Sudha Arora Ka Jivan Parichay : सुधा अरोड़ा आधुनिक हिंदी साहित्य के सातवें दशक की चर्चित कथाकार हैं। उन्होंने साहित्य की कई विधाओं में अनुपम कृतियों का सृजन करने के साथ ही बड़े पैमाने पर अनुवाद, संपादन और स्तंभ-लेखन भी किया है। पाक्षिक ‘सारिका’ में ‘आम आदमी जिंदा सवाल’ और राष्ट्रीय दैनिक ‘जनसत्ता’ में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर उनका साप्ताहिक स्तंभ ‘वामा’ बहुचर्चित रहा है। इसके आलावा उनका योगदान टेलीविजन, रेडियो नाटक और फिल्म पटकथाओं में भी रहा है जिनमें ‘भँवरी देवी’ के जीवन पर आधारित ‘बवंडर’ (Bawandar) फ़िल्म का पटकथा-लेखन उल्लेखनीय है।
बगैर तराशे हुए, युद्ध-विराम, महानगर की मैथिली, काला शुक्रवार, काँसे का गिलास तथा औरत की कहानी उनकी उलेखनीय कृतियाँ हैं। साहित्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देने के लिए उन्हें वर्ष 1978 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘विशेष पुरस्कार’, वर्ष 2008 में ‘भारत निर्माण सम्मान’, वर्ष 2011 में ‘वीमेन्स अचीवर अवॉर्ड’ और वर्ष 2012 में ‘महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी सम्मान’ आदि से सम्मानित किया जा चुका हैं।
बता दें कि सुधा अरोड़ा की कई रचनाओं को विद्यालय के अलावा बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी सुधा अरोड़ा का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
आइए अब सातवें दशक की चर्चित कथाकार सुधा अरोड़ा का जीवन परिचय (Sudha Arora Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | सुधा अरोड़ा (Sudha Arora) |
जन्म | 4 अक्टूबर, 1946 |
जन्म स्थान | लाहौर, पाकिस्तान (अविभाजित भारत) |
शिक्षा | एम.ए (हिंदी साहित्य), कलकत्ता विश्वविद्यालय |
पेशा | प्राध्यापक, साहित्यकार |
भाषा | हिंदी |
विधाएँ | कहानी, उपन्यास, आलोचना |
मुख्य रचनाएँ | बगैर तराशे हुए, युद्ध-विराम, महानगर की मैथिली, काला शुक्रवार व काँसे का गिलास (कहानी संग्रह) |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
पुरस्कार एवं सम्मान | ‘भारत निर्माण सम्मान’ (वर्ष 2008), ‘प्रियदर्शिनी पुरस्कार’ (वर्ष 2010), ‘वीमेन्स अचीवर अवॉर्ड’ (वर्ष 2011) व ‘वाग्मणि सम्मान’ (वर्ष 2014) |
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अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ था जन्म – Sudha Arora Ka Jivan Parichay
चर्चित कथाकार सुधा अरोड़ा का जन्म 4 अक्टूबर, 1946 को अविभाजित भारत के लाहौर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. ऑनर्स में दो बार स्वर्णपदक प्राप्त किए थे और यहीं से हिंदी साहित्य में एम.ए. की डिग्री हासिल की थी। इसके उपरांत वह वर्ष 1969 से 1971 तक ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ से सम्बद्ध दो डिग्री कॉलेजों में बतौर प्राध्यापक कार्यरत हुईं।
सुधा अरोड़ा का साहित्यिक परिचय
बताया जाता है कि सुधा अरोड़ा का साहित्य के क्षेत्र में पर्दापण उच्च शिक्षा के दौरान हुआ था। शुरुआत में वह कहानियाँ लिखती थीं लेकिन बाद में उन्होंने साहित्य अन्य विधाओं में भी अपनी लेखनी चलाई। उनकी पहली कहानी ‘मरी हुई चीज’ वर्ष 1965 में ‘ज्ञानोदय’ में प्रकाशित हुई थी। वहीं प्रथम कहानी-संग्रह ‘बग़ैर तराशे हुए’ वर्ष 1967 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद 1991 में स्वयंसेवी संस्था ‘हेल्प सलाहकार केंद्र’, मुंबई से जुड़ने के बाद वह सामाजिक कार्यों से जुड़ी और फिर स्वतंत्र लेखन की ओर उन्मुख हुईं।
सुधा अरोड़ा की कहानियाँ लगभग सभी भारतीय भाषाओं के आलावा कई विदेशी भाषाओं में अनुदित हैं। उन्होंने भारतीय महिला कलाकारों के आत्मकथ्यों के दो संकलन ‘दहलीज को लाँघते हुए’ और ‘पंखों की उड़ान’ तैयार किए हैं।
संपादन और स्तंभ लेखन
सुधा अरोड़ा ने स्तंभ लेखन (Column Writing) के साहित्यिक परिदृश्य पर भी अपनी खास जगह बनाई है। वर्ष 1977-78 में पाक्षिक ‘सारिका’ में ‘आम औरत: जिंदा सवाल’, वर्ष 1997-98 में दैनिक अख़बार ‘जनसत्ता’ में साप्ताहिक स्तंभ ‘वामा’, वर्ष 2004 से 2009 तक ‘कथादेश’ में ‘औरत की दुनिया’ और वर्ष 2013 से ‘राख में दबी चिनगारी’ उनके प्रमुख स्तंभ हैं। इसके साथ ही उन्होंने बड़े पैमाने पर अनुवाद और संपादन किया है तथा ‘भंवरी देवी’ पर वर्ष 2000 में बनी फिल्म ‘बवंडर’ की पटकथा भी उन्होंने ही लिखी है।
वहीं, ‘युद्ध विराम’, ‘दहलीज़ पर संवाद’, ‘इतिहास दोहराता है’ व ‘जानकीनामा’ कहानियों पर दूरदर्शन द्वारा लघु-फिल्मों का निर्माण उनके उल्लेखनीय कार्य है। इसके साथ ही वह महिला संगठनों के सामाजिक कार्यों व सलाहकार केंद्रों से सक्रिय रूप से जुड़ी रही हैं। वर्तनाम में वह भारतीय भाषाओं के पुस्तक केंद्र ‘वसुंधरा’ मुंबई की मानद निदेशक पद पर कार्यरत हैं।
सुधा अरोड़ा की प्रमुख रचनाएं – Sudha Arora Ki Rachnaye
सुधा अरोड़ा (Sudha Arora Ka Jivan Parichay) मूलत: कथाकार हैं। वहीं अब तक उनके बारह कहानी-संकलन, एक कविता-संकलन तथा एक उपन्यास के अतिरिक्त वैचारिक लेखों की दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। यहाँ सुधा अरोड़ा की प्रमुख रचनाओं के बारे में बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं :-
कहानी-संग्रह
- बगैर तराशे हुए
- युद्ध-विराम
- महानगर की मैथिली
- काला शुक्रवार
- काँसे का गिलास
- रहोगी तुम वही
- बुत जब बोलते हैं
- कसौटी पर कथा
- मेरी तेरह कहानियाँ
आलोचना
- आम औरत: जिंदा सवाल
- एक औरत की नोटबुक
- साँकल, सपने और सवाल
उपन्यास
- यहीं कहीं था घर
पुरस्कार एवं सम्मान
सुधा अरोड़ा (Sudha Arora Ka Jivan Parichay) को हिंदी कथा साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं :-
- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘विशेष पुरस्कार’ – वर्ष 1978
- ‘भारत निर्माण सम्मान’ – वर्ष 2008
- ‘प्रियदर्शिनी पुरस्कार’ – वर्ष 2010
- ‘वीमेन्स अचीवर अवॉर्ड’ – वर्ष 2011
- ‘महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी सम्मान’ – वर्ष 2012
- ‘वाग्मणि सम्मान’ – वर्ष 2014
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ सातवें दशक की चर्चित कथाकार सुधा अरोड़ा का जीवन परिचय (Sudha Arora Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-
FAQs
सुधा अरोड़ा का जन्म 4 अक्टूबर, 1946 को अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ था।
सुधा अरोड़ा को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘विशेष पुरस्कार’,‘भारत निर्माण सम्मान’, ‘वीमेन्स अचीवर अवॉर्ड’ और ‘महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी सम्मान’ आदि से सम्मानित किया जा चुका हैं।
बगैर तराशे हुए, युद्ध-विराम, महानगर की मैथिली, काला शुक्रवार, काँसे का गिलास तथा औरत की कहानी उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
रहोगी तुम वही, सुधा अरोड़ा का लोकप्रिय कहानी-संग्रह है।
आशा है कि आपको सुपरिचित कथाकार सुधा अरोड़ा का जीवन परिचय (Sudha Arora Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।