Speech on Kabir Das in Hindi: संत कबीर दास जी पर भाषण

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Speech on Kabir Das in Hindi (कबीर दास जी पर भाषण): संत कबीर दास जी, भारतीय संस्कृति और साहित्य के अमर हस्ताक्षर हैं। उनकी वाणी में सत्य, सरलता और जीवन के गूढ़ रहस्यों का सजीव चित्रण है। वे एक महान समाज सुधारक, कवि, और संत थे, जिन्होंने अपने दोहों और रचनाओं के माध्यम से हमें प्रेम, एकता, और सद्भावना का संदेश दिया। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे।

जब हम संत कबीर दास जी पर भाषण देने की बात करते हैं तो यह केवल एक महान व्यक्तित्व की गाथा नहीं, बल्कि उन अनमोल शिक्षाओं का साक्षात्कार होता है, जो जीवन को सही दिशा में ले जाती हैं। यह भाषण हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेने और उनके आदर्शों को आत्मसात करने का अवसर देता है। 

इस ब्लॉग में, संत कबीर दास जी पर भाषण (Speech on Kabir Das in Hindi) के कुछ सैंपल दिए गए हैं, जिसके द्वारा आप अपने विचार लोगों के सामने बहुत सहजता से रख पाएंगें।

विषयविवरण
नामसंत कबीर दास
जन्म स्थानवाराणसी, उत्तर प्रदेश
पिता का नामनीरू
माता का नामनीमा
पत्नी का नामलोई
संतानकमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
शिक्षानिरक्षर
मुख्य रचनाएंसाखी, सबद, रमैनी
कालभक्तिकाल
शाखाज्ञानमार्गी शाखा
भाषाअवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा
प्रसिद्ध उद्धरण“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”
मृत्युलगभग 1518 ई.
समाधि स्थलकबीर की समाधि वाराणसी में स्थित है
धार्मिक दृष्टिकोणहिन्दू-मुस्लिम एकता, सच्चाई और भक्ति का प्रचार
प्रभावकबीर दास के विचार आज भी समाज में समानता और एकता को बढ़ावा देते हैं। उनकी रचनाएं भारतीय साहित्य में अमूल्य धरोहर हैं।

स्कूल और कॉलेजों में शिक्षक द्वारा कबीर दास पर भाषण

स्कूल और कॉलेजों में शिक्षक द्वारा कबीर दास पर भाषण (Speech on Kabir Das in Hindi) इस प्रकार है:

प्रिय छात्रों और सहकर्मियों,

आज हम एक महान संत, कवि और समाज सुधारक, संत कबीर दास जी के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी वाणी हमें प्रेम, एकता और सद्भावना का संदेश देती है। उनकी शिक्षाएं हमें न केवल व्यक्तिगत रूप से प्रेरित करती हैं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग भी दिखाती हैं।

संत कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। उनका जीवन साधारणता और सच्चाई का प्रतिमान था। उन्होंने अपने दोहों और भजनों के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद और पाखंड का विरोध किया। कबीर जी का मानना था कि ईश्वर का निवास किसी मंदिर, मस्जिद या मूर्ति में नहीं, बल्कि हर जीव के हृदय में होता है।

कबीर दास जी की वाणी हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और अध्यात्म का मार्ग प्रेम, करुणा और दया से होकर गुजरता है। उनके दोहे सरल भाषा में होते थे, लेकिन उनमें गूढ़ ज्ञान और गहरी समझ होती थी। उदाहरण के लिए, उनका यह दोहा:

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”

इसमें कबीर जी ने सिखाया है कि केवल बड़ा होना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि दूसरों की सेवा और भलाई करना महत्वपूर्ण है। यह हमें सच्ची विनम्रता और सेवा भाव का पाठ पढ़ाता है।

संत कबीर दास जी की शिक्षाएं आज के समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं। उनका संदेश हमें यह समझाता है कि प्रेम, सहिष्णुता और समानता के बिना कोई भी समाज उन्नति नहीं कर सकता। आज, जब समाज में कई तरह के विभाजन और मतभेद देखने को मिलते हैं, तब कबीर जी के विचार हमें एकजुट होने और एक-दूसरे को समझने की प्रेरणा देते हैं।

हम, शिक्षकों का कर्तव्य है कि हम संत कबीर दास जी की शिक्षाओं को अपने छात्रों तक पहुंचाएं। हमें अपने छात्रों को यह सिखाना चाहिए कि वे कबीर जी की तरह सरलता, सच्चाई और सहिष्णुता के मार्ग पर चलें। हमें उन्हें यह बताना चाहिए कि सच्ची शिक्षा वही है जो हमें अच्छे इंसान बनने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने में मदद करती है।

संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी वाणी हमें यह सिखाती है कि हम चाहे किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से हों, हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखना चाहिए। उनके विचार हमें सच्ची मानवता का मार्ग दिखाते हैं और हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम समाज में एकता और भाईचारा स्थापित करें।

आइए, हम सब मिलकर संत कबीर दास जी के विचारों को अपने जीवन में उतारें और उनके संदेश को समाज में फैलाएं। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

धन्यवाद।

कबीर दास पर भाषण

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स्कूल और कॉलेजों में छात्रों द्वारा कबीर दास पर भाषण

स्कूल और कॉलेजों में छात्रों द्वारा कबीर दास पर भाषण (Speech on Kabir Das in Hindi) इस प्रकार है:

माननीय प्रधानाचार्य, आदरणीय शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं यहाँ संत कबीर दास जी पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए खड़ा हूँ। संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें सच्चे जीवन मूल्यों और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का पाठ पढ़ाती हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कैसे हम सच्चाई, सरलता और प्रेम के मार्ग पर चल सकते हैं।

संत कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वाराणसी) में हुआ था। वे एक बुनकर परिवार में जन्मे थे, लेकिन उनकी वाणी और शिक्षाएं उन्हें एक महान संत और समाज सुधारक के रूप में स्थापित करती हैं। कबीर जी ने अपने जीवन में जातिवाद, अंधविश्वास और पाखंड का कड़ा विरोध किया और हमें यह सिखाया कि सच्ची भक्ति और अध्यात्म का मार्ग प्रेम, करुणा और दया से होकर गुजरता है।

कबीर जी के दोहे और भजन हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में समझाते हैं। उनका यह दोहा:

“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

इसमें कबीर जी ने बताया है कि केवल पुस्तकों को पढ़ने से कोई विद्वान नहीं बनता, सच्चा ज्ञान वही है जो प्रेम के माध्यम से प्राप्त होता है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी शिक्षा को जीवन में व्यावहारिक बनाना चाहिए और सच्चे प्रेम और करुणा का मार्ग अपनाना चाहिए।

संत कबीर दास जी के विचार हमें यह सिखाते हैं कि समाज में सभी लोग समान हैं और हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखना चाहिए। वे कहते थे कि ईश्वर का निवास किसी मंदिर, मस्जिद या मूर्ति में नहीं, बल्कि हर जीव के हृदय में होता है। उनका यह विचार हमें सच्ची भक्ति और अध्यात्म का सही मार्ग दिखाता है।

आज के समय में, जब समाज में कई तरह के विभाजन और मतभेद देखने को मिलते हैं, कबीर जी के विचार हमें एकजुट होने और एक-दूसरे को समझने की प्रेरणा देते हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए और समाज में समानता और भाईचारे का संदेश फैलाना चाहिए।

हम, छात्रों के रूप में, संत कबीर दास जी के विचारों को अपने जीवन में उतार सकते हैं। हमें उनके संदेश को समझना चाहिए और उसे अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सहिष्णुता का भाव रखना चाहिए और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम करना चाहिए।

संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें सच्ची मानवता का मार्ग दिखाती हैं। आइए, हम सब मिलकर उनके विचारों को अपने जीवन में उतारें और उनके संदेश को समाज में फैलाएं। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

धन्यवाद।

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साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठनों में विद्वान द्वारा कबीर दास पर भाषण

साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठनों में विद्वान द्वारा कबीर दास पर भाषण (Speech on Kabir Das in Hindi) इस प्रकार है:

आदरणीय अध्यक्ष महोदय, माननीय अतिथिगण, और प्रिय साथियों,

आज हम यहाँ एक महान संत, कवि और समाज सुधारक, संत कबीर दास जी के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए एकत्रित हुए हैं। संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी वाणी हमें प्रेम, एकता और सद्भावना का संदेश देती है। उनकी शिक्षाएं न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे हमें समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग भी दिखाती हैं।

संत कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। उनका जीवन साधारणता और सच्चाई का प्रतिमान था। उन्होंने अपने दोहों और भजनों के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद और पाखंड का विरोध किया। कबीर जी का मानना था कि ईश्वर का निवास किसी मंदिर, मस्जिद या मूर्ति में नहीं, बल्कि हर जीव के हृदय में होता है।

कबीर दास जी की वाणी हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और अध्यात्म का मार्ग प्रेम, करुणा और दया से होकर गुजरता है। उनके दोहे सरल भाषा में होते थे, लेकिन उनमें गूढ़ ज्ञान और गहरी समझ होती थी। उदाहरण के लिए, उनका यह दोहा:

“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”

इसमें कबीर जी ने सिखाया है कि हमें दूसरों में बुराई ढूंढने की बजाय अपने अंदर झांककर देखना चाहिए। यह हमें सच्ची विनम्रता और आत्मज्ञान का पाठ पढ़ाता है।

संत कबीर दास जी की शिक्षाएं आज के समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं। उनका संदेश हमें यह समझाता है कि प्रेम, सहिष्णुता और समानता के बिना कोई भी समाज उन्नति नहीं कर सकता। आज, जब समाज में कई तरह के विभाजन और मतभेद देखने को मिलते हैं, तब कबीर जी के विचार हमें एकजुट होने और एक-दूसरे को समझने की प्रेरणा देते हैं।

हम, साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठनों के सदस्य के रूप में, संत कबीर दास जी के विचारों को अपने कार्यों में आत्मसात कर सकते हैं। हमें उनके संदेश को समाज में फैलाना चाहिए और लोगों को उनके विचारों के प्रति जागरूक करना चाहिए। हमें यह सिखाना चाहिए कि सच्ची शिक्षा वही है जो हमें अच्छे इंसान बनने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने में मदद करती है।

संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी वाणी हमें यह सिखाती है कि हम चाहे किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से हों, हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखना चाहिए। उनके विचार हमें सच्ची मानवता का मार्ग दिखाते हैं और हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम समाज में एकता और भाईचारा स्थापित करें।

आइए, हम सब मिलकर संत कबीर दास जी के विचारों को अपने जीवन में उतारें और उनके संदेश को समाज में फैलाएं। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

धन्यवाद।

साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठनों में साहित्यकार द्वारा कबीर दास पर भाषण

साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठनों में साहित्यकार द्वारा कबीर दास पर भाषण (Speech on Kabir Das in Hindi) इस प्रकार है:

माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय अतिथिगण, और प्रिय साथियों,

आज हम यहाँ एक महान संत, कवि और समाज सुधारक, संत कबीर दास जी के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी वाणी हमें प्रेम, एकता और सद्भावना का संदेश देती है। उनकी शिक्षाएं न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे हमें समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग भी दिखाती हैं।

संत कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। उनका जीवन साधारणता और सच्चाई का प्रतिमान था। उन्होंने अपने दोहों और भजनों के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद और पाखंड का विरोध किया। कबीर जी का मानना था कि ईश्वर का निवास किसी मंदिर, मस्जिद या मूर्ति में नहीं, बल्कि हर जीव के हृदय में होता है।

कबीर दास जी की वाणी हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और अध्यात्म का मार्ग प्रेम, करुणा और दया से होकर गुजरता है। उनके दोहे सरल भाषा में होते थे, लेकिन उनमें गूढ़ ज्ञान और गहरी समझ होती थी। उदाहरण के लिए, उनका यह दोहा:

“माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर, कर का मन का डारि के, मन का मनका फेर।”

इसमें कबीर जी ने सिखाया है कि बाहरी आडंबर और दिखावे से कोई लाभ नहीं है, सच्ची भक्ति और ज्ञान तभी प्राप्त होते हैं जब मन की शुद्धता और सच्चाई हो। यह हमें आत्मनिरीक्षण और आत्मसुधार का पाठ पढ़ाता है।

संत कबीर दास जी की शिक्षाएं आज के समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं। उनका संदेश हमें यह समझाता है कि प्रेम, सहिष्णुता और समानता के बिना कोई भी समाज उन्नति नहीं कर सकता। आज, जब समाज में कई तरह के विभाजन और मतभेद देखने को मिलते हैं, तब कबीर जी के विचार हमें एकजुट होने और एक-दूसरे को समझने की प्रेरणा देते हैं।

साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठनों के सदस्य के रूप में, हमारा कर्तव्य है कि हम संत कबीर दास जी के विचारों को अपने कार्यों में आत्मसात करें। हमें उनके संदेश को समाज में फैलाना चाहिए और लोगों को उनके विचारों के प्रति जागरूक करना चाहिए। हमें यह सिखाना चाहिए कि सच्ची शिक्षा वही है जो हमें अच्छे इंसान बनने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने में मदद करती है।

संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी वाणी हमें यह सिखाती है कि हम चाहे किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से हों, हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखना चाहिए। उनके विचार हमें सच्ची मानवता का मार्ग दिखाते हैं और हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम समाज में एकता और भाईचारा स्थापित करें।

आइए, हम सब मिलकर संत कबीर दास जी के विचारों को अपने जीवन में उतारें और उनके संदेश को समाज में फैलाएं। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

धन्यवाद।

धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं में धार्मिक गुरु या समाजसेवी द्वारा कबीर दास पर भाषण

धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं में धार्मिक गुरु या समाजसेवी द्वारा कबीर दास पर भाषण (Speech on Kabir Das in Hindi) इस प्रकार है:

मान्यवर, आदरणीय सदस्यगण, और प्रिय साथियों,

आज हम यहाँ एक ऐसे महान संत, कवि और समाज सुधारक, संत कबीर दास जी के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए एकत्रित हुए हैं, जिनकी वाणी हमें प्रेम, सहिष्णुता और मानवता का संदेश देती है। संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद और पाखंड से मुक्ति दिलाने का मार्ग दिखाती हैं।

संत कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। उनका जीवन साधारणता और सच्चाई का प्रतिमान था। उन्होंने अपने दोहों और भजनों के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद और पाखंड का विरोध किया। कबीर जी का मानना था कि ईश्वर का निवास किसी मंदिर, मस्जिद या मूर्ति में नहीं, बल्कि हर जीव के हृदय में होता है।

कबीर दास जी की वाणी हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और अध्यात्म का मार्ग प्रेम, करुणा और दया से होकर गुजरता है। उनके दोहे सरल भाषा में होते थे, लेकिन उनमें गूढ़ ज्ञान और गहरी समझ होती थी। उदाहरण के लिए, उनका यह दोहा:

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”

इसमें कबीर जी ने सिखाया है कि केवल बड़ा होना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि दूसरों की सेवा और भलाई करना महत्वपूर्ण है। यह हमें सच्ची विनम्रता और सेवा भाव का पाठ पढ़ाता है।

संत कबीर दास जी की शिक्षाएं आज के समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं। उनका संदेश हमें यह समझाता है कि प्रेम, सहिष्णुता और समानता के बिना कोई भी समाज उन्नति नहीं कर सकता। आज, जब समाज में कई तरह के विभाजन और मतभेद देखने को मिलते हैं, तब कबीर जी के विचार हमें एकजुट होने और एक-दूसरे को समझने की प्रेरणा देते हैं।

धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के सदस्य के रूप में, हमारा कर्तव्य है कि हम संत कबीर दास जी के विचारों को अपने कार्यों में आत्मसात करें। हमें उनके संदेश को समाज में फैलाना चाहिए और लोगों को उनके विचारों के प्रति जागरूक करना चाहिए। हमें यह सिखाना चाहिए कि सच्ची शिक्षा वही है जो हमें अच्छे इंसान बनने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने में मदद करती है।

संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी वाणी हमें यह सिखाती है कि हम चाहे किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से हों, हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखना चाहिए। उनके विचार हमें सच्ची मानवता का मार्ग दिखाते हैं और हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम समाज में एकता और भाईचारा स्थापित करें।

आइए, हम सब मिलकर संत कबीर दास जी के विचारों को अपने जीवन में उतारें और उनके संदेश को समाज में फैलाएं। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

धन्यवाद।

सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों में अधिकारी और कर्मचारी द्वारा कबीर दास पर भाषण

सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों में अधिकारी और कर्मचारी द्वारा कबीर दास पर भाषण (Speech on Kabir Das in Hindi) इस प्रकार है:

आदरणीय अधिकारीगण, सहकर्मियों, और मित्रों,

आज हम यहाँ संत कबीर दास जी के जीवन और उनकी अमूल्य शिक्षाओं पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। संत कबीर दास जी के विचार आज भी हमें जीवन जीने की सही दिशा दिखाते हैं। उनका जीवन और उनके द्वारा दिए गए संदेश हमें एकता, प्रेम और सद्भावना की प्रेरणा देते हैं। उनकी वाणी ने समाज के अंधविश्वास और कुरीतियों को दूर करने का कार्य किया और समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया।

संत कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। उनका जीवन बहुत साधारण था, लेकिन उनकी वाणी में अपार गहराई थी। उन्होंने अपने भजनों और दोहों के माध्यम से भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, अंधविश्वास और पाखंड का विरोध किया। कबीर जी का मानना था कि ईश्वर का निवास किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं, बल्कि हर इंसान के हृदय में होता है। उनका दृष्टिकोण हमेशा समाज को एकता और भाईचारे का संदेश देने वाला था।

आज मैं एक और प्रसिद्ध दोहे का उल्लेख करना चाहूँगा, जो संत कबीर दास जी के जीवन और उनके विचारों को स्पष्ट रूप से दर्शाता है:

“साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार समेटे, बाहर थूके, भीतर ले जाय।”

इस दोहे का अर्थ है कि एक साधु या संत वही है जो अपने आचार-व्यवहार में सच्चाई और विवेक को धारण करे। जैसे सूप (काटा) केवल अच्छा अनाज ही एकत्र करता है और बाकी को बाहर फेंक देता है, ठीक वैसे ही एक साधु अपने जीवन में अच्छाई और ज्ञान को ही ग्रहण करता है, और बुराई को दूर करता है। इस दोहे में संत कबीर जी ने यह सिखाया है कि हमें अपने जीवन में वही चीज़ें और विचार अपनाने चाहिए जो हमें उन्नति और समाज के लिए अच्छे हों, और बाकी को छोड़ देना चाहिए।

संत कबीर दास जी का यह दोहा हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी जीवनशैली में सच्चाई और विवेक को स्थान देना चाहिए। हमें समाज में अपने कर्मों के द्वारा एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि हम सभी के लिए एक सकारात्मक उदाहरण बन सकें। यह संदेश आज के समय में भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जब समाज में विभिन्न मतभेद, धर्मों और जातियों के बीच दूरी है।

संत कबीर दास जी ने हमें यह भी सिखाया कि समाज में किसी भी प्रकार के भेदभाव और घृणा को समाप्त करके हम सभी को समानता के आधार पर जीने का अधिकार है। उनका जीवन यह दर्शाता है कि अगर हम सत्य के मार्ग पर चलें और प्रेम और भाईचारे का संदेश फैलाएं, तो समाज में बदलाव लाया जा सकता है। सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के अधिकारी और कर्मचारी के रूप में, हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम संत कबीर दास जी के विचारों को अपने जीवन में उतारें और उन्हें दूसरों तक पहुँचाएं।

कबीर जी के विचार हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम सभी एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम का भाव रखें। उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि अगर हम एकजुट होकर समाज के भले के लिए काम करें, तो हम समाज में बदलाव ला सकते हैं। उनके दोहे आज भी हमें जीवन में सच्चाई, प्रेम और एकता की ओर मार्गदर्शन करते हैं।

आइए, हम सब मिलकर संत कबीर दास जी के विचारों को अपने जीवन में लागू करें और उनके संदेश को समाज में फैलाने का कार्य करें। यही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

धन्यवाद।

मीडिया और संचार माध्यमों में पत्रकार या लेखक द्वारा कबीर दास पर भाषण

मीडिया और संचार माध्यमों में पत्रकार या लेखक द्वारा कबीर दास पर भाषण (Speech on Kabir Das in Hindi) इस प्रकार है:

मान्यवर, आदरणीय सदस्यगण, और प्रिय साथियों,

आज हम यहाँ एक महान संत, कवि और समाज सुधारक, संत कबीर दास जी के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए एकत्रित हुए हैं। संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी वाणी हमें प्रेम, सहिष्णुता और मानवता का संदेश देती है। उनकी शिक्षाएं न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे हमें समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग भी दिखाती हैं।

संत कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। उनका जीवन साधारणता और सच्चाई का प्रतिमान था। उन्होंने अपने दोहों और भजनों के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद और पाखंड का विरोध किया। कबीर जी का मानना था कि ईश्वर का निवास किसी मंदिर, मस्जिद या मूर्ति में नहीं, बल्कि हर जीव के हृदय में होता है।

कबीर दास जी की वाणी हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और अध्यात्म का मार्ग प्रेम, करुणा और दया से होकर गुजरता है। उनके दोहे सरल भाषा में होते थे, लेकिन उनमें गूढ़ ज्ञान और गहरी समझ होती थी। उदाहरण के लिए, उनका यह दोहा:

“साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय, मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।”

इसमें कबीर जी ने सिखाया है कि हमें ईश्वर से केवल उतना ही माँगना चाहिए जितना कि हमारे और हमारे परिवार की आवश्यकता हो, ताकि हम भूखे न रहें और साधु भी भूखा न जाए। यह हमें सादगी और संतोष का पाठ पढ़ाता है।

संत कबीर दास जी की शिक्षाएं आज के समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं। उनका संदेश हमें यह समझाता है कि प्रेम, सहिष्णुता और समानता के बिना कोई भी समाज उन्नति नहीं कर सकता। आज, जब समाज में कई तरह के विभाजन और मतभेद देखने को मिलते हैं, तब कबीर जी के विचार हमें एकजुट होने और एक-दूसरे को समझने की प्रेरणा देते हैं।

मीडिया और संचार माध्यमों के पत्रकार और लेखक के रूप में, हमारा कर्तव्य है कि हम संत कबीर दास जी के विचारों को अपने लेखन और रिपोर्टिंग में आत्मसात करें। हमें उनके संदेश को समाज में फैलाना चाहिए और लोगों को उनके विचारों के प्रति जागरूक करना चाहिए। हमें यह सिखाना चाहिए कि सच्ची शिक्षा वही है जो हमें अच्छे इंसान बनने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने में मदद करती है।

संत कबीर दास जी का जीवन और उनकी वाणी हमें यह सिखाती है कि हम चाहे किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से हों, हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखना चाहिए। उनके विचार हमें सच्ची मानवता का मार्ग दिखाते हैं और हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम समाज में एकता और भाईचारा स्थापित करें।

आइए, हम सब मिलकर संत कबीर दास जी के विचारों को अपने जीवन में उतारें और उनके संदेश को समाज में फैलाएं। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

 धन्यवाद।

संत कबीर दास जी पर प्रेरक भाषण कैसे लिखें?

इन पॉइंटर्स को ध्यान में रखते हुए, आप संत कबीर दास जी पर एक प्रेरक और प्रभावशाली भाषण (Speech on Kabir Das in Hindi) लिख सकते हैं:

  1. शुरुआत करें एक उद्धरण से:
    • भाषण की शुरुआत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे या उद्धरण से करें। इससे श्रोताओं का ध्यान तुरंत आकर्षित होगा और विषय का परिचय भी मिल जाएगा।
  2. कबीर दास जी का परिचय:
    • संत कबीर दास जी का जन्म, स्थान, और उनके जीवन के मुख्य पहलुओं का संक्षिप्त परिचय दें।
    • उनके समय और सामाजिक परिस्थितियों का उल्लेख करें।
  3. कबीर दास जी की शिक्षाएं:
    • उनकी मुख्य शिक्षाओं और विचारों पर चर्चा करें जैसे कि प्रेम, सहिष्णुता, भक्ति, और मानवता।
    • उनके दोहों और भजनों के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों का विरोध करने की बात करें।
  4. कबीर दास जी के दोहे और उनके अर्थ:
    • उनके कुछ प्रसिद्ध दोहे उद्धृत करें और उनके गहरे अर्थ को स्पष्ट करें।
    • दोहों के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण पाठ और शिक्षाओं को समझाएं।
  5. समाज सुधारक के रूप में:
    • समाज सुधारक के रूप में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालें।
    • कैसे उन्होंने जातिवाद, पाखंड, और अंधविश्वास का विरोध किया, इस पर चर्चा करें।
  6. कबीर दास जी की प्रासंगिकता:
    • आज के समय में कबीर दास जी की शिक्षाओं की प्रासंगिकता पर चर्चा करें।
    • उनके विचार कैसे आधुनिक समाज में एकता, भाईचारा, और सहिष्णुता को बढ़ावा दे सकते हैं, इस पर बात करें।
  7. कबीर दास जी का जीवन और संदेश:
    • उनके जीवन के प्रेरणादायक किस्सों और उनके संदेशों का उल्लेख करें।
    • कैसे उन्होंने साधारण और सच्चे जीवन का अनुसरण किया, इस पर चर्चा करें।
  8. निष्कर्ष:
    • भाषण का समापन एक प्रेरक उद्धरण या कबीर दास जी की किसी महत्वपूर्ण शिक्षा के साथ करें।
    • श्रोताओं को उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करें।
  9. धन्यवाद ज्ञापन:
    • अंत में श्रोताओं को धन्यवाद दें और उनके ध्यान और समय के लिए आभार व्यक्त करें।
  10. भावनात्मक और उत्साही स्वर:
    • पूरे भाषण में भावनात्मक और उत्साही स्वर बनाए रखें ताकि श्रोताओं में प्रेरणा जागृत हो।

FAQs

कबीरदास पर 10 लाइन?

1. कबीर दास एक महान संत और कवि थे।
2. उनका जन्म लगभग 1440 ई. के आस-पास हुआ था।
3. उन्होंने भक्ति, साधना और प्रेम का प्रचार किया।
4. कबीर दास जी का जीवन सच्चाई, सरलता और ईश्वर के प्रति प्रेम का प्रतीक था।
5. उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम मतभेदों को समाप्त करने का प्रयास किया।
6. कबीर दास के काव्य में जीवन के सच्चे अर्थ को प्रस्तुत किया गया है।
7. उनके द्वारा रचित दोहे आज भी जनमानस में प्रचलित हैं।
8. कबीर का मानना था कि ईश्वर एक है, और उसका कोई रूप नहीं होता।
9. उनकी शिक्षा ने समाज में समानता और एकता की भावना जाग्रत की।
10. कबीर दास जी की मृत्यु लगभग 1518 ई. के आसपास हुई।

कबीरदास का अनमोल वचन क्या है?

“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”
यह वचन हमें अपनी आत्मा के भीतर देख कर सच्चाई और अच्छाई को खोजने की प्रेरणा देता है।

कबीर का जीवन परिचय 100 शब्दों में?

कबीर दास एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे, जिनका जन्म लगभग 1440 ई. में हुआ था। वे एक सूफी संत थे और उनके विचार हिन्दू-मुस्लिम एकता, सत्य, और भगवान के प्रति प्रेम से ओत-प्रोत थे। कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से समाज में व्याप्त धार्मिक अंधविश्वास और कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है और उसका कोई रूप नहीं है। कबीर की शिक्षा ने भारतीय समाज में प्रेम, समानता और एकता का संदेश दिया। उनका जीवन और उनका काव्य आज भी लोगों को प्रेरित करता है।

कबीर के दोहे 5 लाइन?

1. “साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सिर चढ़े उलट हो, तो भी चुपके समाय।”
2. “दीन दयाल, रहन हर के साथ, कबीर यह कहे, राम का साख।”
3. “माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौपे बिन, हांसी उड़े खड़क, देखे तू मिट्टी के किन।”
4. “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय।”
5. “जोरी जोरी तनु चूले, मन राही तेरे काम, कबीर ये कब कहूं, तू देखे आत्मा के राम।”

कबीर दास का प्रसिद्ध उद्धरण क्या था?

“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”
इस उद्धरण में कबीर ने आत्म-साक्षात्कार और आत्ममूल्य की ओर संकेत किया है।

कबीर भक्ति भावना?

कबीर दास की भक्ति भावना सरलता, सच्चाई और ईश्वर के प्रति पूर्ण प्रेम से भरी थी। वे कहते थे कि भगवान का कोई रूप नहीं है, बल्कि वह सभी स्थानों में व्याप्त है। उनका संदेश था कि व्यक्ति को अपने भीतर भगवान को देखना चाहिए और जीवन को सच्चाई के साथ जीना चाहिए। उनकी भक्ति केवल किसी विशेष धर्म से नहीं, बल्कि सार्वभौमिक प्रेम और समझ से जुड़ी हुई थी।

कबीर शब्द का अर्थ क्या है?

कबीर का अर्थ “महान” या “विशाल” होता है। कबीर शब्द का प्रयोग उनके महान और अत्यधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व को दर्शाने के लिए किया जाता है। कबीर का अर्थ धार्मिक और आत्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करने वाले से भी जोड़ा जा सकता है।

कबीर महान क्यों है?

कबीर महान इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने समाज में व्याप्त धार्मिक अंधविश्वास और कुरीतियों का विरोध किया। वे एकता और समानता के प्रतीक थे और उनका उद्देश्य मानवता के लिए प्रेम और समर्पण का प्रचार करना था। कबीर का काव्य आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है और उनकी शिक्षाएं समाज में जागरूकता फैलाती हैं।

कबीरदास की मृत्यु?

कबीर दास जी की मृत्यु लगभग 1518 ई. के आसपास हुई थी। कहा जाता है कि उनका निधन वाराणसी में हुआ था। कबीर दास जी की समाधि वाराणसी में स्थित है, जहां लोग उनकी शिक्षाओं को श्रद्धा से याद करते हैं।

कबीर किसके शिष्य थे?

कबीर दास जी के गुरु रामानंद जी थे। रामानंद जी ने कबीर दास को भक्ति मार्ग की शिक्षा दी और कबीर ने उनके मार्ग का अनुसरण करते हुए अपने जीवन में भक्ति को प्राथमिकता दी।

कबीर की समाधि कहां है?

कबीर दास की समाधि वाराणसी, उत्तर प्रदेश में स्थित है। यह स्थल उनके अनुयायियों के लिए एक तीर्थ स्थल है, जहां लोग उनके विचारों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेने आते हैं।

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