First World War : कब और क्यों शुरु हुआ था प्रथम विश्व युद्ध? जानें इसके कारण और परिणाम

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प्रथम विश्व युद्ध, इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जिसने पूरी दुनिया को झकझोर दिया था। 1914 से 1918 तक चले इस महायुद्ध ने न केवल यूरोप बल्कि अन्य महाद्वीपों को भी प्रभावित किया। यह युद्ध न केवल राजनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण को बल्कि सामाजिक और आर्थिक ढांचे को भी बुरी तरह प्रभावित किया। First World War in HIndi के इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि कैसे इस युद्ध की शुरुआत हुई, इसके प्रमुख कारण क्या थे, और इसके परिणामस्वरूप विश्व में क्या-क्या बदलाव आए।

पहला विश्व युद्ध कब शुरू हुआ था?

प्रथम विश्व युद्ध (First World War in HIndi) , जिसे ‘महायुद्ध’ या ‘ग्रेट वार’ भी कहा जाता है, एक ऐसी घटना थी जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। यह युद्ध 28 जुलाई, 1914 को शुरू हुआ यह युद्ध चार साल तक चला और लाखों लोगों की जान ले ली।उस समय लोगों का यह मानना था कि यह युद्ध इतना विनाशकारी था कि इसके बाद कोई युद्ध नहीं होगा। इसलिए इसे ‘वॉर टू एंड आल वार्स’ भी कहा गया। लेकिन इतिहास ने कुछ और ही लिखा। महज 20 साल बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया, जो प्रथम विश्व युद्ध से भी अधिक विनाशकारी साबित हुआ।

पहला विश्व युद्ध : दो शक्तियों के बीच का युद्ध

प्रथम विश्व युद्ध उस समय की दो प्रमुख शक्तियों के बीच एक विशाल संघर्ष था। इस युद्ध में एक ओर ‘अलाइड शक्ति’ थी, जिसमें रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, और जापान जैसे देश शामिल थे। अमेरिका ने इस युद्ध में 1917-18 के दौरान प्रवेश किया। दूसरी ओर, ‘सेंट्रल शक्ति’ के अंतर्गत केवल तीन देश थे: ऑस्ट्रो-हंगरी, जर्मनी, और ओटोमन साम्राज्य। उस समय ऑस्ट्रो-हंगरी पर हब्सबर्ग वंश का शासन था, जबकि ओटोमन साम्राज्य वर्तमान तुर्की क्षेत्र में स्थित था। इस संघर्ष ने न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी विश्व को गहराई से प्रभावित किया, और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक परिदृश्य में कई महत्वपूर्ण बदलाव आए।

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युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे?

इस खतरनाक विश्व युद्ध में युद्ध का कोई एक कारण नहीं हो सकता था। इसमें कई कारण थे, जिन्होंने दुनिया को देखने और समझने का तरीका पूरी तरह से बदल दिया था। तो आइए, जानते हैं First World War in Hindi के युद्ध के कारण-

सैन्यवाद

हर देश ने खुद को आधुनिक हथियारों से लैस करने का प्रयास किया। सभी देशों ने उस समय आविष्कार होने वाले मशीन गन, टैंक, बन्दुक, 3 बड़े जहाज़, बड़ी आर्मी का कांसेप्ट आदि लाया गया। इन सभी चीज़ों में ब्रिटेन और जर्मनी दोनों काफ़ी आगे थे। इनके आगे होने की वजह इन देशों में औद्योगिक क्रांति का बढ़ना था। औद्योगिक क्रांति से यह देश बहुत अधिक विकसित हुए और अपनी सैन्य क्षमता को बढाया। इन दोनों देशों ने अपने इंडस्ट्रियल कोम्प्लेक्सेस का इस्तेमाल अपनी सैन्य क्षमता को बढाने के लिए किया, जैसे बड़ी बड़ी विभिन्न कम्पनियों में मशीन गन का, टैंक आदि के निर्माण कार्य चलने लगे। यहीं से ही मॉडर्न आर्मी का कांसेप्ट शुरू हुआ था।

विभिन्न संधियां यानि गठबंधन प्रणाली

यूरोप में 19वीं शताब्दी के दौरान शक्ति में संतुलन स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों ने अलायन्स अथवा संधियां बनानी शुरू की। इस समय कई तरह की संधियां गुप्त रूप से होती थी। तो आइए, बताते हैं आपको पथम विश्व युद्ध (First World War in Hindi) में हुई इन संधियों के बारे में – 

  • साल 1882 का ट्रिपल अलायन्स : 1882 में जर्मनी ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली के बीच संधि हुई थी।
  • साल 1907 का ट्रिपल इंटेंट : 1907 में फ्रांस, ब्रिटेन और रूस के बीच ट्रिपल इंटेंट हुआ। साल 1904 में ब्रिटेन और रूस के बीच कोर्दिअल इंटेंट नामक संधि हुई। इसके साथ रूस जुड़ने के बाद ट्रिपल इंटेंट के नाम से जाना गया।

साम्राज्यवाद

उस समय पश्चिमी यूरोपीय देश चाहते थे कि उनके कॉलोनिस या विस्तार अफ्रीका और एशिया में भी फैले। इस घटना को ‘स्क्रेम्बल ऑफ़ अफ्रीका’ यानि अफ्रीका की दौड़ भी कहा गया, मतलब था कि अफ्रिका अपने जितने अधिक क्षेत्र बचा सकता है बचा ले, क्योंकि उस समय अफ्रीका का क्षेत्र बहुत बड़ा था। यह समय 1880 के बाद का था जब सभी बड़े देश अफ्रीका पर क़ब्ज़ा कर रहे थे। इन देशों में फ्रांस, जर्मनी, होलैंड बेल्जियम आदि थे। इन सभी देशों का नेतृत्व ब्रिटेन कर रहा था। ब्रिटेन का उस समय काफी देशों पर कब्ज़ा था और वह काफ़ी सफ़ल देश था। पूरी दुनिया के 25% हिस्से पर ब्रिटिश शासन का राजस्व था। इस 25% क्षेत्र की वजह से इनके पास बहुत अधिक संसाधन आ गए थे। इसकी वजह से इनकी सैन्य क्षमता में भी खूब वृद्धि हुई।

राष्ट्रवाद

उन्नीसवीं शताब्दी मे देशभक्ति की भावना ने पूरे यूरोप को अपने पाले में लिया था। जर्मनी, इटली, अन्य बोल्टिक देश आदि जगह पर राष्ट्रवाद पूरी तरह से फ़ैल चुका था। इसी वजह से यह युद्ध ‘ग्लोरी ऑफ़ वार’ कहलाया था। इन देशों को लगने लगा कि कोई भी देश लड़ाई लड़ के और जीत के ही महान बन सकता है। इस तरह से देश की महानता को उसके क्षेत्रफल से जोड़ के देखा जाने लगा।

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युद्ध के चरण

प्रथम विश्व युद्ध में युद्ध के चरण दिए गए हैं-

  • यूरोप, अफ्रीका और एशिया में कई मोर्चों पर संघर्ष शुरू हुआ। पश्चिमी मोर्चों में जर्मनों ने ब्रिटेन, फ्रांस और वर्ष 1917 के बाद अमेरिकियों के साथ संघर्ष किया। पूर्वी मोर्चा में रूसियों ने जर्मनी और ऑस्ट्रो-हंगेरियन सेनाओं के खिलाफ युद्ध लड़ा।
  • वर्ष 1914 में थोड़े समय के लिए जर्मनी को युद्ध में बढ़त हासिल हुई, उसके बाद पश्चिमी मोर्चा स्थिर हो गया और एक लंबा तथा क्रूर युद्ध शुरू हो गया। इस बीच पूर्वी मोर्चे पर जर्मनी की स्थिति मज़बूत हो गई लेकिन निर्णायक रूप से ऐसा नहीं हुआ।
  • वर्ष 1917 में दो घटनाएँ घटित हुईं जिन्होंने संपूर्ण युद्ध का रुख ही बदल दिया। अमेरिका मित्र राष्ट्रों के बेड़े में शामिल हो गया, वहीं दूसरी ओर रूसी क्रांति के बाद रूस युद्ध से बाहर हो गया और उसने एक अलग शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।

भारत की भूमिका

इस युद्ध में लगभग 13 लाख भारतीय ब्रिटिश आर्मी की तरफ़ से लड़ रहे थे। यह भारतीय सैनिक फ्रांस, इराक, ईजिप्ट आदि जगहों पर लड़े, जिसमें लगभग 50,000 सैनिकों को शहादत मिली। तीसरे एंग्लो अफ़ग़ान वार और प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में इंडिया गेट का निर्माण किया गया। एक भारतीय पैदल सैनिक का मासिक वेतन उस समय महज़ 11 रुपए था, युद्ध में भाग लेने से यह आय बढ़ा दी गई थी।

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युद्ध समाप्ति और परिणाम

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति और परिणाम बहुत ही भयावह रहे थे। 1918 में जर्मन आक्रमण के बाद मित्र देशों के पलटवार ने जर्मन सेना को निर्णायक वापसी हेतु मजबूर कर दिया। अक्तूबर-नवंबर 1918 में क्रमशः तुर्की और ऑस्ट्रिया ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे जर्मनी अकेला पड़ गया। बाद में जर्मनी की हार हुई और वहां सत्ता भी बदली, नई सत्ता के आने से जर्मनी ने युद्धविराम के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए और यह प्रथम विश्वयुद्ध 11 नवंबर 1918 को जाकर खत्म हुआ। इस विश्वयुद्ध में एक करोड़ दस लाख सिपाही और लगभग 60 लाख आम नागरिक मारे गए। इसमें मरने वालों की संख्या एक करोड़ सत्तर लाख थी वहीं 2 करोड़ घायल हुए थे। इस युद्ध ने पूरी दुनिया को आर्थिक मंदी में भी ला दिया था। इस युद्ध के बाद अमेरिका एक विश्व शक्ति बन के उभरा था।

विश्वयुद्ध के बाद संधियां

प्रथम विश्व युद्ध के बाद भाईचारा और शांति बनी रहे इसलिए कुछ शांति समझौते हुए थे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद निम्नलिखित संधियां हुई थी-

  • पेरिस शांति सम्मेलन: विश्व युद्ध में जर्मनी एवं उसके सहयोगी देश ऑस्ट्रिया, तुर्की, हंगरी आदि की हार हुई तथा इस युद्ध का अंत पेरिस शांति सम्मेलन के साथ हुआ जिसमें पराजित राष्ट्रों के साथ समझौते के रूप में पांच संधियां की गई।
  • वर्साय की संधि: सभी संधियों में सबसे महत्वपूर्ण थी वर्साय की संधि, जिसे ब्रिटेन ने जर्मनी के साथ किया। इसकी सभी शर्तों को जर्मनी के लिए स्वीकार करना अनिवार्य कर दिया।

FAQs

प्रथम विश्व युद्ध में कितने देश शामिल थे?

पहले विश्व युद्ध में 30 ज्यादा देश शामिल हुए थे, जिसमें सर्बिया, ब्रिटेन, जापान, रूस, फ्रांस, इटली और अमेरिका समेत करीब 17 मित्र देश थे। दूसरी ओर जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, बुल्गारिया और ओटोमन जैसे राज्य थे। युद्ध यूरोप, अफ्रीका, एशिया और उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में लड़ा गया।

प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ था?

प्रथम विश्व युद्ध के लिए यूं तो 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड की हत्या को प्रमुख और तात्कालिक कारण माना जाता है, लेकिन इतने बड़े युद्ध के लिए सिर्फ यही वजह नहीं थी बल्कि इसके कई और घटनाक्रम थे, जो विश्व युद्ध के लिए जिम्मेदार थे।

प्रथम विश्व युद्ध में किसकी हार हुई?

प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई। इसके बाद विजयी मित्र राष्ट्र जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, अमेरिका और जापान आदि देश शामिल थे, उन्होंने जर्मनी को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत का वायसराय कौन था?

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत का वायसराय लॉर्ड हार्डिंग-द्वितीय (1910-1916) थे।

आशा करते हैं कि आपको First World War in Hindi के बारे में पूर्ण जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए बने रहिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ।

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