पढ़िए प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक और जानिए उनका भावार्थ, जो आपको सुखद अनुभव कराएंगे

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प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक

संस्कृत विश्व की ऐसी प्राचीन भाषाओं में से एक है, जिसमें अनेकों वेद-पुराणों और ग्रंथों की रचनाएं हुई। इन रचनाओं के ज्ञान से मानवता का कल्याण हुआ और संस्कृत भाषा के ज्ञान के प्रकाश से विश्व ने, सकारात्मक सद्मार्ग को अपनाया। प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक पढ़कर आप इस महान भाषा से जीवनभर प्रेरित हो सकते हैं, जिसके लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा। यह संस्कृत श्लोक आपको जीने का एक मकसद देंगे साथ ही आपको प्रेरणा से भर देंगे।

जीवन पर संस्कृत श्लोक

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक के माध्यम से आप जीवन पर आधारित संस्कृत श्लोक और उनके भावार्थ को पढ़ पाएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं-

संतोषवत् न किमपि सुखम् अस्ति॥

भावार्थ : संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है।

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक

ऐश्वर्ये  वा सुविस्तीर्णे  व्यसने  वा सुदारुणे।
रज्जवेव पुरुषं बद्ध्वा कृतान्तः परिकर्षति॥

भावार्थ : अत्यधिक ऐश्वर्यवान तथा बुरे व्यसनों मे लिप्त व्यक्ति रस्सियों से बंधे हुए व्यक्ति के समान होते हैं और अन्ततः उनका भाग्य उनको  प्रताडित कर अत्यन्त कष्ट देता है।


कण्ठे मदः कोद्रवजः हृदि ताम्बूलजो  मदः।
लक्ष्मी मदस्तु सर्वाङ्गे पुत्रदारा मुखेष्वपि॥

भावार्थ : मदिरा (शराब्) पीने से उसका दुष्प्रभाव कण्ठ पर ( बोलने की क्षमता ) पर पडता है और तंबाकू (पान) खाने से उसका मन पर प्रभाव पड़ता है। परन्तु संपत्तिवान होने का मद (नशा या गर्व) व्यक्तियों न केवल उनके संपूर्ण शरीर पर वरन उनकी स्त्रियों और संतान के मुखों (चेहरों) पर भी देखा जा सकता है।


कण्टकावरणं यादृक्फलितस्य फलाप्तये।
तादृक्दुर्जनसङ्गोSपि  साधुसङ्गाय बाधनं॥

भावार्थ : जिस प्रकार एक फलदायी वृक्ष के कांटे उसके फलों को प्राप्त करणे में बाधा उत्पन्न करते हैं, वैसे ही दुष्ट व्यक्तियों की सङ्गति (मित्रता) भी साधु और सज्जन व्यक्तियों की सङ्गति में बाधा उत्पन्न करती है।


येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥

भावार्थ : जिनमें न ज्ञान है, न तप है, न दान है, न विद्या है, न गुण है, न धर्म है। वे नश्वर संसार में पृथ्वी के बोझ हैं और मानव रूप में हिरण (पशु ) की तरह घूमते हैं।

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक

न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।
हविषा कृष्णवर्त्मेन भूय एवाभिवर्धते॥

भावार्थ : भोग करने से कभी भी कामवासना शान्त नहीं होती है, परन्तु जिस प्रकार हवनकुण्ड में जलती हुई अग्नि में घी आदि की आहुति देने से अग्नि और भी प्रज्ज्वलित हो जाती है वैसे ही कामवासना भी और अधिक भडक उठती है।


नारुंतुदः स्यादार्तोSपि न परद्रोहकर्मधीः।
ययास्योद्विजते वाचा नालोक्यां तामुदीरयेत्॥

भावार्थ : मनुष्य का कर्तव्य है कि यथा सम्भव किसी को पीडा दे कर उसका हृदय न दुखाये, भले ही स्वयं दुःख उठा ले। किसी के प्रति अकारण द्वेष-भाव न रखे और कोई कटु बात कह कर किसी का मन उद्विग्न न करे।


अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम्॥

भावार्थ : निम्न वर्ग के लोग केवल पैसे में रुचि रखते हैं, और ऐसे लोग सम्मान की परवाह नहीं करते हैं। मध्यम वर्ग धन और सम्मान दोनों चाहता है, और केवल उच्च वर्ग की गरिमा महत्वपूर्ण है। सम्मान पैसे से ज्यादा कीमती है।


कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्।।

भावार्थ : जिस प्रकार लोग नदी पार करने के बाद नाव को भूल जाते हैं, उसी तरह लोग अपना काम पूरा होने तक दूसरों की प्रशंसा करते हैं और काम पूरा होने के बाद दूसरे को भूल जाते हैं।


जीवितं क्षणविनाशिशाश्वतं किमपि नात्र।

भावार्थ : यह क्षणभुंगर जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है।


जीविताशा बलवती धनाशा दुर्बला मम्।।

भावार्थ : मेरी जीवन की आशा बलवती है पर धन की आशा दुर्लभ है।

कर्म पर संस्कृत श्लोक

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक के माध्यम से आप कर्म पर आधारित संस्कृत श्लोक और उनके भावार्थ को पढ़ पाएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं-

सर्वे कर्मवशा वयम्।

भावार्थ : सब कर्म के ही अधीन हैं।


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि।।

भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करने में ही तेरा अधिकार है। कर्म के फल का अधिकार तुम्हारे पास नहीं है। इसलिए तू केवल केवल कर्म पर ध्यान दे उसके फल की चिंता न कर।


अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च।
स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम्।

भावार्थ : जिस तरह फल, फुल बिना किसी प्रेरणा के समय पर उग जाते हैं, उसी प्रकार पहले किये हुए कर्म भी यथासमय ही अपने फल देते हैं। यानिकी कर्मों का फल अनिवार्य रूप से मिलता ही है।


न श्वः श्वमुपासीत। को ही मनुष्यस्य श्वो वेद।

भावार्थ : कल के भरोसे मत बैठो। कर्म करो, मनुष्य का कल किसे ज्ञात है?


दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्।

भावार्थ : दिनभर ऐसा कार्य करो जिससे रात में चैन की नींद आ सके।


ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति य:।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।

भावार्थ : जो व्यक्ति कर्मफलों को परमेश्वर को समर्पित करके आसक्तिरहित होकर अपना कर्म करता है, वह पापकर्मों से उसी प्रकार अप्रभावित रहता है, जिस प्रकार कमलपत्र जल से अस्पृश्य रहता है।


नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण:।।

भावार्थ : तू शास्त्रों में बताए गए अपने धर्म के अनुसार कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।


कर्मणामी भान्ति देवाः परत्र कर्मणैवेह प्लवते मातरिश्वा।
अहोरात्रे विदधत् कर्मणैव अतन्द्रितो नित्यमुदेति सूर्यः।।

भावार्थ : कर्म के कारण ही देवता चमक रहे हैं। कर्म के कारण ही वायु बह रही है। सूर्य भी आलस्य से रहित कर्म करके नित्य उदय होकर दिन और रात का विधान कर रहा है।


बह्मविद्यां ब्रह्मचर्यं क्रियां च निषेवमाणा ऋषयोऽमुत्रभान्ति।

भावार्थ : ऋषि भी वेदज्ञान, ब्रह्मचर्य और कर्म का पालन करके ही तेजस्वी बनते हैं।


कर्मणा वर्धते धर्मो यथा धर्मस्तथैव सः।

भावार्थ : कर्म से ही धर्म बढ़ता है। जो जैसा धर्म अपनाता है, वह वैसा ही हो जाता है।।

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक के माध्यम से आप प्रेरणा से भर देने वाले संस्कृत श्लोक और उनके भावार्थ को पढ़ पाएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं-

सेवितव्यो महावृक्ष: फ़लच्छाया समन्वित:।
यदि देवाद फलं नास्ति,छाया केन निवार्यते।।

भावार्थ : एक विशाल वृक्ष की सेवा करनी चाहिए, क्योंकि वह फल और छाया से युक्त होता है। यदि किसी दुर्भाग्य से फल नहीं देता तो उसकी छाया कोई नहीं रोक सकता है।


काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।

भावार्थ : हर विद्यार्थी में हमेशा कौवे की तरह कुछ नया सीखाने की चेष्टा, एक बगुले की तरह एक्राग्रता और केन्द्रित ध्यान एक आहत में खुलने वाली कुते के समान नींद, गृहत्यागी और यहाँ पर अल्पाहारी का मतबल अपनी आवश्यकता के अनुसार खाने वाला जैसे पांच लक्षण होते है।


अग्निना सिच्यमानोऽपि वृक्षो वृद्धिं न चाप्नुयात्।
तथा सत्यं विना धर्मः पुष्टिं नायाति कर्हिचित्।।

भावार्थ : आग से सींचे गए पेड़ कभी बड़े नहीं होते। उसी प्रकार सत्य के बिना धर्म की स्थापना संभव नहीं है।


दुर्जन:स्वस्वभावेन परकार्ये विनश्यति।
नोदर तृप्तिमायाती मूषक:वस्त्रभक्षक:।।

भावार्थ : दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता है। वस्त्रों को काटने वाला चूहाकभी भी पेट भरने के लिए कपड़े नहीं काटता।


सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत्।।

भावार्थ : संसार में सभी सुखी हो, निरोगी हो, शुभ दर्शन हो और कोई भी ग्रसित ना हो।

धैर्य पर संस्कृत श्लोक

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक के माध्यम से आप धैर्य पर आधारित संस्कृत श्लोक और उनके भावार्थ को पढ़ पाएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं-

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।

भावार्थ : तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शरीरकी शुद्धि, वैरभावका न रहना और मानको न चाहना, हे भरतवंशी अर्जुन ! ये सभी दैवी सम्पदाको प्राप्त हुए मनुष्यके लक्षण हैं।


धृतिः शमो दमः शौचं कारुण्यं वागनिष्ठुरा।
मित्राणाम् चानभिद्रोहः सप्तैताः समिधः श्रियः।।

भावार्थ : धैर्य, मन पर अंकुश, इन्द्रियसंयम, पवित्रता, दया, मधुर वाणी और मित्र से द्रोह न करना ये सात चीजें लक्ष्मी को बढ़ाने वाली हैं।


जरा रूपं हरति, धैर्यमाशा, मॄत्यु: धर्मचर्यामसूया

भावार्थ : वृद्धावस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें पहुंचने के बाद मनुष्य की सुंदरता, धैर्य, इच्छा, मृत्यु, धर्म का आचरण, पवित्रता, क्रोध, प्रतिष्ठा, चरित्र, बुरी संगति, लज्जा, काम और अभिमान सब का नाश कर देता है।


निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु,
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।

भावार्थ : नीतिनिपुण व्यक्ति चाहे निंदा करे या प्रसंशा, लक्ष्मी आये या चली जाए। मृत्यु आज ही हो जाये या बाद में। धैर्यवान पुरुष के कदम कभी भी न्याय पथ से विचलित नहीं होते।


धैर्यं सर्वत्र सर्वदा, सर्वदा धैर्यमेव हि।
धैर्येण हि सुखं सर्वं, नास्ति दुःखं कदाचन।।

भावार्थ : धैर्य हर जगह और हर समय में होता है। धैर्य ही से सब सुख होता है, कभी दुःख नहीं होता। 

सफलता पर संस्कृत श्लोक

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक के माध्यम से आप सफलता पर आधारित संस्कृत श्लोक और उनके भावार्थ को पढ़ पाएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं-

काकतालीयवत्प्राप्तं दृष्ट्वापि निधिमग्रतः।
न स्वयं दैवमादत्ते पुरुषार्थमपेक्षते।।

भावार्थ : भले ही भाग्य से, एक खजाना सामने पड़ा हुआ दिखाई दे, (काका-तलिया न्याय के रूप में), भाग्य इसे हाथ में नहीं देता है, कुछ प्रयास (उसे उठाने का) (अभी भी) अपेक्षित है।


उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।

भावार्थ : मेहनत से, उद्योग से काम मिलता है, चाहने से नहीं। सोये हुए सिंह के मुँह में जानवर प्रवेश नहीं करते।


आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।

भावार्थ : आलस्य शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है। मेहनत से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता, उसे करने के बाद कोई उदास नहीं रहता।


उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
नहि सुप्तस्य सिंहस्य मुखे प्रविशन्ति मृगाः।।

भावार्थ : किसी भी कार्य को केवल सक्रिय उत्साह से ही पूरा किया जा सकता है, अकेले काल्पनिक विचारों से कभी नहीं। सोते हुए सिंह के मुख में मृग (पशु) प्रवेश नहीं करते।


महाजनस्य संपर्क: कस्य न उन्नतिकारक:।
मद्मपत्रस्थितं तोयं धत्ते मुक्ताफलश्रियम्।।

भावार्थ : महाजनों और गुरुओं के संपर्क से कौन उन्नति नहीं करता? कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की एक बूंद मोती की तरह चमकती है।


आशा है कि आपको प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक का यह ब्लॉग जानकारी से भरपूर लगा होगा। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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