चुआड़ आंदोलन: जानिए अंग्रजों के खिलाफ आदिवासियों द्वारा छेड़े गए इस महान आंदोलन के बारे में 

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चुआड़ आंदोलन

सन 1766 में बंगाल के जंगलमहल स्थान के आदिवासी जमींदारों, सरदारों और किसानों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जल जंगल जमीन की रक्षा करने के लिए और अंग्रेजों के शोषण और दमनकारी नीतियों के खिलाफ जो आंदोलन किया उसे ‘चुआड़ आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। यह आंदोलन सन 1834 तक चला था। यहाँ आपको चुआड़ आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।

चुआड़ आंदोलन के बारे में 

चुआड़ अथवा चुहाड़ का शाब्दिक अर्थ ‘लुटेरा’ अथवा ‘उत्पाती’ होता है। ब्रिटिश शासन काल में जंगल महल क्षेत्र के भूमिजों को चुआड़ (नीची जाति के लोग) कहा जाता था, उनका मुख्य पेशा पशु-पक्षियों का शिकार और जंगलों में खेती करना था लेकिन बाद में उन्हीं में कुछ भूमिज जमींदार बन गए और कुछ सरदार घटवाल और पाईक (सिपाही) के रूप में कार्यरत हुए। जब 1765 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा तत्कालीन बंगाल के छोटानागपुर के ‘जंगलमहल जिला’ में सर्वप्रथम मालगुजारी वसूलना शुरू किया गया। 

तब अंग्रेजों के इस षडयंत्रकारी तरीके से जल, जंगल, जमीन हड़पने की गतिविधियों का सन् 1766 ई. में भूमिज जनजाति के लोगों द्वारा पहला विरोध किया गया और ब्रिटिश शासकों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका गया। जब अंग्रेजों ने पूछा, ये लोग कौन हैं, तो उनके पिट्ठू जमींदारों ने घृणा और अवमानना की दृष्टि से उन्हें ‘चुआड़’ (बंगाली में अर्थ-असभ्य या दुष्ट) कहकर संबोधित किया, तत्पश्चात उस विद्रोह का नाम ‘चुआड़ विद्रोह’ पड़ा।

इलाहाबाद की संधि (1765) में दिल्ली के मुग़ल ‘बादशाह शाह आलम द्वितीय’ ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दी ‘जंगलमहल’ के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र मराठा आक्रमण के बाद से ही काफ़ी कमजोर रूप से शासित था और स्थानीय जमींदार, जिन्हें ‘राजा’ कहा जाता था, कर वसूल कर वर्ष में एक बार केन्द्रीय सत्ता को भेजते थे। 

ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा दीवानी अधिकार प्राप्त करने के बाद स्थानीय जमींदारों को बेदखल कर नए जमींदारों को नियुक्त किया, जिनमे से कुछ ने अंग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार कर ली तथा कुछ ने उनका विद्रोह किया। सर्वप्रथम विद्रोह करने वालों में धालभूम और बड़ाभूम परगना के जमींदार और सरदार थे। 

जंगलमहल में अपनी पकड़ बनाने की बाद से ही ब्रिटिश सत्ता की नीति अधिकतम कर वसूली की रही। इस उद्देश्य में स्थानीय व्यवस्था को बाधक मानकर नयी प्रणालियाँ और नियामक (रेगुलेशन) लगाये जाने शुरू हुए और सन 1765 के बाद एक बिलकुल नए किस्म के कर युग का आरंभ हुआ जिससे स्थानीय व्यवस्था, स्थानीय लोग और जमींदार भी बर्बाद होने लगे।

इस प्रकार स्थानीय चुआड़ (या भूमिज), जो पाईक थे, उन लोगों की जमीनों पर से उनके प्राकृतिक अधिकार समाप्त किये जाने से उनमें असंतोष व्याप्त था और जब उन्होंने विद्रोह किया तो उन्हें बेदखल किये गए जमींदारों का नेतृत्व भी प्राप्त हो गया।

चुआड़ आंदोलन के प्रमुख कारण 

चुआड़ आंदोलन के कारण निम्नलिखित थे:- 

  • अंग्रेज अफसर जंगल महल के किसानों को चुआड़ (छोटी जाति) का कहकर बुलाते थे। इससे चुआड़ लोग अपमानित महसूस करते थे। धीरे-धीरे अपमान की भावना ने बदले का रूप ले लिया। यह भी विद्रोह का एक प्रमुख कारण था।  
  • अंग्रेज शासकों ने कब्जा जमाते ही चुआरों की पुश्तैनी जमीनें छीन-छीन कर नए जमींदारों के हाथ बेचना और इन जमींदारों के साथ मिलकर नई प्रजा बसाना शुरू किया। साथ ही पाइकों को हटाकर बाहर से ला-लाकर पुलिस को उनकी जगह नियुक्त किया। इससे हजारों पाइक जमीन, घर-द्वार, जीविका का साधन-सब कुछ खोकर दर-दर की ठोकरें खाने लगे। इन बातों से परेशान होकर चुआड़ लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया।  
  • अंग्रेजों का शोषण और दमनकारी नीतियां एवं अंग्रेजों के द्वारा किसानों की ज़मीने छीन लिया जाना इस आंदोलन के मुख्य कारणों में से एक था।  

चुआड़ आंदोलन से जुड़े मुख्य तथ्य 

चुआड़ आंदोलन से जुड़े मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं:- 

  • चुआड़ आंदोलन अकाल, लगान में बढ़ोतरी, जमीन की नीलामी और दूसरे आर्थिक मामलों के कारण शुरू किया गया था। 
  • इस आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक रघुनाथ महतो ने ‘अपना गांव अपना राज, दूर भगाओ विदेशी राज।’ नारा दिया था जो कि इस आंदोलन का प्रमुख नारा था।  
  • सन 1798 के अप्रैल महीने में वीरभूम के जंगलमहल के ही घाटशिला, बिंदू मंडलकुंडा, पुरुग्राम आदि के चुआड़ों एवं मिदनापुर के चुआड़ों ने अंग्रेजों के द्वारा जमीन पर लगान बढ़ाए जाने खिलाफ पनपे आर्थिक असंतोष के चलते विद्रोह कर दिया था।
  • आगे चलकर इस विद्रोह में बांकुड़ा और ओडिशा के चुआड़ एवं पाइक शामिल हो गये। इतने विशाल स्तर पर आंदोलन को होता देख अंग्रेजों के पांव उखड गए। वे इस विद्रोह को दबाने में असमर्थ रहे। अंतत: अंग्रेजों को मजबूरी में चुआड़ एवं पाइक सरदारों को उनसे छीनी गयी जमीनें एवं सारी सुविधाएं वापस करनी पड़ीं।

चुआड़ आंदोलन से जुड़े मुख्य नेता 

चुआड़ आंदोलन से जुड़े मुख्य नेताओं के नाम इस प्रकार हैं:-

  • जगन्‍नाथ सिंह पातर
  • दुर्जन सिंह
  • गंगा नारायण सिंह
  • सुबल सिंह
  • श्याम गुंजम सिंह
  • जगन्नाथ धल
  • लक्ष्मण सिंह
  • रानी शिरोमण
  • माधव सिंह
  • बैद्यनाथ सिंह
  • रघुनाथ सिंह
  • रघुनाथ महतो  मंगल सिंह
  • लाल सिंह, राजा मोहन सिंह
  • राजा मधु सिंह
  • लक्ष्मण सिंह
  • सुंदर नारायण सिंह
  • फतेह सिंह
  • मनोहर सिंह 
  • अचल सिंह 

FAQs 

चुआड़ विद्रोह का प्रमुख नेता कौन था?

इतिहास में रघुनाथ महतो के नेतृत्व में लड़ी गई इस लड़ाई को चुआड़ विद्रोह के नाम से जाना जाता है।

भूमिज विद्रोह का नेता कौन है?

चुआड़ विद्रोह के बाद गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में 1831-33 में भूमिजों का एक संगठित विद्रोह हुआ। यह भारतीय इतिहास का पहला संगठित विद्रोह था।

चुअर का अर्थ क्या है?

“चुआर” शब्द का प्रयोग बंगाल में स्थानीय आदिवासियों के लिए किया जाता था और यह एक अपमानजनक शब्द था (जिसका अर्थ सुअर था)।

चुआड़ विद्रोह का प्रमुख नारा कौन सा था?

चुआड़ विद्रोह में रघुनाथ महतो ने ‘अपना गांव अपना राज, दूर भगाओ विदेशी राज।’ नारा दिया था जो कि इस आंदोलन का प्रमुख नारा था।  

चुआड़ विद्रोह किस वर्ष शुरू हुआ था?

सन 1766 में चुआड़ विद्रोह की शुरुआत हुई थी। 

आशा है इस ब्लॉग से आपको चुआड़ आंदोलन और इससे जुड़ी सभी अहम घटनाओं के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी। भारत के इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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