मध्यकालीन भारत के इतिहास में हम पाल, प्रतिहार, राष्ट्रकूट से लेकर दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य जैसे साम्राज्यों के बारे में पढ़ते हैं। इन्हीं में से एक विजयनगर साम्राज्य भी है जो दक्षिण भारत का एक शक्तिशाली साम्राज्य माना जाता है। इस साम्राज्य में 4 प्रमुख राजवंशो का शासन रहा है। इस ब्लॉग में हम विजयनगर साम्राज्य के तीसरे राजवंश ‘तुलुव वंश’ के बारे में जानेंगे जिसमें आपको इस राजवंश के उदय से लेकर पतन तक की अहम जानकारी दी जाएगी। इसलिए इस ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़ें।
This Blog Includes:
जानिए कैसे हुआ तुलुव वंश का उदय?
सालुव वंश के पतन के बाद तुलुव वंश, विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला तीसरा वंश बना और करीब 65 वर्षों तक शासन किया। ऐसे में अगर बात विजयनगर साम्राज्य की हो तो इसकी स्थापना 1336 ईसवी में दो भाइयों, हरिहरा और बुक्का राय ने की थी। दक्षिण भारत के इतिहास में यहीं से संगम वंश की शुरुआत हुई जिसके बाद यहाँ 3 और राजवंशों ने शासन किया। इसमें पहला था संगम राजवंश, उसके बाद सालुव वंश, फिर तुलुव वंश और आखिरी शासन यहाँ अराविदु वंश ने किया।
यह भी पढ़ें – सालुव वंश: विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला द्वितीय राजवंश
विजयनगर साम्राज्य के शासक और शासनकाल
यहाँ तुलुव वंश के शासक और उनके शासनकाल की जानकारी नीचे दी गई टेबल में दी जा रही है:-
राजवंश | शासक/संस्थापक | शासनकाल |
संगम वंश | बुक्का व हरिहर | 1336-1485 ई |
सालुव वंश | नरसिंह सालुव | 1485- 1505 ई |
तुलुव वंश | वीर नरसिंह | 1505- 1570 ई |
अराविदु वंश | तिरूमल्ल (तिरुमला) | 1570-1650 ई |
तुलुव वंश का संक्षिप्त इतिहास
तुलुव वंश, विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला तीसरा वंश था जिसकी स्थापना ‘वीर नरसिंह’ ने 1505 ईस्वी में की थी। यह वंश, विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला सबसे शक्तिशाली वंश भी था जिसका शासनकाल करीब 65 वर्षों तक चला और इस वंश के सबसे महान और सबसे शक्तिशाली शासक ‘कृष्णदेव राय’ थे।
तुलुव वंश के प्रमुख शासक
तुलुव वंश के प्रमुख शासकों का विवरण इस प्रकार से है:-
वीर नरसिंह (1505-1509 ई.)
वीर नरसिंह ने 1505 ईस्वी में सालुव वंश के शासक ‘इम्माडि नरसिंह’ की हत्या करके स्वंय विजयनगर साम्राज्य पर अपने वंश की स्थापना की और इसके बाद 1509 ई. तक विजयनगर साम्राज्य पर राज किया। वीर नरसिंह का शासनकाल भले ही कम समय का था लेकिन उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान अपनी सेना को सुसंगठित किया एवं नागरिकों को युद्ध प्रिय तथा मज़बूत बनने के लिय भी प्रेरित किया। 1509 ई. में वीर नरसिंह की मृत्यु हो गयी।
कृष्णदेव राय (1509-1529 ई.)
वीर नरसिंह की मृत्यु के बाद कृष्णदेवराय विजयनगर साम्राज्य की सत्ता पर काबिज हुए। वह अपने समय में भारत के सबसे लोकप्रिय राजाओं में से एक माने जाते थे और तुलुव वंश के भी यही सबसे शक्तिशाली सम्राट थे। दक्षिण भारत के लोगों द्वारा उन्हें ‘नायक’ की उपाधि दी गई थी। वह एक महान योद्धा व कुशल राजनीतिज्ञ थे। करीब 20 वर्षो तक शासन करने के बाद 1529 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।
अच्युतदेव राय (1529-1542 ई.)
कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद उनके भाई ‘अच्युतदेव राय’ तुलुव वंश पर शासन करने वाले तीसरे शासक बने। अच्युतदेव राय अत्यन्त दुर्बल एवं अयोग्य शासक थे जिसके कारण साम्राज्य की स्थिति ख़राब होने लगी। उनके शासनकाल के दौरान केंद्रीय सत्ता काफी कमजोर हो गयी। कुछ ही वर्षों बाद अच्युतदेव राय की मृत्यु हो गई और विजयनगर साम्राज्य की सत्ता अच्युत के भतीजे सदाशिव राय के हाथों में आ गई।
सदाशिव राय (1542-1570 ई.)
सदाशिव राय भी सिर्फ़ नाम मात्र का शासक था। उसके शासनकाल के दौरान तुलुव वंश की वास्तविक शक्तियां ‘रामराय’ के हाथों में थी। ऐसे में ‘रामराय’ ने बड़ी संख्या में मुस्लिमों को अपनी सेना में सम्मिलित किया। तालीकोट का ‘राक्षसी तांगड़ी युद्ध’ भी सदाशिव राय के शासनकाल के दौरान हुआ। 1570 ई.में सदाशिव राय की मृत्यु हो गई और इस तरह तुलुव वंश का अंत हो गया।
तुलुव वंश का पतन
तुलुव राजवंश ने विजयनगर साम्राज्य पर 1491 से 1570 तक शासन किया और सदाशिव राय इस राजवंश के अंतिम शासक थे जो एक कमजोर शासक माने गए हैं। ऐसे में तुलुव वंश का पूरा नियंत्रण सदाशिव राय के मंत्री ‘राम राय’ ने अपने हाथो में ले लिया और कुछ समय बाद सदाशिव राय की भी मृत्यु हो गयी। इस तरह तुलुव वंश का अंत हो गया और एक नए वंश ‘अराविडु राजवंश’ की स्थापना हुई।
FAQs
तुलुव वंश की स्थापना वीर नरसिंह ने की थी जिन्होंने 1505 ईस्वी से लेकर 1509 ईस्वी तक शासन किया।
तुलुव वंश का अंतिम राजा सदाशिव राय (1542-1570) था।
तुलुव वंश के सबसे लोकप्रिय राजा कृष्णदेव राय (1509-1529) थे।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. में दो भाईयों हरिहर और बुक्का द्वारा की गई थी।
विजयनगर का वर्तमान नाम हम्पी (हस्तिनावती) है।
आशा है आपको तुलुव वंश के बारे में बहुत सी जानकारी मिल गयी होगी। ऐसे ही इतिहास से संबंधित अन्य ब्लॉग्स को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।