क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसे पर्यावरण सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 1997 में जापान के क्योटो शहर में आयोजित सम्मेलन में अपनाया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य था पृथ्वी के तापमान को बढ़ने से रोकना और प्रदूषण को कम करना। यह समझौता खासतौर पर उन देशों के लिए था जो ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें (जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड) छोड़ते हैं, जैसे अमेरिका, यूरोपीय देशों आदि। क्योटो प्रोटोकॉल में इन देशों को यह जिम्मेदारी दी गई कि वे अपने प्रदूषण को घटाने के लिए जरूरी कदम उठाएं। यूपीएससी की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए यह एक महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि यह पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से जुड़ा हुआ है। इस ब्लॉग में क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol in Hindi) की जानकारी दी गई है।
This Blog Includes:
- क्योटो प्रोटोकॉल क्या है?
- अमेरिका ने क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किए?
- क्योटो प्रोटोकॉल पर कितने देशों ने हस्ताक्षर किए?
- क्योटो प्रोटोकॉल क्यों बनाया गया?
- क्योटो प्रोटोकॉल का महत्व
- क्योटो प्रोटोकॉल के बारे में कुछ तथ्य
- क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के बीच अंतर
- क्योटो प्रोटोकॉल टाइमलाइन
- भारत और क्योटो प्रोटोकॉल
- FAQs
क्योटो प्रोटोकॉल क्या है?
क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय समझौता था, जिसका उद्देश्य हवा में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को कम करना था। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि विकसित देशों को अपने CO2 उत्सर्जन को घटाना चाहिए। ये समझौता 1997 में जापान के क्योटो शहर में हुआ था, क्योंकि ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ने से जलवायु पर बुरा असर पड़ रहा था। बाद में, क्योटो प्रोटोकॉल को पेरिस समझौते ने 2016 में बदल दिया, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ और भी सख्त कदम था।
अमेरिका ने क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किए?
अमेरिका ने 2001 में क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol in Hindi) से इसलिए दूरी बना ली, क्योंकि उसका कहना था कि ये समझौता सिर्फ विकसित देशों पर दबाव डालता है कि वो अपने प्रदूषण को कम करें। अमेरिका को लगा कि इससे उसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। साथ ही, इसमें विकासशील देशों को छूट दी गई थी, जो अमेरिका को ठीक नहीं लगा। इसलिए उसने इस समझौते का हिस्सा न बनने का फैसला किया।
क्योटो प्रोटोकॉल पर कितने देशों ने हस्ताक्षर किए?
क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol in Hindi) पर कुल 192 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। 2013 में अफगानिस्तान ने क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए, जिससे वह इस समझौते में शामिल होने वाला 192वां और अंतिम देश बन गया।
क्योटो प्रोटोकॉल क्यों बनाया गया?
क्योटो प्रोटोकॉल जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बनाया गया था। यह समझौता विकसित देशों के लिए कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने पर जोर देता है। इसका उद्देश्य ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र के बढ़ते स्तर, द्वीपों के डूबने, ग्लेशियरों के पिघलने और मौसम से जुड़ी गंभीर घटनाओं के प्रभाव को कम करना था।
क्योटो प्रोटोकॉल का महत्व
क्योटो प्रोटोकॉल का महत्व इस प्रकार है:
- यह समझौता ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के लिए बनाया गया था।
- इसने दुनिया के देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एकजुट किया।
- ग्लोबल वॉर्मिंग और समुद्र के बढ़ते स्तर जैसे खतरों से निपटने की शुरुआत की।
- विकसित देशों को प्रदूषण कम करने की जिम्मेदारी दी।
- भविष्य में पेरिस समझौते जैसे बड़े कदमों की नींव रखी।
क्योटो प्रोटोकॉल के बारे में कुछ तथ्य
क्योटो प्रोटोकॉल के बारे में तथ्य निम्नलिखित हैं:
- क्योटो प्रोटोकॉल में 192 देशों ने हिस्सा लिया है।
- क्योटो प्रोटोकॉल पर 84 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं।
- कनाडा, अंडोरा, संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण सूडान इस प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं हैं।
- इस समझौते पर केवल UNFCCC के सदस्य ही इस पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
- इसे यूएनएफसीसीसी के तीसरे सत्र में अपनाया गया था।
- चीन ने 1998 में क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए थे।
- प्रोटोकॉल में ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ शामिल नहीं थे, जिन्हें बाद में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में शामिल किया गया।
क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के बीच अंतर
क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के बीच अंतर इस प्रकार है:
- क्योटो प्रोटोकॉल का उद्देश्य विकसित देशों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कराना था, जबकि पेरिस समझौता सभी देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए खुद के तरीके से काम करने के लिए प्रेरित करता है।
- क्योटो प्रोटोकॉल में देशों के लिए ठोस लक्ष्य थे, जबकि पेरिस समझौता देशों को अपने हिसाब से लक्ष्य तय करने की आज़ादी देता है।
- क्योटो प्रोटोकॉल में सिर्फ विकसित देशों को शामिल किया गया था, जबकि पेरिस समझौता सभी देशों से भागीदारी लेता है, चाहे वे विकसित हों या विकासशील।
- क्योटो प्रोटोकॉल 2005 से 2020 तक था, जबकि पेरिस समझौता 2020 के बाद शुरू हुआ और 2050 तक का लक्ष्य है।
- क्योटो प्रोटोकॉल में देशों को लक्ष्य पूरा करने में मुश्किल होती थी, जबकि पेरिस समझौता देशों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार योजनाएं बनाने की आज़ादी देता है।
क्योटो प्रोटोकॉल टाइमलाइन
क्योटो प्रोटोकॉल टाइमलाइन (Timeline Kyoto Protocol in Hindi ) इस प्रकार है:
- 11 दिसंबर, 1997: जापान के क्योटो शहर में इसे औपचारिक रूप से अपनाया गया।
- 16 मार्च, 1998: इस पर हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया शुरू हुई।
- 15 मार्च, 1999: एक साल के भीतर 84 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए।
- 16 फरवरी, 2005: क्योटो प्रोटोकॉल आधिकारिक तौर पर लागू हुआ।
- 8 दिसंबर, 2012: जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नई प्रतिबद्धताओं के लिए दोहा संशोधन अपनाया गया।
- 25 मार्च, 2013: अफगानिस्तान 192वां हस्ताक्षरकर्ता बना।
- 12 दिसंबर, 2015: पेरिस समझौते को अपनाया गया, जो आगे चलकर क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लेने लगा।
- 4 नवंबर, 2016: पेरिस समझौता लागू हुआ।
- 31 दिसंबर, 2020: दोहा संशोधन को औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया।
भारत और क्योटो प्रोटोकॉल
भारत को क्योटो प्रोटोकॉल के तहत ग्रीनहाउस गैसों को कम करने की जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। भारत ने कहा कि विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच जिम्मेदारी अलग होनी चाहिए। भारत ने अपना विकास करते हुए विकसित देशों से ज्यादा जिम्मेदारी उठाने के लिए कहा। भारत ने 2012 से 2020 तक के लिए क्योटो प्रोटोकॉल के नए नियमों को मंजूरी दी। भारत इसको मानने वाला 80वां देश था।
FAQs
क्योटो प्रोटोकॉल का मुख्य उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को रोकने के लिए विकसित देशों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को घटाना था।
भारत ने 26 अगस्त 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए।
क्योटो प्रोटोकॉल में कुल 192 सदस्य देश हैं।
क्योटो प्रोटोकॉल सम्मेलन 1997 में 11 दिसम्बर को क्योटो, जापान में हुआ था।
हाँ, क्योटो प्रोटोकॉल में कनाडा एक हस्ताक्षरकर्ता देश था, लेकिन 13 दिसम्बर, 2011 को कनाडा क्योटो प्रोटोकॉल से हटने की घोषणा करने वाला पहला हस्ताक्षरकर्ता बना ।
नहीं, अमेरिका क्योटो प्रोटोकॉल का सदस्य नहीं है। अमेरिका ने 2001 में क्योटो प्रोटोकॉल से बाहर निकलने का निर्णय लिया था।
क्योटो प्रोटोकॉल भारत में 2005 में लागू हुआ था। भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए थे, और यह 2005 में प्रभावी हुआ।
हाँ, चीन क्योटो प्रोटोकॉल का सदस्य है। हालांकि, चीन एक विकासशील देश के रूप में वर्गीकृत है, इसलिए इसे क्योटो प्रोटोकॉल के तहत उत्सर्जन में कटौती करने की कानूनी जिम्मेदारी नहीं दी गई थी।
संबंधित आर्टिकल्स
उम्मीद है कि इस ब्लाॅग में आपको Kyoto Protocol in Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही UPSC से जुड़े ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।