जानिए गोल्डन गर्ल के बारे में

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पी. टी उषा की आत्मकथा

पी. टी उषा देश दुनिया का एक जाना माना नाम है जिन्हें किसी परिचय की जरूरत नहीं है। 27 जून 1964 को कुट्टली, कोझिकोड, केरल भारत में जन्मी पी. टी उषा का पूरा नाम पिलावुल्लाकांडी थेक्केपारंबिल उषा है जिन्हें सभी गोल्डन गर्ल व पय्योली एक्सप्रेस के नाम से भी जानते हैं।पी. टी उषा भारत की एक महान व जानी-मानी महिला एथलीट है। “भारतीय ट्रैक और फील्ड की रानी” मानी जाने वाली पी. टी उषा भारतीय खेलकूद में सन् 1969 से है वह भारत की सबसे अच्छी खिलाड़ियों में से एक है। सन 1969 में पी. टी उषा पहली बार लाइमलाइट में तब आई जब उन्होंने नेशनल स्पोर्ट्स गेम्स में व्यक्तिगत चैंपियनशिप जीती।

पी. टी उषा जैसी तेज दौड़ने वाली लड़की का कोई मुकाबला नहीं है। आज भी अगर सबसे तेज दौड़ने वाली महिला धावक का नाम पूछा जाता है तो बच्चे बच्चे की जुबान पर केवल पी. टी उषा का ही नाम आता है।यह दुनिया की बहुत ही फेमस और सफल महिला एथलीटों में से एक है। पीटी उषा आज केरल में अपना एथलीट स्कूल चलाती है जहाँ वे अपनी प्रतिभा का ज्ञान दूसरे बच्चों को भी देती है  तो आइए चलते हैं पी. टी उषा के जीवन के बारे में और जानकारी लेते है। 

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पी. टी उषा का प्रारंभिक जीवन का परिचय

पी. टी उषा का पूरा नाम: पिलावुल्लाकांडी  थेक्केपारंबिल उषा है, पी. टी उषा का जन्म 27 जून 1964 में केरल के मेलाडी-पय्योली गांव  के एक गरीब घर में हुआ था। इनके पिता का नाम ई.पी.एम पैतल एवं माता का नाम टी वी लक्ष्मी है।उनके पिता एक कपड़े के व्यापारी हैं। पी. टी उषा की दो बहने तथा एक भाई हैं। इनके गाँव का नाम पय्योली था इसलिए पय्योली नाम यही से मिला । गरीबी और पोषण की कमी के बावजूद उषा ने खेलों में शुरुआती योग्यता दिखाइए उनकी प्रतिभा को देखते हुए  केरल सरकार ने उन्हें 250 रुपए की छात्रवृत्ति से सम्मानित किया। 

पी. टी उषा
Source – (Pinterest)

सन् 1976 में केरल सरकार ने कन्नूर जिले में एक महिला खेल सेंटर की शुरुआत की जिसमें 40 महिलाओं का यहां से ट्रेनिंग प्राप्त के लिए चयन हुआ जिसमें से एक 12 वर्षीय लड़की पी. टी उषा भी शामिल थी। पी. टी उषा के पहले कोच ओ.एम.नाम्बियार थे। पी. टी उषाबचपन में बहुत बीमार हुई जिसे उन्होंने अपने Primary स्कूल के दिनों में अपनी सेहत को काफी सुधार लिया था और यहीं से लोगों को इनके अंदर एक महान एथलीट की छवि दिखाई दी और यही से शुरुआत हुई एक महान एथलीट बनने की।आज पी. टी उषा  56 साल की है। इस उम्र में, अभी भी वह भारत के सबसे चर्चित ट्रैक और फील्ड एथलीटों में से एक है। यह महान एथलीट वर्षों से हमारी GK की किताबों में स्थिर रही है, इनके बारे मे हम सबने पढ़ा भी है और न केवल वह एक खजाना है बल्कि हम भारतीयों को हमेशा उस पर गर्व होगा, लेकिन अब एक कोच के रूप में, वह अन्य महत्वाकांक्षी एथलीटों को अपनी विरासत को संभालने और उज्ज्वल होकर चमकने में भी मदद कर रही है।दरअसल, उषा के एथलेटिक्स स्कूल की प्रशिक्षु जिस्ना मैथ्यू पदक जीत चुकी हैं, उन्होंने हाल ही में एशियाई जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था।

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पी. टी उषा का खेल जीवन

केरल के मेलडी-पायोली गांव के एक गरीब परिवार में जन्मी पी. टी उषा का जीवन बहुत ही गरीबी में गुजरा। उनके गांव के नाम की आधार पर उन्हें बाद में पय्योली एक्स्प्रेस के नाम से भी जाना जाने लगा। पी. टी उषा ने दौड़ने की शुरुआत तब कि, जब वह चौथी कक्षा में पढ़ती थी । उनके शारीरिक शिक्षा के अध्यापक ने उन्हें जिले की चैंपियन से मुकाबला करने को कहा,वह चैंपियन भी पी. टी उषा के स्कूल में पढ़ती थी, पी. टी उषा ने उस रेस में जिला चैंपियन को भी हरा दिया था।ऐसे ही अगले कुछ वर्षों तक पी. टी उषा अपने स्कूल के लिए जिला स्तर के मुकाबले जीते रहे। गरीबी और पोषण की कमी होने के बावजूद पी. टी उषा ने खेलों में शुरुआती प्रदर्शन मे उत्साह दिखाया।इसके बाद उन्हें केरल सरकार ने छात्रवृत्ति से सम्मानित किया उन्हें शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए कन्नूर के एक विशेष खेल विद्यालय में जाना पड़ा। पी. टी उषा के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया ,जब 1976 में उनके कोच ओ. एम. नाम्बियार ने उन्हें नेशनल स्कूल गेम्स में देखा जहा उन्होंने उषा की महान क्षमता को महसूस किया और उन्हें आज की भारतीय कहावत बनने के लिए प्रशिक्षित किया।

पी. टी उषा की प्रतिभा को देखते हुए उनके कोच ने कहा कि-

इस उम्र में, उसने बहुत साहस और आत्मविश्वास का प्रदर्शन किया है। मुझे कार्यक्रम के दौरान घबराहट का कोई निशान नहीं दिखाई दिया। दौड़ के अंतिम चरण में कड़ी मेहनत करने की क्षमता उसे बढ़त देती है।”

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पी. टी उषा का इंटरनेशनल करियर

पी.टी उषा
Source – (विकिपिडिया)
  • पी. टी उषा ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत, सन् 1980 में मॉस्को ओलंपिक से की थी लेकिन निराशा तब हुई जब उन्होंने 0.01 सेकंड से bronze मेडल गवा दिया। 
  • इसके बाद 1982 में नई दिल्ली में हुए 9वे एशियाई गेम्स में 100 मीटर एवं 200 मीटर की रेस में सिल्वर मेडल जीतने के बाद उन्होंने अपनी असली प्रतिभा को साबित किया। 
  •  एक एथलीट मीट में पीटी ऊषा ने 4 गोल्ड मेडल भारत के नाम किए थे ,16 साल की छोटी सी लड़की ने भारत का सर, दुश्मन देश पाकिस्तान में ऊंचा कर दिया था।
  • इसके बाद 1982 में पी. टी उषा ने ‘वर्ल्ड जूनियर इनविटेशन मीट’ में हिस्सा लिया और 200 मीटर की रेस में इन्होंने गोल्ड मेडल  जीत कर देशों को गौरवान्वित किया जबकि 100 मीटर की रेस में ब्रॉन्ज मेडल जीता था।
  •  इसके एक साल बाद ही कुवैत में हुए ‘ एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैंपियनशिप’ में पी टी उषा ने 400 मीटर की रेस में नया रिकॉर्ड बनाया और गोल्ड मेडल जीता। 
  • इसके बाद इन्होंने अपनी परफॉर्मेंस मे सुधार करने के लिए और प्रयास किए और अब वह 1984 में होने वाले ओलंपिक की तैयारी जमकर करने मे लग गई। 
  • 1984 में लॉस एंजेलिस में हुए ओलंपिक में पी. टी उषा ने सेमीफाइनल के पहले राउंड की 400 मीटर बाधा दौड़ को अच्छे से समाप्त कर लिया लेकिन इसके फाइनल में वह 1/100 के मार्जिन से हार गई और उनको ब्रोंज मेडल नहीं मिल पाया । 
  • इस मैच का आखिरी समय ऐसा था कि लोग अपने दांतो तले उंगली दबा गये लेकिन हार के बाद भी पी. टी उषा की यह उपलब्धि बहुत बड़ी थी । 
  • यह भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था कि कोई महिला एथलीट ओलंपिक के किसी फाइनल राउंड में पहुंची हो इन्होंने 55.42 सेकेंड में रेस पूरी की थी जो आज भी भारत में एक नेशनल रिकॉर्ड है। 
  • सन 1985 में पी. टी उषा ने इंडोनेशिया के जकार्ता में ‘ एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैंपियनशिप’ में भाग लिया जहां इन्होंने 5 गोल्ड मेडल और एक ब्रोंज मेडल जीता। यही पी टी उषा को स्प्रिंट क्वीन का खीताब दिया गया। 
  • सन 1986 में दसवें ‘ एशियाई गेम्स ‘ जो सियोल में हुआ वहां उन्होंने 200 मीटर , 400 मीटर ,400 मीटर बाधा रेस  व 4×400 मीटर रिले रेस में हिस्सा लिया, जिसमें चारों  ही रेस में ही उषा विजई रही और गोल्ड मेडल भारत के नाम कर दिए। 
  • एक ही इवेंट में एक ही एथलीट द्वारा इतने मेडल जीतना अपने आप में एक रिकॉर्ड था जिसे महान पी. टी उषा ने अपने नाम कर लिया था। 
  • सन 1988 में सियोल में ओलंपिक गेम्स का आयोजन हुआ जिसमें पी. टी उषा को भी हिस्सा लेना था लेकिन इस मैच से ठीक पहले ही उनके पैर में चोट लग गई लेकिन पी. टी उषा के जज्बे को यह चोट भी नहीं रोक पाए और उन्होंने उसी हालत में अपने देश के लिए उस गेम में हिस्सा लिया लेकिन दुर्भाग्य से वह गेम में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए और उन्हें भी जीत नहीं मिल सकी। 
  • इसके बाद, पी. टी उषा ने 1989 में अपनी performance पर काम किया और दिल्ली में आयोजित ‘एशियन ट्रेड फेडरेशन मीट’ में जबरदस्त तैयारी के साथ भाग लिया। जहां उन्होंने 4 गोल्ड मेडल और 2 सिल्वर मेडल अपने नाम किए। 
  • यही वह समय था जब पी. टी उषा अपने रिटायरमेंट की घोषणा करना चाहती थी लेकिन सभी ने उन्हें अपनी एक आखिरी पारी खेलने के लिए कहा। 
  • जिसके बाद उन्होंने 1990 में ‘बीजिंग एशियन गेम्स’ में हिस्सा लिया, लेकिन वह इस इवेंट के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थी लेकिन इसके बावजूद भी पी. टी उषा ने 3 सिल्वर मेडल जीते। 

तो यह था PT उषा के अंतरराष्ट्रीय खेल करियर के बारे में जहाँ उन्होंने कड़ी मेहनत और जुनून के साथ अपने देश का नाम रोशन किया और अपने देश भारत को पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। 

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पी. टी उषा का वैवाहिक जीवन

अभी तक हमने पी. टी उषा जो कि एक महान एवं जानी-मानी महिला एथलीट है उनके बचपन व कैसे वह खेल में आई।उनका अंतरराष्ट्रीय करियर कैसा रहा इसके बारे में हमने जाना।अब आगे चलते हैं और जानते हैं उनके वैवाहिक जीवन के बारे में-

सन 1990 में ‘बीजिंग एशियन गेम्स’ में हिस्सा लेने के बाद पी. टी उषा ने अपने एथेलेटिक जीवन से संन्यास ले लिया  और 1991 में वी श्रीनिवासन जो खुद कबड्डी के खिलाड़ी थे, से शादी कर ली जिसके बाद इन्हें एक बेटा हुआ। इनके बेटे का नाम उज्जवल है। 

जिसके बाद उन्होंने सन् 1998 में अचानक सबको चौंकाते हुए 34 साल की उम्र में एथलीट्स में वापसी करी। उन्होंने जापान के फुकुशिमा में आयोजित ‘ एशियन ट्रेड फेडरेशन मीट ‘ में हिस्सा लिया इस गेम में पी. टी उषा ने 200 मीटर एवम 400 मीटर की रेस में ब्रोनज़ मेडल जीता। 

34 साल की उम्र में पी. टी उषा ने 200 मीटर की रेस में अपनी खुद की टाइमिंग में सुधार किया और एक नया नेशनल रिकॉर्ड कायम किया , जो यह दर्शाता था कि प्रतिभा की कोई उम्र नहीं होती और सभी को यह पता चल गया कि इनके अंदर एथलीट टैलेंट कूट-कूट कर भरा हुआ है। सन 2000 में फाइनली पी. टी उषा ने एथलीट से संन्यास ले लिया। 

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पी. टी उषा द्वारा जीते गए पदक(अवार्ड्स) 

पी. टी उषा
Source – News Dog)
  1. सन 1984 में एथलीट्स खेल के प्रति उनके प्रयास एवं उत्कृष्ट सेवा एवं साथ ही राष्ट्रीय का नाम ऊंचा करने के लिए पी. टी उषा को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। 
  2. सन 1985 में पी. टी उषा को देश के चौथे सबसे बड़े सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 
  3. इसके अलावा इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन ने पी. टी उषा को स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ द सेंचुरी एवं स्पोर्ट्स विभिन्न ऑफ द मिलियन का खिताब दिया। 
  4. सन 1985 में जकार्ता में हुए एशियन एथलीट मीट मैं पी. टी उषा को बेहतरीन खेल के लिए ग्रेटेस्ट वूमेन एथलीट का खिताब दिया गया। 
  5. सन् 1985 एवं 1986 में वर्ल्ड टॉफी से बेस्ट एथलीट  के लिए पी. टी उषा को सम्मानित किया गया। 
  6. 1986 के एशियन गेम्स के बाद पी टी उषा को ‘एड़ीदास गोल्डन शू अवार्ड फॉर दी बेस्ट एथलीट’ का खिताब दिया गया। 

उपलब्धियां

पी. टी उषा ने अपने खेल जीवन में कई सारे अवार्ड प्राप्त किए जिनमें उन्होंने अपने नाम कई उपलब्धियां भी करी जो निम्नानुसार है-

  • 1977 में कोट्टयम में राज्य एथलीट बैठक में एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। 
  • 1980 में मास्को ओलंपिक में हिस्सा लिया। 
  •  वे पहली महिला एथलीट बनी जो ओलंपिक के फाइनल तक पहुंची। 
  • पी टी उषा जी ने 1980 के मास्को ओलंपिक में 16 साल की उम्र में हिस्सा लिया था, जिसके बाद वे सबसे कम उम्र की भारतीय एथलीट बन गई थी। 
  • लॉसएंजिल्स ओलंपिक में पहली बार महिला एथलेटिक्स में 400 मीटर प्रतिस्पर्धा में बाधा दौड़ जोड़ी गई, जहाँ पी टी उषा जी ने 55.42 सेकंड का एक रिकॉर्ड बना दिया, जो आज भी इंडियन नेशनल रिकॉर्ड है। 
  • पी टी उषा ने अपने शानदार खेल करियर के दौरान 102 राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय पदक और पुरस्कार जीते हैं। 
  • पी टी उषा ने एशियाई चैंपियनशिप में 13 गोल्ड मेडल और कुल 33 इंटरनेशनल मेडल जीते हैं। 
  • खेलों में शानदार व उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये उन्हें 1984 में प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार और पद्मश्र श्री पुरस्कार दिया गया। 
  • इसके 1 साल बाद 1985 में पी. टी उषा को जकार्ता एशियाई एथलीट मीट में सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट के रूप में चुना गया। 
  • पी. टी उषा के महान करियर में एक और अवार्ड 1986 में सियोल एशियाई खेलों के लिए भारतीय ओलंपिक संघ ने एडिडास गोल्डन शू अवार्ड से सम्मानित किया और उन्हें शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया। 

जीवन कथा

पी. टी उषा के जीवन की आत्मकथा का नाम गोल्डन गर्ल है जो 1987 में लिखी गई थी।

उषा स्कूल ऑफ एथलेटिक्स

पी. टी उषा
Source – ज्ञान सागर भारत

56 वर्षीय पी टी उषा अब अपने  खेल करियर से सेवानिवृत्त हो चुकी है। इन्होंने 2002 में केरल के कोईलेंडी में एक अपना एथलेटिक स्कूल शुरू किया है जहां वे पूरे देश की लड़कियों को प्रशिक्षण देती हैं। उनके स्कूल में 10 से 12 वर्ष के बच्चों को लिया जाता है और उन्हें खेलों के लिए तैयार किया जाता है। पी टी उषा  ने देश को ओलंपिक पदक दिलाने के उद्देश्य से इस स्कूल की शुरुआत की है। उनके साथ इस कार्य में टिंटू लुका भी शामिल है उन्होंने साल 2012 में लंदन ओलंपिक वूमेन सेमीफाइनल में 800 मीटर की रेस क्वालीफाई की थी।

पीटी उषा से जुड़े रोचक तथ्य

  • पीटी उषा को एथलेटिक्स में उनकी बेहतरी उपलब्धियों को देखते हुए उनको भारतीय ट्रैक ऐंड फील्ड की क्वीन, पय्योली एक्सप्रेस और उड़नपरी नाम से भी जाना जाता है।
  • सिर्फ 14 साल की उम्र में पीटी उषा ने इंटर स्टेट जूनियर प्रतियोगिता में चार मेडल जीत लिए थे, जिसमें 100 मीटर रेस, 60 मीटर बाधा रेस, ऊंची कूद और 200 मीटर रेस में जीते गए थे।
  • 16 साल की उम्र में उन्होंने 1980 को मास्को ओलंपिक में भाग लेने वाली सबसे कम उम्र की धावक बनी थी।
  • 1982 के दिल्ली एशियाई खेलों में 100 मीटर और 200 मीटर रेस में उन्होंने सिल्वर मेडल जीते थे।
  • उषा ओलंपिक के ट्रैक इवेट के  फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला धावक बनी थी।
  • पीटी उषा के नाम अब तक 400 मीटर बाधा दौड़ में सर्वश्रेष्ठ समय निकालने 55.42 सेकेंड निकालने का रिकॉर्ड दर्ज है जो उन्होंने 1984 लॉस एंजिलिस ओलंपिक में बनाया था।

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पी. टी उषा पर कुछ प्रश्न-

  1. पी. टी उषा का पुरा नाम क्या है? 
  1. पिलावुल्लाकांडी थेवरापरम्पिल उषा 
  2. पिलावुल्लाकांडी उषा
  3. पायल त्रिवेदी उषा
  4. पद्मावती उषा

Answer: (a) पिलावुल्लाकांडी थेवरापरम्पिल उषा 

  1. पी. टी उषा कौन से खेल से संबंधित है? 
    a) क्रिकेट         b) एथलीट     c) बैडमिंटन  d) हॉकी

Answer: (b)  एथलीट

  1.  पी. टी उषा का जन्म कहा  हुआ? 
    a) दिल्ली     b) केरल   c) तमिलनाडु  d) Punjab

Answer: (b)  केरल

    4.  पी. टी उषा का जन्म कब हुआ है? 

  1. 27 जून, 1964
  2. 27 मई, 1964
  3. 27 अप्रैल, 1964
  4. 27 मार्च, 1964

Answer:  (27 जून,1964)

5.  पी. टी उषा को पय्योली एक्सप्रेस का खिताब किसने दिया? 

  1.  गाँव वालो ने          b) घर वालो ने

c) कोच ने          d) दोस्तों ने

Answer: (b)  घर वालो ने

 6. पी. टी उषा की आत्मकथा का क्या नाम हैं? 

  1.  उड़न परी 
  2. धावक परी
  3. गोल्डन गर्ल
  4. माय स्ट्रगल

Answer:  (c)  गोल्डन गर्ल

7.  पी टी उषा को अर्जुन अवार्ड कब दिया गया? 

  1. 1980     b) 1984   c) 1995    d) 1999

Answer: 1984

8. पी. टी उषा को देश का  चौथा सबसे बड़ा सम्मान पद्मश्री कब दिया गया था? 

  1.  1985     b) 1986      c) 1987    d) 1988

Answer:1985

9. पी. टी उषा ने अपना पहला मैच कहाँ खेला था? 

  1.  जकार्ता     b) पाकिस्तान    c) इंडोनेशिया    d) चीन

Answer: (a) जकार्ता

10.पी. टी उषा अभी कौन सा स्कूल चला रही हैं? 

  1.  एथलेटिक स्कूल    b) डांस स्कूल

c) बैडमिंटन स्कूल       d)  हॉकी स्कूल

Answer: (a) एथलेटिक स्कूल

तो ये थी पी. टी उषा के महान एथलीट पी. टी उषा बनने की कहानी। जिसमें उनकी गरीबी ने उनके सामने घुटने टेक दिये और पी. टी उषा ने अपने खेल प्रदर्शन से देश दुनिया मे अपने नाम के झंडे गाड़े। आज के हमारे ब्लॉग पी. टी उषा की आत्मकथा में हमने पी. टी उषा के जीवन से जुड़ी सभी बातों का अध्ययन किया और जाना कि किस तरह उन्होंने परिश्रम करके विदेशों में देश का नाम बनाया। आज वे सदी की सबसे महान खिलाड़ियों में से एक है उन्होंने समाज के सभी किन्वदितियो को तोड़कर आज यह मुकाम हासिल किया है।इसी तरह की और जानकारी के लिए हमारी साइट Leverage Edu पर बने रहे। 

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