Vermicompost in Hindi: वर्मीकम्पोस्ट क्या है? जानें वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि और उपयोग

1 minute read
Vermicompost in Hindi

Vermicompost in Hindi: प्रिय विद्यार्थियों वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों, खेतों के अवशेषों, डेयरी एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मीकम्पोस्ट मृदा जैव विविधता और सूक्ष्मजीव समुदायों की जनसंख्या को बढ़ाता है, जिससे मृदा स्वास्थ्य में और सुधार होता है, जिस पर कृषि उत्पादन निर्भर करता है, तथा मानव स्वास्थ्य, वनस्पतियों और जीव-जंतुओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

बताना चाहेंगे UPSC परीक्षा सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में वर्मीकम्पोस्ट से संबंधित प्रश्न अकसर पूछे जाते हैं। इसलिए इस लेख में वर्मीकम्पोस्ट और वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि एवं उपयोग (Vermicompost in Hindi) की विस्तृत जानकारी दी गई है। 

वर्मीकम्पोस्ट क्या है? – What is Vermicomposting in Hindi 

वर्मीकम्पोस्ट को Wormi-Culture या केंचुआ पालन भी कहा जाता है। वर्मीकम्पोस्ट एक जैविक खाद है, जिसे केंचुओं की सहायता से तैयार किया जाता है। इसे ‘केंचुआ खाद’ (Vermicompost) भी कहा जाता है। बता दें कि यह प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल जैव-प्रौद्योगिकीय खाद बनाने की प्रक्रिया है, जिसमें केंचुए जैविक कचरे (जैसे कि पत्तियाँ, सब्जियों के छिलके, बाजरा की कड़वी, घास फूस, धान का पुआल, शहर के कूड़ा करकट, गोबर इत्यादि) को खाकर उसे पौधों के लिए उपयोगी खाद में बदल देते हैं। उपयुक्त तापमान, नमी, हवा एवं जैविक पदार्थ मिलने पर केंचुए अपनी संख्या बढ़ाने के साथ साथ गोबर एवं वानस्पतिक अवशेष आदि को सड़ाकर जैविक खाद के रूप में परिवर्तित करते रहते है। 

केंचुओं का वर्गीकरण 

भोजन की प्रकृति के आधार पर केंचुए दो प्रकार के होते हैं;-

  1. कार्बनिक पदार्थ खाने वाले केंचुए (Phytophagous): इस वर्ग के केंचुए केवल सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों को खाना पसंद करते हैं जो मृदा कम (10%) और कार्बनिक पदार्थ ज्यादा (90%) खाते है, अतः अधिक उपयुक्त माने गए है। इन्हें खाद बनाने वाले केंचुए (Humus or Manure Farmer) कहते हैं। इसी वर्ग के केंचुए वर्मीकम्पोस्ट बनाने के काम में लाए जाते हैं। इस वर्ग में मुख्यरूप से आइसीनिया फोटिडा (Eisenia Foetida) एवं यूड्रिलस यूजैनी (Eudrilus Eugeniae) प्रजातियां मुख्य हैं।
  2. मिट्टी खाने वाले केंचुए (Geophagous): इस वर्ग के केंचुए मुख्यतः मृदा को अधिक (90%) और कार्बनिक पदार्थ को कम (10%) खाते है, इन्हें (Humus Feeder) एवं हलवाहे (Ploughman) कहते हैं। इस वर्ग के केंचुए अधिकांशतः मिट्टी में गहरी सुरंग बनाकर रहते हैं। ये वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए उपयुक्त नहीं होते किंतु खेत की जुताई करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि

वर्मी कंपोस्ट बनाने की दो विधियां (Vermicompost in Hindi) इस प्रकार हैं;-

  1. सामान्य विधि (General method): वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए इस विधि में क्षेत्र का आकार (area) आवश्यकतानुसार रखा जाता है। वहीं अच्छी गुणवत्ता की केंचुआ खाद बनाने के लिए सीमेंट तथा ईटों से पक्की क्यारियां (Vermi-beds) बनाई जाती हैं। प्रत्येक क्यारी की लंबाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर एवं ऊँचाई 30 से 50 सेमी रखते हैं। क्यारियों को तेज धूप व वर्षा से बचाने और केंचुओं के तीव्र प्रजनन के लिए अंधेरा रखने हेतु छप्पर और चारों ओर हरे नेट से ढकना अत्यंत आवश्यक है। 

    क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ, घास, सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थो का चुनाव करते हैं। इन पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले ढेर बनाकर 15 से 20 दिन तक सड़ने के लिए रखा जाता है। सड़ने के लिए रखे गए कार्बनिक पदार्थो के मिश्रण में पानी छिड़ककर ढेर को छोड़ दिया जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूप (Partially Decomposed) में आ जाता है। 

    ऐसा कचरा केंचुओं के लिए बहुत ही अच्छा भोजन माना गया है। अधगले कचरे को क्यारियों में 50 सेंमी ऊँचाई तक भर दिया जाता है। कचरा भरने के 3-4 दिन बाद प्रत्येक क्यारी में केंचुऐ छोड़ दिए जाते हैं और पानी छिड़क कर प्रत्येक क्यारी को गीली बोरियो से ढक देते है। बता दें कि एक टन कचरे से 0.6 से 0.7 टन केंचुआ खाद प्राप्त हो जाती है। 
  2. चक्रीय चार हौद विधि (Four-pit method): इस विधि में चुने गए स्थान पर गड्ढा बनाया जाता है। इस गड्ढे को ईंट की दीवारों से 4 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। इस प्रकार कुल 4 क्यारियां बन जाती हैं। इस विधि में प्रत्येक क्यारी को एक के बाद एक भरते हैं ताकि कचरे के विघटन की प्रक्रिया शुरू हो जाए। 

    इसके बाद दूसरे गड्ढे में कचरा भरना शुरू किया जाता है। दूसरे माह जब दूसरा गड्‌ढा भर जाता है तब ढक देते हैं और कचरा तीसरे गड्ढे में भरना शुरू कर देतें है। इस समय तक पहले गड्ढे का कचरा अधगले रूप में आ जाता है। एक दो दिन बाद जब पहले गड्ढे में गर्मी कम हो जाती है तब उसमें लगभग 5 किग्रा (5000) केंचुए छोड़ देते हैं। इसके बाद गड्ढे को सूखी घास अथवा बोरियों से ढक देते हैं। वहीं कचरे में गीलापन बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहते है।

    इस प्रकार 3 माह बाद जब तीसरा गड्ढा कचरे से भर जाता है तब इसे भी पानी से भिगो कर ढक देते हैं और चौथे गड्ढे में कचरा भरना आरंभ कर देते हैं। धीरे-धीरे जब दूसरे गड्ढे की गर्मी कम हो जाती है तब उसमें पहले गड्ढे से केंचुए विभाजक दीवार में बने छिद्रों से अपने आप प्रवेश कर जाते हैं और उसमें भी केंचुआखाद बनना आरंभ हो जाता है। 

    इस प्रकार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्ढे भर जाते हैं। इस समय तक पहले गड्ढे में जिसे भरे हुए तीन माह हो चुके है, केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) बनकर तैयार हो जाता है। इसके अलावा एक वर्ष में एक गड्ढे से 25 किग्रा और 4 गड्ढों से कुल 100 किग्रा केंचुए भी प्राप्त होते हैं।

स्त्रोत – jaivikkheti.in

कृषि के टिकाऊपन में केंचुओं का योगदान 

टिकाऊ कृषि में केंचुओं का योदगान निम्नलिखित हैं;-

  • केंचुआ कृषि योग्य भूमि में प्रतिवर्ष 1 से 5 मि.मी. मोटी सतह का निर्माण करते हैं। 
  •  केंचुए भूमि में उपलब्ध फसल अवशेषों को भूमि के अंदर तक ले जाते हैं ओर सुरंग में इन अवशेषों को खाकर खाद के रूप में परिवर्तित कर देते हैं, जिससे मिट्टी की वायु संचार क्षमता बढ़ जाती है। 
  • सभी जैविक अवशेष पहले सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित किए जाते हैं। अर्द्ध अपघटित अवशेष केंचुओं द्वारा वर्मीकास्ट में परिवर्तित होते हैं। सूक्ष्म जीवों तथा केंचुओं के सम्मिलित अपघटन से जैविक पदार्थ उत्तम खाद में बदल जाते हैं और भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। 
  • भूमि में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ, भूमि में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव तथा केंचुओं की संख्या एवं मात्रा भूमि की उर्वरता के सूचक हैं। इनकी संख्या, विविधता एवं सक्रियता के आधार पर भूमि के जैविक गुण को मापा जा सकता है। 
  • भूमि में उपलब्ध फसल अवशेष इन दोनो की सहायता से विच्छेदित होकर कार्बन को ऊर्जा स्त्रोत के रूप में प्रदान कर निरंतर पोषक तत्वों की आपूर्ति बनाए रखने के साथ-साथ भूमि में एमीनो एसिड, एन्जाइम, विटामिन्स एवं ह्यूमस का निर्माण कर भूमि की उर्वरा क्षमता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। 

वर्मी कंपोस्ट का उपयोग

वर्मी कंपोस्ट का उपयोग इस प्रकार हैं:-

  • खेती में उपयोग – खेत की जुताई के समय या बुआई से पहले मिट्टी में मिला सकते हैं। यह फसलों की पैदावार और गुणवत्ता बढ़ाता है।
  • बागवानी (हॉर्टिकल्चर) – फूलों, फलों और सब्ज़ियों के पौधों में उपयोग किया जाता है। पेड़ों के चारों ओर गड्ढा बनाकर उसमें वर्मी कम्पोस्ट भर सकते हैं।
  • नर्सरी में उपयोग – बीज बोने से पहले वर्मी कम्पोस्ट से बनी खाद का उपयोग अंकुरण में बेहतर होता है।
  • ऑर्गेनिक फार्मिंग – यह ऑर्गेनिक फार्मिंग में मान्यता प्राप्त खाद है।
  • पॉट या गमलों में उपयोग – गमले की मिट्टी में 25-30% वर्मी कम्पोस्ट मिलाएं। हर 15-20 दिन में थोड़ी मात्रा में केंचुआ खाद डालना पौधों के लिए लाभकारी होता है।

वर्मीकम्पोस्ट के लाभ 

वर्मीकम्पोस्ट के लाभ निम्नलिखित हैं:-

  • वर्मीकम्पोस्ट में पौधों के लिए सभी पोषक तत्व पर्याप्त एवं संतुलित मात्रा में मौजूद होते हैं। 
  • वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से भूमि के तापमान, नमी, स्वास्थ्य तथा PH नियंत्रित रहते हैं। 
  • वर्मीकम्पोस्ट में विद्युत आवेशित कण होते है जो पौधों को मृदा से पोषक तत्व लेने में मदद करते है। 
  • मूल्य कम होने के कारण खेती में वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने से फसलों की उत्पादन लागत कम आती है। 
  • वर्मीकम्पोस्ट में मनुष्य तथा पौधों को नुकसान पहुँचाने वाले किसी भी तरह के जीवाणु उपस्थित नहीं होते। 
  • वर्मीकम्पोस्ट बनाने से पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायता मिलती है। 
  • केंचुए गंदगी फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को खाकर उसे लाभदायक Humus में परिवर्तित कर देते हैं।  

FAQs 

वर्मी कंपोस्टिंग किसे कहते हैं?

वर्मी कम्पोस्टिंग (Vermicomposting) एक जैविक प्रक्रिया है, जिसमें केंचुओं की मदद से जैविक कचरे (जैसे गोबर, पत्तियाँ, सब्जी के छिलके आदि) को उपजाऊ खाद में बदला जाता है।

वर्मी कम्पोस्टिंग के लिए कौन से केंचुए सबसे अच्छे माने जाते हैं?

वर्मी कम्पोस्टिंग के लिए आइसीनिया फोटिडा एवं यूड्रिलस यूजैनी सबसे उपयुक्त प्रजातियाँ हैं।

वर्मी कम्पोस्टिंग में कितना समय लगता है?

आमतौर पर 45 से 60 दिनों में वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाता है, लेकिन यह मौसम और सामग्री पर निर्भर करता है।

वर्मी कम्पोस्टिंग के लिए कौन-कौन से जैविक कचरे का उपयोग किया जा सकता है?

वर्मी कम्पोस्टिंग के लिए गोबर (अधपका), सूखी पत्तियाँ, सब्जियों के छिलके, फलों के छिलके, किचन वेस्ट आदि का उपयोग किया जाता है। 

वर्मी कम्पोस्टिंग के लिए कौन-कौन सी चीज़ें नहीं डालनी चाहिए?

मांस, हड्डियाँ, दूध उत्पाद, खट्टे फल (अधिक मात्रा में) प्लास्टिक, धातु, रसायन या तेलयुक्त पदार्थ आदि चीज़ें नहीं डालनी चाहिए।

क्या वर्मी कम्पोस्टिंग गंध पैदा करती है?

नहीं, अगर प्रक्रिया सही से हो रही है तो इसमें दुर्गंध नहीं आती। गंध आने का मतलब है कि सामग्री सड़ रही है।

वर्मी कम्पोस्ट का पौधों पर क्या प्रभाव होता है?

यह पौधों की वृद्धि तेज करता है, जड़ें मजबूत करता है और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

आशा है कि आपको इस लेख में वर्मीकम्पोस्ट क्या है और वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि और उपयोग (Vermicompost in Hindi) की संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। ऐसी ही UPSC आर्टिकल्स और सामान्य ज्ञान से संबंधित अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*