जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार एवं निबंधकार हैं। इसके साथ ही वह हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने अपनी अनुपम कृतियों के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। प्रसाद जी की प्रमुख रचनाएँ हैं – स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी (नाटक); कंकाल, तितली, इरावती-अपूर्ण (उपन्यास), आंधी, छाया, इंद्रजाल, प्रतिध्वनि और आकाशदीप (कहानी-संग्रह), काव्य और कला तथा अन्य निबंध (निबंध संग्रह) व झरना, लहर, कामायनी, कानन कुसुम, आंसू और प्रेमपथिक (कविताएं)। इस लेख में जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | जयशंकर प्रसाद |
| जन्म | 30 जनवरी, 1889 |
| जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
| शिक्षा | आठवीं कक्षा |
| कार्यक्षेत्र | उपन्यासकार, नाटककार, कवि व निबंधकार |
| विधाएँ | कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी तथा निबंध |
| भाषा | हिंदी |
| साहित्यकाल | आधुनिक काल (छायावादी युग) |
| पिता का नाम | बाबू देवकी प्रसाद |
| माता का नाम | मुन्नी देवी |
| पत्नी का नाम | कमला देवी |
| संतान | रत्नशंकर प्रसाद |
| स्मृति | महाकवि जयशंकर प्रसाद फ़ाउंडेशन |
| मृत्यु | 15 नवंबर, 1937 वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
| जीवनकाल | 48 वर्ष |
This Blog Includes:
- वाराणसी में हुआ था जन्म
- आठवीं कक्षा के बाद स्वाध्याय किया अध्ययन
- जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय
- जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं
- जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कहानियों के नाम
- जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई कविताएं
- जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विशेषताएं
- जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली
- जयशंकर प्रसाद के लेखन का दूरगामी प्रभाव
- FAQs
वाराणसी में हुआ था जन्म
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी, 1889 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में प्रसिद्ध और समृद्ध सुँघनी साहू परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम बाबू देवकी प्रसाद और माता का नाम मुन्नी देवी था। शिवरत्न साहु इनके पितामह थे। प्रसाद जी के ज्येष्ठ भाई का नाम शम्भुरत्न था। वहीं प्रसाद जी अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे होने के कारण सभी के प्रिय थे।
आठवीं कक्षा के बाद स्वाध्याय किया अध्ययन
जयशंकर प्रसाद की आरंभिक शिक्षा घर पर हुई थी। इसके बाद वे अल्प समय के लिए वाराणसी के प्रतिष्ठित क्वींस कॉलेज में पढ़ने के लिए गए। किंतु पारिवारिक स्थितियां अनुकूल न होने के कारण आठवीं के आगे औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए। लेकिन स्वाध्याय द्वारा उन्होंने संस्कृत, पाली, अंग्रेजी, उर्दू और अन्य भाषाओं तथा साहित्य का गहन अध्ययन किया। इसके साथ ही वेद, उपनिषद, इतिहास, धर्मशास्त्र और पुराण का अध्ययन करते हुए उन्होंने संस्कृत और हिंदी भाषा पर अपना अधिकार बनाया। बताया जाता है कि घर में साहित्यिक माहौल होने के कारण उन्होंने मात्र 9 वर्ष की उम्र में ‘कलाधर’ उपनाम से अपने गुरु को ‘रसमय सिद्ध’ सवैया लिखकर दिया था।
जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय
बाल्यावस्था से ही प्रसाद जी का प्रेम और रुझान हिंदी साहित्य की ओर दिखता है। पहले उनके बड़े भाई शंभू रत्न चाहते थे कि ये अपने पैतृक व्यवसाय को संभाले लेकिन काव्य रचना की तरफ उनका प्रेम देखते हुए उन्होंने प्रसाद जी को पूरी छूट दे दी। अपने बड़े भाई की सहमति और आशीर्वाद पाकर वे पूर्ण तन्मयता से हिंदी साहित्य लेखन और काव्य रचना में लग गए।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं
जयशंकर प्रसाद एक कवि होने के साथ-साथ सफल गद्यकार भी थे। प्रसाद जी ने हिंदी साहित्य के छायावादी युग में नाटक, कहानी, उपन्यास, कविता और निबंध आदि विधाओं में अपनी लेखनी चलाकर सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का सृजन किया हैं। प्रसाद जी द्वारा रचित ‘कामायनी’ (1936) आधुनिक हिंदी साहित्य की श्रेष्ठतम काव्य कृति मानी जाती है। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-
काव्य रचनाएँ
| रचना काल | काव्य रचना |
| 1914 | प्रेमपथिक |
| 1927 | झरना |
| 1928 | करुणालय |
| 1928 | महाराणा का महत्त्व |
| 1928 | चित्राधार |
| 1929 | कानन कुसुम |
| 1933 | आँसू |
| 1935 | लहर |
| 1936 | कामायनी |
उपन्यास
- कंकाल
- तितली
- इरावती (अपूर्ण)
नाटक
- सज्जन
- कल्याणी-परिणय
- प्रायश्चित्त
- राज्यश्री
- विशाख
- अज्ञातशत्रु
- जनमेजय का नागयज्ञ
- कामना
- स्कंदगुप्त
- एक घूँट
- चंद्रगुप्त
- ध्रुवस्वामिनी।
कहानी-संग्रह
- छाया
- प्रतिध्वनि
- आकाशदीप
- आंधी
- इंद्रजाल।
निबंध
- काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
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जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कहानियों के नाम
जयशंकर प्रसाद जी ने कई सर्वश्रेष्ठ कहानियां लिखीं हैं। आकाशदीप, पाप की पराजय, इंद्रजाल, करुणा की विजय और हिमालय का पथिक उनकी प्रमुख कहानियां हैं। नीचे उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियों के नाम दिए गए है:-
| अघोरी का मोह | ग्राम | ग्राम गीत |
| कला | पुरस्कार | गुलाम |
| बेड़ी | प्रसाद | चूड़ीवाला |
| करुणा की विजय | आकाशदीप | गुंडा |
| इंद्रजाल | भिखारिन | चंदा |
| रमला | पाप की पराजय | प्रलय |
| अपराधी | जहाँआरा | देवदासी |
| रसिया बालम | प्रतिध्वनि | नूरी |
| वैरागी | प्रतिमा | बिसाती |
| व्रत-भंग | हिमालय का पथिक | पत्थर की पुकार |
| रूप की छाया | ममता | बिसाती |
| सिकंदर की शपथ | स्वर्ग के खंडहर में | पंचायत |
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई कविताएं
जयशंकर प्रसाद की कुछ प्रसिद्ध कविताएँ नीचे दी गई हैं:-
- पेशोला की प्रतिध्वनि
- शेरसिंह का शस्त्र समर्पण
- अंतरिक्ष में अभी सो रही है
- मधुर माधवी संध्या में
- ओ री मानस की गहराई
- निधरक तूने ठुकराया तब
- अरे!आ गई है भूली-सी
- शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा
- अरे कहीं देखा है तुमने
- काली आँखों का अंधकार
- चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर
- जगती की मंगलमयी उषा बन
- अपलक जगती हो एक रात
- वसुधा के अंचल पर
- जग की सजल कालिमा रजनी
- मेरी आँखों की पुतली में
- कितने दिन जीवन जल-निधि में
- कोमल कुसुमों की मधुर रात
- अब जागो जीवन के प्रभात
- तुम्हारी आँखों का बचपन
- आह रे,वह अधीर यौवन
- आँखों से अलख जगाने को
- उस दिन जब जीवन के पथ में
- हे सागर संगम अरुण नील
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जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विशेषताएं
बचपन से ही जयशंकर प्रसाद जी की रुचि साहित्य की ओर थी। उन्होंने ‘इंदु’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया, जिससे उन्हें साहित्य-जगत में पहचान मिली। प्रेम, समर्पण, कर्तव्य एवं बलिदान की भावना से ओत-प्रोत उनकी कहानियाँ पाठकों को अभिभूत कर देती हैं। वे हिंदी साहित्य को अपनी साधना मानते थे।
महाकवि जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य में योगदान देने वाले सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में से एक थे। उन्होंने अपनी कहानियों, नाटकों और कविताओं के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। राजनीतिक संघर्ष और संकट की स्थिति में राजपुरुष का व्यवहार उन्होंने गहराई से समझा और उसे साहित्य में प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया। आधुनिक हिंदी उपन्यास के क्षेत्र में उन्होंने यथार्थवाद और आदर्शवाद के मेल से एक नई दिशा प्रदान की।
जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली
प्रसाद जी ने अपने काव्य लेखन की शुरुआत ब्रजभाषा से की थी। लेकिन धीरे-धीरे वे खड़ी बोली की तरफ उन्मुख हुए और उन्हें यह भाषा शैली पसंद आने लगी। इनकी रचनाओं में मुख्य रूप से भावनात्मक , विचारात्मक , इतिवृत्तात्मक और चित्रात्मक भाषा शैली का प्रयोग देखने को मिलता है। इनकी शैली अत्यंत मीठी और सरल भाषा में थी जिनको कोई भी आसानी से पढ़ और समझ सकता था।
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जयशंकर प्रसाद के लेखन का दूरगामी प्रभाव
हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना का प्रमुख श्रेय जयशंकर प्रसाद को दिया जाता है। उनके द्वारा रचित खड़ी बोली के काव्य में न केवल कोमल माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म और व्यापक आयामों का भी प्रभावशाली चित्रण हुआ। उनकी प्रसिद्ध काव्यकृति ‘कामायनी’ तक पहुँचते-पहुँचते यह धारा एक प्रेरणादायी और दार्शनिक काव्य के रूप में प्रतिष्ठित हो गई।
प्रसाद जी की लेखनी को उनके बाद के प्रगतिशील और नई कविता के आलोचकों ने भी अत्यंत सराहा है। यही कारण है कि खड़ी बोली हिंदी काव्य की एक प्रमुख और व्यापक रूप से स्वीकृत भाषा बन गई।
FAQs
जयशंकर प्रसाद की मुख्य भाषा खड़ी बोली हिंदी हैं।
उनका जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी में एक व्यवसायी परिवार में हुआ था।
उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना ‘कामायनी’ है।
प्रसाद जी के पिता का नाम ‘बाबू देवकी प्रसाद’ था।
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