मिर्ज़ा ग़ालिब को भला कौन नहीं जानता। और जो नहीं जानता उनके लिए ग़ालिब ने अपने ही बारे में कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं जो हैं –
اس دنیا میں بہت اچھے لوگ اور بھی ہیں
کہا جاتا ہے کہ ‘غالب’ کا انداز بیان الگ ہے۔
मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के एक ऐसे महान शायर थे जिन्होंने अपनी कलम से पूरी दुनिया में अपनी अलग छाप छोड़ी है। तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो हो या ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका, ग़ालिब ने जिस ग़ज़ल को छूआ उसको उन्होंने हमेशा के लिए अमर कर दिया।उनकी इसी कला की वजह से उन्हें शायरी के प्रेमी और साहित्यिकों के दिलो में शायरी के शहंशाह का दर्ज़ा प्राप्त है। इस ब्लॉग में Mirza Ghalib Shayari के बारे में आप विस्तार से जानेंगें जो अक्सर स्कूल की उर्दू की किताबों या कॉलेज की उर्दू लिटरेचर की किताबों में पढ़ने को मिलती हैं।
This Blog Includes:
- मिर्ज़ा ग़ालिब और उनके शुरुआती जीवन के बारे में
- Mirza Ghalib Shayari
- मिर्ज़ा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी
- Top 10 Ghalib Shayari
- ग़ालिब की प्रेरणादायक शायरी
- Mirza Ghalib Shayari on Life in Hindi
- Ghalib Shayari on Love
- Mirza Ghalib Shayari on Friendship
- Mirza Ghalib Shayari on Zindagi
- मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी इन उर्दू
- मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल
- FAQs
मिर्ज़ा ग़ालिब और उनके शुरुआती जीवन के बारे में
मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म 27 दिसम्बर 1797 को आज के उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था। पेशे से उर्दू, फारसी शायर ग़ालिब का पूरा नाम मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग खान था। मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू और फारसी भाषा के एक महान शायर और गायक थे, उन्हें उर्दू भाषा में आज तक का सबसे महान शायर माना जाता है। फारसी शब्दों का हिंदी में जुड़ाव का श्रेय भी ग़ालिब को ही दिया जाता है।
मिर्ज़ा ग़ालिब ने केवल 11 साल की छोटी उम्र से ही ग़ालिब ने शायरी लिखना शुरू कर दिया था, जिसके निरंतर अभ्यास के बाद इन्होने आगे जा कर खुद को ‘ग़ालिब’ नाम दिया था। ग़ालिब का मतलब विजयी या श्रेष्ठ होता है। ग़ालिब की शायरी इतनी मशहूर हुईं, कि वे मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे हैं। इसके बारे में और इनके द्वारा लिखी शायरियाँ, ग़ज़ल आदि आज भी उर्दू की किताबों में पढ़ने को मिलती हैं। 15 फरवरी सन 1869 में इनकी मृत्यु हो गयी थी।
Mirza Ghalib Shayari
Mirza Ghalib Shayari के इस ब्लॉग में आपको मिर्जा गालिब की शायरी पढ़ने का अवसर मिलेगा, जिन्हें आप अपने दोस्तों के साथ साझा कर पाओगे। ऐसी ही कुछ Ghalib Shayari निम्नलिखित हैं;
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकलेHazaaron khvaahishen aisee ki har khvaahish par dam nikale
Bahut nikale mere aramaan lekin phir bhee kam nikale
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा हैHam ko maaloom hai jannat kee haqeeqat lekin
Dil ke khush rakhane ko gaalib ye khayaal achchha hai
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम केIshq ne gaalib nikamma kar diya
Varna ham bhee aadamee the kaam ke
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहींIs saadagee pe kaun na mar jae ai khuda
ladate hain aur haath mein talavaar bhee nahin
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकलेHazaaron khvaahishen aisee ki har khvaahish pe dam nikale
Bahut nikale mire aramaan lekin phir bhee kam nikale
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होताYe na thee hamaaree qismat ki visaal-e-yaar hota
Agar aur jeete rahate yahee intizaar hota
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बनेIshq par zor nahin hai ye vo aatish gaalib
Ki lagae na lage aur bujhae na bane
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैंVo aae ghar mein hamaare khuda kee qudarat hai
Kabhee ham un ko kabhee apane ghar ko dekhate hain
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था।Aaeena dekh apana sa munh le ke rah gae,
Saahab ko dil na dene pe kitana guroor tha.
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’,
कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था।Rekhte ke tumheen ustaad nahin ho gaalib,
Kahate hain agale zamaane mein koee meer bhee tha.
मौत का एक दिन मुअय्यन है,
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती।Maut ka ek din muayyan hai,
Neend kyoon raat bhar nahin aatee.
मिर्ज़ा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी
Ghalib Shayari के ब्लॉग में आपको मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ दर्द भरी शायरियां पढ़ने को मिलेंगी, जो कि नीचे दी गई हैं :
मोहब्बत में नहीं फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले!
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है।
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते है।।
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे।
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
Top 10 Ghalib Shayari
Mirza Ghalib Shayari के माध्यम से आपको Top 10 Ghalib Shayari पढ़ने का भी मौका मिलेगा, जिसके बाद आप ग़ालिब की साहित्य समझ से भी परिचित हो पाएंगे। इस ब्लॉग में Top 10 Ghalib Shayari निम्नलिखित हैं,
“वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं..”
“रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है…”
“हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है…”
“हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता…”
“तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई…”
“बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या,
बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था।…”
“यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो…”
“हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है…”
“जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है…”
ग़ालिब की प्रेरणादायक शायरी
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
ہم اپنی رگوں میں دوڑنے کے شوقین نہیں ہیں۔
آنکھوں سے خون نہ ٹپکے تو کیا ہے؟
दिल को चाहिये कि फिर से उड़ने की तैयारी कर ले,
अभी तो सफर का पहला पड़ाव है।
دل کو پھر سے اڑنے کی تیاری کرنی ہے
یہ سفر کا صرف پہلا مرحلہ ہے۔
Mirza Ghalib Shayari on Life in Hindi
जीवन पर आधारित Mirza Ghalib Shayari नीचे दी गई हैं :
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ
जब कमान देखी अपनों के हाथ में।
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,
मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह।
हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया
पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना
कि यूँ होता तो क्या होता
ज़िन्दगी अपनी जब शक़ल से गुज़री ग़ालिब
हम भी क्या याद करेंगे के खुदा रखते थे
Ghalib Shayari on Love
Ghalib Shayari on Love के माध्यम से आपको इश्क़ पर आधारित मिर्जा गालिब की शायरी पढ़ने का अवसर मिलेगा, जो कि आपके सामने इश्क़ की एक अलग परिभाषा को व्यक्त करेगी। ऐसी कुछ मिर्जा गालिब की शायरी निम्नलिखित हैं;
“इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के..”
عشق نے غالب کو بے کار کر دیا۔
ورنہ ہم بھی کارآمد لوگ تھے۔
“इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने…”
عشق کا کوئی زور نہیں یہ وہ آگ ہے غالب
تاکہ یہ نہ لگ جائے اور نہ بجھ جائے…”
“इश्क़ ने पकड़ा न था ‘ग़ालिब’ अभी वहशत का रंग
रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाए हाए…”
عشق نے ابھی وحشی رنگ نہیں اختیار کیا تھا غالب
میرے دل میں جو بھی خوشی رہ گئی تھی…”
“आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना ‘ग़ालिब’
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद…”
“غالب کو عشق کی کمی پر رونا آیا ہے۔”
میرے بعد سیلاب بالا کس کے گھر جائے گا…”
“अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा…”
“میں پیار کی درخواست کے قابل نہیں ہوں۔
جس دل پر مجھے فخر تھا وہ اب نہیں رہا…”
“इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही…”
“میں تم سے محبت نہیں کرتا، یہ صرف ظلم ہے۔”
میرا ظلم تیری شہرت ہے…”
“इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया…”
“محبت کے ذریعے، میری صحت نے زندگی کا لطف اٹھایا۔
درد کی دوا ملی، درد کی دوا مل گئی…”
“एतबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
ग़ैर ने की आह लेकिन वो ख़फ़ा मुझ पर हुआ…”
“محبت میں بھروسے کی گندگی دیکھ کر”
اجنبی نے آہ بھری لیکن وہ غصہ مجھ پر تھا…”
Mirza Ghalib Shayari on Friendship
दोस्ती पर आधारित मिर्जा गालिब की शायरी नीचे दी गई हैं, जो आपके सामने दोस्ती की एक अलग छवि को प्रस्तुत करेगी:
तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
ये कहां की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता।
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमां क्यूं हो।
ये कहां की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता।
Mirza Ghalib Shayari on Zindagi
Mirza Ghalib Shayari on Zindagi नीचे दी गई हैं :
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज,
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं
शहरे वफा में धूप का साथी नहीं कोई
सूरज सरों पर आया तो साये भी घट गए
कौन पूछता है पिंजरे में बंद पक्षी को ग़ालिब
द वही आते है जो छोड़कर उड़ जाते है !!
दिल ए नादाँन तुझे हुआ क्या है !!
आख़िर ईस दर्द कि दवा क्या हैं ॥॥॥
गुज़र रहा हू यहाँ से भी गुज़र जाउँगा
मै वक़्त हू कहीं ठहरा तो मर जाउँगा !!!
फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल
दिल -ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी इन उर्दू
اگر انسان اپنے غصے سے ناراض ہو جائے تو اس کا غصہ ختم ہو جاتا ہے۔
میں نے اتنی مشکلات کا سامنا کیا کہ یہ آسان ہو گیا۔
شہر کی وفا میں دھوپ کا کوئی ساتھی نہیں۔
سورج سروں کے اوپر چڑھا تو سائے بھی کم ہو گئے۔
ہزاروں خواہشیں ایسی کہ ہر خواہش پوری ہو جائے۔
میری خواہشیں بہت تھیں لیکن پھر بھی کم نکلا۔
ہم جنت کی حقیقت جانتے ہیں لیکن۔۔۔
‘غالب’ دل کو خوش رکھنے کے لیے یہ اچھا خیال ہے۔
ہم زندگی سے اپنا کچھ ادھار نہیں لیتے
کفن بھی لے لیں تو جان قربان کر دیں گے۔
मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ ग़ज़लें नीचे दी गई हैं :
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से कि इस में आग दबी है
दिला ये दर्द-ओ-अलम भी तो मुग़्तनिम है कि आख़िर
न गिर्या-ए-सहरी है न आह-ए-नीम-शबी है
नज़र ब-नक़्स-ए-गदायाँ कमाल-ए-बे-अदबी है
कि ख़ार-ए-ख़ुश्क को भी दावा-ए-चमन-नसबी है
हुआ विसाल से शौक़-ए-दिल-ए-हरीस ज़ियादा
लब-ए-क़दह पे कफ़-ए-बादा जोश-ए-तिश्ना-लबी है
ख़ुशा वो दिल कि सरापा तिलिस्म-ए-बे-ख़बरी हो
जुनून ओ यास ओ अलम रिज़्क़-ए-मुद्दआ-तलबी है
चमन में किस के ये बरहम हुइ है बज़्म-ए-तमाशा
कि बर्ग बर्ग-ए-समन शीशा रेज़ा-ए-हलबी है
इमाम-ए-ज़ाहिर-ओ-बातिन अमीर-ए-सूरत-ओ-मअनी
‘अली’ वली असदुल्लाह जानशीन-ए-नबी है
ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका
गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ
हल्क़े हैं चश्म-हा-ए-कुशादा ब-सू-ए-दिल
हर तार-ए-ज़ुल्फ़ को निगह-ए-सुर्मा-सा कहूँ
मैं और सद-हज़ार नवा-ए-जिगर-ख़राश
तू और एक वो न-शुनीदन कि क्या कहूँ
ज़ालिम मिरे गुमाँ से मुझे मुन्फ़इल न चाह
है है ख़ुदा-न-कर्दा तुझे बेवफ़ा कहूँ
FAQs
गालिब का पूरा नाम उर्दू में मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान था।
ग़ालिब का हिंदी अर्थ होता है कि जो किसी पर छाया हुआ हो।
ग़ालिब की मृत्यु 15 फरवरी 1869 में हुई थी।
गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था।
ग़ालिब का मतलब छाया हुआ, हावी, प्रभावी, विजयी, श्रेष्ठ होता है।
चश्म-ए-नाज़ एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ है “नाज़ करने वाली आँखें”। यह एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति है जिसका उपयोग किसी महिला की आँखों की सुंदरता और आकर्षण को बताने के लिए किया जाता है।
तमाशा-ए-अहल-ए-करम एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ है “दयालु लोगों का तमाशा”।
उर्दू के कई शायर हैं जिन्होंने हमारे दिलों पर छाप छोड़ी है उनमें से कुछ प्रसिद्ध शायर हैं –
मिर्जा गालिब, गुलजार, फैज अहमद फैज, राहत इंदौरी, बशीर बद्र आदि।
मिर्ज़ा ग़ालिब का पूरा नाम मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान था।
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