Rupak Alankar in Hindi : रूपक अलंकार क्या है, साथ ही जानें Rupak Alankar के भेद और उदाहरण

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Rupak Alankar

अलंकार का अर्थ है आभूषण या श्रंगार। जिस प्रकार महिलाएं अपनी सुंदरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों का उपयोग करती हैं, उसी प्रकार हिंदी भाषा में अलंकार का उपयोग कविता की सुंदरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। हिंदी में अलंकार महत्वपूर्ण माने जाते हैं और यह बोर्ड एग्जाम के अलावा कई प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। अलंकार के कई भेद और रूप हैं, इनमें रूपक अलंकार भी शामिल है। इस ब्लाॅग Rupak Alankar में आप Rupak Alankar in Hindi किसे कहते हैं और इसके भेद व उदाहरण के बारे में जानेंगे।

रूपक अलंकार क्या है?

अलंकारों की सीरीज में Rupak Alankar भी शामिल है। रूपक अंलकार का मतलब है कि उपमेय और उपमान में कोई अंतर नहीं दिखाई होता है। जहां उपमेय और उपमान के बीच भेद को खत्म कर उसे एक कर दिया जाता है तो वहां पर Rupak Alankar होता है।

  • उपमेय- काव्य में जिसकी समान गुण-धर्म के आधार पर तुलना की जाती है तो उसे उपमेय कहा जाता है। 
  • उपमान- जिस वस्तु साथ उपमेय की तुलना की जाती है तो उसे उपमान कहा जाता है। 

यह भी पढ़ें- अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण सहित पूरी जानकारी

रूपक अलंकार की परिभाषा (Rupak Alankar ki Paribhasha)

रूपक अलंकार अर्थालंकारों में से एक है। Rupak Alankar में ध्यान रखना होता है कि उपमेय को उपमान का रूप देना, वाचक पद का लोप और उपमेय का भी साथ-साथ वर्णन हो। किन्हीं दो व्यक्ति में अंतर करना मुश्किल हो जाए तो उसे Rupak Alankar in Hindi कहते हैं। 

Rupak Alankar in Hindi

रूपक अलंकार के भेद क्या हैं?

अंलकारों की सीरीज में भेद भी शामिल हैं। Rupak Alankar के 3 भेद होते हैं, जो इस प्रकार बताए गए हैंः

  1. सांग रूपक- जिस रूपक में उपमेय के अंगों व अवयवों पर उपमान के अंगों व अवयवों का आरोप होता है, उसे सांग रूपक कहते हैं।
  2. निरंग रूपक- जिस रूपक में उपमेय पर उपमान का आरोप होता है और अंगों पर आरोप नहीं होता है तो उसे निरंग रूपक कहा जाता है।
  3. पांरपरित रूपक- पांरपरित रूपक में एक आरोप दूसरे आरोप का कारण होता है।
Source- Shubham lecturer

रूपक अलंकार के उदाहरण (Rupak Alankar Ke Udaharan)

रूपक अलंकार के 20 उदाहरण अर्थ सहित इस प्रकार हैंः

  1. मन-सागर, मनसालहरि, बूड़े-बहे अनेक- इस उदाहरण में मन (उपमेय) पर सागर (उपमान) का और मनसा यानी इच्छा (उपमेय) पर लहर (उपमान) का आरोप है, इसलिए यह रूपक अलंकार है। 
  2. गोपी पद-पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे- पैरों- उपमेय पर कमल- उपमान का आरोप है, इसलिए यहां रूपक अलंकार है।
  3. मुनि पद कमल बंदिदोउ भ्राता- मुनि के चरणों (उपमेय) पर कमल (उपमान) का आरोप है, इसलिए यहां रूपक अलंकार है।
  4. शशि-मुख पर घूंघट डाले अंचल में दीप छिपाये- इस वाक्य में मुख-उपमेय पर चंद्रमा यानी शशि-उपमान का आरोप है।
  5. भजमन चरण कंवल अविनाशी-  यहां ईश्वर के चरणों (उपमेय) पर कंवल (कमल) उपमान का आरोप है इसलिए यहां रूपक अलंकार है।
  6. सिंधु-बिहंग तरंग-पंख को फड़काकर प्रतिक्षण में- यहां सिंधु (उपमेय) पर विहंग (उपमान) का और तरंग (उपमेय) पर पंख (उपमान) का आरोप है, इसलिए यहां रूपक अलंकार है।
  7. अपलक नभ नील नयन विशाल- यहां आकाश (उपमेय) पर अपलक नयन (उपमान) का आरोप है, इसलिए यह रूपक अलंकार है।
  8. पायो जी मैंने राम रतन धन पायो- यहां राम रतन (उपमेय) पर धन (उपमान) का आरोप है और दोनों में अभिन्नता है, इसलिए यहां रूपक अलंकार होगा।
  9. अपर धनेश जनेश यह, नहिं पुष्पक आसीन- इस वाक्य में जनेश (राजा) को दूसरा धनेश (कुबेर) कहा है, इसलिए यहां रूपक अलंकार है।
  10. बल विभव में कुरूराज सचमुच दूसरा सुरराज है- इस वाक्य में कुरूराज यानी दुर्योधन को दूसरा सुरराज यानी इंद्र बताया है, इसलिए यहां रूपक अलंकार है।
  11. वधपुरी अमरावती दूजी। दशरथ दूजो इंद्र मही पर- इस वाक्य में अवधपुरी को दूसरी अमरावती बताया है और राजा दशरथ को भी इस धरती पर दूसरे इंद्र की संज्ञा दी है, इसलिए यह रूपक अलंकार है।
  12. मुख दूसरा चांद है- इस वाक्य में मुख को दूसरा चंद्रमा कहा गया है, इसलिए यहां रूपक अलंकार लागू होता है।
  13. प्रेम अतिथि है खड़ा द्वार पर हृदय कपाट खोल दो तुम- इस वाक्य में भी रूपक अलंकार है। 
  14. मुख कमल है- यहां मुख को ही कमल माना गया है, इसलिए यह रूपक अलंकार है।
  15. अवधेस के बालक चारि सदा, तुलसी मन-मंदिर में विहरें- इस वाक्य में उपमेय (मन) में उपमान (मंदिर) का निषेध रहित अभेद आरोप है, इसलिए यह रूपक अलंकार है।
  16. अवधपुरी अमरावती दूजी, दशरथ दूजो इंद्र मही पर- इस वाक्य में अवधपुरी को दूसरी अमरावती बताया है और राजा दशरथ को भी इस धरती पर दूसरे इंद्र की संज्ञा दी है, इसलिए यहां रूपक अलंकार है।
  17. अपर धनेश जनेश यह, नहिं पुष्पक आसीन- इस वाक्य में जनेश (राजा) को दूसरा धनेश (कुबेर) कहा गया है, इसलिए यहां रूपक अलंकार है।
  18. महिमा मृगी कौन सुकृति का, खल-वच विसिख न बांची- इस वाक्य में महिमा में मृगी का आरोप, दुष्ट वचन में बाण के आरोप के कारण पड़ा है, इसलिए यह रूपक अलंकार है।
  19. हरिमुख मृदुल मयंक- इस वाक्य में मुख को चंद्रमा बताया गया है, इसलिए यह रूपक  अलंकार है।
  20. आशा मेरे हृदय-मरु की मंजु-मंदाकिनी है- इस वाक्य में हृदय को मरु के रूप में और आशा को मंदाकिनी के रूप में देखा गया है, इसलिए यहां रूपक अलंकार है।

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FAQs

रूपक अलंकार की पहचान कैसे की जाती है?

रूपक अलंकार में उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाए।

रूपक अलंकार के कितने भेद है?

रूपक अलंकार के कुल 3 भेद हैं।

सांग रूपक क्या है?

जिस रूपक में उपमेय के अंगों व अवयवों पर उपमान के अंगों व अवयवों का आरोप होता है, उसे सांग रूपक कहते हैं।

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग Rupak Alankar में आपको रूपक अलंकार के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। यदि आपको Rupak Alankar in Hindi ब्लॉग पसंद आया है तो इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ शेयर ज़रूर करें। हिंदी व्याकरण के अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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