मलिक मुहम्मद जायसी हिंदी साहित्य के भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा की ‘प्रेमाश्रयी शाखा’ के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। हिंदी के प्रख्यात आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी उन्हें मध्यकालीन हिंदी साहित्य के महान कवियों में स्थान दिया है। मलिक मुहम्मद जायसी का ‘पद्मावत’ प्रेमाख्यान परंपरा का एक श्रेष्ठ प्रबंध काव्य है, जो उनकी ख्याति का प्रमुख आधार है। इसके अतिरिक्त ‘अखरावट’, ‘आखिरी कलाम’ और ‘चित्ररेखा’ उनकी अन्य प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं।
मलिक मुहम्मद जायसी की रचनाओं को विद्यालयों के साथ-साथ बी.ए. और एम.ए. के पाठ्यक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। इसके साथ ही, UGC-NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों के लिए भी मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
| नाम | मलिक मुहम्मद जायसी |
| जन्म | सन 1492 |
| जन्म स्थान | अमेठी, उत्तर प्रदेश |
| साहित्य काल | भक्तिकाल (प्रेमाश्रयी शाखा) |
| गुरु | सैयद अशरफ़ और शेख बुरहान |
| विधाएँ | काव्य |
| काव्य-संग्रह | पद्मावत, आखिरी कलाम, अखरावट आदि। |
| भाषा | अवधी |
| निधन | सन 1542 |
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उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में हुआ था जन्म
प्रेमाश्रयी शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म उत्तर प्रदेश के अमेठी ज़िले के ‘जायस’ नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने स्वयं अपनी काव्य-कृति ‘आखिरी कलाम’ में अपने जन्म के बारे में लिखा है- “मा अवतार मोर नव सदी। तीस बरस ऊपर कवि बदी॥”
इन पंक्तियों के आधार पर माना जाता है कि उनका जन्म 900 हिजरी, अर्थात् लगभग 1492 ईस्वी में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘मलिक राजे अशरफ़’ था। बताया जाता है कि जायसी ने अल्प आयु में ही अपने पिता को खो दिया था और कुछ सालों बाद उन्हें अपनी माता के मातृत्व से भी वंचित होना पड़ा था।
मलिक मुहम्मद जायसी के वंशज
माना जाता है कि मलिक मुहम्मद जायसी के वंशज अशरफी खानदान के चेले थे और ‘मलिक’ कहलाते थे। बता दें कि ‘मलिक’ मूलतः अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ ‘स्वामी’, ‘सरदार’ या ‘राजा’ होता है। वहीं मलिक का फारसी में अर्थ ‘अमीर’ और ‘बड़ा व्यापारी’ होता है। मलिक, जायसी के पूर्वजों से चला आया ‘सरनामा’ है। मलिक सरनामा से स्पष्ट होता है कि उनके पूर्वज अरब से थे।
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मलिक मुहम्मद जायसी के गुरु
माना जाता है कि मलिक मुहम्मद जायसी बाल्यावस्था में ही अनाथ हो गए थे। इसके बाद उनका जीवन साधुओं और फकीरों के सान्निध्य में बीता। उन्होंने अपनी काव्य रचनाओं में ‘सैयद अशरफ जहाँगीर’ और ‘शेख बुरहान’ को अपने गुरु के रूप में उल्लेखित किया है।
‘पद्मावत’ महाकाव्य
मलिक मुहम्मद जायसी की ख्याति का प्रमुख आधार उनका प्रबंधकाव्य ‘पद्मावत’ है। भारतीय लोककथा पर आधारित इस काव्य में सिंहल देश की राजकुमारी पद्मावती और चित्तौड़ के राजा रत्नसेन की प्रेमकथा का वर्णन है। इस श्रेष्ठ काव्य में जायसी की अनुपम काव्य-प्रतिभा के दर्शन होते हैं। उन्होंने इस रचना के लिए दोहा-चौपाई छंद को अपनाया और ठेठ अवधी भाषा में लोकप्रचलित कथाओं के आधार पर इसकी रचना की। बता दें कि ‘पद्मावत’ की रचना फारसी की ‘मसनवी शैली’ पर आधारित है तथा इसमें कुल 58 सर्ग (खंड) हैं।
मलिक मोहम्मद जायसी की प्रमुख रचनाएं
यहाँ मलिक मुहम्मद जायसी की संपूर्ण काव्य रचनाओं के बारे में जानकारी दी जा रही है। बता दें कि हिंदी साहित्य के भक्तिकाल में मलिक मुहम्मद जायसी की जिन काव्य रचनाओं का उल्लेख मिलता है, वे इस प्रकार हैं:
- पद्मावत
- अखरावट
- सखरावत
- चंपावत
- इतरावत
- मटकावत
- चित्रावत
- सुर्वानामा
- मोराईनामा
- मुकहरानामा
- मुखरानामा
- पोस्तीनामा
- होलीनामा
- आखिरी कलाम
- धनावत
- सोरठ
- जपजी
- मैनावत
- मेखरावटनामा
- कहरानामा
- स्फुट कवितायें
- लहतावत
- सकरानामा
- मसला या मसलानामा
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मलिक मुहम्मद जायसी की भाषा शैली
मलिक मुहम्मद जायसी की भाषा का रूप ठेठ अवधी है, किंतु कहीं-कहीं उसमें अपभ्रंश, अरबी और फ़ारसी के शब्द भी मिलते हैं। ब्रजभाषा और खड़ी बोली में विभिन्नता होते हुए भी उनकी रचनाओं में बोलचाल की लोकभाषा का उत्कृष्ट प्रयोग और भावों की गहराई देखने को मिलती है। जायसी की काव्य रचनाओं का आधार लोकजीवन का व्यापक अनुभव है। उनकी काव्य भाषा पर लोकसंस्कृति का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जो उनकी रचनाओं को नया अर्थ और सौंदर्य प्रदान करता है।
मलिक मुहम्मद जायसी की मृत्यु
विख्यात साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘काजी नसरुद्दीन हुसैन जायसी’ के हवाले से बताया है कि जायसी की मृत्यु 949 हिजरी (1542 ईस्वी) में अमेठी में हुई थी, जहाँ उनकी कब्र स्थित है। वर्तमान में मलिक मुहम्मद जायसी की कृतियाँ देश के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संस्थानों में पढ़ाई जाती हैं।
FAQs
वे भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा में ‘प्रेमाश्रयी शाखा’ के सर्वश्रेष्ठ कवि थे।
‘पद्मावत’ ठेठ अवधी भाषा में लिखी गई थी और यह फारसी की ‘मसनवी शैली’ पर आधारित है।
माना जाता है कि जायसी का निधन 949 हिजरी यानी 1542 ईस्वी को अमेठी में हुआ था।
मलिक मोहम्मद जायसी ने ‘सैयद अशरफ’ और ‘शेख बुरहान’ का अपने गुरुओं के रूप में उल्लेख किया है।
मलिक मोहम्मद जायसी की माता के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है।
मलिक मोहम्मद जायसी का प्रसिद्ध महाकाव्य ‘पद्मावत, जायसी’ की प्रसिद्धि का प्रमुख आधार है।
आशा है कि आपको भक्तिकाल के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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