अलंकार का अर्थ होता है आभूषण। जिस प्रकार से आभूषण एक स्त्री के सौंदर्य में वृद्धि करते हैं उसी प्रकार से अलंकार भी कविता में सुंदरता को बढ़ाने का काम करते हैं। इसलिए इन्हें विद्वानों द्वारा अलंकार नाम दिया गया है। आज के समय में सभी स्कूल, कॉलेजों और सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी व्याकरण और उनमें अलंकारों से संबंधित प्रश्न जरूर पूछे जाते हैं। अलंकार प्रमुख रूप से 8 माने गए हैं : उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिश्योक्ति, मानवीकरण, अनुप्रास, यमक तथा श्लेष अलंकार। इस ब्लॉग में उन्हीं में से एक Anupras Alankar के बारे में उदाहरण सहित बताया जा रहा है। जो आपकी सभी प्रतियोगी परीक्षा के लिए उपयोगी होगी।
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अनुप्रास अलंकार क्या है?
Anupras Alankar का होना किसी काव्य रचना में तब पाया जाता है जब किसी वर्ण की बार बार आवृत्ति पाई जाती है और उससे उस कविता में एक विशेष सौंदर्य उत्पन्न हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब किसी कविता में कोई वर्ण बार बार आता है और उससे कविता के अर्थ में एक विशेष अंतर आता है तो वहां यमक अलंकार होता है।
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अनुप्रास अलंकार की परिभाषा
अनुप्रास अलंकार दो शब्दों को मिलाकर बना है। अनु + प्रास। यहाँ अनु का मतलब है आवृत्ति यानी दोहराना और प्रास का अर्थ है वर्ण। इसका अर्थ निकलता है कि किसी वर्ण को जब बार बार दोहराया जाता है तो वहां अनुप्रास अलंकार होता है। सरल शब्दों में कहें तो कोई अक्षर जब किसी कविता में बार बार प्रकट हो तो वहां अनुप्रास अलंकार होता है। इसे हम इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जहाँ किसी व्यंजन की आवृत्ति एक बार से अधिक बार होती है वहां अनुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण के लिए “रघुपति राघव राजा राम।” इस पंक्ति में ‘र’ वर्ण लगातार चार बार आया है। अत: यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
अनुप्रास अलंकार के भेद
Anupras Alankar के मुख्यत: 5 भेद होते हैं :
- छेकानुप्रास अलंकार
- वृत्यनुप्रास अलंकार
- लाटानुप्रास अलंकार
- अनन्त्यानुप्रास अलंकार
- श्रुत्यानुप्रास अलंकार
आइए इन प्रकारों के बारे में विस्तार से जानते हैं :
- छेकानुप्रास अलंकार : जहाँ एक से अधिक वर्णों की आवृत्ति होती है वहां छेकानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण : बूझत स्याम कौन तू गोरी। कहाँ रहत काकी है बेटी।।
- वृत्यनुप्रास अलंकार : जहाँ एक वर्ण की कई बार आवृत्ति होती है वहां वृत्यनुप्रास अलंकार पाया जाता है।
उदाहरण : मुदित महीपति मंदिर आये।
- लाटानुप्रास अलंकार : लाट शब्द का तात्पर्य समूह से है। अत: जहाँ शब्द व अर्थ दोनों की आवृत्ति एक साथ हो वहां लाटानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण : पूत सपूत तो का धन संचय। पूत कपूत तो का धन संचय
- अनन्त्यानुप्रास अलंकार : जहाँ पर पंक्ति के अंत में या पद के अंत में एक समान वर्ण से हों वहां पर अनन्त्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण : रघुपति राघव राजा राम।
- श्रुत्यानुप्रास अलंकार : जहां एक ही वर्ण बार बार आए वहां श्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण : बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
अनुप्रास अलंकार के 20 उदाहरण अर्थ सहित
Anupras Alankar के 20 उदाहरण अर्थ सहित नीचे दिए गए हैं-
- मधुर मधुर मुस्कान मनोहर, मनुज वेश का उजियाला
भावार्थ : इस पंक्ति में कवी यह कहना चाहता है कि भगवान कृष्ण की मुस्कान से चारों ओर उजाला छा गया है और उन्होंने मानव रूप धारण कर रखा है।
- मुदित महिपति मंदिर आए।
भावार्थ : यहाँ भगवान के मंदिर में आने की व्याख्या की गई है।
- रघुपति राघव राजा राम
भावार्थ : यहाँ बताया गया है कि रघुकुल के स्वामी राजा राम हैं।
- हिना हुई हरिनाम दीवानी
भावार्थ : यहाँ कवि किसी युवती के हरि की भक्ति में डूब जाने का वर्णन कर रहे हैं।
- हरेश हठीला हुआ
भावार्थ : यहाँ कवि के जिद्दी हरेश का वर्णन कर रहा है।
- पेट पीठ दोनों मिलकर है एक, चल रहा लकुटिया टेक।
भावार्थ : यहाँ वृद्धावस्था का वर्णन किया गया है।
- कालिंदी कूल कदंब की डारिन
भावर्थ : यहाँ कवि यमुना नदी के किनारे कदम्ब की डालियों पर भगवान कृष्ण के बाल रूप के द्वारा बसेरा बना लिए जाने का वर्णन कर रहा है।
- चमक रही चपला चम चम
भावार्थ : यहाँ कवि बिजली के चमकने का वर्णन कर रहा है।
- चारु चंद्र की चंचल किरणे खेल रही थीं जल थल में।
भावार्थ : यहाँ कवि चन्द्रमा की सुंदरता का वर्णन कर रहा है।
- विमल वाणी ने वीणा ली
भावार्थ : यहाँ कवि गायिका के गायन और संगीत कौशल का वर्णन कर रहा है।
- घेर घेर घोर गगन शोभा श्री
भावार्थ : यहाँ कवि वर्षा के समय आकाश की सुंदरता का वर्णन कर रहा है।
- संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित
भावार्थ : यहाँ कवि मनुष्य के स्वार्थी होने का वर्णन कर रहा है कि किस प्रकार मनुष्य ने अपने स्वार्थ से बाकी संसार के प्राणियों को चकित कर दिया है।
- कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी फेरि।
भावार्थ : यहाँ कवि कहना चाह रहा है कि कोयल कदम्ब के पेड़ पर बैठकर कूक रही है। - बरसत बारिद बून्द गहि
भावार्थ : यहाँ कवि बरसात के बरसने की ख़ूबसूरती का वर्णन कर रहा है। - तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
भावार्थ : सूर्य की पुत्री यमुना के तट पर बड़े-बड़े ऊंचे तमाल के वृक्ष खड़े हैं। यह सारे वृक्ष झुक झुक कर यमुना के जल को स्पर्श करने की चेष्टा कर रहे हैं। इसके साथ ही वे उस जल रूपी दर्पण में अपनी शोभा को भी निहारते जा रहे हैं। - हमारे हरि हारिल की लकरी।
भावार्थ : गोपियाँ कहती हैं हे उद्धव, हमारे लिए तो श्रीकृष्ण हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जैसे हारिल पक्षी जीते जी अपने चंगुल से उस लकड़ी को नहीं छोड़ता ठीक उसी प्रकार हम आपको नहीं छोड़ सकते। - तू मोहन के उरबसी हवे उरबसी समान
भावार्थ : कृष्ण कहते हैं कि हे सुजान राधिके, तुम यह समझ लो कि मैं तुम्हारे रूप-सौंदर्य पर उर्वशी जैसी नारी को भी न्यौछावर कर सकता हूँ। कारण यह है कि तुम तो मेरे हृदय में उसी प्रकार निवास करती हो, जिस प्रकार उर्वशी नामक आभूषण हृदय में निवास करता है। - कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सं राम ह्रदय गुनि
व्याख्या : कंकण, करधनी और पाजेब की झनकार सुनकर राम हृदय में विचारकर लक्ष्मण से कह रहे हैं−मानो कामदेव ने डंका बजाया है और विश्व को जीतने का इरादा किया है। - रावनु रथी विरथ रघुवीरा
व्याख्या : रावण को रथ पर और श्री रघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया (कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत सकेंगे)। - कालिका सी किलकि कलेऊ देती काल को
व्याख्या : शिवजी जी की तलवार किलकारी भरती हुई महाकाली के समान शत्रुओं को मार काटकर महाकाल यमराज को भोग लगाने के लिए प्रस्तुत कर देती है | अर्थात शिवजी जी तलवार से बचना असंभव है
FAQs
जहाँ एक शब्द या वर्ण बार बार हो या एक या अनेक वर्णो की आवृत्ति बार बार हो वहा अनुप्रास अलंकार होता है।
अलंकार के मुख्य दो भेद है- शब्दालंकार और अर्थालंकार।
अलंकारों की संख्या 8 है।
आशा है कि इस ब्लॉग से आपको Anupras Alankar की सम्पूर्ण जानकारी मिली होगी। हिंदी ग्रामर के अन्य महत्वपूर्ण ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहे।