नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक थे। नेताजी ने ही आज़ाद हिंदी फौज का गठन किया था। इन्होंने ही जय हिंदी जैसे कई क्रांतिकारी नारे दिए थे, जिससे अंग्रेजी हुकूमत की जड़े कमज़ोर होना शुरू हो गई थीं। ऐसे महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं। कई बारी परीक्षाओं और कक्षाओं में नेताजी के बारे में छात्रों को निबंध लिखने को दिया जाता है। आइए इस ब्लॉग में सुभाष चंद्र बोस पर निबंध पढ़ते हैं।
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सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 100 शब्दों में
सुभाष चंद्र बोस 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक बड़े स्तंभ थे। नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस राजनेताओं का एक ग्रुप था जिसने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी। बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की थी, फॉरवर्ड ब्लॉक एक राजनीतिक संगठन जिसका मकसद भारत में समूचे ब्रिटिश विरोधी सैनिकों को एकजुट करना था। भारत में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में सम्मान दिया जाता है। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में जलने से घायल होने के बाद ताइवान के एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।
सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 250 शब्दों में
भारतीय इतिहास में सुभाष चंद्र बोस एक सबसे महान व्यक्ति और बहादुर स्वतंत्रा सेनानी में से एक थे। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था, उनके पिताजी कटक शहर के मशहूर वकील थे।सुभाष चंद्र बोस कुल मिलकर 14 भाई बहन थे।सुभाष चंद्र बोस एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ उन्होंने ने ही हमारे भारत को यह नारा दिया जिससे भारत के कई युवा वर्ग भारत से अंग्रेजों को बाहर निकालने की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित हुए।
वास्तव में देखा जाए तो भारत में एक सच्चे और बहादुर हीरो थे जिन्होंने अपने मातृभूमि के खातिर अपना घर और आराम त्याग कर दिया था। सुभाष चंद्र बोस हमेशा हिंसा में भरोसा करते थे। उन्होंने प्रतिभाशाली ढंग से आई. सी.एस परीक्षा को पास किया था परंतु उसको छोड़कर भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में जुड़ने के लिए 1921 में असहयोग आंदोलन के द्वारा जुड़ गए थे।उन्होंने चितरंजन दास के साथ भी काम किया है, जो बंगाल के एक राजनीतिक, नेता, शिक्षा और बंगलार कथा नाम के बंगाल सप्ताहिक पत्रकार थे। कुछ समय के बाद वह बंगाल कांग्रेस के वॉलिंटियर कमांडेड, नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल, और कोलकाता के मेयर उसके बाद निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त किए गए थे।
12 सितंबर 1944 में रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतींद्र दास की स्मृति दिवस पर सुभाष चंद्र बोस है अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा था कि ” अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांग की है आप मुझे खून दो मैं आपको आजादी दूंगा । ” यही देश के नौजवानों में प्रेरणा फूटने वाला वाक्य था जो भारत में नहीं विश्व के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया गया है।
सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 500 शब्दों में
सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 500 शब्दों में इस प्रकार है:
प्रस्तावना
नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। नेताजी ने इस देश को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी। नेताजी ने देश को आज़ाद कराने के लिए आज़ाद हिंदी फ़ौज का गठन किया था। उनके असीम प्रयासों के चलते ब्रिटिश हुकूमत भारत में अपनी पकड़ खोने लगी थी।
कौन थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस?
23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कुट्टक गांव में नेताजी सुभाष चंद बोस का जन्म हुआ था। नेताजी के पिता का नाम जानकीनाथ बोस था, वह पेशे से वकील थे। उनकी माताजी का नाम प्रभावती था। सुभाष चंद्र बोस कुल मिलकर 14 भाई बहन थे। उन्होंने गिने-चुने भारतीयों में से वर्ष 1920 में आईपीएस परीक्षा में उत्तीर्ण किया था। वह वर्ष 1921 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने थे। नेताजी ने ही ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ उन्होंने ने ही हमारे भारत को यह नारा दिया जिससे भारत के कई युवा वर्ग भारत से अंग्रेजों को बाहर निकालने की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित हुए थे।
सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय संग्राम के सबसे अधिक प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि एक बार सुभाष चंद्र बोस ने अपने अंग्रेजी अध्यापक के भारत के विरोध की गई टिप्पणी के ऊपर बड़ा विरोध किया था। फिर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था और तब आशुतोष मुखर्जी (बैरिस्टर) ने उनका दाखिला स्कॉटिश चर्च कॉलेज में कराया था। फिर उस जगह से उन्होंने दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी में BA पास की डिग्री अर्जित की थी। कुछ समय के बाद वह भारतीय नागरिक सेवा की परीक्षा में बैठने के लिए लंदन चले गए थे और उस परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया था।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय में से दर्शनशास्त्र में MA भी किया था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में देशबंधु चितरंजन दास के सहायक के रूप में कई बार वह गिरफ्तार भी हुए थे। सुभाष चंद्र बोस के अंदर राष्ट्रीय भावना इतनी जटिल थी कि वह दूसरे विश्वयुद्ध में भारत छोड़ने का फैसला किया था। नेताजी उसके बाद जर्मनी चले गए थे और वहां से 1943 में सिंगापुर गए जहां उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी (INA) का कमान संभाली थी।
धीरे-धीरे उन्होंने जापान और जर्मनी की सहायता से अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए एक सेना का संगठन किया था और उसका नाम उन्होंने “आजाद हिंद फौज” (वर्ष 1942) रखा था। कुछ दिनों में उनकी सेना ने भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह नागालैंड और मणिपुर में आजाद का झंडा लहरा दिया था।
जर्मनी और जापान के द्वितीय विश्वयुद्ध में हार जाने के बाद आजाद हिंद फौज को पीछे हटना पड़ा था। विश्वयुद्ध के बाद उनकी बहादुरी और हिम्मत यादगार बन गई थी। अगर विश्वयुद्ध के बारे में विचार किया जाए तो भारत को आजादी दिलाने में आजाद हिंद फौज के सिपाहियों ने अपना बड़ा बलिदान दिया था। 12 सितंबर 1944 में रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतींद्र दास की स्मृति दिवस पर सुभाष चंद्र बोस ने भाषण देते हुए कहा था कि “अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांग की है आप मुझे खून दो मैं आपको आजादी दूंगा।” यही देश के नौजवानों में प्रेरणा भरने वाला वाक्य था जो भारत में नहीं विश्व के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया गया है।
ऐसा माना जाता है कि सुभाष चंद्र की मृत्यु 18 अगस्त 1945 एक विमान दुर्घटना के दौरान हुई थी। लेकिन आज तक नेताजी की मृत्यु का कोई भी सबूत नहीं मिला है।
आजाद हिंद फौज की स्थापना
आजाद हिंद फौज की स्थापना वर्ष 1942 में भारत के एक क्रांतिकारी नेता ‘रासबिहारी बोस’ द्वारा जापान के टोक्यो में की गयी थी। वहीं 21 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिंदी फ़ौज का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस ने संभाल लिया था। ऐसा माना जाता है कि जब नेताजी ने इस फौज की कमान संभाली, तब इसमें लगभग 45,000 सैनिक थे और वर्ष 1944 तक आते-आते इस फ़ौज में सैनिकों की संख्या 85,000 हो गई थी। इस फ़ौज में महिला यूनिट की कमान कप्तान ‘लक्ष्मी सहगल’ के हाथों में थी।
उपसंहार
भारतीय स्वतंत्रता को और मजबूती देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस सही मायने में सच्चे देशभक्त थे। नेताजी के नेतृत्व में आज़ाद हिंदी फ़ौज ने ब्रिटिश हुकूमत को कमज़ोर कर दिया था। आज़ाद हिंदी फ़ौज ने जमीन पर जाकर लोगों को जागरूक किया था जिसकी बदौलत भारत आज़ादी की ओर बढ़ चला था।
सुभाष चंद्र बोस द्वारा बोले गए अनमोल वचन
सुभाष चंद्र बोस पर निबंध जानने के बाद अब यह जानते हैं कि नेताजी द्वारा कह गए अनमोल वचन क्या थे, जो इस प्रकार हैं:
- “तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हें आजादी दूंगा!”
- “ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।”
- “आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके।”
- “मुझे यह नहीं मालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हममे से कौन कौन जीवित बचेंगे! परन्तु में यह जानता हूँ ,अंत में विजय हमारी ही होगी !”
- “राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है।”
- “भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर से सुस्त पड़ी थी।”
- “मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्यायों जैसे गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है।”
- “यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े तब वीरों की भांति झुकना।”
- “समझोतापरस्ती बड़ी अपवित्र वस्तु है!”
- “मध्या भावे गुडं दद्यात — अर्थात जहाँ शहद का अभाव हो वहां गुड से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए!”
FAQs
भारत के लाल सुभाष चंद्र बोस ने वैसे तो कई क्रन्तिकारी नारे दिए थे, जिनमें से एक था – तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में वर्ष 1921 को शामिल हुए थे।
जीबी पंत और सरदार पटेल जैसे नेताओं ने बोस से कार्य समिति गठित करने का आग्रह किया, जिसमें गांधीजी द्वारा अनुमोदित सदस्य हों, लेकिन गांधीजी ने किसी भी नाम का सुझाव देने से इनकार कर दिया। बोस और महात्मा गांधी के बीच तनाव बढ़ गया जिसके कारण बोस ने 29 अप्रैल 1939 को इस्तीफा दे दिया।
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