बीना दास भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की महान क्रांतिकारी थीं। उन्होंने मात्र 21 वर्ष की आयु में बंगाल के तत्कालीन गवर्नर ‘स्टेनली जैक्सन’ (Stanley Jackson) पर पांच-छह गोलियाँ चलाकर उनकी हत्या का प्रयास किया था। इस घटना के बाद उन्हें नौ वर्ष का कारावास हुआ और अंग्रेज सरकार द्वारा कठोर यातनाएँ दी गईं। लेकिन आज़ादी के प्रति उनका जुनून तनिक भी कम नहीं हुआ, और जेल से रिहा होने के बाद वे पुनः स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो गईं। बाद में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान उन्हें तीन वर्ष के लिए नजरबंद भी किया गया था। स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1960 में उन्हें ‘पद्म श्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया।
आप इस ब्लॉग में महान स्वतंत्रता सेनानी बीना दास का जीवन परिचय और उनके योगदान के बारे में जानेगें।
| नाम | बीना दास |
| जन्म | 24 अगस्त, 1911 |
| जन्म स्थान | कृष्णानगर, बंगाल (तत्कालीन ब्रिटिश भारत) |
| पिता का नाम | बेनी माधव दास |
| माता का नाम | सरला देवी |
| बहन | कल्याणी दास |
| शिक्षा | बी.ए. |
| पेशा | स्वतंत्रता सेनानी |
| आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन |
| पति का नाम | ज्योतिष भौमिक |
| पुस्तक | Bina Das: A Memoir |
| पुरस्कार | पद्म श्री (1960) |
| मृत्यु | 26 दिसंबर 1986 ऋषिकेश, उत्तराखंड |
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बंगाल के कृष्णानगर में हुआ था जन्म
महान स्वतंत्रता सेनानी बीना दास (Bina Das) का जन्म 24 अगस्त 1911 को बंगाल (तत्कालीन ब्रिटिश भारत) के कृष्णागर में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘बेनी माधव दास’ था, जो एक सुप्रसिद्ध अध्यापक थे और ‘ब्रह्म समाज’ (Brahmo Samaj) से जुड़े हुए थे। उनकी माता ‘सरला देवी’ एक समाजसेविका थीं, जिन्होंने निराश्रित महिलाओं के लिए ‘पुण्याश्रम’ नामक संस्था की स्थापना की थी। बीना दास की बड़ी बहन ‘कल्याणी दास’ भी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थीं। बताया जाता है कि उन्होंने स्कूल के दिनों से ही अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ रैलियों और आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया था।
महिला छात्र संघ में हुई शामिल
बीना दास ने अल्प आयु में ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बढ़ती राष्ट्रवादी लहर और स्वदेशी आंदोलन को बहुत करीब से देखा था। वे स्कूल के दिनों से ही स्वदेशी क्रांति और साहित्य से अत्यधिक प्रभावित थीं। वहीं, ‘सुभाष चंद्र बोस’ उनके पिता के शिष्य थे, जो अकसर उनसे मिलने घर आया करते थे। उनके विचारों ने भी युवा बीना को भारतीय स्वाधीनता संग्राम की ओर प्रेरित किया। ‘सेंट जॉन्स डायोसेसन गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल’ से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वर्ष 1928 में कोलकाता के ‘बेथ्यून कॉलेज’ में प्रवेश लिया।
यह वह समय था जब संपूर्ण भारत में ‘साइमन कमीशन’ के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी आंदोलन हो रहे थे। इसी दौरान बीना दास अपनी बड़ी बहन कल्याणी दास के साथ ‘छात्री संघ’ (महिला छात्र संघ) में शामिल हो गईं। इस संगठन में महिलाओं को आत्मरक्षा, लाठी और तलवार चलाना साथ ही साइकिल एवं वाहन चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था।
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गवर्नर ‘स्टेनले जैक्सन’ पर चलाई गोलियाँ
कॉलेज में अध्ययन के दौरान बीना दास ने न केवल साइमन कमीशन का विरोध किया, बल्कि स्वयंसेविका के रूप में कांग्रेस अधिवेशन में भी भाग लिया। इसके पश्चात वे एक क्रांतिकारी दल से जुड़ गईं। जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि बंगाल के तत्कालीन गवर्नर स्टेनले जैक्सन (Stanley Jackson) उनके आगामी स्नातक समारोह में आने वाले हैं, तो उन्होंने इसका विरोध दर्ज कराने हेतु उनकी हत्या की योजना बनाई।
इस दीक्षांत समोरह में बीना दास को भी बी.ए की डिग्री मिलनी थी। लेकिन वह अपनी योजना के परिणाम से अच्छी तरह अवगत थीं। 6 फरवरी 1932 को ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ के दीक्षांत समारोह हॉल में जब ‘स्टेनली जैक्सन’ सभा को संबोधित कर रहे थे। उसी दौरान बीना ने भरी सभा में उनपर गोली चला दी लेकिन उनका निशाना चूक गया और गोली उनके पास से होकर गुजर गईं। उन्होंने एक के बाद एक पांच-छह गोलियाँ चलाई किंतु उनका प्रयास विफल रहा। वहीं अचानक गोली की आवाज़ से चारों तरफ अफरा तफरी मच गई लेकिन अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
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नौ साल कारावास की सजा
इस घटना के बाद बीना दास पर अंग्रेज सरकार द्वारा मुकदमा चलाया गया और उन्हें नौ साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गईं। उनपर अपने सहयोगियों के नामों का भी खुलासा करने के लिए दबाव बनाया गया किंतु कठोर यातनाओं का सामना करने के बाद भी वह टस से मस नहीं हुईं। फिर जेल से रिहा होने के बाद वह पुनः स्वतंत्रता आंदोलन में शमिल हो गईं। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का आयोजन करने के जुर्म में उन्हें फिर से जेल की सजा हुई। वह वर्ष 1946 से 1951 तक बंगाल विधान सभा की सदस्य भी रहीं।
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‘पद्म श्री’ पुरस्कार से किया गया सम्मानित
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और अपने जीवन पर बीना दास ने एक पुस्तक भी लिखी थीं जिसका नाम ‘Bina Das: A Memoir’ है। फिर भारत को स्वराज मिलने के बाद बीना दास कलकत्ता छोड़कर उत्तराखंड के ऋषिकेश में एक छोटे से आश्रम में रहने आ गईं। उन्होंने अपनी आजीविका हेतु शिक्षिका के रूप में कार्य किया। लेकिन सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानी पेंशन को लेने से इंकार कर दिया। वर्ष 1960 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्म श्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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ऋषिकेश में ली अंतिम साँस
बीना दास का 26 दिसंबर 1986 को 75 वर्ष की आयु में निधन हुआ। किंतु आज भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में दिए अपने योगदान के लिए उन्हें याद किया जाता है।
FAQs
21 वर्ष की आयु में बंगाल के तत्कालीन गवर्नर ‘स्टेनले जैक्सन’ को गोली मारने के लिए वह प्रसिद्ध है।
उनका जन्म 24 अगस्त, 1911 को बंगाल के कृष्णागर में हुआ था।
उनकी माता का नाम सरला देवी था जबकि पिता का नाम बेनी माधव दास था।
26 दिसंबर 1986 को 75 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
उनकी बहन का नाम ‘कल्याणी दास’ था।
उन्हें वर्ष 1960 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म श्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उनके पति का नाम ‘ज्योतिष भौमिक’ था।
आशा है कि आपको स्वतंत्रता सेनानी बीना दास का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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