मध्यकालीन इतिहास के पन्ने पलटकर देखा जाए तो इतिहास की संरचनाओं से भारत के उन महान राजवंशों के बारे पता लगता है, जिन्होंने सीमाओं से परे जाकर अपने राजवंश के लिए खूब ख्याति कमाई। ऐसे राजवंश जिनके शासन में सभ्यताओं का संरक्षण हुआ, जिनके शासनकाल में कला और संस्कृति को बढ़ावा मिला। इस पोस्ट में आपको ऐसे ही महान राजवंशों में से एक ‘चोल राजवंश’ के बारे में बताया जा रहा है।
चोल राजवंश के संस्थापक का नाम | राजा विजयालय |
चोल राजवंश की स्थापना कब हुई? | लगभग 850 ईसा पूर्व |
चोल राजवंश के महानतम शासक का नाम | राजराजा चोल |
चोल राजवंश के अंतिम शासक | राजेन्द्र चोल |
कब से कब तक रहा चोल राजवंश का शासन | 8-12वीं शताब्दी ईस्वी |
गंगा का विक्टर किस चोल राजा को कहा जाता है? | राजेन्द्र चोल |
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चोल राजवंश का संक्षिप्त इतिहास
मध्यकालीन इतिहास पर प्रकाश डाला जाए तो चोल साम्राज्य का पहला जिक्र तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक के पुरालेखों में मिलता है। उस समय के चोल राजवंश को ‘प्रारंभिक चोल’ के रूप में जाना जाता था। हालाँकि उस समय ‘पल्लव’ और ‘पांड्या’ राजाओं का शासन विस्तार पा रहा था। वहीं प्रारंभिक चोल वंश का शासन काफी छोटे स्तर पर था।
मध्यकाल में ‘पल्लव’ और ‘पांड्या’ दोनों के बीच शक्ति और सत्ता के लिए भीषण संग्राम चला, इन दोनों के संघर्ष का फायदा उठाकर चोल साम्राज्य के संस्थापक ‘विजयालय चोल’ ने कावेरी नदी के डेल्टा के पास “तंजावूर” में अपना कब्जा स्थापित कर के चोल राजवंश की स्थापना की। विजयालय ने अपनी राजधानी के रूप में “तंजावूर” को चुना है, यहीं से चोल राजवंश अस्तित्व में आया।
850 ईसा पूर्व में विजयालय चोल ने चोल राजवंश के पहले शासन की स्थापना की थी, जिनके बाद 870 ईसा पूर्व विजयालय चोल के बेटे “आदित्य प्रथम” ने सत्ता की बागडोर संभाली और साम्राज्य का विस्तार किया। इसके बाद अन्य चोल राजाओं का नाम आते हैं, इसमें “परांतक प्रथम” बहुत विख्यात राजा हुए हैं जिन्होंने पांड्यों की राजधानी मदुरै पर जीत हासिल की थी। आपको बता दें कि इस राजवंश का शासन 13वीं शताब्दी से लेकर आने वाली पाँच से अधिक शताब्दियों तक चलता रहा।
चौहान वंश के प्रमुख शासक
चोल राजवंश के प्रमुख शासकों की सूचीं निम्नलिखित है, जिसकी सहायता से आप चोल राजवंश के बारे में और अधिक गहनता से जान पाएंगे। चोल राजवंश के इन महान शासकों ने कला और संस्कृति से लेकर व्यापार तक के क्षेत्र में अपना-अपना अहम योगदान दिया था।
शासकों का नाम | शासनकाल की अवधि |
विजयालय चोल | 848 – 891 ई |
आदित्य प्रथम | 870 – 907 ई |
परांतक प्रथम | 907 – 950 ई |
गंडारादित्य चोल | 950-957 ई |
अरिंजय चोल | 956-957 ई |
सुन्दर चोल | 957-970 ई |
उत्तम चोल | 970-985 ई |
राजराजा चोल प्रथम | 985-1014 ई |
राजेंद्र चोल प्रथम | 1012-1044 ई |
राजाधिराज चोल | 1044-1054 ई |
राजेंद्र चोल द्वितीय | 1054-1063 ई |
वीरराजेन्द्र चोल | 1063-1070 ई |
अतिराजेंद्र चोल | 1070-1070 ई |
कुलोथुंगा चोल प्रथम | 1070-1122 ई |
विक्रम चोल | 1118-1135 ई |
कुलोथुंगा चोल द्वितीय | 1135-1150 ई |
राजराजा चोल द्वितीय | 1146-1173 ई |
राजाधिराज चोल द्वितीय | 1166-1178 ई |
कुलोथुंगा चोल तृतीय | 1178-1218 ई |
राजराजा चोल तृतीय | 1216-1256 ई |
राजेंद्र चोल तृतीय | 1246-1279 ई |
चोल राजवंश की उपलब्धियाँ
चोल राजवंश की उपलब्धियाँ को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है, क्योंकि इस राजवंश ने भारत की समृद्धि के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। चोल राजवंश की उपलब्धियों के बारे में जानकर आप चोल राजवंश के गौरवमई और समृद्ध इतिहास के बारे में जान सकते हैं-
- चोल राजवंश के शासन के दौरान भारत का पूरा दक्षिणी क्षेत्र चोलों के माध्यम से सशक्त हुआ।
- चोल राजवंश में विशाल राज्य को प्रांतों में विभाजित किया गया था, इन राज्यों को “मंडलम” के रूप में जाना जाता था।
- चोल राजवंश में प्रत्येक मंडलम के लिए अलग-अलग गवर्नर को प्रभारी रखा गया था, जो लोकहित में प्रजा का पालन कर सके।
- चोल राजवंश में शासन की व्यवस्था प्रत्येक गाँव “स्वशासी इकाई” के रूप में कार्य करता था।
- चोल राजवंश में चोल शासक कला, कविता, साहित्य और नाटक के प्रबल संरक्षक थे।
- चोल राजवंश में शासकों को मूर्तियों और चित्रों के साथ, अनेकों मंदिरों और परिसरों के निर्माण में देखा जा सकता है।
- चोल राजवंश में राजा ही केंद्रीय प्राधिकारी होता था। जो प्रमुख निर्णय लेता था और अपना शासन करता था।
चोल राजवंश में कला का स्थान
चोल राजवंश का इतिहास देखा जाए तो चोल राजवंश के शासनकाल में कला और संस्कृति का एक अहम स्थान दिखाई देता है। इस राजवंश के शासकों द्वारा कला और संस्कृति का संरक्षण देखने को मिल जाता है, इस राजवंश में कला के सर्वोत्तम कार्य के बारे में जानने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को अवश्य पढ़ें-
- चोल राजवंश के शासन के समय चोल वास्तुकला (871-1173 ई.) मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली का प्रतीक था।
- चोल शासकों ने मध्ययुगीन भारत में कुछ सबसे भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया, जिसकी कला के नमूने आज भी देखने को मिल जाते हैं।
- कई प्राचीन मंदिरों का निर्माण चोल साम्राज्य में हुआ जिसमें बृहदेश्वर मंदिर, राजराजेश्वर मंदिर, गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर आदि जैसे चोल मंदिरों ने द्रविड़ वास्तुकला को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।
- चोल साम्राज्य के समय मंदिरों के निर्माण में द्रविड़ वास्तुकला का इतना असर देखने को मिला कि चोलों के बाद भी मंदिर वास्तुकला का विकास इसी प्रकार जारी रहा।
- चोल राजवंश के समय मूर्तिकला अपने चरम पर पहुंच गई थी, जिसके साक्ष्य इतिहास में देखने को मिल जाते हैं।
FAQs
चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय द्वारा 8वीं शताब्दी में तंजौर साम्राज्य पर अधिकार करके हुई। जिसमें चोल शासक ने पल्लवों को हराकर अपने शक्तिशाली राजवंश की स्थापना की।
चोल वंश का सबसे महान राजा राजराजा चोल थे।
चोल वंश का चिन्ह बाघ था।
राजराजा चोल (ईसवी 985-1014) को सबसे महान चोल शासक माना जाता है। वह दक्षिण भारत के महानतम राजाओं में से एक थे और “महान राजाराज” के रूप से जाने जाते थे। उनके शासनकाल के तहत चोल साम्राज्य में व्यापक वृध्दि हुई और शक्तिशाली साम्राज्य में बदल गया।
चोल वंश का अंतिम शासक अधिराजन या राजेन्द्र चोल था।
वर्ष 1279 ई. में चोल राजवंश का अंत हुआ। अंतिम चोल राजा, राजेंद्र चोल III, मारवर्मन कुलशेखर पांडियन प्रथम से हार गए थे। और इसके साथ ही, पांड्यों ने वर्तमान तमिलनाडु में अपना शासन स्थापित किया।
आशा है इस ब्लॉग से आपको चोल राजवंश और इस राजवंश से जुड़ी अहम घटनाओं के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी। प्राचीन भारत के इतिहास से जुड़े अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।