Essay on Harela in Hindi: हरेला पर्व पर निबंध 

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Essay on Harela in Hindi

Essay on Harela in Hindi: उत्तराखंड की हरी-भरी पहाड़ियों में मनाया जाने वाला हरेला पर्व एक खास त्योहार है, जो प्रकृति, खेती और परंपरा से जुड़ा हुआ है। सावन के महीने में जब बारिश की पहली बूँदें धरती को हरा करती हैं, तब यह त्योहार लोगों के जीवन में नई ऊर्जा और खुशहाली लाता है। हरेला केवल एक पर्व नहीं, बल्कि हरियाली और समृद्धि का उत्सव है, जिसे लोग पूरे उत्साह से मनाते हैं। इस ब्लॉग हरेला पर निबंध (Essay on Harela in Hindi) में हम जानेंगे हरेला के पीछे की मान्यताएँ, इसकी परंपराएं और क्यों यह उत्तराखंड की संस्कृति का अहम हिस्सा है – 100, 200 और 500 शब्दों में। 

हरेला पर्व पर निबंध 100 शब्दों में

हरेला पर्व उत्तराखंड में खासकर कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक त्योहार है, जो प्रकृति, हरियाली और खेती से जुड़ा होता है। यह मुख्य रूप से सावन के महीने में मनाया जाता है। हारले पर्व से कुछ दिनों पहले से ही लोग मिट्टी में धान, गेहूं और मक्का जैसे बीज बोते हैं। दसवें दिन उगी हुई हरी पत्तियों को काटकर देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है, घर के बड़ों और बच्चों को आशीर्वाद देते हैं और उनके सर पर हरेला रखा जाता है। इस दिन “जी रया, जागि रया” जैसे लोकगीत गाए जाते हैं। यह पर्व शिव-पार्वती विवाह, सौभाग्य और हरियाली का प्रतीक माना जाता है।

हरेला पर्व पर निबंध 200 शब्दों में

हरेला पर्व उत्तराखंड के प्रमुख पारंपरिक त्योहारों में से एक है, जो खासकर कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी श्रद्धा और खुशी के साथ मनाया जाता है। यह पर्व वर्ष में तीन बार मनाया जाता है – चैत्र, सावन, और आश्विन मास में। लेकिन सावन महीने का हरेला सबसे महत्वपूर्ण और विशेष माना जाता है, क्योंकि यह बरसात और हरियाली की शुरुआत का संकेत देता है। 

हरेला पर्व की तैयारी करीब 10 दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। मिट्टी से बने पात्रों में धान, गेहूं, मक्का, उड़द आदि के बीज बोए जाते हैं। इन बीजों को रोज़ पानी देकर सींचा जाता है। दसवें दिन जब हरी पौध निकल आती है, तो उन्हें हरेला कहा जाता है। जो देवी- देवताओं को सबसे पहले अर्पित किये जाते हैं बाद में घर के सभी सदस्यों को टिका लगा कर हरेला सर पर व कान पर रखा जाता है। 

पर्व के दिन ये पौधे जब बच्चों के सर पर रखे जाते हैं तब बड़े लोग “जी रया, जागि रया…” कहकर आशीर्वाद देते हैं। यह त्योहार शिव-पार्वती के विवाह, प्रकृति, खेती, और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। हरेला हमें प्रकृति से प्रेम, संरक्षण और साझा परंपराओं की याद दिलाता है। यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन और हरियाली का उत्सव है।

हरेला पर्व पर निबंध 500 शब्दों में

हरेला पर्व पर निबंध (Essay on Harela in Hindi) 500 शब्दों में इस प्रकार है:

प्रस्तावना 

हरियाली से जुड़ा हरेला पर्व उत्तराखंड राज्य का एक बहुत ही खास और पारंपरिक त्योहार है, जो प्रकृति, खेती और सांस्कृतिक परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह पर्व मुख्य रूप से कुमाऊं क्षेत्र में सावन महीने की शुरुआत पर मनाया जाता है। “हरेला” का मतलब होता है “हरियाली” और यह पर्व हरियाली, नई फसल और अच्छे समय के आने का संकेत देता है।

हरेला पर्व का महत्व

हरेला पर्व प्रकृति और कृषि के प्रति सम्मान का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि हमारी जिंदगी का आधार प्रकृति है और हमें उसका ध्यान रखना चाहिए। इस दिन लोग अच्छी फसल और घर में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की याद में भी मनाया जाता है और इसे शुभ शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।

हरेला पर्व कर्क संक्रांति के दिन मनाया जाता है, जब सूर्य दक्षिण दिशा की ओर जाता है और दिन धीरे-धीरे छोटे होने लगते हैं। यह समय खेती-बाड़ी की शुरुआत और मौसम के बदलाव का संकेत भी देता है।

हरेला पर्व कैसे मनाया जाता है?

हरेला पर्व की तैयारी लगभग 10 दिन पहले शुरू होती है। घर में एक साफ बर्तन या टोकरा लिया जाता है, जिसमें पवित्र मिट्टी भरकर उसमें धान, गेहूं, मक्का, उड़द, तिल, भट्ट जैसे 5 या 7 तरह के बीज बोए जाते हैं। इसे रोज़ पानी देकर सींचा जाता है और धूप से बचाया जाता है।

दसवें दिन, इन बीजों से उगे हुए हरे-भरे छोटे पौधों को ‘हरेला’ कहा जाता है। इन्हें काटकर पहले देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है, फिर इन्हें घर के सभी सदस्यों को आशीर्वाद देने के लिए उपयोग किया जाता है।

हरेला में गया जाने वाला लोकगीत 

हरेला पर्व की एक खास बात यह है कि हरेला पर्व के अवसर पर बोये गए पौधों को देवी-देवताओं को अर्पित कर इस दिन बुजुर्ग लोग इन पौधों को बच्चों और परिवार के सदस्यों के सिर पर रखते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। वे एक सुंदर लोकगीत भी गाते हैं, जो इस प्रकार होता है:

“जी रया, जागि रया, 
यो दिन बार, भेटने रया,
दुबक जस जड़ हैजो, 
पात जस पौल हैजो, 
स्यालक जस त्राण हैजो, 
हिमालय में ह्यू छन तक, 
गंगा में पाणी छन तक, 
हरेला त्यार मानते रया, 
जी रया जागी रया…”

इस गीत के माध्यम से वे लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य, बल, बुद्धि, यश और निरंतर उन्नति की कामना करते हैं। यह आशीर्वाद दूब घास की तरह जड़ें मजबूत होने और पत्तों की तरह फलने-फूलने की कामना करता है, जो वंश वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक है। किसानों के लिए हरेले का महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि जितना बड़ा और स्वस्थ हरेला होता है, उतनी ही अच्छी फसल होने की उम्मीद की जाती है।

उपसंहार 

हरेला पर्व केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ाव, परंपरा के सम्मान, और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति के साथ तालमेल में रहकर ही जीवन सुखमय बन सकता है। आज के समय में जब लोग अपने रीति-रिवाजों से दूर हो रहे हैं, ऐसे में हरेला जैसे त्योहार हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं। यह पर्व उत्तराखंड की हरियाली, सरलता और समृद्ध परंपरा का उदाहरण है।

हरेला पर्व पर 10 लाइन

हरेला पर्व पर 10 लाइन इस प्रकार हैं:

  1. हरेला पर्व उत्तराखंड का एक खास त्योहार है, जो प्रकृति और हरियाली का प्रतीक है।
  2. यह पर्व विशेष रूप से कुमाऊं क्षेत्र में सावन महीने की शुरुआत पर मनाया जाता है।
  3. हरेला साल में तीन बार आता है, लेकिन सावन का हरेला सबसे ज्यादा महत्व रखता है।
  4. यह त्योहार खेती और अच्छे मौसम की शुरुआत का संकेत देता है।
  5. हरेला बोने के लिए मिट्टी में धान, गेहूं, उड़द आदि के बीज बोए जाते हैं।
  6. दसवें दिन उगे हरे पौधों को काटकर देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है।
  7. परिवार के बड़े लोग इन पौधों को सिर पर लगाकर आशीर्वाद देते हैं।
  8. आशीर्वाद के साथ “जी रया, जागि रया…” जैसे गीत गाए जाते हैं।
  9. यह पर्व बताता है कि प्रकृति से जुड़ाव जीवन में सुख-शांति लाता है।
  10. हरेला हमारी संस्कृति, कृषि परंपरा और पर्यावरण प्रेम का प्रतीक है।

हरेला पर्व पर निबंध कैसे लिखें?

छात्र हरेला पर्व पर निबंध लिखने के लिए इन 6 बिंदुओं का उपयोग कर सकते हैं:

  • परिचय: बताएं कि हरेला उत्तराखंड का एक महत्वपूर्ण लोकपर्व है जो हरियाली और प्रकृति से जुड़ा है।
  • कारण: स्पष्ट करें कि यह मॉनसून और नए कृषि वर्ष की शुरुआत में प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
  • विधि: लिखें कि पर्व से कुछ दिन पहले विभिन्न अनाजों के बीज बोए जाते हैं और उनकी देखभाल की जाती है।
  • उत्सव: बताएं कि हरेले के दिन इन पौधों को काटा जाता है और देवताओं को चढ़ाया जाता है।
  • आशीर्वाद: उल्लेख करें कि बड़े-बुजुर्ग हरेले को लगाकर “जी रया, जागि रया” जैसे आशीर्वाद देते हैं, जो सुख-समृद्धि की कामना है।
  • निष्कर्ष: संक्षेप में बताएं कि हरेला पर्व प्रकृति संरक्षण, सांस्कृतिक विरासत और सामुदायिक एकता का प्रतीक है।

FAQs

हरेला का अर्थ क्या होता है?

हरेला का अर्थ है – हरियाली। 

हरेला पर्व क्यों मनाया जाता है?

हरेला पर्व को शिव और पार्वती के विवाह की याद में और नए फसल की अच्छी उत्पत्ति की कामना करने के लिए मनाया जाता है। 

हरेला का महत्व क्या है?

हरेला पर्व चैत्र व आश्विन माह में बोया जाने वाला हरेला मौसम के बदलाव के सूचक है।

हरेला कैसे बनाया जाता है?

हरेला में 7 या 5 प्रकार के अनाज का मिश्रण करके बोया जाता है। 

हरेला पर्व किसका प्रतीक है?

हरेला पर्व हरियाली और सावन के आने प्रतीक है। 

कुमाऊनी फेस्टिवल हरेला क्या है?

हरेला हिंदू चंद्र कैलेंडर के पांचवे महीने में मनाया जाता है। इसका अर्थ ‘हरियाली का दिन’ है। 

उत्तराखंड के किस क्षेत्र में लोग हरेला मनाते हैं?

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है। 

हरेला त्योहार से कितने दिन पहले बोया जाता है?

हरेला त्योहार से 10 – 15 दिन पहले बोया जाता है। 

हरेला को सबसे प्रथम किसे चढ़ाया जाता है?

हरेला को सबसे पहले देवी देवताओं को चढ़ाया जाता है। 

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