समाज में समय-समय पर ऐसे दर्शनार्थियों ने भारत की पुण्यभूमि पर जन्म लिया, जिन्होंने मानव को मानवता का उद्धार करने का काम किया है। ऐसे ही दर्शनार्थियों, लेखकों और अद्वैत शिक्षकों में से एक “आचार्य प्रशांत” भी हैं, जिनके शब्द समाज को जागरूक करने का काम करते हैं। कविताएं संसार को साहस से परिचित कराती हैं, सही अर्थों में देखा जाए तो कविताएं ही मानव को समाज की कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाती हैं। इसी कड़ी में Acharya Prashant Poems in Hindi (आचार्य प्रशांत की कविताएं) विद्यार्थियों को प्रेरणा से भर देंगी, जिसके बाद उनके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा।
This Blog Includes:
कौन हैं आचार्य प्रशांत?
Acharya Prashant Poems in Hindi (आचार्य प्रशांत की कविताएं) पढ़ने सेे पहले आपको आचार्य प्रशांत जी का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि आचार्य प्रशांत भी हैं, जिनकी लेखनी लाखों युवाओं को प्रेरित करती है। आचार्य प्रशांत जी का का पूरा नाम “प्रशांत त्रिपाठी” है, वह एक भारतीय लेखक और अद्वैत शिक्षक भी हैं। आचार्य प्रशांत सत्रह प्रकार की गीता और साठ प्रकार के उपनिषद पढ़ाते हैं, साथ ही वह प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं।
7 मार्च 1978 को आचार्य प्रशांत का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था। अपने कॉलेज के समय से ही आचार्य प्रशांत का रुझान अध्यात्म की ओर हो गया था। आचार्य प्रशांत ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली से कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक और भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद (IIM) से प्रबंधन में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।
आचार्य प्रशांत ने वर्ष 2004 में अद्वैत पर अपना पहला सार्वजनिक सत्र दिया और तब से लेकर वर्तमान तक वह भारत और दुनिया भर में अद्वैत के संदेश को फैला रहे हैं। आचार्य प्रशांत एक लोकप्रिय अध्यात्म शिक्षक हैं, जो अद्वैत के संदेश को सरल और व्यावहारिक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं।
मैं चुप हूँ
Acharya Prashant Poems in Hindi (आचार्य प्रशांत की कविताएं) आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव ला सकती हैं। आचार्य प्रशांत जी की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “मैं चुप हूँ” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
मैं चुप हूँ, वे सब बोल रहे हैं; क्या बोल रहे हैं? हह! अब बोल रहे हैं तो बस – बोल रहे हैं। पुरुषार्थ को अकड़, भावना को दुर्बलता तथा चरित्र को फिज़ूल बता, क्या, वे अपनी पोल भी नहीं खोल रहे हैं?
-आचार्य प्रशांत
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से आचार्य प्रशांत जी उस मानव को दर्पण दिखाने का काम कर रहे हैं, जो मानव अहंकार अथवा केवल नाम की आधुनिकता के पीछे दौड़ने के चक्कर में खुद को भुलाए बैठा है। इस कविता के माध्यम से कवि ऐसे समाज पर प्रहार कर रहे हैं, जो पुरुषार्थ को अकड़, भावना को दुर्बलता तथा चरित्र को फिज़ूल बताता है।
असुर–अवतार
Acharya Prashant Poems in Hindi (आचार्य प्रशांत की कविताएं) आपकी सोच का विस्तार कर सकती हैं, आचार्य प्रशांत जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “असुर–अवतार” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
भारत के धर्म-परायण आस्तिकों, स्मरण है, इतिहास में एक असुर ऐसा भी हुआ, एक मरा, तो सौ का जन्म हुआ, शक्ति ने उसे तो संहार दिया। पर जगो! अब वह शक्ति कहाँ पाओगे? हर अंग्रेज़ पर, सौ भारतीय अंग्रेज़ संहार सके — ऐसा अवतार अब कहाँ से लाओगे?
-आचार्य प्रशांत
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से आचार्य प्रशांत जी भारत के युवाओं को भारत का वो इतिहास याद करवाते हैं, जहाँ भारत को गुलामी की यातनाएं झेलनी पड़ी थी। इस कविता के माध्यम से कवि समाज को पुनः सशक्त करने का एक संदेश देने का काम करते हैं। यह कविता आपको साकारत्मक कर्म करने के लिए प्रेरित करती है।
वह रात
Acharya Prashant Poems in Hindi आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, आचार्य प्रशांत जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं की श्रेणी में से एक रचना “वह रात” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
बस यूँ ही अनायास, उदासी सी छा गयी थी, सूरज के डूबने के साथ ही, और मैं – मुरझाया, उदास देखता था गहरा रही रात को तारों की उभर रही जमात को । प्रत्येक पल युग सा प्रतीत होता था, परितः मेरे सारा जग सोता था, पर मैं, यूँ ही अनायास, मुरझाया उदास, तकता था कभी समय, कभी आकाश को रे गगन, काश तुझे भी समय का भास हो। रात्रि अब युवा थी दो पहर पर दूर उतनी ही लग रही थी अब भी सहर, सुबह का बेसब्र इंतज़ार करता था, पर दूर थी सुबह ये सोच डरता था, एक रात, यूँ ही अनायास। सुबह झट हर लेगी मेरे संताप को, निशा-भैरवी काल देवी के वीभत्स प्रलाप को, सवेरा अब मोक्ष-पल जान पड़ता था, पल-पल घड़ी की ओर ही ताकता था, एक रात, यूँ ही अनायास। अंततः हुआ वह भी जिसका मुझे इंतेज़ार था, सूर्यदेव निकले, जग खग-कोलाहल से गुलज़ार था, चहकती थी दुनिया, चलती थी दुनिया, हर्षित हो बार-बार हँसती थी दुनिया, हुआ वह सब जो रोज़ होता था, पर मेरा विकल मन अब भी रोता था, सूरज के आगमन में (हाय!) कुछ विशेष नहीं था, मेरे लिए अब कोई पल शेष नहीं था क्यों सूरज का आना भी मुझे संतप्त कर गया, राह जिसकी तकता था, वही सवेरा देख मैं डर गया। एक रात यूँ ही अनायास, मैं- मुरझाया और उदास।
-आचार्य प्रशांत
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से आचार्य प्रशांत मन में चल रही उथल-पुथल को, आधे-अधूरे भावों को दर्शाना चाहते हैं। इस कविता के माध्यम से वह रात के अंधेरे से लेकर भोर की विभोर तक के सफर को दर्शाते हैं। कविता का उद्देश्य सफ़र में मिली पीड़ाओं की व्यथा सुनना है, जिसमें रात से परेशान-हताश मन को सुबह सब कुछ सही होने का भरोसा मिलता है।
मैं
Acharya Prashant Poems in Hindi के माध्यम से आप कवि के मन में मचते शोर को शब्दों के माध्यम से महसूस कर सकते हैं। आचार्य प्रशांत जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “मैं” भी है, यह कुछ इस प्रकार है:
मैं क्यों इतना शक्तिहीन, चाहता हूँ कहना कवि स्वयं को, पर शब्दावरण झीन, ढाँप नहीं पाता- शब्द को, शब्द के अर्थ को - भावुक शब्द की कोमलता को, आहत शब्द की वेदना को, क्षुब्ध शब्द के व्यंग को, कुपित शब्द के क्रोध को। कह कर भी वह कुछ नहीं कहते, मैं सदा कुछ अधिक ही हूँ कहता; ऐसा पुनः वे कहते, “शर्म करो, कितने कमज़ोर हो तुम, छिः, इतने नग्न शब्द ” और मैं, अपने नग्न शब्दों को ह्रदय ही में छुपाकर होंठ भींच लेता हूँ। पर हाय रे! शक्तिहीन होंठों का ताला भी नग्न शब्दों को ढाँप नहीं पाता; प्रकट हो जाते हैं वे अपने पूर्ण वीभत्स रूप में। “शर्म करो, कितने अक्खड़ हो तुम में। लज्जा आती है हमें - छिः, इतने नग्न शब्द! ” “लज्जा आती है तुम्हें! हँह ! तुम्हें यदि लज्जित कर देते हैं मेरे नग्न शब्द कहीं वे मेरी शक्ति ही तो नहीं?”
-आचार्य प्रशांत
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से आचार्य प्रशांत एक कवि के मन के भावों को लिखने का प्रयास करते हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने कवियों को समाज का दर्पण बताया है, जो कि समाज को समाज की स्थिति से अवगत कराते हैं। इन शब्दों में इतनी सच्चाई होती है कि वह समाज का प्रेरित करने के साथ-साथ, सही दिशा देने का काम करती हैं।
इंसान
Acharya Prashant Poems in Hindi के माध्यम से आपका जीवन जीने का दृष्टिकोण पूरी तरह बदल जायेगा। आचार्य प्रशांत जी की महान रचनाओं में से एक रचना “इंसान” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
इंसान, लगता है बहुत आक्रामक होते जा रहे हो तुम। गिद्ध सी तुम्हारी पैनी नज़र तेंदुए सा तुम्हारा हमला, सिंह सा प्रहार, अपराजेय तुम, शक्तिशाली, सामर्थ्यवान। सिद्धांत? मात्र दो : सफलता का कारक बहुधा अविश्लेषित रहता है। प्रहार करे जो प्रथम, सफल भी बहुधा वही रहता है। अतः हे प्रहारक, सर्वसामर्थ्यशाली जीव, प्रणाम। प्रहार? पर क्यों? प्रहार? पर किस पर? आक्रामक? पर आक्रमण की आवश्यकता क्यों? रचनाकार की सृष्टि का प्रत्येक अंश शत्रु प्रतीत होता है तुम्हें? कौन सा भाव है ह्रदय में, जो दृष्टि में सदा संदेह ही बसाता है? भय किस का है मन में? कहीं उस का तो नहीं जो है साक्षी तुम्हारे प्रत्येक कर्म का?
-आचार्य प्रशांत
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से आचार्य प्रशांत इंसान की क्रूरता पर प्रहार करते हुए, इंसान से सवाल पूछते हैं कि क्या इंसान का यही एकमात्र स्वाभाव है? इस कविता के माध्यम से कवि इंसान पर प्रश्नों की बौछार करते हैं, जिनका जवाब भी केवल इंसान के भीतर ही ढूँढा जा सकता है। आचार्य प्रशांत का लक्ष्य समाज को सही दिशा दिखाने का है, जिसकी झलक आमतौर पर इस कविता के माध्यम से देखने को मिल जाता है।
आशा है कि Acharya Prashant Poems in Hindi (आचार्य प्रशांत की कविताएं) के माध्यम से आप आचार्य प्रशांत की सुप्रसिद्ध रचनाओं को पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।