स्टडी के अनुसार जर्मनी में ⅓ अंतरराष्ट्रीय छात्र लॉन्ग टर्म के लिए रुकते हैं

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जर्मनी में ⅓ अंतरराष्ट्रीय छात्र लॉन्ग टर्म के लिए रुकते हैं

जर्मनी, अब्रॉड के ज़्यादातर स्किल्ड वर्कर्स को अपनी तरफ अट्रैक्ट करने में सक्षम है, यह तो कई स्टडीज़ से साबित हुआ है। लेकिन हाल ही में की गई रिसर्च अनुसार यह भी देखने को मिला है कि इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के लिए जर्मनी की यूनिवर्सिटीज से शार्ट टर्म के साथ-साथ लॉन्ग टर्म में भी फायदा मिलता है। 

यह लॉन्ग टर्म फायदा मुख्य रूप से लेबर मार्किट में इंटरनेशनल स्टूडेंट्स की तादात में तब्दीली के चलते देखने को मिले हैं। OECD में जर्मनी में रुकने वाले फॉरेन स्टूडेंट्स का रेट सबसे ज़्यादा पाया गया है। 

2006-2021 की फ़ेडरल स्टैटिस्टिकल ऑफिस की रिसर्च अनुसार जर्मनी में पढ़ने की इच्छा रखने वाले लोगों को 6.12 लाख रेजिडेंस परमिट्स इशू किए गए थे। सेंट्रल रजिस्टर ऑफ़ फॉरेनर के मुताबिक़, 2006-2011 के बीच जिन स्टूडेंट्स को रेजिडेंस परमिट्स इश्यू किए गए उनकी संख्या 1,84,200 थी। जिसमें से 48% लोगों की पांच साल बाद भी जर्मनी में रिहाइश पाई गई और 38% दस साल बाद भी इस देश में रुके हुए थे। 

Destatis.de ने OECD की इस रीसेंट इवैल्यूएशन को कम्पेयर किया और पाया कि जर्मनी में इंटरनेशनल स्टूडेंट्स की लम्बे समय इस देश में रुकने की पर्सेंटेज कनाडा के बराबर पाई गई है। जिससे जर्मनी OECD कंट्रीज़ में हाइएस्ट रेट्स रखने वाली कंट्रीज़ में से एक मानी जा रही है। 2006-2011 में स्टडी परमिट पाए जाने वाले इंटरनेशनल स्टूडेंट्स की संख्या को जब ब्रेकडाउन किया गया तो पाया गया कि उसमें 36,000 लोग चाइनीज़ नैशनैलिटी के पाए गए। 

इस संख्या में से 29% जनता की रिहाइश 10 साल बाद तक भी जर्मनी में ही मॉनिटर की गई। अमरीकन स्टूडेंट्स की संख्या 13,000 के साथ लगभग समान देखने को मिली। जिनमे से 14% जर्मनी में 10 साल बाद भी रहते पाए गए। बाकी देशों की बात की जाए तो रशियन नेशनलस की जर्मनी में 10 साल से भी ज़्यादा रुकने की संख्या 47% देखी गई। इसके अलावा टर्किश टूडेंट्स की संख्या 28 % रही। 

यह सारी जानकारी ये भी दर्शाती है कि कैसे इंटरनेशनल स्टूडेंट्स की तादात जर्मनी में ना सिर्फ पढ़ने लेकिन रहने की सोच से आती है जोकि जर्मनी की लेबर मार्किट के लिए एक अहम बात है। स्टडी से यह जानकारी भी मिली कि 32% जनता जो जर्मनी में 10 साल से भी ज़्यादा समय से रह रहे हैं उनके पास सिर्फ एम्प्लॉयमेंट के लिए टेम्पोरेरी परमिट मौजूद है। जबकि बाकी के 28% लोगों के पास जर्मनी की सिटिज़नशिप थी। इसके अलावा 21% के पास रेज़िडेंस परमिट उनके परिवार के कारण मौजूद था। 

कैमरून के स्टूडेंट्स ने बड़ी संख्या में नैचरलाइज़्ड टेस्ट उत्तीर्ण की और अपना जर्मन पासपोर्ट प्राप्त किया: 50% स्टूडेंट्स को 10 साल बाद सिटिज़नशिप मिली। इसके अलावा ब्राज़ील से आए स्टूडेंट्स जिनकी संख्या 34% रही और भारतिय जिनकी संख्या 32% देखने को मिली के नैचरलाइज़्ड सिटिज़न बनने की संभावना देखने को मिल रही है। सिर्फ कुछ ही इंटरनेशनल स्टूडेंट्स को 10 साल से ज़्यादा जर्मनी में रहने की केटेगरी में रखा जा सकता है जो नौकरी की तलाश में थे या किसी पॉलिटिक्ल वजह से छोड़ कर जा चुके थे। 

जर्मनी अपने लिविंग स्टैंडर्ड्स और वेलकमिंग नेचर की वजह से इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के लिए ना सिर्फ पढ़ाई के मैटर में लेकिन भविष्य में सैटल होने के मैटर में भी स्टूडेंट्स की प्रेफरेंस में रहता है। यह प्रक्रिया और पर्सेंटेज जर्मनी के लिए लाभदायक साबित होगी जिसमें खासकर लेबर मार्किट में काफी मुनाफा देखने को मिलेगा।

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