Essay on Saalumarada Thimmakka in Hindi: वृक्ष माता सालूमरदा थिमक्का पर निबंध 

1 minute read
Essay on Saalumarada Thimmakka in Hindi

Essay on Saalumarada Thimmakka in Hindi: जब भी हरियाली और पर्यावरण संरक्षण की बात होती है, कर्नाटक की असाधारण महिला सालूमरदा थिमक्का, जिन्हें सम्मानपूर्वक “वृक्ष माता” कहा जाता है, गर्व से याद की जाती हैं। उन्होंने न केवल अपनी पढ़ाई-लिखाई या आर्थिक स्थिति को पीछे छोड़ा, बल्कि पूरी जिंदगी पेड़ों की सेवा और संरक्षण में समर्पित कर दी।  इस ब्लॉग में दिए सालूमरदा थिमक्का पर निबंध (Essay on Saalumarada Thimmakka in Hindi) के सैंपल के माध्यम से उनके जीवन, कार्य और पर्यावरण के प्रति उनके योगदान को विस्तार से जानेंगे।

विशेषताजानकारी
नामसालूमरदा थिमक्का (Saalumarada Thimmakka)
उम्र113 वर्ष
जन्म तिथि30 जून 1911
पति का नामचिककैया (स्वर्गीय)
स्थानीय पताहुलिकल गाँव, मगदी तालुक, रामनगर जिला, कर्नाटक, भारत
कार्य क्षेत्रपर्यावरणविद्, वृक्षारोपण एवं उनकी देखभाल
पुरस्कारपद्म श्री (2019), नादोजा पुरस्कार (2010), राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार (1995), इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार (1997), बीबीसी की 100 महिलाएं (2016) एवं अन्य पुरस्कार
शिक्षाऔपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त
उल्लेखनीय कार्यहल्दीकल और कुदूर के बीच 385 बरगद के पेड़ लगाना एवं उनकी देखभाल, हजारों अन्य पेड़ भी लगाए
अन्य जानकारीवृक्ष माता’ के नाम से प्रसिद्ध, अमेरिकी पर्यावरण संगठन ‘थिम्माक्का रिसोर्सेज फॉर एनवायर्नमेंटल एजुकेशन’ उनके नाम पर है

सालूमरदा थिमक्का पर निबंध 100 शब्दों में

सालूमरदा थिमक्का कर्नाटक की “वृक्ष माता” के रूप में प्रसिद्ध हैं। गरीब और बिना औपचारिक शिक्षा के भी, उन्होंने पर्यावरण संरक्षण में अद्भुत योगदान दिया। अपने पति के साथ मिलकर, उन्होंने चार किलोमीटर सड़क के किनारे 385 बरगद के पेड़ लगाए और उनकी परवरिश बच्चों की तरह की। थिमक्का ने हजारों पेड़ लगाए हैं, जिससे बंजर भूमि भी हरी-भरी हो गई। उनके इस निःस्वार्थ कार्य के लिए उन्हें पद्म श्री पुरस्कार मिला। उनका जीवन यह संदेश देता है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए धन या बड़ी शिक्षा ज़रूरी नहीं, बल्कि सच्ची लगन और प्रेम आवश्यक है। उनकी कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम भी प्रकृति को बचाने में अपना योगदान दें।

सालूमरदा थिमक्का पर निबंध 200 शब्दों में 

सालूमरदा थिमक्का कर्नाटक की एक प्रेरणादायक पर्यावरणविद् हैं, जिन्हें स्नेह से “वृक्ष माता” कहा जाता है। उनका जीवन सादगी और प्रकृति के प्रति गहरे समर्पण का प्रतीक है। गरीब परिवार में जन्मी और औपचारिक शिक्षा से वंचित रहने के बावजूद, थिमक्का ने अपने पति के साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में असाधारण कार्य किया।

उनकी सबसे उल्लेखनीय पहल हुलीकल और कुदूर के बीच चार किलोमीटर की सड़क के किनारे 385 बरगद के पेड़ लगाना और उनकी निरंतर देखभाल करना है। उन्होंने इन पेड़ों को अपने बच्चों की तरह पाला-पोसा, जिससे आज यह मार्ग एक घनी और शीतल छायादार गलियारे में बदल गया है। थिमक्का ने अकेले ही हज़ारों और पेड़ लगाए हैं, जिससे बंजर भूमि को भी हरा-भरा बनाने में मदद मिली है।

उनके इस निस्वार्थ और अथक प्रयास के लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, जिसमें प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार भी शामिल है। सालूमरदा थिमक्का का जीवन हमें यह महत्वपूर्ण संदेश देता है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए किसी विशेष पृष्ठभूमि या शिक्षा की आवश्यकता नहीं है, बल्कि सच्ची निष्ठा, प्रेम और दृढ़ संकल्प ही पर्याप्त हैं। उनकी कहानी हर व्यक्ति को अपने आसपास के पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती है।

यह भी पढ़ें : महिला समानता दिवस पर भाषण

सालूमरदा थिमक्का पर निबंध 500 शब्दों में

सालूमरदा थिमक्का पर निबंध (Essay on Saalumarada Thimmakka in Hindi) 500 शब्दों में इस प्रकार है:

प्रस्तावना

धरती को हरा-भरा रखने और पर्यावरण को बचाने के लिए अनगिनत प्रयास किए जाते हैं, लेकिन कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपने निस्वार्थ कर्मों से इतिहास रच देते हैं। सालूमरदा थिमक्का, जिन्हें प्यार से ‘वृक्ष माता’ कहा जाता है, कर्नाटक की सालूमरदा थिमक्का, जो अब 113 वर्ष की हैं, उन्होंने पिछले 80 वर्षों में 8,000 से अधिक पेड़ लगाए हैं।  उन्होंने न केवल हजारों पेड़ लगाए बल्कि उनकी देखभाल भी अपने बच्चों की तरह की। उन्होंने पर्यावरण को अपना निस्वार्थ योगदान दिया। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ी डिग्रियों या धन की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि एक समर्पित हृदय और अटूट संकल्प ही काफी है।

सालूमरदा थिमक्का का प्रारंभिक जीवन

सालूमरदा थिमक्का का जन्म कर्नाटक के तुमकुरु जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनका बचपन गरीबी और अभावों में बीता। उन्हें औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं मिला और उन्होंने अपनी जीविका चलाने के लिए पत्थर खदान में दिहाड़ी मजदूरी का काम किया। उनका विवाह रामनगर जिले के हुलिकल गाँव के चिककैया से हुआ, जो स्वयं एक मजदूर थे। थिमक्का और चिककैया का वैवाहिक जीवन सुखमय था, लेकिन उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो सका। संतान न होने के दुख से थिमक्का और उनके पति परेशान थे। इसी भावनात्मक खालीपन को भरने के लिए उन्होंने एक अनोखा तरीका अपनाया पेड़ों को अपना बच्चा मानना और उनकी देखभाल करना।

सालूमरदा थिमक्का की उपलब्धियां

थिमक्का और उनके पति ने अपने गाँव के पास उगने वाले बरगद के पेड़ों से प्रेरणा ली। उन्होंने इन पेड़ों के पौधे उगाना शुरू किए और उन्हें सड़क के किनारे लगाना शुरू कर दिया। उनका पहला बड़ा प्रयास हल्दीकल और कुदूर के बीच चार किलोमीटर के राजमार्ग पर 385 बरगद के पेड़ लगाना था। थिमक्का और उनके पति प्रतिदिन कई किलोमीटर पैदल चलकर इन पौधों को पानी देते थे। उनकी मेहनत रंग लाई। आज वह चार किलोमीटर का राजमार्ग हरे-भरे बरगद के पेड़ों की एक सुंदर सुरंग जैसा दिखता है, जो राहगीरों को शीतल छाया और सुकून प्रदान करता है। इसके अलावा, थिमक्का ने अकेले ही हजारों अन्य पेड़ लगाए हैं, जिनमें नीम, पीपल और अन्य स्थानीय प्रजातियां शामिल हैं।

सालूमरदा थिमक्का के निस्वार्थ और अथक प्रयासों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जैसे पद्म श्री, नादोजा पुरस्कार, राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार, वीरचक्र प्रशस्ति पुरस्कार और ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (BBC) ने उन्हें दुनिया की 100 सबसे प्रभावशाली और प्रेरणादायक महिलाओं में शामिल किया।

निष्कर्ष

सालूमरदा थिमक्का के पति आज भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन थिमक्का का संकल्प और भी मजबूत हुआ है। वह आज भी सक्रिय रूप से वृक्षारोपण और पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रमों में भाग लेती हैं। उनका सपना अपने गाँव में पति की स्मृति में एक अस्पताल बनवाना है, ताकि लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें। सालूमरदा थिमक्का वास्तव में ‘वृक्ष माता’ हैं, जिन्होंने अपने कर्मों से न केवल धरती को हरा-भरा बनाया बल्कि अनगिनत लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित भी किया। उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत बनी रहेगी।

यह भी पढ़ें : नारी सशक्तिकरण पर कोट्स

सालूमरदा थिमक्का पर 10 लाइन 

सालूमरदा थिमक्का पर 10 लाइन में निबंध इस प्रकार है:

  1. सालूमरदा थिमक्का कर्नाटक की प्रख्यात पर्यावरणविद् हैं।
  2. उन्हें ‘वृक्ष माता’ के नाम से जाना जाता है।
  3. उन्होंने अपने जीवन में 8,000 से अधिक पेड़ लगाए हैं।
  4. इनमें से 385 बरगद के पेड़ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
  5. ‘सालूमरदा’ का मतलब होता है ‘पेड़ों की पंक्ति’।
  6. संतान न होने पर उन्होंने पेड़ों को अपना बच्चा मानकर उनकी देखभाल की।
  7. वह और उनके पति दूर से पानी लाकर पौधों को सींचते और उनकी रक्षा करते थे।
  8. उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली और पहले पत्थर खदान में मजदूरी करती थीं।
  9. उन्हें 2019 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  10. उनकी कहानी यह दिखाती है कि एक साधारण व्यक्ति भी पर्यावरण के लिए बड़ा बदलाव ला सकता है।

सालूमरदा थिमक्का पर निबंध कैसे लिखें?

छात्र सरलता से सालूमरदा थिमक्का पर निबंध (Essay on Saalumarada Thimmakka in Hindi) ऐसे लिख सकते हैं:

  • प्रस्तावना में बताएं कि सालूमरदा थिमक्का ‘वृक्ष माता’ के नाम से जानी जाती हैं और उन्होंने पर्यावरण के लिए बहुत काम किया है।
  • कार्यों के बारे में लिखें कि उन्होंने हज़ारों पेड़ लगाए, जिनमें 385 बरगद के पेड़ खास हैं, जिनकी उन्होंने बच्चों की तरह देखभाल की।
  • उनके निजी जीवन के बारे में बताएं कि उन्हें बच्चे नहीं थे, इसलिए उन्होंने पेड़ों को अपना परिवार मान लिया और उनकी परवरिश की।
  • संघर्ष के बारे में लिखें कि उन्होंने गरीबी में मजदूरी करते हुए भी दूर से पानी लाकर पौधों को पाला।
  • उनके काम को भारत और दुनिया भर में कब और कैसे मान्यता मिली, यह लिखें।
  • भारत सरकार द्वारा उन्हें किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया, यह लिखें।
  • थिमक्का यह दिखाती हैं कि कोई भी व्यक्ति छोटे संसाधनों के साथ भी बड़ा बदलाव ला सकता है, यह संदेश लिख सकते हैं।
  • निष्कर्ष में उनके प्रकृति प्रेम और निस्वार्थ सेवा को एक जीता-जागता उदाहरण बताते हुए लिखें कि वे हमें भी पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करती हैं।

FAQs

सालूमरदा थिमक्का कौन हैं?

सालूमरदा थिमक्का कर्नाटक राज्य की साधारण सी महिला हैं जिन्हें राजमार्ग के 4.5 किलोमीटर (2.8 मील) हिस्से पर 385 बरगद के पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने के अपने काम के लिए जानी जाती हैं।

सालूमरदा थिमक्का का असली नाम क्या है?

सालूमरदा थिमक्काका का असली नाम अलादा मरदा तिमक्का है। 

थिमक्का को सालूमरदा नाम क्यों दिया गया था?

थिमक्का को सालूमरदा नाम उनके काम के कारण दिया गया, सालूमरदा शब्द का अर्थ (कन्नड़ भाषा में पेड़ों की पंक्ति) है। 

सम्बंधित आर्टिकल 

प्रकृति पर निबंधजीएसटी पर निबंध
प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंधबाल दिवस पर निबंध
संयुक्त परिवार पर निबंधजल संरक्षण पर निबंध
गरीबी पर निबंधपिकनिक पर निबंध
समय के सदुपयोग पर निबंधस्वामी विवेकानंद पर निबंध
मेरे जीवन के लक्ष्य पर निबंधपेड़ों के महत्व पर निबंध
बंकिम चंद्र चटर्जी पर निबंधरानी दुर्गावती पर निबंध
अच्छी आदतों पर निबंधदुर्गा पूजा पर निबंध
विश्व जनसंख्या दिवस पर निबंधव्यायाम पर निबंध
राष्ट्रीय एकता पर निबंधबरसात के दिन पर निबंध
आपदा प्रबंधन पर निबंधमेरे भाई पर निबंध
‘स्वयं’ पर निबंधयोग पर निबंध
कबीर दास पर निबंधलाल किला पर निबंध
उत्तर प्रदेश पर निबंधक़ुतुब मीनार पर निबंध
भारतीय संस्कृति पर निबंधसुभाष चंद्र बोस पर निबंध
जलवायु परिवर्तन पर निबंधहरित ऊर्जा पर निबंध

आशा है कि आपको सालूमरदा थिमक्का पर निबंध (Essay on Saalumarada Thimmakka in Hindi) का ये लेख पसंद आया होगा। इसी तरह के अन्य निबंध लेखन पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*