अलंकार का शाब्दिक अर्थ ‘आभूषण’ या ‘सजावट’ है। जैसे आभूषण शरीर की सुंदरता बढ़ाते हैं, वैसे ही अलंकार भाषा को सुंदर और प्रभावशाली बनाते हैं। कवि और लेखक अपनी रचनाओं को रोचक और आकर्षक बनाने के लिए अलंकारों का उपयोग करते हैं। अलंकार न सिर्फ साहित्य को समझने में मदद करते हैं, बल्कि स्कूली पढ़ाई और हिंदी व्याकरण की परीक्षाओं में भी बहुत काम आते हैं। इसलिए छात्रों के लिए अलंकारों का अभ्यास करना ज़रूरी है, क्योंकि ये भाषा की समझ को मजबूत करते हैं और अच्छे अंक लाने में मदद करते हैं। इस लेख में हम अलंकार की परिभाषा, भेद, उपभेद और उदाहरणों को सरल तरीके से समझेंगे।
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अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित
किसी कविता, कहानी या अन्य साहित्यिक रचना को शब्दों की सुंदरता, भाव और असर से सजाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं। जैसे गहनों से शरीर सुंदर दिखता है, वैसे ही अलंकार से भाषा और विचार सुंदर और प्रभावशाली बनते हैं। यह रचना को रोचक बनाता है और पाठक या श्रोता तक भावों को आसानी से पहुँचाता है।
उदाहरण:
- अनुप्रास: चाँदनी रात में चमकते तारे।
- उपमा: वह फूल की तरह खिलती है।
- रूपक: जीवन एक यात्रा है।
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अलंकार के प्रकार
अलंकार कविता और साहित्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये शब्दों और अर्थों को सजाते हैं और उन्हें अधिक प्रभावशाली बनाते हैं। अलंकार के दो प्रमुख भेद हैं –
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
शब्दालंकार क्या है?
शब्दालंकार शब्द “शब्द” और “अलंकार” के संयोजन से बना है। शब्द के दो प्रमुख रूप होते हैं: ध्वनि और अर्थ। शब्दालंकार की रचना ध्वनि के आधार पर होती है। जब कोई अलंकार विशेष शब्द की स्थिति में रहकर उस शब्द का अस्तित्व बनाए रखता है, और यदि हम उस शब्द के स्थान पर किसी अन्य पर्यायवाची शब्द का उपयोग करते हैं, तो उस शब्द का महत्व समाप्त हो जाता है। ऐसे में इसे शब्दालंकार कहा जाता है। इसके अलावा, जब किसी अलंकार में शब्दों के प्रयोग से चमत्कार उत्पन्न होता है, और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी शब्द रखने पर वह चमत्कार खत्म हो जाता है, तो इसे भी शब्दालंकार माना जाता है।
शब्दालंकार के प्रकार
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- पुनरुक्ति अलंकार
- विप्सा अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
- श्लेष अलंकार
अनुप्रास अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित
अनुप्रास अलंकार वह अलंकार है जिसमें किसी कविता या गीत में एक ही ध्वनि या अक्षर कई बार दोहराया जाता है। इससे शब्दों में एक तरह की लय और मिठास आती है और कविता या गीत और सुंदर लगता है।
उदाहरण: “चाँद चमकता चाँदनी रात में।”
(यहां ‘चाँद’ और ‘चमकता’ में ‘च’ ध्वनि की पुनरावृत्ति की गई है।)
“काले काले काजल की काजल से।”
(यहां ‘काले’ और ‘काजल’ में ‘क’ ध्वनि की पुनरावृत्ति की गई है।)
“राम राज्यम् रघुकुल नायकम्।”
(यहां ‘राम’, ‘राज्यम्’, और ‘रघुकुल’ में ‘र’ ध्वनि की पुनरावृत्ति की गई है।)
बिद्यादान से बढ़कर, नहीं जग में दान।
आन बान सब कुछ, पाई विद्याधान।।
(यहां ‘ब’ ध्वनि की पुनरावृत्ति है।)
संग संग चलिए, सखा सँग संग।
संग संग चलिए, संगम में जंग।।
(यहां ‘स’ ध्वनि की पुनरावृत्ति है।)
पुनरुक्ति अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित
पुनरुक्ति अलंकार वह है जिसमें किसी एक ही शब्द को बार-बार दोहराया जाता है और उसका मतलब वही रहता है। इससे कविता या कहानी में शब्दों का असर बढ़ता है और भाव अच्छे से समझ में आते हैं।
उदाहरण :
“चलो चलें, चलो चलें, धरती की ओर चलें।”
(“चलो चलें” का दोहराव इस वाक्य में किया गया है।)
“सपने में सपने देखे, सपनों में सपने खोए।”
(यहां “सपने” शब्द का पुनरावृत्ति की गई है।)
“गमले में गमले लगाए, गमले में फूल खिलाए।”
(“गमले” शब्द का दोहराव किया गया है।)
विप्सा अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित
विप्सा अलंकार वह अलंकार है जिसमें विशेष भावों (जैसे आदर, हर्ष, शोक, विस्मय आदि) को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए किसी शब्द को पुनरावृत्ति किया जाता है। इसमें शब्द का प्रयोग एक ही अर्थ में होता है, लेकिन उसका प्रभाव बढ़ाने के लिए उसे अलग-अलग स्थानों पर रखा जाता है।
उदाहरण :
“धन्य-धन्य है वो जो सच्चाई से न भटके।
भटके भटके तो फिर से लौटकर वो सच्चाई पाए।”
स्पष्टीकरण :
- यहां “धन्य” शब्द का पुनरावृत्ति की गई है।
- पहले “धन्य” में इसे एक सकारात्मक अर्थ में प्रयोग किया गया है, जबकि दूसरे में इसे सच्चाई के महत्व को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया है।
वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित
वक्रोक्ति अलंकार वह अलंकार है जिसमें वक्ता के शब्दों का श्रोता द्वारा अलग या भिन्न अर्थ निकाला जाता है। यह अलंकार तब प्रकट होता है जब शब्दों का अर्थ उनकी संदर्भ स्थिति से परे जाकर समझा जाता है।
वक्रोक्ति अलंकार के भेद
- काकू वक्रोक्ति अलंकार
- श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
1. काकू वक्रोक्ति अलंकार – जब वक्ता द्वारा बोले गए शब्दों को उसके कंठ की ध्वनि के कारण श्रोता द्वारा कुछ अन्य प्रकार का अर्थ निकाला जाता है, तो उसे काकू वक्रोक्ति अलंकार कहते हैं।
उदाहरण:
“मैं सुकुमारी नाथ बन जोगू।”
- स्पष्टीकरण:
- इस वाक्य में “सुकुमारी” और “नाथ” शब्दों की ध्वनि से एक ऐसा अर्थ निकलता है जो सुनने वाले के लिए चौंकाने वाला या मजेदार हो सकता है।
- यह अप्रत्यक्षता से यह संकेत देता है कि वक्ता की वास्तविक मंशा कुछ और हो सकती है।
2. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार – जब वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अर्थ श्लेष (अर्थ की बहुलता) के कारण श्रोता द्वारा भिन्न रूप से निकाला जाता है, तो वह श्लेष वक्रोक्ति अलंकार कहलाता है।
उदाहरण :
को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हौ तौ कितहूँ बरसो ।
चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहुं जहाँ धन सरसों।।
श्लेष अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित
श्लेष अलंकार उस अलंकार को कहते हैं जहाँ एक ही शब्द का एक बार प्रयोग करके उसके दो या अधिक अर्थ निकाले जाते हैं। यह अलंकार शब्दों के अर्थ में गहराई और विविधता को दर्शाता है।
उदाहरण:
“रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै, मोती मानस चून।”
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अर्थालंकार और उसके भेद
जहाँ अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार या विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है, उसे अर्थालंकार कहते हैं। यह अलंकार शब्दों के अर्थ को गहराई और संजीवनी प्रदान करता है, जिससे पाठक या श्रोता को एक नई दृष्टि मिलती है।
अर्थालंकार के भेद
अर्थालंकार के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं –
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- द्रष्टान्त अलंकार
- संदेह अलंकार
- अतिश्योक्ति अलंकार
- उपमेयोपमा अलंकार
- प्रतीप अलंकार
- अनन्वय अलंकार
- भ्रांतिमान अलंकार
- दीपक अलंकार
- अपहृति अलंकार
- व्यतिरेक अलंकार
- विभावना अलंकार
- विशेषोक्ति अलंकार
- अर्थान्तरन्यास अलंकार
- उल्लेख अलंकार
- विरोधाभाष अलंकार
- असंगति अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
- अन्योक्ति अलंकार
- काव्यलिंग अलंकार
- स्वभावोती अलंकार
उपमा अलंकार
उपमा शब्द का अर्थ होता है – तुलना। जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु से की जाती है, तो वहाँ उपमा अलंकार होता है।
उदाहरण : “सागर-सा गंभीर हृदय हो, गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।”
उपमा अलंकार के अंग
उपमा अलंकार के चार प्रमुख अंग होते हैं: उपमेय, उपमान, वाचक शब्द, और साधारण धर्म।
- उपमेय: उपमेय का अर्थ है – वह जो उपमा प्राप्त कर रहा है। अर्थात, जिस वस्तु की समानता किसी दूसरी वस्तु से की जा रही है, वह उपमेय कहलाता है।
- उपमान: उपमेय की उपमा जिस वस्तु से दी जाती है, वह उपमान कहलाता है। अर्थात, जिस वस्तु के साथ उपमेय की समानता बताई जाती है, वह उपमान होता है।
- वाचक शब्द: जब उपमेय और उपमान के बीच समानता दर्शाई जाती है, तब जिस शब्द का उपयोग होता है, वह वाचक शब्द कहलाता है।
- साधारण धर्म: दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जिस गुण या धर्म की सहायता ली जाती है, वह साधारण धर्म कहलाता है। यह वह गुण या धर्म होता है जो दोनों वस्तुओं में विद्यमान होता है।
उपमा अलंकार के भेद
- पूर्णोपमा अलंकार: इसमें उपमा के सभी अंग (उपमेय, उपमान, वाचक शब्द, साधारण धर्म) उपस्थित होते हैं। उदाहरण : “सागर-सा गंभीर हृदय हो, गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।”
- लुप्तोपमा अलंकार: इसमें उपमा के चारों अंगों में से यदि एक या दो या तीन का न होना पाया जाए, तो वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है। उदाहरण : “कल्पना सी अतिशय कोमल।”
रूपक अलंकार
जब उपमेय और उपमान में कोई भेद न दिखाई दे, अर्थात उपमेय और उपमान को एक जैसा प्रस्तुत किया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण : “कमल के समान मुख, और चाँद जैसी हँसी।” इस अलंकार में :
- उपमेय को उपमान का रूप दिया जाता है।
- वाचक शब्द का लोप होता है।
- उपमेय का भी वर्णन होता है।
रूपक अलंकार के भेद
- सम रूपक अलंकार : इसमें उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है। उदाहरण: “वह फूल जैसे सुंदर, और तितली जैसी चंचल।”
- अधिक रूपक अलंकार : जहाँ उपमेय में उपमान की तुलना में कुछ अधिकता का बोध होता है, वहाँ अधिक रूपक अलंकार होता है। उदाहरण: “वह हिमालय जैसी ऊँचाई और समुद्र जैसी गहराई वाला।”
- न्यून रूपक अलंकार : इसमें उपमान की तुलना में उपमेय को न्यून दिखाया जाता है। उदाहरण: “उसका चेहरा चाँद जैसा, लेकिन दाग-धब्बों से भरा हुआ।”
उत्प्रेक्षा अलंकार
जब उपमान की अनुपस्थिति में उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है, अथवा जहाँ अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण : “सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल, बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।”
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
- वस्तुप्रेक्षा अलंकार : जहाँ प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना दिखाई जाए, वहाँ वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है। उदाहरण: “सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल। बाहर लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल।”
- हेतुप्रेक्षा अलंकार : जहाँ अहेतु में हेतु की संभावना देखी जाती है, अर्थात वास्तविक कारण को छोड़कर अन्य हेतु को मान लिया जाए, वहाँ हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है। उदाहरण: “सूरज की किरणों से, मानो पिघल रहा हिमालय।”
- फलोत्प्रेक्षा अलंकार : इसमें वास्तविक फल के न होने पर भी उसी को फल मान लिया जाता है। उदाहरण: “पुष्पों से लदे वृक्ष को देखकर, मानो सारा बाग खिला हो।”
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द्रष्टान्त अलंकार
जब दो वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब का भाव होता है, तब वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कही गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है। यह उभयालंकार का भी एक प्रकार है।
उदाहरण : “जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं, वैसे ही एक दिल में दो सच्चे प्रेम नहीं समा सकते।
जैसे एक आकाश में दो सूरज नहीं चमक सकते, वैसे ही एक मन में दो विपरीत विचार नहीं टिक सकते।”
संदेह अलंकार
जब उपमेय और उपमान में समानता देखकर यह तय नहीं हो पाता कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं, तब संदेह अलंकार होता है। अर्थात, जब किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे, तो वहाँ संदेह अलंकार होता है। यह उभयालंकार का भी एक प्रकार है। इस अलंकार में :
- विषय का अनिश्चित ज्ञान होता है।
- यह अनिश्चित समानता पर आधारित होता है।
- अनिश्चय का चमत्कारपूर्ण वर्णन होता है।
उदाहरण :
“यह चाँद है या उसका प्रतिबिंब पानी में, एक पल के लिए कुछ समझ नहीं आया।
यह स्वप्न है या सच, मन में संशय रह गया।”
अतिश्योक्ति अलंकार
जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करते समय सामान्य सीमाओं या मर्यादाओं का उल्लंघन हो जाता है, तो उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं। इसमें वस्तु या व्यक्ति की विशेषताओं को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है।
उदाहरण :
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि।
सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भागि।
उपमेयोपमा अलंकार
इस अलंकार में उपमेय और उपमान को एक-दूसरे से तुलना करके एक-दूसरे का उपमान और उपमेय बनाने की कोशिश की जाती है। इसमें उपमेय और उपमान को आपस में जोड़कर उपमा दी जाती है।
उदाहरण : तौ मुख सोहत है ससि सो अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।
प्रतीप अलंकार
इसका अर्थ है “उलटा”। जब उपमा के अंगों में उलटफेर किया जाता है, यानी उपमेय को उपमान के समान नहीं कहकर, उलटकर उपमान को ही उपमेय कहा जाता है, तो वहाँ प्रतीप अलंकार होता है। इस अलंकार में दो वाक्य होते हैं: एक उपमेय वाक्य और एक उपमान वाक्य। इन दोनों वाक्यों में समानता का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं होता, बल्कि यह व्यंजित रहता है। दोनों वाक्यों में साधारण धर्म एक समान होता है, लेकिन इसे अलग-अलग तरीके से कहा जाता है।
उदाहरण :
1. “जैसे चाँद की रोशनी से रात खिल उठती है, वैसे ही उसकी मुस्कान से दिल जगमगा उठता है।”
2. नेत्र के समान कमल है।
अनन्वय अलंकार
जब उपमेय की समानता में कोई उपमान नहीं होता और यह कहा जाता है कि वह उसी के समान है, तब अनन्वय अलंकार होता है। इसका अर्थ है कि हम किसी चीज़ को उसकी विशेषताओं के आधार पर उसके जैसा बताते हैं, बिना किसी अन्य चीज़ का नाम लिए।
उदाहरण :
1. “तुम्हारी आंखें सितारों जैसी हैं।”
यहाँ “सितारे” उपमान नहीं है, बल्कि यह सीधे उपमेय की तुलना कर रहा है।
2. यद्यपि अति आरत – मारत है, भारत के सम भारत है।
भ्रांतिमान अलंकार
जब उपमेय में उपमान का भ्रम उत्पन्न होता है, तब उसे भ्रांतिमान अलंकार कहा जाता है। इसका मतलब है कि जब हम एक वस्तु को देखते हैं, तो हमें दूसरी वस्तु का भ्रम होता है। इस अलंकार में उपमेय और उपमान को एक साथ देखने पर उपमान का स्पष्ट भ्रम पैदा हो जाता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक हिस्सा माना जाता है।
उदाहरण :
पायें महावर देन को नाईन बैठी आय। फिरि-फिरि जानि महावरी, एडी भीड़त जाये।
दीपक अलंकार
जब प्रस्तुत (जिसे हम देख रहे हैं) और अप्रस्तुत (जो दूर है या नहीं दिखाई दे रहा) का एक ही गुण या धर्म स्थापित किया जाता है, तो उसे दीपक अलंकार कहा जाता है।
उदाहरण :
“उसकी मुस्कान में जैसे चाँद की रोशनी बसी हो, जैसे दीपक की ज्योति में अमृत का संचार हो।”
यहाँ मुस्कान और चाँद की रोशनी, दोनों में उजाला और आकर्षण का गुण समान रूप से दर्शाया गया है।
अपहृति अलंकार
अपहति का अर्थ है छिपाना। जब किसी सच बात या वस्तु को छिपाकर उसकी जगह झूठी बात या वस्तु को प्रस्तुत किया जाता है, तब वहाँ अपहति अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का एक हिस्सा भी है।
उदाहरण : सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला, बन्धु न होय मोर यह काला।
व्यतिरेक अलंकार
व्यतिरेक का शाब्दिक अर्थ होता है अधिकता। इस अलंकार में यह जरूरी है कि कारण मौजूद हो। जब उपमान के मुकाबले उपमेय में अधिक गुण होते हैं, तो वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
उदाहरण :
“उसकी बुद्धि चाँद से भी उज्जवल है।” यहाँ चाँद की तुलना में उसकी बुद्धि अधिक चमकीली और तेज है, इसलिए यह व्यतिरेक अलंकार है।
का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू ।। मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ?
विभावना अलंकार
जब किसी कार्य का होना बिना किसी कारण के पाया जाता है, तब वहाँ विभावना अलंकार होता है। सरल शब्दों में, इसका मतलब है कि कोई चीज़ या घटना बिना स्पष्ट कारण के घटित होती है।
उदाहरण :
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।
विशेषोक्ति अलंकार
कविता में जहाँ कार्य की सभी वजहें मौजूद होते हुए भी वह कार्य नहीं होता, वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि जब किसी काम के लिए सभी आवश्यक तत्व होते हैं, लेकिन फिर भी वह काम पूरा नहीं होता, तो इसे विशेषोक्ति अलंकार कहा जाता है।
नेह न नैनन को कछु, उपजी बड़ी बलाय। नीर भरे नित-प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाई।
अर्थान्तरन्यास अलंकार
जब किसी सामान्य वाक्य द्वारा विशेष वाक्य का या किसी विशेष वाक्य द्वारा सामान्य वाक्य का समर्थन किया जाता है, तो उसे अर्थान्तरन्यास अलंकार कहते हैं। इस अलंकार में अर्थ का परिवर्तन होता है।
उदाहरण :
1. “जैसे चाँद के बिना रात अधूरी है, वैसे ही प्यार के बिना जिंदगी अधूरी है।”
2. बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बडाई पाए। कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ौ न जाए।।
उल्लेख अलंकार
जब किसी एक वस्तु को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे उल्लेख अलंकार कहा जाता है। अर्थात, जब किसी एक वस्तु के बारे में कई तरह से जानकारी दी जाती है, तो वहाँ उल्लेख अलंकार होता है।
विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त एक सुर में समस्त संगीत।
विरोधाभाष अलंकार
जब किसी वस्तु का वर्णन करते समय विरोध का अनुभव न हो, फिर भी ऐसा लगता है कि विरोध है, तो उसे विरोधाभास अलंकार कहा जाता है। यह अलंकार तब होता है जब शब्दों में एक प्रकार का उलझाव या विरोध का आभास होता है।
आग हूँ जिससे दुलकते बिंदु हिमजल के।
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।
असंगति अलंकार
जब कोई बात या स्थिति स्पष्ट रूप से एक-दूसरे के खिलाफ होती है और कार्य और कारण का संबंध ठीक से नहीं बताया गया हो, तो वहाँ असंगति अलंकार होता है। यह अलंकार तब प्रकट होता है जब बातें एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं या स्पष्ट विरोधाभास दर्शाती हैं।
उदाहरण :
हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।
मानवीकरण अलंकार
जहाँ पर काव्य में जड़ में चेतन का आरोप होता है वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है अथार्त जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं और क्रियांओं का आरोप हो वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण :
बीती विभावरी जागरी, अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नगरी।
अन्योक्ति अलंकार
जब किसी बात को एक उक्ति के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को कहा जाता है, तब वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। इस अलंकार में सीधे शब्दों में नहीं, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से कुछ कहा जाता है।
उदाहरण :
फूलों के आस- पास रहते हैं, फिर भी काँटे उदास रहते हैं।
काव्यलिंग अलंकार
जहाँ किसी बात को किसी युक्ति या कारण के माध्यम से समर्थन दिया जाता है, उसे काव्यलिंग अलंकार कहते हैं। अर्थात, इस अलंकार में किसी विचार को सही साबित करने के लिए एक तर्क या युक्ति का उपयोग किया जाता है।
उदाहरण :
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।
स्वभावोती अलंकार
किसी वस्तु का स्वाभाविक और सरल तरीके से वर्णन करना स्वभावोक्ति अलंकार कहलाता है।
सीस मुकुट कटी काछनी, कर मुरली उर माल। इहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल।
FAQs
अलंकार वे विशेष शब्द होते हैं जो काव्य की सुंदरता को बढ़ाते हैं। अलंकार न केवल कविता की शोभा बढ़ाते हैं, बल्कि इसे और भी प्रभावशाली और मनमोहक बनाते हैं।
जब भाषा की सुंदरता शब्दों की ध्वनि, पुनरावृत्ति या विशेष प्रयोग से आती है, तो उसे शब्दालंकार कहते हैं।
जब किसी वस्तु की तुलना ‘सा’, ‘समान’, ‘जैसे’, ‘तुल्य’ आदि शब्दों से की जाती है, तो उपमा अलंकार होता है।
आशा है कि इस लेख में आप अलंकार के बारे में जान पाए होंगे, साथ ही इससे संबंधित जानकारी आपको पसंद आई होगी। इसी प्रकार के स्कूली एजुकेशन से संबंधित पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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10 comments
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बहुत-बहुत धन्यवाद Vidya ji!
हमें खुशी है कि आपको यह लेख सरल और समझने लायक लगा। ऐसे ही जुड़े रहिए और अपने विचार साझा करते रहिए।
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thank you so much.
बहुत-बहुत धन्यवाद Vidya ji!
हमें खुशी है कि आपको यह लेख सरल और समझने लायक लगा। ऐसे ही जुड़े रहिए और अपने विचार साझा करते रहिए।
जल्दी-जल्दी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है।
जल्दी-जल्दी में रूपक अलंकार होता है।
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हेलो नूपुर जी, यदि आपका कोई सवाल है तो हमें बतायें।
बहुत ही अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी,बधाई।
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