी।
इस दौरान उनके साथ उनका 18 वर्षीय पुत्र वीरनारायण भी शामिल था। दोनो सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध होने लगा परंतु दुर्भाग्यवश नदी में आचानक बाढ़ आ गई और रानी की सेना बाढ में फस गई। इसका आसफ खां ने लाभ उठाकर फंसी हुई सेना पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में रानी के बहुत से सैनिक मारे गए। यहाँ तक की उनके पुत्र वीर नारायण भी घायल हो गए।
रानी दुर्गावती ने घायल वीरनारायण को चौरागढ के किले में भेज दिया। उस समय रानी की सेना में केवल 300 सैनिक ही शेष रह गए थे जबकि उधर आसफ खां की सेना की संख्या बहुत अधिक थी। लेकिन फिर भी रानी दुर्गावती ने हार न मानी। वह अपने 300 सैनिको के साथ आसफ खां की सेना पर टूट पड़ी। इस दौरान अचानक एक बाण आकर उनकी दाहिनी आंख में घुस गया। इसके बाद भी रानी दुर्गावती वीरता के साथ युद्ध करती रही।
थोडी ही देर बाद एक बाण ओर आया और रानी की दूसरी आंख में घुस गया। अब रानी की दोनो आंखे फूट चुकी थी वह अंधी हो चुकी थी। फिर भी उन्होने हिम्मत नही हारी। और दोनो हाथो से तलवार चलाती रही। और आसफ खा की सेना का डटकर सामना करती रही।
रानी दुर्गावती की मृत्यु कैसे हुई
24 जून, 1524 में मुगल सेना से युद्ध करने के दौरान रानी दुर्गावती बुरी तरह से घायल हो चुकी थीं। ऐसे में उनके एक सलाहकार ने उन्हें युद्ध छोड़ने को कहा लेकिन वह आखिरी दम तक मुग़लों से युद्ध लड़ती रही और फिर जब उन्हें लगा कि वे पूरी तरह से होश खोने लगी हैं तो उन्होंने दुश्मनों के हाथों से मरने से बेहतर अपने आप को ही समाप्त करना उचित समझा। ऐसे में उन्होंने अपने एक सैनिक को कहा कि तुम मुझे मार दो किन्तु उस सैनिक ने रानी को मारने से इंकार कर दिया। तब रानी दुर्गावती ने स्वयं ही अपनी तलवार अपने सीने में घोंप दी और इस तरह उनकी मृत्यु हो गयी।
रानी दुर्गावती के बाद राज्य और उनकी समाधि
इतिहास में 24 जून की तारीख स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। आज इस दिन को “बलिदान दिवस” के नाम से जाना जाता है। रानी दुर्गावती जी के बलिदान के बाद बरेला नामक स्थान में उनकी समाधि बनी हुई है। दूसरी ओर रानी दुर्गावती के वीरगति को प्राप्त होने के बाद भी गोंडवाना और मुग़लों के बीच कई वर्षों तक संघर्ष चलता रहा।
दुर्गावती के बाद उनके पुत्र नारायणसिंह ने सेना की बागडोर अपने हाथ में ले ली और इस तरह अकबर और नारायणसिंह के बीच कई युद्ध हुए। लेकिन तब भी अकबर कई वर्षों तक गोंडवाना पर अधिकार नहीं कर सका पर अंत मे वीर नारायणसिंह भी कमजोर पड़ गए जिसका अकबर ने फायदा उठाकर सत्ता को अपने कब्जे में कर लिया।
रानी दुर्गावती के बारे में कुछ ऐतिहासिक तथ्य
- रानी दुर्गावती के बारे में कुछ ऐतिहासिक तथ्य इस प्रकार हैं:
- रानी दुर्गावती जयंती 5 अक्टूबर को मनाई जाती है।
- रानी दुर्गावती के पति राजा दलपत शाह के वीरता के किस्सों के बारे में सुनकर वे काफी प्रभावित थींI उन्होंने उन्हें विवाह के लिए गुप्तपत्र लिखा जिसके बाद उन दोनों ने मंदिर में शादी कर लीI
- अपनी पति की मृत्यु के बाद जब वे गोंडवाना के सिंहासन पर बैठीं थीं, तब उनकी आयु मात्र 17 वर्ष थीI
- रानी दुर्गावती एक कुशल शिकारी थींI उन्होंने एक आदमखोर बाघ को मार गिराया थाI
- रानी दुर्गावती ने मुगल बादशाह अकबर की सेना से लड़ाई की और पहली लड़ाई में उन्हें अपने राज्य से खदेड़ दिया थाI
FAQs
रानी दुर्गावती 16वीं शताब्दी की भारतीय रानी थीं, जिन्होंने गोंडवाना राज्य पर शासन किया था। उन्होंने लोक कल्याण के लिए अपने राज्य में कई विद्यालय, अस्पताल और कुएं बनवाए थे।
रानी दुर्गावती की समाधि बरेला में स्थित है जो भारत के मध्य प्रदेश राज्य के जबलपुर ज़िले में है।
रानी दुर्गावती ने मुगलों सहित कई आक्रमणकारियों के खिलाफ 51 वीर युद्ध लड़े थे।
इतिहासकारों के मुताबिक माना जाता है कि सम्राट अकबर की लगभग 300 पत्नियाँ थीं।
रानी दुर्गावती दोनों हाथों से तीर और तलवार चलाने में निपुण थीं।
आशा है कि आपको रानी दुर्गावती के बारे में सभी आवश्यक जानकारी मिल गयी होगी। ऐसे ही इतिहास से संबंधित अन्य ब्लॉग्स को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।