केंद्र ने दिल्ली हाई कोर्ट को सूचित किया है कि कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) अब केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए अनिवार्य नहीं है। CUET एक नेशनल लेवल का एग्जाम होता है, जिसको पास करके UG, PG और PhD प्रोग्राम्स में एडमिशन मिलता है।
कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT UG) 2023 के रिजल्ट के आधार पर अपने पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड लॉ कोर्सेज में एडमिशन की पेशकश करने के दिल्ली विश्वविद्यालय के फैसले के खिलाफ एक याचिका में चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की बेंच के समक्ष यह दलील दी गई।
आदेश में यह कहा गया था
आदेश में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) के वकील की दलील पर भी गौर किया गया, जिन्होंने “स्पष्ट रूप से” कहा था कि “सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए यूजी/पीजी कोर्सेज में एडमिशन के लिए सीयूईटी का पालन करना अनिवार्य है”।
इसके बाद हाई कोर्ट ने कहा, “UGC, साथ ही भारत सरकार को विस्तृत जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाता है। यदि दिल्ली विश्वविद्यालय ऐसा करना चाहता है तो वह एक पूरक जवाबी हलफनामा भी दाखिल कर सकता है।” वहीं 12 सितंबर को अगली सुनवाई है।
क्या कहा गया था PIL में?
पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL), जो 4 अगस्त की डीयू नोटिफिकेशन को चुनौती देती है, मांग करती है कि पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड लॉ कोर्सेज में एडमिशन CUET UG 2023 के माध्यम से किया जाए।
नोटिफिकेशन में कहा गया है कि डीयू लॉ फैकल्टी ने अकादमिक ईयर 2023-2024 से “पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड लॉ कोर्सेज – बीए एलएलबी (ऑनर्स) और बीबीए एलएलबी (ऑनर्स)” शुरू किया है।
पिटीशन में कहा गया है कि 4 अगस्त की नोटिफिकेशन के साथ, डीयू ने “पूरी तरह से अनुचित और मनमानी शर्त” लगाई है कि पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड लॉ कोर्सेज में एडमिशन पूरी तरह से CLAT-UG 2023 रिजल्ट में योग्यता के आधार पर होगा, जो संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता और अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा का अधिकार का उल्लंघन है।
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