Essay on Demonetization in India in Hindi: भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव की कहानी कहता भारत में विमुद्रीकरण पर प्रभावशाली निबंध

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Essay on Demonetization in India in Hindi

Essay on Demonetization in India in Hindi: देश में समय-समय पर आर्थिक सुधारों के लिए कई नए नियम और बड़े फ़ैसले लिए जाते हैं। ऐसा ही एक बड़ा फ़ैसला है विमुद्रीकरण, जिसे हम आम भाषा में नोटबंदी कहते हैं। नोटबंदी इसलिए की जाती है ताकि काले धन को ख़त्म किया जा सके, नकली नोटों को रोका जा सके और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दिया जा सके। 

इस निबंध, भारत में विमुद्रीकरण पर निबंध (Essay on Demonetization in India in Hindi) में हम जानेंगे कि भारत में विमुद्रीकरण क्यों किया गया, इसके क्या उद्देश्य थे, इसका आम जनता और अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ा, इसके क्या फ़ायदे और नुक़सान हुए, और लोगों को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यह जानकारी कक्षा 7, 8, 9 और 10 के छात्रों के लिए काफ़ी मददगार साबित होगी। 

भारत में विमुद्रीकरण पर निबंध 100 शब्दों में 

भारत में विमुद्रीकरण का मतलब है सरकार द्वारा कुछ मुद्रा नोटों को अचानक ही कानूनी मान्यता से बाहर कर देना। 8 नवंबर 2016 को भारत सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया। इसका उद्देश्य काले धन पर नियंत्रण, नकली नोट हटाना और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकना था। इससे देशभर में नकदी की भारी कमी हो गई, जिससे आम लोगों को परेशानी हुई। सरकार का मानना था कि इससे डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा मिलेगा और देश की अर्थव्यवस्था अधिक पारदर्शी और संगठित बनेगी। यह निर्णय भारत की आर्थिक नीतियों में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ।

भारत में विमुद्रीकरण पर निबंध 200 शब्दों में 

भारत सरकार ने 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करके विमुद्रीकरण की घोषणा की थी। उस समय देश में चलन में कुल नकदी का लगभग 86% इन्हीं दो नोटों में था। इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य काले धन को खत्म करना, नकली नोटों को हटाना, और आतंकवाद की फंडिंग रोकना था। इसके साथ ही, सरकार ने डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर भी ज़ोर दिया था।

विमुद्रीकरण के तात्कालिक प्रभावों में लोगों को नकदी की भारी कमी का सामना करना पड़ा। बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारें लगीं। छोटे व्यापारी और मजदूर वर्ग में लोग सबसे अधिक प्रभावित हुए। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां डिजिटल साधन सीमित थे, वहाँ कठिनाइयाँ और भी ज्यादा बढ़ गईं।

हालांकि सरकार के अनुसार, इससे कर संग्रह में बेहद अधिक सुधार हुआ और डिजिटल लेन-देन में भी वृद्धि दर्ज की गई। उदाहरण के लिए, UPI लेन-देन 2016 में लगभग 1 करोड़ के आसपास था, जो 2023 आने तक 9000 करोड़ से अधिक हो गया। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि अधिकांश काला धन संपत्ति और सोने में होता है, जिससे विमुद्रीकरण का सीमित ही प्रभाव पड़ता है। फिर भी, यह निर्णय भारत की आर्थिक व्यवस्था की दिशा बदलने में कामयाब साबित हुआ।

भारत में विमुद्रीकरण पर निबंध 500 शब्दों में 

भारत में विमुद्रीकरण पर निबंध (Essay on Demonetization in India in Hindi) 500 शब्दों में इस प्रकार है –

प्रस्तावना

विमुद्रीकरण का मतलब होता है जब सरकार किसी पुराने नोट को चलन से बाहर कर देती है। भारत में यह बड़ा फैसला 8 नवंबर 2016 को लिया गया, जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने रात 8 बजे ऐलान किया कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट अब मान्य नहीं रहेंगे। इस कदम को हम “नोटबंदी” भी कहते हैं।

विमुद्रीकरण के उद्देश्य

सरकार ने यह कदम तीन बड़े कारणों से उठाया:

  1. काला धन रोकना: वह पैसा जो लोग सरकार को बताए बिना छुपा कर रखते हैं और उस पर टैक्स नहीं देते, उसे काला धन कहा जाता है।
  2. नकली नोटों को हटाना: बाज़ार में बहुत सारे नकली 500 और 1000 के नोट चल रहे थे, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक थे।
  3. डिजिटल भुगतान को बढ़ाना:  सरकार चाहती थी कि लोग कैश की जगह ऑनलाइन तरीके से भुगतान करें ताकि सबकुछ रिकॉर्ड में रहे।

प्रभाव और आँकड़े

प्रभाव और आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं:

  • विमुद्रीकरण के समय भारत में कुल 15.41 लाख करोड़ रुपये के 500 और 1000 के नोट थे।
  • इनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये (99.3%) वापस बैंकों में जमा हो गए।
    ➤ इससे यह सवाल उठा कि अगर सारा पैसा वापस आ गया, तो काला धन कहां गया?
  • सरकार का अनुमान था कि 3-4 लाख करोड़ रुपये का काला धन सामने आएगा, लेकिन वास्तव में केवल 1.3 लाख करोड़ रुपये ही पकड़े गए।
  • नोटबंदी के बाद डिजिटल लेन-देन में ज़बरदस्त वृद्धि हुई:
    ➤ वर्ष 2019-20 में डिजिटल भुगतान की संख्या 3,434.56 करोड़ हो गई।
    ➤ डिजिटल लेन-देन में 55.1% सालाना वृद्धि देखी गई।
  • नकली नोटों के बारे में:
    ➤ 2015-16 में – 6.32 लाख नकली नोट पकड़े गए।
    ➤ 2016-17 में – 7.62 लाख नकली नोट मिले।
    ➤ 2019-20 में – अब भी 1.7 लाख नकली नोट पकड़े गए।
    ❖ इसका मतलब है कि नकली नोट पूरी तरह खत्म नहीं हुए।
  • नोटबंदी के बाद भी देश में नकदी की मात्रा बढ़ी:
    ➤ 2015-16 में 16.4 लाख करोड़ रुपये की नकदी थी।
    ➤ 2019-20 में यह बढ़कर 24.2 लाख करोड़ रुपये हो गई।

नकारात्मक प्रभाव और चुनौतियाँ

नकारात्मक प्रभाव और चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:

  1. नोटबंदी के तुरंत बाद बैंकों और एटीएम के सामने लंबी कतारें लग गईं। रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करना कठिन हो गया।
  2. छोटे दुकानदार, किसान, मज़दूर जैसे नकद पर निर्भर लोगों की आय घट गई। अनौपचारिक क्षेत्र (informal sector) में आर्थिक मंदी आई।
  3. कई रिपोर्टों के अनुसार, असंगठित क्षेत्रों में लाखों लोगों की नौकरियाँ चली गईं। इसके साथ ही नए नोटों की छपाई और उन्हें वितरित करना एक बड़ी चुनौती थी।
  4. RBI रिपोर्ट (2018) के अनुसार, बंद किए गए कुल नोटों का 99.3% हिस्सा वापस बैंकों में जमा हो गया, जिससे सवाल उठा कि कितना काला धन वाकई सिस्टम से बाहर हुआ। 

उपसंहार 

विमुद्रीकरण एक ऐतिहासिक और साहसी फैसला था, जिससे कुछ अच्छे नतीजे भी सामने आए जैसे कि डिजिटल लेन-देन में बढ़ोतरी और कर प्रणाली में पारदर्शिता देखि गई। लेकिन इसके कुछ लक्ष्य, जैसे कि काले धन का सफाया और नकली नोटों की रोकथाम, पूरी तरह सफल नहीं हो सके। भविष्य में यदि ऐसे निर्णय लिए जाएं, तो यह ज़रूरी है कि सरकार पहले से बेहतर तैयारी करे और आम लोगों को होने वाली परेशानी को कम करे।

भारत में विमुद्रीकरण पर 10 लाइन

कक्षा 7 से 10 के छात्रों के लिए भारत में विमुद्रीकरण (नोटबंदी) पर दस लाइन इस प्रकार हैं:

  1. 8 नवंबर 2016 को भारत सरकार ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद कर दिए।
  2. इस फैसले को विमुद्रीकरण (Demonetisation) या नोटबंदी कहा गया।
  3. सरकार का उद्देश्य था काले धन, नकली नोट और भ्रष्टाचार को खत्म करना।
  4. उस समय भारत में चल रही कुल नकदी का 86% हिस्सा अमान्य हो गया।
  5. भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, 99.3% पुराने नोट बैंकों में वापस आ गए।
  6. नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान, जैसे UPI और ऑनलाइन पेमेंट, तेजी से बढ़ा।
  7. साल 2020 तक UPI के जरिए 207 करोड़ से ज्यादा ट्रांजैक्शन हुए।
  8. विमुद्रीकरण के कारण छोटे व्यापारियों और मजदूरों को परेशानी हुई।
  9. नकली नोट कुछ हद तक कम हुए, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हो पाए।
  10. यह फैसला लंबे समय में देश को डिजिटल और टैक्स-पारदर्शी बनाने की दिशा में एक कदम था।

भारत में विमुद्रीकरण पर निबंध कैसे लिखें?

भारत में विमुद्रीकरण पर छात्र कुछ इस प्रकार निबंध लिख सकते हैं: 

  • सबसे पहले प्रस्तावना में छात्र विमुद्रीकरण के बारे में बताएं जैसे कब किया गया था और कौनसे नोट बंद किए गए थे।
  • फिर छात्र विमुद्रीकरण का मुख्य उद्देश्य लिख सकती है जैसे काला धन समाप्त करना, नकली नोट हटाना, डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना।
  • फिर छात्र जनता पर क्या प्रभाव पड़ा, काले धन का क्या हुआ और RBI के अनुसार 99.3% पुराने नोट बैंक में वापस आए लिख सकते हैं। 
  • फिर छात्र विमुद्रीकरण के नकारात्मक प्रभाव और उनके बीच आने वाली चुनौतियों के बारे में लिख सकते हैं जैसे जनता को बैंकों की बहार लाइन नहीं लगानी पड़ी छोटे व्यवसाय बंद हो गए और उनकी आय घट गई।
  • अंत में उपसंहार में सरकार क्या फैसला कर सकती थी, विमुद्रीकरण से पहले और एक बार फिर विमुद्रीकरण के मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में दोहराएं।

FAQs 

भारत में कितनी बार नोटबंदी हुई है?

भारत में, 1946 से 2023 तक भारत में कुल 5 बार विमुद्रीकरण हुआ है।

“डेमोनेटिसेशन” का हिंदी में क्या अर्थ है?

डेमोनेटिसेशन का अर्थ होता है विमुद्रीकरण, यानी किसी मुद्रा को कानूनी रूप से मान्यता से वंचित करना। 

नोटबंदी का क्या अर्थ है?

नोटेबंदी का अर्थ है सरकार द्वारा कुछ नोटों का बहिष्कार करना।

विमुद्रीकरण का दूसरा नाम क्या है?

विमुद्रीकरण का दूसरा नाम नोटबंदी है।

1000 और 500 के नोट कब बंद हुए थे?

1000 और 500 के नोट 08 नवंबर 2016 की मध्यरात्रि से बंद हुए थे। 

नोटबंदी के समय भारत का गवर्नर कौन था?

नोटबंदी के समय भारत के गवर्नर उर्जित पटेल थे।

भारत में बड़ा नोट कौन सा है?

वर्ष 1938 में RBI ने पहला 10,000 रुपये का नोट जारी किया, जो देश में अब तक का सबसे बड़ा नोट है। 

भारत में पहली बार नोटबंदी किस प्रधानमंत्री ने की थी?

भारत में पहली बार नोटबंदी चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के द्वारा सन्र 1978 में किया था। 

भारत में 3 बार नोटबंदी कब हुई थी?

भारत में 3 बार नोटबंदी 1946, 1978 और 2016 में हुई थी। 

किस बैंक ने विमुद्रीकरण का समर्थन किया था?

भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत में विमुद्रीकरण पहल का समर्थन किया था।

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