अलंकार का शाब्दिक अर्थ ‘आभूषण’ व ‘गहना’ होता है। यह दो शब्दों से मिलकर बनता है- अलम + कार। जिस प्रकार श्रृंगार हेतु आभूषणों का प्रयोग किया जाता है। उसी प्रकार शब्दों और भावों की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता हैं। जिसके कारण काव्य की भाषा और भावों में सौन्दर्य बढ़ जाता हैं। वर्तमान समय में सभी स्कूल, कॉलेजों और प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी व्याकरण और उनमें अलंकारों से संबंधित प्रश्न जरूर पूछे जाते हैं। जिसमें मुख्य अलंकार जो प्रतियोगी परीक्षाओं में बार बार पूछे जाते है उसमें उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिश्योक्ति, मानवीकरण, अनुप्रास, यमक तथा श्लेष अलंकार मुख्य माने जाते हैं। यहां उन्हीं में से एक Utpreksha Alankar के बारे में उदाहरण सहित बताया गया है। जो आपकी सभी प्रतियोगी परीक्षा के लिए उपयोगी होगा।
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Utpreksha Alankar की परिभाषा
जहां उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना प्रकट की जाए, वहां Utpreksha Alankar होता है। इस अलंकार में जनु, मनु, इव, मानो, मनो, मनहुँ, आदि। शब्द अगर किसी अलंकार में आते है तो वह उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
संस्कृत आचार्य ‘भामह’ को हिंदी काव्य में अलंकार संप्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है। आचार्य भामह ने ही ‘काव्यलंकार’ नामक ग्रंथ की रचना की थी। इसमें उन्होंने 6 परिच्छेदों और 5 विषयों का विवेचन किया है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
Utpreksha Alankar के हिंदी व्याकरण में तीन भेद होते है :
- वस्तुप्रेक्षा अलंकार
- हेतुप्रेक्षा अलंकार
- फलोत्प्रेक्षा अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार के तीनों उदहारण नीचे दिए गए बिंदुओं में बताए गए हैं :
- वस्तुप्रेक्षा अलंकार : जहां किसी उपमेय (वस्तु) से उपमान की संभावना व्यक्त की जाए।
उदाहरण –
उस वक्त मारे क्रोध के तनु कांपने उनका लगा
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
- हेतुप्रेक्षा अलंकार : जहां अहेतु में हेतु की संभावना की जाए। अर्थात् वास्तविक कारण को छोड़कर अन्य हेतु को मान लिया जाए वहां Utpreksha Alankar होता है।
उदाहरण –
मुख सम नहि याते कमल मनु जल रहयो समाय।
- फलोत्प्रेक्षा अलंकार – जहां अफल में फल की संभावना वयक्त की जाए, अर्थात् वास्तविक फल के न होने पर भी उसी को फल मान लिया जाए वहां पर फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण –
बढ़त ताड़ को पेड़ यह मनु चूमन आकास।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
यहां Utpreksha Alankar के कुछ उदहारण दिए जा रहे है, जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं :
- मानो माई घनघन अंतर दामिनी।
घन दामिनी दामिनी घन अंतर,
शोभित हरि-ब्रज भामिनी।
- कहती हुई यों उतरा के नेत्र जल से भर गए
हिम के कणों इ पूर्ण मानों हो गए पंकज नए।
- बहुत काली सिल जरा से लाल
केसर से कि जैसे धुल गई हो।
- सोहत ओढ़े पीत पट,
श्याम सलोने गात
मनहुँ नीलमनि सैल पर,
आतप परयौ प्रभात।
- सखि सोहत गोपाल के,
उर गुंजन की मालबाहर
सोहत मनु पिये,
दावानल की ज्वाल।
- ले चला साथ मैं तुझे कनक।
ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण।
- पाहून ज्यों आये हों गांव में शहर के
मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के।
- अति कटु वचन कहित कैकई।
मानहु लोन जरे पर देई ।।
- हरि मुख मानो मधुर मयंक।
- बढ़त ताड़ को पेड़ यह मनु चूमन आकास।
- उस वक्त मारे क्रोध के तनु कांपने उनका लगा
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
- चित्रकूट जनु अचल अहेरी।
- चमचमात चंचल नयन, बिच घूँघट पट छीन।
मनुह सुरसरिता विचल, जल उछरत जुग मीन।।
- अरुन भये कोमल चरन
भुवि चलबे ते मानु
- लागति अवध भयाविन भारी।
मानहु काल राति अंधियारी।।
FAQs
उत्प्रेक्षा अलंकार के मुख्य रूप से तीन भेद होते हैं- वस्तुप्रेक्षा अलंकार, हेतुप्रेक्षा अलंकार, फलोत्प्रेक्षा अलंकार।
उत्प्रेक्षा अलंकार का ‘सोहत ओढ़े पीत पर, स्याम सलोने गात। मनहु नील मनि सैण पर, आतप परयौ प्रभात।।’ एक मुख्य उदहारण है।
अलंकार के प्रवर्तक संस्कृत आचार्य ‘भामह’ को माना गया है। उन्होंने अलंकार पर ‘काव्यलंकार’ नामक ग्रंथ की रचना भी की है।
काव्य की शोभा बढ़ानेवाले तत्वों का अलंकार कहते है। अलंकार के मुख्य दो भेद है- शब्दालंकार और अर्थालंकार। जहाँ शब्दों में चमत्कार आ जाता है वहाँ ‘शब्दालंकार’ होता है तथा जहां अर्थ के कारण रमणीयता आ जाती है उसे ‘अर्थालंकार’ कहते है।
उम्मीद है, Utpreksha Alankar के बारे में आपको सभी जानकारी मिल गई होगी। हिंदी व्याकरण के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बनें रहें।