Chittorgarh ka Kila: जानिए भारतीय इतिहास की इस बहुमूल्य धरोहर के बारे में

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Chittorgarh ka Kila

राजस्थान की भूमि राजपूतों और राजा महाराजाओं की भूमि रही है। राजस्थान में अनेक प्राचीन किले और महल मौजूद हैं। इन्हीं प्राचीन किलों में से एक मशहूर किला Chittorgarh ka Kila भी है। चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है। चित्तौड़ गढ़ के किले को मौर्य राजवंश के महान सम्राट चित्रांगद मौर्य ने बनवाया था। यहाँ चित्तौड़ के किले का इतिहास और उससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताया जा रहा है।  

नगर चित्तौड़ 
राज्य राजस्थान 
निर्माता चित्रांगद मौर्य
निर्माण शताब्दी 7वीं शताब्दी 
UNESCO में शामिल हुआ 21जून, 2013 
प्राचीन नाम चित्रकूट 

चित्तौड़ के किले का इतिहास 

इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद मौर्य ने सातवीं शताब्दी में करवाया था और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया। मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट नाम अंकित मिलता है। बाद में यह चित्तौड़ कहा जाने लगा। यह मेसा के पठार पर स्थित है। सन् 738 में राजा बप्पा रावल ने राजपूताने पर राज्य करने वाले मौर्यवंश के अंतिम शासक मानमोरी को हराकर यह किला अपने अधिकार में कर लिया। फिर मालवा के परमार राजा मुंज ने इसे गुहिलवंशियों से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया। इस प्रकार 9 वीं – 10वीं शताब्दी में इस पर परमारों का आधिपत्य रहा। सन् 1133 में गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह (सिद्धराज) ने यशोवर्मन को हराकर परमारों से मालवा छीन लिया, जिसके कारण चित्तौड़गढ़ का दुर्ग भी सोलंकियों के अधिकार में आ गया। 

बाद में जयसिंह के उत्तराधिकारी कुमारपाल के भतीजे अजयपाल से वैवाहिक सम्बन्ध बना कर चित्तौड़गढ़ के राजा सामंत सिंह ने सन् 1174 के आसपास पुनः गुहिलवंशियों का आधिपत्य स्थापित कर दिया। इन्हीं राजा सामंत सिंह का विवाह पृथ्वीराज चौहान की बहन पृथ्वीबाई से हुुुआ। तराइन के द्वितीय युद्ध में सामंंत सिंह की मृत्यु हो गयी। सन् 1213 से 1252 तक नागदा को इल्तुतमिश केे द्वारा तहस- नहस कर देने के बाद राजा जैत्र सिंह ने अपनी राजधानी चित्तौड़ से शासन चलाया। सन् 1303 में यहाँ के रावल रत्नसिंह की अलाउद्ददीन खिलजी से लड़ाई हुई और यही चितौड़ का प्रथम शाका के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस लड़ाई में अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई और उसने अपने पुत्र खिज्र खाँ को यह राज्य सौंप दिया खिज्र खाँ ने वापसी पर चित्तौड़ का राजकाज कान्हादेव के भाई मालदेव को सौंप दिया।

चित्तौड़ के किले का निर्माण 

चित्तौड़ के किले का निर्माण 7वीं शताब्दी में मौर्य वंश के राजा चित्रांगद मौर्य ने कराया था। इसके निर्माण के समय इसका नाम चित्रकूट रखा गया था लेकिन बाद में इसे Chittorgarh ka Kila कहा जाने लगा। यह मेसा के पठार पर स्थित है। इसके निर्माण के समय को लेकर भी संदेह की स्थिति मानी जाती है। कुछ दस्तावेज़ों में इसके निर्माण का समय 7वीं सदी के आसपास बताया  जाता है जबकि कुछ दस्तावेज़ों में इसका निर्माण समय 8वीं सदी में वर्णित है।  

चितौड़ के किले में स्थित छतरियां 

चित्तौड़ के किले में बहुत सी सुंदर सुंदर छतरियां बनी हुई हैं। इन छतरियों को चित्तौड़ के किले का मुख्य आकर्षण माना जाता है। इन छतरियों में से दो प्रमुख छतरियों के बारे में यहाँ बताया जा रहा है : 

कल्ला की छतरी 

प्रथम चार स्तम्भों वाली छतरी प्रसिद्ध राठौड़ जैमल (जयमल बदनोर के राजा) के कुटुंबी कल्ला की है। यह छतरी बहुत ही खूबसूरत है और इसके ऊपर तरह तरह की कलाकृतियां बनी हुई हैं।  

जैमल की छत्तरी 

जैमल की छतरी राजा जयमल के कारण प्रसिद्द है। जब राजा जयमल एक टूटी दीवार की मरम्मत करवा रहे थे तब अकबर की गोली उनको आकर लगी। गोली उनके पैर में आकर लगी और उनकी एक टांग खराब हो गई। इसी छतरी के पास दोनों राठौर राजा लड़ते हुए शहीद हुए थे। वास्तव में जैमल की छतरी राजपूत राजाओं के शौर्य का प्रतीक है।  

चित्तौड़ के किले में स्थित स्मारक और स्तम्भ 

चित्तौड़ के किले में स्थित स्मारकों और स्तम्भों का विवरण इस प्रकार है : 

पत्ता का स्मारक 

रामपोल में प्रवेश करते ही सामने की तरफ चबूतरे पर सीसोदिया पत्ता के स्मारक का पत्थर है। आमेर के रावतों के पूर्वज पत्ता सन् 1568 में अकबर की सेना से लड़ते हुए इसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुए थे।

कीर्ति स्तम्भ 

कीर्ति स्तम्भ वास्तव में आदिनाथ का स्मारक है, जिसके चारों पार्श्व पर आदिनाथ की 5 फुट ऊँची दिगम्बर (नग्न) जैन मूर्ति खड़ी है तथा बाकी के भाग पर छोटी-छोटी जैन मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। इस स्तम्भ के ऊपर की छत्री बिजली गिरने से टूट गई थी तथा इससे इमारत को बड़ी हानि पहुँची थी। महाराणा फतह सिंह जी ने इस स्तम्भ की मरम्मत करवाई।

चित्तौड़ के किले में स्थित मंदिर 

चित्तौड़ के किले में अनेकों सुंदर और भव्य मंदिर बने हुए हैं जो कि इसकी शान भी माने जाते हैं। इन मंदिरों को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। यहाँ चित्तौड़ के किले में मौजूद मंदिरों के बारे में बताया जा रहा है : 

महावीर स्वामी का मंदिर

जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट ही महावीर स्वामी का मन्दिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा कुम्भा के राज्यकाल में ओसवाल महाजन गुणराज ने करवाया थ। हाल ही में जीर्ण-शीर्ण अवस्था प्राप्त इस मंदिर का जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग ने किया है। इस मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है।

नीलकंठ महादेव का मंदिर

यह भगवान शिव का मंदिर है। कहा जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के समय इस मंदिर को स्थापित कराया था। पांडव भगवान शिव के बड़े भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ही पांडवों ने नीलकंठ महादेव का मंदिर का निर्माण किया था।  

अद्बद्जी का मंदिर

इस मंदिर का निर्माण महाराणा रायमल ने सन् 1394 में करवाया था। जीर्ण-शीर्ण अवस्था प्राप्त इस मंदिर की स्थापत्य कला दर्शनीय है। मंदिर में शिवलिंग है तथा उसके पीछे दीवार पर महादेव की विशाल त्रिमूर्ति है, जो देखने में समीधेश्वर मंदिर की प्रतिमा से मिलती है। अद्भुत प्रतिमा के कारण ही इस मंदिर को अद्बद्जी का मंदिर कहा जाता है।

चित्तौड़ के किले में स्थित तालाब 

चितौड़ के किले में चत्रंग का तालाब स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार इस तालाब का निर्माण मौर्यवंश के राजाओं ने कराया था। यह तालाब चित्तौड़ देखने आने वाले पर्यटकों का मुख्य आकर्षण होता है।  

चित्तौड़ के किले में स्थित पोल 

चितौड़ के किले के अंदर बहुत सारे पोल स्थित हैं। ये पोल चित्तौड़ के किले के मुख्य आकर्षण में से एक हैं। यहाँ चित्तौड़ के किले में स्थित पोल के बारे में जानकारी दी जा रही है : 

हनुमान पोल

दुर्ग के तृतीय प्रवेश द्वार को हनुमान पोल कहा जाता है। क्योंकि पास ही हनुमान जी का मंदिर है। इस मंदिर में स्थित हनुमान जी की मूर्ति बहुत ही सुंदर है।  

गणेश पोल

हनुमान पोल से कुछ आगे बढ़कर दक्षिण की ओर मुड़ने पर गणेश पोल आता है, जो दुर्ग का चौथा द्वार है। इसके पास ही गणपति जी का मंदिर है।

जोड़ला पोल

यह दुर्ग का पाँचवां द्वार है और छठे द्वार के बिल्कुल पास होने के कारण इसे जोड़ला पोल कहा जाता है।

लक्ष्मण पोल

दुर्ग के इस छठे द्वार के पास ही एक छोटा सा लक्ष्मण जी का मंदिर है जिसके कारण इसका नाम लक्ष्मण पोल है।

राम पोल

लक्ष्मण पोल से आगे बढ़ने पर एक पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार मिलता है, जिससे होकर किले के अन्दर प्रवेश कर सकते हैं। यह दरवाजा किला का सातवां तथा अन्तिम प्रवेश द्वार है। इस दरवाजे के बाद चढ़ाई समाप्त हो जाती है। इसके निकट ही महाराणाओं के पूर्वज माने जाने वाले सूर्यवंशी भगवान श्री रामचन्द्र जी का मंदिर है। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य कला एवं हिन्दू संस्कृति का उत्कृष्ट प्रतीक है। भगवान राम के मंदिर के कारण ही इसे राम पोल कहा जाता है।   

FAQs 

चित्तौड़गढ़ का दूसरा नाम क्या है?

अलाउद्दीन खिलजी खिलजी वंश के शक्तिशाली शासकों में से एक था। उसने 1303 में चित्तौड़ पर विजय प्राप्त की और बाद में उन्होंने इसका नाम बदलकर खिजराबाद कर दिया।

चित्तौड़गढ़ को किसने नष्ट किया?

चित्तौड़गढ़ जो मुग़ल शासक अकबर ने नष्ट किया था।  

Chittorgarh ka Kila किसका प्रतीक है?

चितौड़ का किला राजपूत राजाओं के शौर्य और वीरता का प्रतीक है।  

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग में Chittorgarh ka Kila के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी प्रकार के अन्य दुर्ग और किलों का इतिहास पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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