Mrada Apardan Se Kya Taatparya Hai: भूमि की ऊपरी परत का पानी, हवा या कटाव के कारण एक जगह से दूसरे स्थान पर पहुंचना, मृदा अपरदन कहलाता है। वहीं मृदा अपरदन के कारण भूमि का उपजाऊपन कम हो जाता है। अत्यधिक मात्रा में वर्षा का होना भी मृदा अपरदन का प्रमुख कारण है। वायु, जल, हिमनद और बर्फ, जंतु व मानव द्वारा औजारों का उपयोग सामान्य रूप से ‘मृदा अपरदन’ (Soil Erosion) का मुख्य कारण है। आइए अब इस ब्लॉग में मृदा अपरदन के कारण (Mrada Apardan Se Kya Taatparya Hai) और उपायों के बारे में जानते हैं।
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मृदा किसे कहते है?
पृथ्वी की सबसे ऊपरी सतह पर दानेदार कणों के आवरण वाली परत ‘मृदा’ (Soil) कहलाती है। यह भूमि से निकटता से जुड़ी हुई है। मृदा का निर्माण चट्टानों से प्राप्त खनिजों और जैव पदार्थ तथा भूमि पर पाए जाने वाले खनिजों से होता है। यह अपक्षय (Weathering) की प्रक्रिया के माध्यम से बनती है। खनिजों और जैव पदार्थों का सही मिश्रण मृदा को उपजाऊ बनता है। क्या आप जानते हैं कि केवल एक सेंटीमीटर मृदा को बनने में हजारों वर्ष का समय लग जाता है।
मृदा अपरदन क्या है? – Mrada Apardan Se Kya Taatparya Hai
मृदा अपरदन (Soil Erosion) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें मृदा (Soil) की ऊपरी परत हवा, पानी या अन्य प्राकृतिक कारणों से एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित या विस्थापित हो जाती है। सामान्यतः यह प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से होती है, लेकिन मानव गतिविधियाँ, जैसे कृषि, अतिचारण, औद्योगीकरण व वनों की कटाई, इसे तेज कर देती हैं। मानवीय और प्राकृतिक दोनों ही कारणों से मृदाओं का निम्नीकरण हो सकता है। मृदा अपरदन के कारण मृदा की गुणवत्ता घट जाती है। यहां मृदा अपरदन प्रक्रिया को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझाया गया है:-
- मृदा कणों का ढीला होना व अलग होना यानी अपरदन
- मृदा कणों का विभिन्न साधनों द्वारा स्थांनतरण अथवा विस्थापन
- मृदा कणों का जमाव अर्थात् निक्षेपण।
इसका वर्णन एक फ्लोचार्ट द्वारा निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
मृदा अपरदन > स्थांनतरण > निक्षेपण
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मृदा अपरदन के कारण
मृदा के निम्नीकरण में सहायक कारक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग, वनोन्मूलन (Deforestation), अतिचारण (Overgrazing) अथवा अधिक वर्षा, भूस्खलन और बाढ़ हैं। यहाँ मृदा अपरदन के मुख्य कारणों के बारे में बताया गया है:-
- वृक्षों का अव्यवस्थित कटाव
- वनों में आग
- औद्योगीकरण
- भूमि को बंजर छोड़कर जल एवं वायु अपरदन के लिए प्रेषित करना
- वानस्पतिक फैलाव का अतिचारण
- सिंचाई की गलत विधियां अपनाना
- उन फसलों को उगाना जिससे मृदा अपरदन बढ़ता है
- उर्वरकों और कीटनाशकों का ज़्यादा इस्तेमाल
- लगातार बढ़ता शहरीकरण
- जल प्रदूषण
- वायु अपरदन
- झूमिंग कृषि करना।
मृदा अपरदन के प्रकार
मृदा अपरदन को मुख्यत: दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है। भूगर्भिक अपरदन और त्वरित अपरदन।
- भूगर्भिक अपरदन: भूगर्भिक अपरदन (Geological Erosion) वह प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी की सतह पर स्थित चट्टानों और खनिजों का धीरे-धीरे अपक्षय (weathering) होता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया है जो समय के साथ चट्टानों और अन्य खनिजों के क्षरण के कारण भूमि के रूप में बदलाव करती है। भूगर्भिक अपरदन में प्रमुख रूप से भूगर्भिक बलों, जैसे वायु, जल, बर्फ और समय के प्रभाव से चट्टानों का विघटन (Dissolution) होता है।
- त्वरित अपरदन: त्वरित अपरदन (Accelerated Erosion) उस मृदा या चट्टानों के अपरदन को कहते हैं, जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं से बहुत अधिक तेजी से होता है, मुख्य रूप से मानव गतिविधियों के कारण। यह प्रक्रिया प्राकृतिक अपरदन की तुलना में बहुत अधिक तीव्र होती है, और इसके परिणामस्वरूप भूमि की गुणवत्ता और पर्यावरणीय संतुलन में गंभीर बदलाव होते हैं। त्वरित अपरदन कृषि भूमि में मृदा के उपजाऊपन का श्रय करता है। त्वरित अपरदन मुख्यतः अत्यधिक कृषि, वनों की अंधाधुंध कटाई, निर्माण कार्य और अत्यधिक जल निकासी से होता है।
मृदा अपरदन को रोकने के उपाय
मृदा अपरदन को रोकने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं:-
- चट्टान बांध – यह जल के तेज प्रवाह को कम करने के लिए बनाए जाते हैं। यह नालियों की रक्षा करते हैं और मृदा निम्नीकरण को रोकते हैं।
- वृक्षारोपण – वृक्षों की जड़ें मृदा को मजबूती से पकड़ती हैं और हवाओं व पानी से होने वाले अपरदन को कम करती हैं। वनों और पौधों की अधिकता से मृदा का संरक्षण होता है।
- मल्च बनाना – पौधों के बीच अनावरित भूमि जैव पदार्थ जैसे घास फूस से ढक जाती है। इससे मृदा की आर्द्रता रुकी रहती है।
- रक्षक मेखलाएं – तटीय और शुष्क प्रदेशों में तेज वायु गति को रोकने के लिए वृक्ष कतारों में लगाए जाते हैं ताकि मृदा निम्नीकरण को बचाया जा सके।
- वेदिका फार्म – यह फार्म चौड़े, समतल सोपान अथवा वेदिका तीव्र ढालों पर बनाए जाते हैं ताकि सपाट सतह फसल उगाने के लिए उपलब्ध हो जाए। इससे पृष्ठीय प्रवाह और मृदा अपरदन कम होता है।
- समोच्चरेखीय जुताई – एक पहाड़ी ढाल पर समोच्च रेखाओं के समांतर जुताई ढाल के नीचे बहते जल के लिए एक प्राकृतिक अवरोध का निर्माण करती है। इससे मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।
- समोच्चरेखीय रोधिकाएँ – समोच्चरेखाओं पर रोधिकाएँ बनाने के लिए पत्थरों, घास व मृदा का उपयोग किया जाता है। रोधिकाओं के सामने जल एकत्र करने के लिए बड़े गड्ढे व खाइयां बनाई जाती है।
- मृदा की फसल चक्रण विधि: मृदा में पोषक तत्वों की कमी से बचने के लिए विभिन्न प्रकार की फसलें बारी-बारी से उगाना, ताकि मृदा की गुणवत्ता बनी रहे और वह अपरदन से बची रहे।
FAQs
मृदा अपरदन के पांच मुख्य कारण हैं-वृक्षों का अव्यवस्थित कटाव, वनों में आग, औद्योगीकरण, वानस्पतिक फैलाव का अतिचारण और सिंचाई की गलत विधियां अपनाना।
मृदा अपरदन उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें मृदा की ऊपरी परत हवा, पानी या अन्य प्राकृतिक कारणों से एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित या विस्थापित हो जाती है।
वृक्षारोपण, समोच्चरेखीय जुताई, मृदा की फसल चक्रण विधि व मल्च बनाना आदि विधियों को अपनाकर मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है।
मिट्टी के कटाव के कारण मृदा अपरदन होता है जिससे मिट्टी की उर्वरता में कमी, मिट्टी का क्षरण और रेगिस्तानों का निर्माण होता है।
वनों की कटाई, झूमिंग कृषि, वानस्पतिक फैलाव का अतिचारण तथा उर्वरकों और कीटनाशकों का ज़्यादा इस्तेमाल करके मनुष्य मृदा अपरदन के प्रभाव को बढ़ाते हैं।
आशा है कि आपको इस ब्लॉग में मृदा अपरदन क्या है? (Mrada Apardan Se Kya Taatparya Hai) से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही सामान्य ज्ञान और इंडियन एग्जाम से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।