स्त्री शिक्षा का महत्व क्या है?

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स्त्री शिक्षा का महत्व

प्राचीन काल से कई शासकों, योद्धा अर्थात पुरुष प्रधान समाज के कारण स्त्री शिक्षा का महत्व नहीं था किन्तु एक शताब्दी पहले राजा राममोहन रॉय और ईश्वरचंद विद्यासागर ने नारी शिक्षा का प्रचलन किया। इन्हें कई विरोध एवं हिंसा का सामना करना पड़ा परन्तु लोगों में स्त्री शिक्षा के महत्व को लेकर परिवर्तन आया। जैसे जैसे समय बढ़ता चला गया और नारी शिक्षा में बदलाव और विकास होने लगा। जिस प्रकार पुरुष को इस देश के प्रगति, विकास एवं उन्नति के लिए विद्या मिल रही है तो नारी भी इस देश की नागरिक है और उसे भी शिक्षा प्राप्ति का पूरा हक़ है। जब दोनों को संविधान में समान अधिकार मिला है तो शिक्षा के क्षेत्र में भी समान अधिकार हो। तो आइये पढ़तें हैं कि स्त्री शिक्षा का महत्व प्राचीनकाल से वर्तमान तक कैसा उतार-चढ़ाव रहा है।

स्त्री शिक्षा का अर्थ

सिखने सिखाने की क्रिया को शिक्षा कहते है। शिक्षा के ज़रिए मनुष्य के ज्ञान एवं कला कौशल में वृद्धि करके उसके अनुवांशिक गुणों को निखारा जा सकता है और उसके व्यवहार को अर्जित किया जा सकता है। शिक्षा व्यक्ति की बुद्धि, बल और विवेक को उत्कृष्ट बनाती है वहीं एक अशिक्षित व्यक्ति जानवर के समान है।प्राचीन काल में स्त्रियों को केवल घर और विवाहित जीवन गुजारने की सलाह दी जाती थी परन्तु समाज के विकास के साथ-साथ नारी शिक्षा को भी अलग आकर और पद प्राप्त हुआ है। पुरुषप्रधान समाज से ही स्त्री अपने काम का लोहा मनवा रही हैं। कहते हैं कि एक अशिक्षित नारी गृहस्थी की भी देखभाल अच्छे से नहीं कर सकती है।  

स्त्री शिक्षा का स्वरुप 

एक कहावत है कि ‘एक पुरुष को शिक्षित करके हम सिर्फ एक ही व्यक्ति को शिक्षित कर सकते हैं लेकिन एक नारी को शिक्षित करके हम पूरे देश को शिक्षित कर सकते हैं’। किसी देश और समाज की तो छोड़िये हम अपने परिवार के उन्नति की कल्पना भी स्त्री शिक्षा के बिना नहीं कर सकते हैं। किसी भी लोकतंत्र की यह नींव है कि स्त्री और पुरुष को बराबर शिक्षा प्राप्त करने का हक़ हो। एक पढ़ी लिखी स्त्री ही समाज में ख़ुशी और शांति ला सकती है। कहते हैं कि बच्चे इस देश का भविष्य हैं और एक नारी ही माँ के रूप में उसके पहले शिक्षा का श्रोत है। इसी कारणवस एक स्त्री का शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है। एक शिक्षित नारी ना केवल अपने गृह का बल्कि पूरे समाज को सही दिशा प्रदान करती है। हर एक स्त्री को अपनी इच्छानुसार शिक्षा ग्रहण करने का हक़ है और उस क्षेत्र में कार्य कर सकें जिनमे वह कुशल हैं। स्त्री शिक्षा का महत्व विभ्भिन तरीके से समाज के काम आता है जैसे कि –

स्त्री शिक्षा का महत्व
स्त्री शिक्षा पर कुछ भारतीय कानून
  • समाज के विकास और देश के आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए नारी का शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है।       
  • स्त्री शिक्षा का बहिष्कार देश के हित के खिलाफ होगा। 
  • स्त्री शिक्षा के लिए सरकार ने ढेरों कानून लागू किए हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं –
    • सर्व शिक्षा अभियान
    • इंदिरा महिला योजना
    • बालिका समृधि योजना
    • राष्ट्रीय महिला कोष
    • महिला समृधि योजना
  • सरकार ने महिलाओं के लिए कई कानून लागू किए हैं जैसे कि-
    • दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961
    •  कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984
    • महिलाओं का अशिष्ट रूपण ( प्रतिषेध) अधिनियम 1986
    • सती निषेध अधिनियम 1987
    • राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, गर्भधारण पूर्वलिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994
    • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005

आज के युग में ऐसे लाखों उदहारण हैं जिनमें महिलाओं ने अपने काम और गौरव का लोहा मनवाया है – रानी लक्ष्मीभाई ,एनी बेसेंट,मदर टेरेसा,लता मंगेशकर,कल्पना चावला,पीवी सिंधु ,आदि।

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स्त्री शिक्षा का महत्व

पुरुष और स्त्री इस समाज के एक सिक्के के दो पहलु हैं तो फिर शिक्षा भी एक समान प्राप्त होनी चाहिए। जिस तरह पुरुष का शैक्षिक जीवन इस समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है उसी प्रकार नारी शिक्षा भी देश के हित के लिए आवश्यक है। किसी भी तरह की नकारात्मक सोच इस समाज के विकास का रोड़ा बन सकती है। आज के इस युग में स्त्री पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर रही हैं। हर एक क्षेत्र में नारी आज कुशल है, वह घर की देखभाल के साथ साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अडिग है। 

शिक्षा के बिना संस्कार का कोई स्थान नहीं है और एक शिक्षित माँ ही संस्कार का उपचार है। संस्कृत में एक उक्ति प्रसिद्ध है-“नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ती मातृ समोगुरु” इसका मतलब है की इस दुनिया में विद्या के समान कोई क्षेत्र नही है और माता के समान कोइ गुरु नही है| देखा जाए तो कई जमाने से नारी के प्रति हमारा देश बढ़ा ही श्रद्धापूर्ण और सम्मानजनक रहा है परन्तु समय काल से शोषण नारी को क्षति पहुंचाता रहा है।स्त्री शिक्षा के महत्व ने ऐसी लड़ाइयों पर विजय पाई है। आजकल समाज के ये दोनों पहलु स्त्री शिक्षा के महत्व को समझकर एक विकसित देश की नींव दे रहे है।   

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स्त्री शिक्षा का समाज पर प्रभाव

एक स्त्री शिक्षित होती है तो वह अपनी शिक्षा का उपयोग समाज और परिवार के हित के लिए करती है। एक शिक्षित स्त्री के कारण देश कि आर्थिक स्थिति और घरेलु उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है। एक शिक्षित नारी घरेलु हिंसा और अन्य अत्याचारों से सक्षमता से निजाद पा सकती है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि स्त्री शिक्षा का प्रभाव परिवार,समाज और देश के हर क्षेत्र में अहम योगदान देता है। देश के हर उच्च पद पर आज महिलाओं ने महत्वपूर्ण फ़र्ज़ निभाया है।  

स्त्री शिक्षा के प्रति जागरूकता 

अभी भी इस समाज में स्त्री को शिक्षा का समान दर्ज़ा दिलाने की जागरूकता है। कहीं न कहीं आज भी कुछ घरों में भेदभाव की प्रचलन है जिसके चलते सिर्फ लड़कों को ही शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति होती है। इस देश में महिला सशक्तिकरण को और मजबूत करने की ज़रूरत है। जब महिलाएं अपने अधिकारों से परिचित होंगी तभी वह सही कदम उठा पाएंगी। कई सामाजिक एवं राजनितिक संगठन और संस्थानों को स्त्री शिक्षा के महत्व के लिए इस समाज को जागरूक करने की आवश्यकता है।    

स्त्री शिक्षा की आवश्यकता 

एक स्त्री शिक्षा के बिना एक विकसित समाज की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। स्त्री शिक्षा की आवश्यकता इस समाज और देश को कुछ यूँ है –

  • स्त्री शिक्षा से बौद्धिक विकास प्राप्त होगा जिससे समाज के व्यवहार में सरसता आएगी। 
  • मानसिक और नैतिक शक्ति के विकास में महिलाएं पुरूषों का सम्पूर्ण योगदान दे रही हैं। 
  • एक शिक्षित नारी गृहस्थ-जीवन में शांति और खुशहाली का स्रोत होती है।
  • स्त्री शिक्षा हमारे संस्कृति के ऊर्जा और विकास का संचार है। 
  • जब कभी नए समाज की स्थापना की जाती है तो शिक्षित महिलाएं एक बेहतर अकार और व्यवस्था प्रदान करती हैं।    

स्त्री शिक्षा के महत्व पर कविता 

स्त्री शिक्षा का महत्व
स्त्री शिक्षा के महत्व पर कविता

नारी तेरे रूप अनेक, सभी युगों और कालों में है तेरी शक्ति का उल्लेख ।
ना पुरुषों के जैसी तू है ना पुरुषों से तू कम है।।

स्नेह,प्रेम करुणा का सागर शक्ति और ममता का गागर ।
तुझमें सिमटे कितने गम है।।

गर कथा तेरी रोचक है तो तेरी व्यथा से आंखे नम है।
मिट-मिट हर बार संवरती है।।

खुद की ही साख बचाने को हर बार तू खुद से लड़ती है।
आंखों में जितनी शर्म लिए हर कार्य में उतनी ही दृढ़ता।।

नारी का सम्मान करो ना आंकों उनकी क्षमता।
खासतौर पर पुरुषों को क्यों बार बार कहना पड़ता।।

हे नारी तुझे ना बतलाया कोई तुझको ना सिखलाया।
पुरुषों को तूने जो मान दिया हालात कभी भी कैसे हों।।

तुम पुरुषों का सम्मान करो नारी का धर्म बताकर ये ।
नारी का कर्म भी मान लिया औरत सृष्टि की जननी है ।।

श्रृष्टि की तू ही निर्माता हर रूप में देखा है तुझको ।
हर युग की कथनी करनी है युगों युगों से नारी को ।।

बलिदान बताकर रखा है तू कोमल है कमजोर नहीं ।
पर तेरा ही तुझ पर जोर नहीं तू अबला और नादान नहीं ।।

कोई दबी हुई पहचान नहीं है तेरी अपनी अमिटछाप ।
अब कभी ना करना तू विलाप चुना है वर्ष का एक दिन ।।

नारी को सम्मान दिलाने का अभियान चलाकर रखा है ।
बैनर और भाषण एक दिन का जलसा और तोहफा एक दिन का ।।

हम शोर मचाकर बता रहे हम भीड़ जमाकर जता रहे ।
ये नारी तेरा एक दिन का सम्मान बचाकर रखा है ।।

मैं नारी हूं है गर्व मुझे ना चाहिए कोई पर्व मुझे ।
संकल्प करो कुछ ऐसा कि अब सम्मान मिले हर नारी को,
बंदिश और जुल्म से मुक्त हो वो अपनी वो खुद अधिकारी हो।।

-प्रतिभा तिवारी 

FAQ

स्त्री शिक्षा को कम महत्व क्यों दिया गया?

भारत का बाकी देशों  से पीछे होने का कारण महिलाओं को शिक्षा न मिलना ही है। प्राचीनकाल से स्त्रियों पर अत्याचार और पाबंधियाँ बढ़ती रही हैं जिसका मुख्य कारण स्त्री शिक्षा को महत्व ना देना ही है।  

नारी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है?

नारी शिक्षा परिवार में विनम्रता और सहनशीलता प्रदान करती है बल्कि समाज और देश में सामाजिक और आर्थिक मजबूती को सही दिशा देती है। सरकार को महिलाओं के विकास के लिए बेहतर विद्यालय और विश्वविद्यालयों का निर्माण कराना चाहिए ताकि स्त्री शिक्षा को मजबूती मिल सके। 

भारत में महिलाओं की स्थिति क्या है?

भारत में महिलाओं की स्थिति समय के हिसाब से बदलती रही है जिसमें अनेक उतार चढ़ाव देखने को मिले हैं। वैदिक युग में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार प्राप्त था परन्तु तमाम अत्याचारों के कारण वे उससे वंछित रहती थी। परन्तु इस आधुनिक युग में स्त्री शिक्षा के महत्व को सही दिशा मिली है जिससे वह कई अत्याचारों से छुटकारा पा चुकी हैं। 

क्या कदम भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए हैं?

इसके अतिरिक्त अनैतिक व्यापार( निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट रूपण ( प्रतिषेध) अधिनियम 1986, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, गर्भधारण पूर्वलिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 जैसे आदि कदम सरकार द्वारा उठाए गए हैं। 

उम्मीद है कि स्त्री शिक्षा का महत्व आपको समझ आया होगा तथा आपकी परीक्षाओं में आप स्त्री शिक्षा के महत्व पर निबंध इस ब्लॉग की सहायता से ज़रूर लिख पाएंगे। यदि आप इसी तरह के ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu की वेब साइट पर बनें रहें।

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