भारत का इतिहास कई हजार वर्ष पुराना माना जाता है। भारत पर कई बार आक्रमण हुए हैं। 12वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत पर मुस्लिम शासकों का एकाधिकार था। भारत में कई सारी सभ्यताओं, धर्म ,साम्राज्य आदि में कई शासकों द्वारा शासन किया गया जिसमें से एक विजयनगर साम्राज्य भी है जो कि दक्षिण भारत का शक्तिशाली साम्राज्य था। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना लगभग 1350 ईसवी से 1565 ईस्वी के मध्य में मानी जाती है।मध्य युग के इस शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य की स्थापना के बाद से ही इस राज्य पर कई बार आक्रमण हुए जिनका इस साम्राज्य के राजाओं ने कड़ा जवाब दिया। विजयनगर साम्राज्य की खास बात यह है कि यह राज्य कभी भी किसी दूसरे के अधीन नहीं रहा। हमारे इस ब्लॉग में हम विजयनगर साम्राज्य के भव्य इतिहास के बारे में चर्चा करेंगे और जानेंगे विजयनगर साम्राज्य के इतिहास, संस्थापक और किस तरह विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ। इस ब्लॉग में बताई गई जानकारी न सिर्फ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बल्कि स्कूली विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी होगी, तो आइए शुरू करते हैं और जानते हैं विजयनगर साम्राज्य के बारे में।
This Blog Includes:
- विजयनगर साम्राज्य का इतिहास
- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना
- विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला
- विजयनगर साम्राज्य: विजयनगर साम्राज्य के शासक और शासनकाल
- संगम वंश (1336-1485 ई)-
- सालुव वंश (1485-1505 ई)
- तुलुव वंश (1505-1570 ई)-
- अच्युत देवराय (1529-1542 ई)-
- सदाशिव (1542-1570 ई)-
- आरविडु वंश(1570-1652 ई)-
- विजयनगर साम्राज्य : महान शासक कृष्ण देवराय
- विजयनगर साम्राज्य की विशेषता
- विजयनगर साम्राज्य किस नदी पर था?
- विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक पद्धति
- विजयनगर साम्राज्य के मंदिर
- विजयनगर साम्राज्य के पतन के कारण
विजयनगर साम्राज्य का इतिहास
विजयनगर साम्राज्य का इतिहास नीचे दिया गया है-
- भारत का मध्यकालीन इतिहास 8वीं से 12वीं सदी तक माना जाता है। इस काल में पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट से लेकर शक्तिशाली दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य स्थापित हुए। वर्तमान भारत के विकास में मध्यकालीन भारत का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है मध्यकालीन भारत के इतिहास का वर्तमान भारत के विकास में बहुत बड़ा योगदान है इस दौर में भारत ने भवन निर्माण कला चित्रकला धर्म भाषा और साहित्य के क्षेत्र में बहुत विकास किया था।
- विजयनगर साम्राज्य जो कि दक्षिण भारत एक शक्तिशाली साम्राज्य था। इसकी स्थापना दो भाइयों राजकुमार हरिहर और बुक्का द्वारा 1336 ईस्वी में की गई। जल्दी ही उन्होंने अपने राज्य का विस्तार उत्तर दिशा में कृष्णा नदी तथा दक्षिण में कावेरी नदी के बीच वाले क्षेत्र पर कर लिया और इस पूरे क्षेत्र पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। विजयनगर साम्राज्य की बढ़ती ताकत से कई शक्तियों के बीच टकराव हुआ और उन्होंने बहमनी साम्राज्य के साथ कई बार लड़ाइयां लड़ी। दक्षिण भारत में मुस्लिम बार-बार ढक्कन के हिंदू राज्य पर हमला करके वहां के शासकों को पराजित कर रहे थे। होयसाल साम्राज्य (जो 14वीं शताब्दी से पहले शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभर कर सामने आया था तथा जो अंतिम मुस्लिम साम्राज्य था) के राजा की मृत्यु के पश्चात इस साम्राज्य का विलय विजयनगर साम्राज्य में हो गया था।
- हरिहर प्रथम को पूर्वी और पश्चिमी समुद्र के प्रमुख के रूप में जाना जाता था जिसनें विजयनगर साम्राज्य की मजबूत नींव रखी थी और तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में चारों ओर प्रमुख क्षेत्रों पर अपने शासन को मजबूत कर लिया था। बुक्का राय प्रथम ने आर्कोट, कोडावीडु के रेड्डी बंधु,मदुरै के सुल्तान प्रमुखों को हराकर न केवल अपने साम्राज्य का पश्चिम में बल्कि तुंगभंद्रा-कृष्णा नदी के उत्तर तक विस्तार किया और उसका उत्तराधिकारी बना। अनेगोंडी (वर्तमान में कर्नाटक) में साम्राज्य की राजधानी स्थापित की गयी जिसे बाद में विजयनगर स्थानांतरित कर दिया गया, जहां से साम्राज्य को इसका नाम प्राप्त हुआ था।
- अपनी इसी क्षमता के साथ विजयनगर साम्राज्य प्रमुख रूप से दक्षिणी भारत तक फैल गया था उसका उत्तराधिकारी हरिहर द्वितीय (बुक्का राय प्रथम का दूसरा पुत्र) था जिसने आगे चलकर अपनी साम्राज्यवादी शक्ति का पूरे दक्षिण क्षेत्र में विस्तार किया। इसके बाद साम्राज्य को देव राय प्रथम द्वारा संगठित किया गया जिसने ओड़िशा के गज पतियों को हराया और साम्राज्य की सिंचाई और दुर्ग निर्माण के प्रमुख कार्यों को क्रियान्वित किया इसके बाद देव राय द्वितीय गद्दी पर बैठा जिसे संगम राजवंश का सबसे शक्तिशाली और सफल शासक के रूप में जाना जाता है। सामंती शासन की वजह आंतरिक अस्थिरता की लड़ाई रही थी। उसने श्रीलंका द्वीप पर भी आक्रमण किया और बर्मा साम्राज्य पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।1336 ई. में स्थापित इस साम्राज्य के प्रथम वंश का नाम पिता के नाम पर संगम वंश पडा। इस साम्राज्य के चार राजवंशों ने लगभग 300 वर्षों तक शासन किया। विजयनगर साम्राज्य की राजधानियां क्रमशः: अनेगुंडी, विजयनगर, बेन गोण्डा तथा चंदगिरि। हम्पी (हस्तिनावती) विजयनगर की पुरानी राजधानी का प्रतिनिधित्व करता है। विजयनगर का वर्तमान नाम हम्पी (हस्तिनावती) है।
- विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्ण देव राय थे। विजयनगर का राजवंश उनके कार्यकाल में भव्यता के शिखर पर पहुंच गया। वे उन सभी लड़ाइयों में सफल रहे जो उन्होंने लड़ी। उन्होंने ओडिशा के राजा को पराजित किया और विजयवाड़ा तथा राजमहेन्द्री को जोड़ा।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर और बुक्का ने 1336 ईस्वी में की थी। उनके पिता का नाम संगम था जिनके नाम पर इनका वंश संगम वंश कहलाया। इस वंश का पहला राजा हरिहर प्रथम (1336 ईस्वी से 1356 ईस्वी) था। उसने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की और हम्पी को इस साम्राज्य की राजधानी के रूप में स्थापित किया।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला
भारतीय कला संस्कृति और स्थापत्य के विकास की दृष्टि से विजयनगर साम्राज्य अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।इस दौरान भारतीय कला तथा संस्कृति का बहुआयामी विकास हुआ जिसे निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
- विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने अपने दरबार में बड़े-बड़े विद्वानों एवं कवियों को जगह दी जिससे इस काल में साहित्य के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई। राजा कृष्णदेव राय एक महान विद्वान,संगीतज्ञ एवं कवि थे उन्होंने तेलुगू भाषा में ‘अमुक्तमाल्यदा’ तथा संस्कृत में ‘जामवंती कल्याणम’ नामक पुस्तक की रचना की।
- चित्रकला के क्षेत्र में ‘लेपाक्षी शैली’ तथा नाट्य क्षेत्र में ‘यक्षगान’ का विकास हुआ । लेपाक्षी कला शैली के विषय रामायण और महाभारत से संबंधित है।
- विजयनगर के शासकों ने विभिन्न धर्मों वाले लोगों को आश्रय दिया। बारबोसा ने कहा है “राजा इतनी स्वतंत्रता देता है कि…प्रत्येक व्यक्ति बिना इस पूछताछ के कि वह ईसाई है या यहूदी, मूर है या अधर्मी, अपने मत और धर्म के अनुसार रह सकता है” इससे भारत में एक समावेशी संस्कृति के निर्माण को बढ़ावा मिला।
- कृष्णदेव राय ने हजारा एवं विट्ठल स्वामी मंदिर का निर्माण करवाया जिससे विजयनगर साम्राज्य में संस्कृति के साथ-साथ कला तथा वास्तुकला की भी प्रगति हुई। यह मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। मंडप के अलावा ‘कल्याण मंडप’, ‘विशाल अलंकृत स्तंभ’ तथा एकात्मक कला से निर्मित स्तंभ एवं मूर्तियां विजयनगर स्थापत्य की विशेषता को दर्शाते हैं।
- स्थापत्य कला की दृष्टि से विजयनगर साम्राज्य किसी भी समकक्ष नगर से कम नहीं था। विजयनगर साम्राज्य की इसी सुंदरता को देखकर अब्दुल रज्जाक ने कहा था कि “नगर इस रीति से निर्मित है कि सात नगर दुर्ग और उतनी ही दीवारें एक दूसरे को काटती है, 7वा दुर्ग(जो अन्य दुर्गों के केंद्र में स्थित है) का विस्तार हिरातनगर के बाजार केंद्र से 10 गुना बड़ा है।”
- विजयनगर साम्राज्य की विरासत के तौर पर हमें संपूर्ण दक्षिण भारत में कई स्मारक मिलते हैं जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध हम्पी के स्मारक हैं।दक्षिण भारत में प्रचलित मंदिर निर्माण के अनेक शैलियाँ इसी साम्राज्य में संकलित की और विजय नगरीय स्थापत्य कला प्रदान की। यह विजयनगर स्थापत्य की उत्कृष्टता को दिखाते हैं। अतः स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति और स्थापत्य के विकास में विजयनगर साम्राज्य का अभूतपूर्व योगदान है।
विजयनगर साम्राज्य: विजयनगर साम्राज्य के शासक और शासनकाल
विजयनगर साम्राज्य: विजयनगर साम्राज्य के शासक और शासनकाल नीचे दिए गए हैं-
राजवंश | शासक/संस्थापक | शासनकाल |
संगम वंश | बुक्का व हरिहर | 1336-1485 ई |
सालुव वंश | नरसिंह सालुव | 1485- 1505 ई |
तुलुव वंश | वीर नरसिंह | 1505- 1570 ई |
अरावीडु वंश | तिरूमल्ल (तिरुमला) | 1570-1650 ई |
तो आइए अब जानते है विस्तार से इन 4 वंश के बारे में चर्चा करते हैं।
संगम वंश (1336-1485 ई)-
संगम वंश के संस्थापक हरिहर व बुक्का थे जो संगम नामक व्यक्ति के पुत्र थे। इन्होंने अपने पिता संगम के नाम पर अपने राज्य का नाम रखा-
- हरिहर(1336-1356 ई.)- हरिहर प्रथम इस वंश का प्रथम शासक था। अनेगोंडी उसकी राजधानी थी। इसने 1346 में होयसल और 1352-53 में मदुरै को जीता।
- बुक्का (1356-1377 ई)- हरिहर के बाद उसका भाई बुक्का प्रथम राजा बना। 1377 ईसवी तक मदुरई की सल्तनत का अस्तित्व खत्म हो जाने पर विजयनगर साम्राज्य का प्रचार अब सारे दक्षिण भारत रामेश्वरम तक (जिसमें तमिल व शेर प्रदेश भी था) हो गया था ।बुक्का प्रथम ने वेद मार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की।
- हरिहर द्वितीय (1377-1406 ई)- हरिहर द्वितीय ने राज व्यास की उपाधि धारण की।इसके काल में विजयनगर साम्राज्य और मुसलमानों के बीच संघर्ष हुए जिसमें बेहमनी राज्य से बेलगांव और गोवा जीत लिया।
- देवराय प्रथम (1406-1422 ई)- राज्य संभालने के तुरंत बाद उनको फिरोजशाह बहमनी के आक्रमण का सामना करना पड़ा जिसमें देवराय प्रथम की हार हुई और भविष्य में युद्ध न हो इसलिए इसे अपनी पुत्री का विवाह बहमनी सुल्तान के साथ करना पड़ा तथा दहेज के रूप में दोआब क्षेत्र में स्थित बाकापुरा भी सुल्तान को देना पड़ा। 1410 ईस्वी में तुंगभद्रा पर बांध बनवाकर अपनी राजधानी के लिए जल निकलवाया।इसी के काल में इतावली यात्री निकोलो कोंटी ने विजयनगर की यात्रा की उसने अपने वृत्तांत में यहां के सामाजिक जीवन,त्योहारों का भी वर्णन किया। इस के दरबार में हरविलास सदा तेलुगू कभी श्रीनाथ थे।
- देवराय द्वितीय (1422-1446 ई)- यह बुक्का का पुत्र था तथा इसके अभिलेख पूरे विजयनगर साम्राज्य में प्राप्त हुए। इसके अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इन्हें हाथियों के शिकार की उपाधि मिली थी। इनको इम्मडी देवराय या प्रोढ़ देवराय भी कहा जाता था। इसने अपनी सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए मुस्लिमों को भर्ती किया और उन्हे जागीर दी।
सालुव वंश (1485-1505 ई)
विजय नगर में फैली अराजकता को देखकर शक्तिशाली सामंत नरसिंह सालुव ने 1485 ईस्वी में सालुव वंश की स्थापना की। इसे प्रथम बलापहर भी कहा गया। नरसिंह द्वारा नियुक्त नरसा नायक ने चोल, पंड्या, चेरो पर आक्रमण कर इन्हें विजयनगर की प्रभुसत्ता स्वीकार करने को मजबूर किया। 1505 ई. मे नरसा नायक के पुत्र वीर नरसिंह ने शासक की हत्या कर तुलुव वंश की स्थापना की।
तुलुव वंश (1505-1570 ई)-
वीर नरसिंह के इस तरह राजगद्दी पर अधिकार करने को विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में द्वितीय बलापहार की संज्ञा दी गयी।
कृष्णदेव राय (1509-1529 ई)- वीर नरसिंह की मृत्यु के बाद कृष्ण देवराय सिंहासन पर बैठा। यह विजयनगर साम्राज्य का महान शासक था। बाबर ने अपनी आत्मकथा में इसे भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक कहा। इनके दरबार को तेलुगु के 8 महान विद्वान एवं कवियों (जिन्हें अष्टदिग्गज कहा जाता है) ने सुशोभित किया। कहा जाता है कि इस काल में तेलुगु साहित्य अपनी पराकाष्ठा तक पहुंच गया था। कृष्णदेव के दरबार में ये कवि साहित्य सभा के आठ स्तंभ माने जाते थे। कृष्णदेव राय को आंध्र भोज भी कहा जाता है।
अष्टदिग्गज और उनकी रचनाएँ
नाम | रचना |
अल्लासीन पेदन्न | मनु चरित्र, स्वारोचित, संभव, हरिकथा सार |
नंदी तिम्मन | पारिजात हरण |
भट्टमूर्ति | नरस भुपालियम |
धुर्जटि | कलहस्ति महातम्य |
माद्य्यगरी मल्लन | राजशेखर चरित्र |
अच्चलराजु रामचन्द्र रामाय्युदयम | सकल कथा सार संग्रह |
पिंगलीसूरत्र | राघव पांडेय |
तेलानी रामकृष्ण | पांडुरंग महात्म्य |
इन्होंने अनेको मंदिरो, मंडपो, तालाबों आदि का निर्माण कराया। अपनी राजधानी विजयनगर के निकट नागलापुर नामक नगर की स्थापना की। कृष्ण देवराय ने बंजर और जंगली भूमि को कृषियूग्य बनाने की कोशिश की। उसने हजारा और विठ्ठल मंदिर की स्थापना की।
अच्युत देवराय (1529-1542 ई)-
यह कृष्ण देवराय का नामजद उत्तराधिकारी था।
सदाशिव (1542-1570 ई)-
इसके काल में तालीकोटा का युद्ध( 23 जनवरी,1565) हुआ। इस युद्ध में विजयनगर साम्राज्य के खिलाफ एक महासंघ बना जिसमें अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा और बीदर शामिल थे, जबकि बरार इस संघ में शामिल नहीं हुआ। इसके शासन की वास्तविक शक्ति आरविडु वंशीय मंत्री रामराय के हाथो में थी।इसकी सेना में बहुत सारे मुस्लिमो को शामिल किया। इस युद्ध का वर्णन यूरोपीय यात्री सेवेल ने अपनी किताब विजयनगर: A Forgotten empire मे किया है।
आरविडु वंश(1570-1652 ई)-
1570 ई. में उसने तुलुव वंश के अंतिम शासक सदाशिव को करके आरविडु वंश की स्थापना की। तालीकोटा के युद्ध के बाद रामराय के भाई तिरुमाल ने वेनुगोंडा(पेनुगोंडा) को विजयनगर साम्राज्य की जगह अपनी राजधानी बनाया। 1570 ई. में तुलुव वंश के अंतिम शासक सदाशिव को सिहंसन से हटाकर अरवीडु वंश की स्थापना की।1612 ई. में राजा अदयार ने वेंकट द्वितीय की आज्ञा लेकर श्रीरंगपट्टनम की सुबेदारी को खत्म कर मैसूर राज्य की स्थापना की। श्रीरंग तृतीय विजयनगर का अंतिम शासक था। इसके साथ ही महान विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया और विजयनगर एक छोटा सा राज्य बनकर रह गया।
वेंकट द्वितीय 1586 ई: वेंकट द्वितीय गद्दी पर बैठा और उसने चन्द्रगिरि को अपना मुख्यालय बनाया।जिसे विजयनगर साम्राज्य का अंतिम महान शासक माना जा सकता है, जिसने साम्राज्य को एकजुट रखा। 1612 ई. में राजा ओडयार ने वेंकट द्वितीय अनुमति लेकर श्री रंगपट्टनम की सूबेदारी के नष्ट होने पर मैसूर राज्य की स्थापना की। वेंकट का स्पेन के फिलिप तृतीय से सीधा पत्र व्यवहार था इसी के चलते 1598 ई. में वेंकट ने ईसाई पादरियों का अपने दरबार में स्वागत किया। वेंकट द्वितीय की चित्रकला में बड़ी रुचि थी, इसे यूरोपीय चित्र बहुत पसंद थे।अरविडु वंश यद्यपि सत्रहवीं शताब्दी के मध्य तक जीवित रहा,लेकिन विजयनगर साम्राज्य के अधिकतर नायकों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी।
श्री रंग तृतीय वजयनगर का अंतिम शासक था।
विजयनगर साम्राज्य : महान शासक कृष्ण देवराय
विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्ण देव राय थे। विजयनगर का राजवंश उनके कार्यकाल में भव्यता के शिखर पर पहुंच गया। उन्होंने जो भी लड़ाइयां लडी वे उन सभी में सफल रहे। उन्होंने ओडिशा के राजा को पराजित किया और विजयवाड़ा तथा राजमहेन्द्री को जोड़ा।
कृष्ण देव राय ने पश्चिमी देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा दिया। उनके पुर्तगालियों के साथ अच्छे संबंध थे, जिनका व्यापार उन दिनों भारत के पश्चिमी तट पर व्यापारिक केंद्रों के रूप में स्थापित हो चुका था। वे न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि वे कला के पारखी और अभिगम्यता के महान संरक्षक रहे। उनके कार्यकाल में तेलगु साहित्य काफी फला फुला। उनके तथा उनके उत्तर भारतीयों द्वारा चित्रकला, शिल्पकला, नृत्य और संगीत को काफी बढ़ावा दिया गया। उन्होंने अपने व्यक्तित्व आकर्षण, दयालुता और आदर्श प्रशासन द्वारा लोगों को आसरा दिया। विजयनगर साम्राज्य का पतन 1529 में कृष्ण देव राय की मृत्यु के साथ शुरू हुआ। यह साम्राज्य 1565 में पूरी तरह समाप्त हो गया जब आदिलशाही, निजामशाही, कुतुबशाही और बरीद शाही के संयुक्त प्रयासों द्वारा तालीकोटा में रामराय को पराजित किया गया। इसके बाद यह साम्राज्य छोटे छोटे राज्यों में टूट गया।
विजयनगर साम्राज्य की विशेषता
विजयनगर साम्राज्य की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं :
- विजयनगर साम्राज्य की शासन व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी।
- राज्य के शासक को राय कहा जाता था।
- इस काल में प्राचीन राज्य की सप्तांग विचारधारा का पालन किया जाता था। राजा के चुनाव में मंत्री और नायक बड़ी भूमिका निभाते थे।
विजयनगर साम्राज्य किस नदी पर था?
विजयनगर राज्य तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। इसकी स्थापना हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336 में की थी। इन्होंने संगम राजवंश की स्थापना अपने पिता के नाम पर की। विजयनगर साम्राज्य की राजधानियाँ क्रमश: अनेगड़ी या अनेगोण्डी, जवजयनगर, पेनुगोण्डा तथा चन्द्रगिरि थी। विजय नगर का वर्तमान नाम ‘हप्पी’ (हस्तिनावती) है।
विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक पद्धति
विजयनगर-साम्राज्य में केन्द्रमुखी शासन का विकास हुआ, जिसकी सभी शाखाएँ सावधानी से संगठित थीं। इसमें सन्देह नहीं कि जैसा काम इसके शासकों ने अपने ऊपर लिया था उसके लिए उन्हें एक प्रबल सेना रखना तथा सैनिक आक्रमण भी करना पड़ा, पर उनके राज्य का वर्णन शक्ति पर आधारित मुख्यतः सैनिक राज्य के रूप में करना तथा उसे एक ऐसा संगठन, जिसमें “विकास का कोई सिद्धांत न था,……मानव-प्रगति का कोई आदर्श न था और इसलिए टिकाऊपन न आ सका, कहकर उसे कलंकित करना है, जैसा कि एक आधुनिक लेखक ने किया है, सही नहीं मालूम पड़ता। सच बात तो यह है कि साम्राज्य-विस्तार के साथ इसके शासकों ने शासन का संगठन इस कार्यक्षमता से किया कि जिससे युद्धकाल में फैली हुई अव्यवस्था का अन्त हो गया तथा विभिन्न क्षेत्रों में शान्तिपूर्ण कार्य करना सुगम हो गया।
अन्य मध्यकालीन सरकारों की तरह, विजयनगर-राज्य में राजा समस्त शक्ति का स्रोत था। वह नागरिक, सैनिक तथा न्याय-सम्बन्धी मामलों में सर्वोच्च अधिकारी था तथा प्राय: सामाजिक झगड़ों को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप भी किया करता था। पर वह अनुत्तरदायी निरंकुश शासक नहीं था, जो राज्य के हितों की अवहेलना करता और लोगों के अधिकारों एवं इच्छाओं की उपेक्षा करता। विजयनगर के राजा लोगों की सद्भावना प्राप्त करना जानते थे। अपनी उदार नीति से उन्होंने राज्य में शान्ति एवं समृद्धि लाने में सहायता दी। कृष्णदेवराय अपनी आमुक्तमाल्यदा में लिखता है कि एक मूर्धाभिषिक्त राजा को सर्वदा धर्म की दृष्टि में रखकर शासन करना चाहिए। वह आगे कहता है कि राजा को अपने पास राजकाज में कुशल लोगों को एकत्रित कर राज्य करना चाहिए, अपने राज्य में बहुमूल्य धातुएँ देने वाली खानों का पता लगाकर (उनसे) धातुओं को निकालना चाहिए, अपने लोगों से परिमित रूप में कर वसूल करना चाहिए, मैत्रीपूर्ण होना चाहिए, अपनी प्रत्येक प्रजा की रक्षा करनी चाहिए, उनमें जाति-मिश्रण का अन्तर कर देना चाहिए, सर्वदा ब्राह्मणों का गुणवद्धन करने का प्रयत्न करना चाहिए, अपने दुर्ग को प्रबल बनाना चाहिए और अवांछनीय वस्तुओं की वृद्धि को कम करना चाहिए तथा अपने नगरों को शुद्ध रखने के लिए सदैव सतर्क रहना चाहिए।
विजयनगर साम्राज्य के मंदिर
विजयनगर साम्राज्य की वास्तुकला चालुक्य, होयसल, पंड्या और चोल शैलियों का एक जीवंत समामेलन है। कारीगरों ने स्थानीय रूप से सुलभ कठोर ग्रेनाइट का उपयोग किया।साम्राज्य के स्मारक दक्षिण भारत में स्थित हैं। 14 वीं शताब्दी में राजाओं ने दक्कन शैली के स्मारकों के निर्माण को जारी रखा, लेकिन बाद में अपनी कर्मकांड संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए द्रविड़ शैली के गोपुरम को शामिल किया। बुक्का राय का प्रसन्ना विरुपाक्ष मंदिर (भूमिगत मंदिर) और देवा राय प्रथम का हजारे राम मंदिर दक्खन की वास्तुकला के उदाहरण हैं। स्तंभों के विविध और जटिल अलंकरण उनके कार्य का एक निशान है। हम्पी में विठ्ठल तीर्थ स्तम्भयुक्त कल्याणमापा शैली का सबसे अच्छा चित्रण है। उनकी शैली का एक दृश्य पहलू चालुक्य वंश द्वारा विकसित सरलीकृत और शांत कला की वापसी है। विजयनगर कला का एक शानदार उदाहरण विठ्ठल मंदिर है।
आंध्र प्रदेश के भटकल, कनकगिरी, श्रृंगेरी और तटीय कर्नाटक के अन्य शहरों में भी, ताड़पत्री, लेपाक्षी, अहोबिलाम, तिरुपति और श्रीकालहस्ती और तमिलनाडु के वेल्लोर, कुंभकोणम, कांची और श्रीरंगम इस शैली के उदाहरण हैं। विजयनगर कला में दशावतार (विष्णु के दस अवतार) और गिरिजकल्याण (देवी पार्वती का विवाह) हम्पी में विरुपाक्ष मंदिर, शिवरात्रि चित्रों (शिव की लीपाकृति), विप्रभद्र मंदिर में लेपाक्षी में, और उन लोगों के चित्र शामिल हैं। कांची में जैन बसदी (मंदिर) और कामकुशी और वरदराज मंदिर भी भव्य हैं। विजयनगर वास्तुकला की एक विशेषता, महान अभिसरण की बहु-जातीयता को प्रदर्शित करती है। विजयनगर साम्राज्य और दक्कन सल्तनत के बीच चल रहे संघर्ष पर केंद्रित राजनीतिक इतिहास, वास्तुकला रिकॉर्ड एक अधिक रचनात्मक बातचीत को दर्शाता है। कई मेहराब, गुंबद हैं जो इन प्रभावों को दिखाते हैं। मंडप, अस्तबल और टॉवर जैसी संरचनाओं की एकाग्रता से पता चलता है कि वे राजपरिवारों के उपयोग के लिए थे। हिंदू और मुस्लिम साम्राज्यों के बीच शांति के दुर्लभ समय के दौरान वास्तुकला संबंधी विचारों का यह सामंजस्यपूर्ण व्यवहार हुआ होगा।
विजयनगर साम्राज्य के पतन के कारण
15 वीं शताब्दी के आसपास विजयनगर साम्राज्य में गिरावट कृष्ण देवराय की मृत्यु के बाद दर्ज की गयी।कृष्णदेव राय के शासन में विजयनगर साम्राज्य अपने शिखर पर पहुंच गया था और उसने दक्षिण में अपने सभी अधीनस्थों पर सफल नियंत्रण बनाए रखा था। अपने शासन के दौरान उसने कई स्थापत्य स्मारकों के निर्माण निर्दिष्ट कर कई निर्माण कार्य पूरे भी किये थे।
विजयनगर साम्राज्य वीर राजाओं के कारण उन्नति, प्रतिष्ठा और विजयों में सर्वश्रेष्ठ रहा परन्तु राजा कृष्णदेव राय के बाद इस साम्राज्य में अनेक दोष आने लगे, जिनसे इसका पतन हुआ। विजयनगर साम्राज्य के पतन के कारण इस प्रकार है–
1. अयोग्य शासक: कृष्णदेव राय के बाद के राजा उतने योग्य नहीं थे अतः वे आक्रमणों का सामना नहीं कर सके।
2. युद्ध नीति और संचालन में गिरावट: कृष्ण देवराय के बाद सैनिक शक्ति, संगठन और कुशलता नहीं रही जिसके कारण विजयनगर साम्राज्य पराजित हो गया।
3. विजयनगर का वैभव: विजयनगर साम्राज्य के वैभव से बहमनी राज्य जलता था तथा उसे लूटने के लिए हमेशा आक्रमण करता रहता था।
4. वंश परिवर्तन: साम्राज्य में जल्दी-जल्दी वंश परिवर्तन होने से प्रशासन की नीतियों और कार्यों में भी परिवर्तन हुये, जो स्थायित्व के लिये हानिकारक थे।
5. निरंकुश शासक: विजयनगर साम्राज्य के अधिकांश शासक निरंकुश होने के कारण जनता मे लोकप्रिय नहीं हो पाए।
6. गोलकुंडा तथा बीजापुर के विरुद्ध सैनिक अभियान: इस अभियान से दक्षिण की मुस्लिम रियासतों ने एक संघ बना लिया। इस कारण से विजयनगर साम्राज्य की सैनिक शक्ति कमजोर हो गयी थी।
7. पड़ोसी राज्यों से शत्रुता: पड़ोसी राज्यों से शत्रुता होने के कारण विजयनगर साम्राज्य का हमेशा अपने पड़ोसी राज्यों से संघर्ष होता रहता था।
8.मुस्लिम संघ से युद्ध: बहमनी राज्य जब विजयनगर साम्राज्य को पराजित नहीं कर सका तो अन्य मुस्लिम राजाओं के साथ समुदाय बनाकर आक्रमण किया और सन् 1546 में तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर साम्राज्य को नष्ट कर दिया।
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Bahut achha laga aapka blog padh ker
1 comment
Bahut achha laga aapka blog padh ker