भारत का इतिहास कई हजारों वर्ष पुराना है और यहाँ प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत तक तमाम राजवंशो ने शासन किया हैं। जिनमें से प्रमुख राजवंश थे- हर्यक वंश, नंद राजवंश, पांड्य राजवंश, गुप्त वंश, चोल राजवंश, मराठा साम्राज्य आदि। इस कड़ी में हमने सबसे पहले गुलाम वंश के बारे में पढ़ा था जिसमें हमने अपने ब्लॉग के माध्यम से गुलाम वंश की स्थापना से लेकर अंत तक की जानकारी दी थी। आज हम आपको Khilji Vansh के बारे में बताएंगे। इस ब्लॉग के माध्यम से आपको खिलजी वंश के इतिहास से लेकर पतन तक की संपूर्ण जानकारी दी जाएगी। जिसके लिए ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़ें।
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क्या है खिलजी वंश का इतिहास
गुलाम वंश के पतन के बाद “खिलजी वंश” या “ख़लजी वंश”, दिल्ली सल्तनत पर राज करने वाला दूसरा वंश बना। 13 जून 1290 ई. में गुलाम वंश के अंतिम शासक ‘शमसुद्दीन क्यूमर्श’ की हत्या कर ‘जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी’ ने मध्यकालीन भारत का एक राजवंश यानी ‘खिलजी वंश’ की स्थापना की। जिसके बाद से इस वंश ने दिल्ली की सत्ता पर 1290-1320 तक यानी 30 वर्षो तक शासन किया और इस दौरान कुल 5 शासकों द्वारा शासन किया गया जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है।
इन खिलजियों ने कुछ ही समय में खुरासान की जंगली संस्कृति, अफगानी संस्कृति और गजनवी की सामाजिक परंपराओं को अपना लिया था। इनके दरबार में अलग अलग संस्कृतियों के लोग जैसे फारसी, भारतीय, अरबी और तुर्की मूल के लोग शामिल थे।
Khilji Vansh के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण घटना ये भी थी कि इस वंश द्वारा सत्ता स्थापित करने को क्रांति कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये वंश किसी खलीफा के स्वीकृति से नहीं बल्कि अपनी तलवार के बल पर सत्ता में आये थे। इस वंश के सत्ता में आने के बाद कई प्राशासनिक उपाय भी लागू किये गए थे। खिलजी वंश का शासनकाल दिल्ली सल्तनत पर सबसे कम समय तक रहा, इसलिए यह दिल्ली सल्तनत के सबसे छोटे वंश के नाम से भी जाना जाता है।
Khilji Vansh के प्रमुख शासक एवं उनकी उपलब्धियां
Khilji Vansh के प्रमुख शासक एवं उनकी उपलब्धियां निम्नलिखित है-
- जलालुद्दीन खिलजी (1290 से 1296 ई.)
- अलाउद्दीन खिलजी (1296 से 1316 ई.)
- शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी (1316 ई.)
- कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी (1316 से 1320 ई.)
- नासिरुद्दीन खुसरो खां (1320 ई.)
जलालुद्दीन खिलजी (1290 से 1296 ई.)
गुलाम वंश के शासन को समाप्त कर ‘जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी’ ने 1290 ई. में ‘Khilji Vansh’ की स्थापना की और 1290 से लेकर 1296 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। जिस समय जलालुद्दीन खिलजी ने खिलजी वंश की नींव रखी, उस समय उनकी आयु 70 वर्ष थी। हालांकि दिल्ली की राजगद्दी पर वह केवल 6 वर्ष ही शासन कर पाए। मूल रूप से फिरोज के नाम से जाने जाने वाले जलालुद्दीन ने अपना करियर मामलुक राजवंश के एक सैनिक के रूप में शुरू किया था।
जिसके बाद वह सूबेदार बने और इसके बाद सुल्तान जैसे एक महत्वपूर्ण पद तक पहुंचे। जलालुद्दीन खिलजी के शासन काल की सबसे बड़ी उपलब्धि ‘देवगिरि’ की विजय थी। इस उपलब्धि के पीछे सबसे बड़ा हाथ उनके भतीजे ‘अलाउद्दीन खिलजी’ का था। इससे खुश होकर जब सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी अपने भतीजे अलाउद्दीन खिलजी को बधाई देने गए तो उसी समय अलाउद्दीन खिलजी ने सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर दी और 22 अक्टूबर 1996 ई. में दिल्ली सल्तनत की बागडोर अपने हाथों में ले ली।
अलाउद्दीन खिलजी (1296 से 1316 ई.)
दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश का दूसरा शासक ‘अलाउद्दीन खिलजी’ था। अपने चाचा की हत्या करने के बाद वह 1296 ई.में खिलजियों के सिंहासन पर विराजमान हुआ। सुलतान बनने के बाद अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए अलाउद्दीन ने फिरोज खिलजी के पूरे परिवार की हत्या करवा दी। अपने शासनकाल के दौरान अलाउद्दीन ने कई महत्वपूर्ण कार्य किये और अपने वंश का सबसे प्रमुख शासक बना। वह दक्षिण भारत पर जीत हासिल करने वाले भारत के पहले मुस्लिम सुल्तान भी बने। अपनी क्रूरता के लिए मशहूर अलाउद्दीन ने अपने शासन के दौरान हिंदुओ पर भूमि कर, चारागाह कर , चुनाव कर एवं घर कर आदि को लागू किया था।
शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी (1316 ई.)
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद ‘मलिक काफूर’ ने सुल्तान बनने के लिए एक षड्यंत्र रचा। उसने ‘शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी’, अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र को खिलजी वंश का तीसरा शासक बना दिया। इस तरह शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी जनवरी 1316 में एक नाबालिग के रूप में सिंहासन पर विराजमान हुआ लेकिन वह एक कठपुतली सुल्तान था क्योंकि सल्तनत की शक्तियाँ मलिक काफूर के हाथों में थीं।
कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी (1316 से 1320 ई.)
लगभग 35 दिन तक सत्ता संभालने के बाद काफ़ूर की हत्या कर दी गयी। काफ़ूर की हत्या अलाउद्दीन के तीसरे पुत्र ‘मुबारक ख़िलजी’ ने करवाई थी और अपने भाई शिहाबुद्दीन को अंधा करवा कर क़ैद करवा दिया था। इस तरह वह स्वयं सुल्तान बन गया। लेकिन इसका शासनकाल भी ज्यादा समय तक नहीं चला। कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने 19 अप्रैल 1316 ई० से 15 अप्रैल,1320 ई० तक दिल्ली पर शासन किया। लेकिन उसके खास नासिरुद्दीन खुसरो खां ने ही सुल्तान की हत्या कर शासन अपने कब्जे में ले लिया।
नासिरुद्दीन खुसरो खां (1320 ई.)
‘नासिरुद्दीन खुसरो खां’ खिलजी वंश का अंतिम शासक था जो एक हिंदू था लेकिन बाद में मुसलमान बन गया। ऐसा कहा जाता है कि नासिरुद्दीन खुसरो खां ने हिंदू शासक होते हुए इस्लाम धर्म कबूल किया और उसके बाद सुल्तान पद ग्रहण कर शासन करने लगा। ऐसे में वहां के लोग उसका विद्रोह करने लगे और उसे सुल्तान पद से हटा दिया गया। इस तरह नासिरुद्दीन खुसरो खां का शासनकाल मात्र 12 दिन ही रहा। इसके बाद एक नए राजवंश ‘तुग़लक़ वंश’ की स्थापना हुई।
खिलजी वंश में आंतरिक सुधार
जब अलाउद्दीन खिलजी सिंहासन पर बैठा, उसके बाद दिल्ली सल्तनत की स्थिति अच्छी तरह से संगठित हो गईं थी। इस स्थिति ने बाकी सुल्तानों को आंतरिक सुधार जैसे प्रशासन में सुधार, सेना को मज़बूत करना एवं अन्य नागरिक कल्याण के लिए प्रोत्साहित किया।
अलाउद्दीन एक बड़ी सेना बनाए रखना चाहता था जिसके लिए उसने दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमत कम और निर्धारित कर दी थी। अलाउद्दीन का बाज़ारों को नियंत्रित करने वाला उपाय बहुत महत्त्वपूर्ण था। ऐसे में दिल्ली में अलग-अलग वस्तुओं के लिये अलग-अलग बाज़ार स्थापित किए गए। जैसे : अनाज बाज़ार (मंडी), कपड़ा बाज़ार और घोड़ों, दासों, मवेशियों का बाज़ार आदि। ऐसे में बाज़ार की दैनिक रिपोर्ट अलाउद्दीन को प्राप्त होती थी क्योंकि सुल्तान के आदेशों का उल्लंघन करने पर कठोर दंड का प्रावधान था। बाज़ार पर नियंत्रण के अतिरिक्त अलाउद्दीन ने कृषि सुधार के लिए भी महत्त्वपूर्ण कदम उठाए थे।
खिलजी वंश के पतन के कारण
खिलजी वंश के पतन के कई कारण थे जिनमें से कुछ प्रमुख कारणों के बारे में नीचे दिए गए बिंदुओं में बताया गया है:-
- अलाउद्दीन खिलजी के बाद के शासकों का कमजोर पड़ना :- 1316 ई. में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद उनके सबसे छोटे बेटे उमर को गद्दी का उत्तराधिकारी बनाया गया और मालिक काफूर को उसका संरक्षक लेकिन बाद में मालिक काफूर उमर से ज्यादा शक्तिशाली हो गया, और खुद ही सत्ता पर शासन करने लगा।
- मुबारक खिलजी की गलत नीतियां – मुबारक खिलजी के गद्दी पर बैठते ही उन्होंने सभी सैनिकों को 6 माह का अग्रिम वेतन दे दिया और अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बनाए गए सभी सख्त कानून और नियमों को भी समाप्त कर दिया।
- गुजरात विद्रोह, देवगिरी हिंदू राजाओं का विद्रोह, आंतरिक विद्रोह आदि।
- शासकों की अयोग्यता:- अलाउद्दीन खिलजी के बाद खिलजी वंश का कोई भी शासक उसके जितना बुद्धिमान और चालक नहीं था जिसकी वजह से ये वंश ज्यादा समय तक शासन नहीं कर पाया और इस प्रकार खिलजी वंश का पतन हुआ और तुगलक वंश का उदय हुआ।
FAQs
खिलजी वंश का अंतिम शासक नासिरुद्दीन खुसरो खां (1320 ई.) था जिनका शासनकाल कुछ महीनो तक ही रहा था।
खिलजी वंश में कुल 5 शासकों ने शासन किया था।
खिलजी वंश के संस्थापक और प्रथम शासक जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी (1290-1296 ई.) थे।
खिलजी वंश से पहले गुलाम वंश था जिसका शासनकाल 1206 – 1290 ई. तक चला।
अलाउद्दीन खिलजी को खिलजी वंश के सबसे सफल सुल्तान के रूप में जाना जाता है।
आशा है कि आपको Khilji Vansh के बारे में सभी आवश्यक जानकारी मिल गयी होगी। ऐसे ही इतिहास से संबंधित अन्य ब्लॉग्स को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।