स्टूडेंट के लिए पंडित दीन दयाल उपाध्याय पर 100, 200, 400 शब्दों में निबंध

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर निबंध

हर साल पंडित दीन दयाल उपाध्याय की जयंती मनाने और उनके जीवन को याद करने के लिए 25 सितंबर को भारत में अंत्योदय दिवस मनाया जाता है। स्कूल में अक्सर पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर निबंध लिखने को दिया जाता है। इसलिए आज आप इस ब्लॉग में पंडित दीन दयाल उपाध्याय पर 100, 200, 400 शब्दों में निबंध पढ़ेंगें। 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर निबंध 100 शब्दों में

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार हमेशा, सादा जीवन, उच्च विचार और दृढ़ निश्चय वाले ही थे। वह मेधावी छात्र, बेस्ट  ऑर्गनाइज़र, राइटर, जर्नलिस्ट, थिंकर, फिलासफर, सच्चे राष्ट्रवादी और मानवतावादी थे। पंडित जी 1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में शामिल हुए और प्रचारक के रूप में सामने आए और उस समय दीनदयाल उपाध्याय को भारतीय जनसंघ के महासचिव की जिम्मेदारी दी गई,  वे इस पद पर 1951 से 1967 तक रहे, यही नहीं 29 दिसंबर, 1967 को पंडित जी जनसंघ के अध्यक्ष बने। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन-दर्शन देखा जाये तो स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी से जुड़ा था।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर निबंध

पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर निबंध 200 शब्दों में

पंडित दीनदयाल दीनदयाल जी एक रचनात्मक लेखक (क्रिएटिव राइटर) और प्रसिद्ध संपादक (एडिटर) थे। पंडित जी दैनिक ‘राष्ट्र धर्म’ में पत्रकार थे, उन्होंने संपादक के रूप में ‘पांचजन्य’ के लिए काम किया और उन्होंने साप्ताहिक ‘ऑर्गनाइज़र’ के लिए ‘पॉलिटिकल डायरी’ नामक एक कॉलम लिखा था। 

दीन दयाल उपाध्याय जी का बहुत योगदान रहा भारत को मजबूत, जीवंत और आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमारे सांस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रवादी मूल्य के आधार पर स्वदेशी इकोनॉमिक पॉलिसी को अपनाने की आवश्यकता पर बहुत बल दिया था। जिसे हम एकात्म मानववाद कहते हैं। इसे न तो पूंजीवाद है और न ही समाजवाद। ये भारतीय मॉडल की अर्थव्यवस्था के अनुकूल है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपने विचारों को लोगों के सामने वयक्त किया, जिससे लोगों में एक सकारात्मकता का विचार आया और अपने जीवन की दिशा को आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्न किए। वे कुछ अनमोल विचार इस प्रकार हैं-

  • अंग्रेजी शब्द रिलिजन, धर्म के लिए सही शब्द नहीं है।
  • बिना राष्ट्रीय पहचान के स्वतंत्रता की कल्पना व्यर्थ है।
  • एक अच्छे को शिक्षित करना वास्तव में समाज के हित में है।
  • शक्ति हमारे असंयत व्यवहार में नहीं बल्कि संयत कार्यवाही में निहित है।
  • अवसरवाद से राजनीति के प्रति लोगों का विश्वास खत्म होता जा रहा है।
  • नैतिकता के सिद्धांत किसी के द्वारा बनाये नहीं जाते, बल्कि खोजे जाते हैं।
  • शिक्षा एक निवेश है, जो आगे चलकर शिक्षित व्यक्ति समाज की सेवा करेगा।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर निबंध 400 शब्दों में

पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर निबंध 400 शब्दों में नीचे दिया गया है :

प्रस्तावना

गणित विषय में अव्वल अंक प्राप्त करने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने लखनऊ में राष्ट्र धर्म प्रकाशन नामक संस्थान की स्थापना की और अपने विचारों को जाहिर करने के लिए एक मासिक पत्रिका राष्ट्र धर्म को शुरू किया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कई पुस्तकें लिखी जिनमें सम्राट चन्द्रगुप्त, भारतीय अर्थनीति एक दिशा, जगदगुरू शंकराचार्य प्रमुख थी। यही नहीं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन पर ‘दीन दयाल एक युग पुरुष’ एक फिल्म भी बन चुकी है। 

जीवन परिचय 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय (25 सितंबर, 1916 – 11 फरवरी, 1968) भारतीय जनसंघ के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे, वह पार्टी जो वर्तमान भारतीय जनता पार्टी में तब्दील हो गई। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था और फिर उनका पालन-पोषण उनके मामा ने किया। उनका पूरा नाम दीन दयाल उपाध्याय था, लेकिन परिवार में उन्हें प्यार से दीना कहा जाता था। उन्होंने सीकर से हाईस्कूल किया। 

शिक्षा और सम्मान

बोर्ड एग्जाम में पहला स्थान प्राप्त करने पर सीकर के तत्कालीन शासक महाराजा कल्याण सिंह ने उनकी योग्यता के सम्मान में एक स्वर्ण पदक, 10 रुपये की मासिक छात्रवृत्ति और उनकी किताबों के लिए 250 रुपये दिए। मैट्रिक करने के बाद दीनदयाल जी इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए पिलानी गए, जहां उन्होंने 1937 में न केवल बोर्ड परीक्षा में टॉप के साथ सभी विषयों में डिस्टिंक्शन मिली। दीन दयाल जी ने 1939 में सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से प्रथम श्रेणी में बीए किया और अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा में प्रवेश ले लिया। उनकी रुचि के विशेष क्षेत्र समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र थे।

1937 में आरएसएस में हुए शामिल 

1937 में आरएसएस में शामिल हुए और श्री नाना जी देशमुख और श्री भाऊ जुगाड़े से मिले। RSS शिक्षा विंग में अपनी शिक्षा और ट्रेनिंग पूरा करने के बाद वह संघ के आजीवन प्रचारक बन गए। दीनदयाल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से राजनीति में प्रवेश किया, 1951 से 1967 तक भारतीय जनसंघ के महासचिव बन गए और उसके बाद 29 दिसंबर 1967 को जनसंघ के अध्यक्ष बने। 

रचनात्मक लेखक

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक रचनात्मक लेखक और एक प्रसिद्ध संपादक थे। वे ‘राष्ट्र धर्म’ दैनिक में एक पत्रकार थे, उन्होंने ‘पांचजन्य’ के संपादक के रूप में काम किया और साप्ताहिक ‘ऑर्गनाइज़र’ के लिए ‘राजनीतिक डायरी’ नामक एक कॉलम लिखा। पत्रकारिता के लिए उनका मंत्र था ‘खबरों को तोड़ मरोड़ कर पेश मत करो’। उन्होंने सम्राट चंद्रगुप्त, जगतगुरु शंकराचार्य, राजनीतिक डायरी, एकात्म मानववाद, एकात्म मानववाद और भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के सहित कई किताबें लिखीं।

मृत्यु

लेकिन यहां उनका कार्यकाल अल्पकालिक था और केवल 43 दिनों के बाद राष्ट्रपति बनने के बाद 11 फरवरी, 1968 को 52 वर्ष की आयु में रहस्यमय परिस्थितियों में उन्हें मुगलसराय में एक रेलवे ट्रैक पर मृत पाया गया। पंडित दीनदयाल की मृत्यु अभी भी अनसुलझी है।

उपसंहार 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी राष्ट्र निर्माण के एक कुशल निवारक में से एक रहे हैं। उपाध्याय जी जनसंघ के राष्ट्रीय जीवन दर्शन के निर्माता माने जाते थे। उनका हमेशा से उद्देश्य स्वतंत्रता की पुनर्रचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टि प्रदान करना ही था। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है।

FAQs

दीनदयाल उपाध्याय का जन्म दिवस कब मनाया जाता है?

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितंबर 1916 को हुआ था।

उपाध्याय का पूरा नाम क्या है?

पंडित दीनदयाल उपाध्याय

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के अध्यक्ष बने?

29 दिसंबर 1967 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के अध्यक्ष बने।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की मृत्यु कब हुई?

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की मृत्यु 11 फरवरी, 1968 को हुई।

आशा है आपको पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर निबंध का यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही मोटिवेशन और  ट्रेंडिंग ब्लॉग्स पर ब्लॉग को पढ़ने के लिए  की तरह अन्य Leverage Edu के साथ बने रहिए।

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