भारतीय टीम में अपनी दादागिरी के लिए मशहूर सौरव गांगुली “द प्रिंस ऑफ़ कलकत्ता”। इन्हें कौन नहीं जानता? आज भारतीय टीम जिस शिखर पर पहुंची है उसमें बहुत बड़ा रोल सौरव गांगुली का है। उन्होंने भारतीय टीम को उस दौर से बाहर निकाला जब मैच फिक्सिंग के दाग़ भारतीय टीम पर भी पड़ने लगे थे। उस दौर में इन्हें कप्तानी सौंपी गई। किसी ने नहीं सोचा था कि भारतीय टीम फर्श से अर्श का मुश्किल सफर पार कर पाएगी। मगर अपनी बेहतरीन स्ट्रेटजी ,कुशलता से टीम को आठवें पायदान से दूसरे पायदान पर पहुंचा दिया। जो टीम सिर्फ पहले डिफेंसिव सोच के साथ ड्रॉ कराने के लिए खेलती थी । वह उनकी कप्तानी में अग्रेसिव हो कर खेलना और जीतने के बारे में सोचने लगी। सच में यह बिना दादागिरी के नामुमकिन था। अपने बेबाक अंदाज को ना सिर्फ ऑन फील्ड बल्कि ऑफ फील्ड भी बनाए रखा। भारतीय टीम को कई दिग्गज खिलाड़ी इनकी कप्तानी में निकलते हुए नजर आए जैसे युवराज सिंह ,वीरेंद्र सहवाग हरभजन सिंह, आशीष नेहरा और महेंद्र सिंह धोनी जैसे कई बेहतरीन खिलाड़ी उनकी कप्तानी में निकले और इन सभी ने एक बड़ा मुकाम हासिल किया। जानतें हैं सौरव गांगुली के संघर्ष की कहानी और क्रिकेट में उनके योगदान के बारे में।
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नाम | सौरभ चंडीदास गांगुली |
उपनाम | प्रिंस ऑफ़ कलकत्ता, महाराजा, दादा, द गॉड ऑफ़ ऑफसाइड, बंगाल टाइगर |
जन्म | 8 जुलाई, 1972,बेहला,कोलकाता |
माता | निरूपा गांगुली |
पिता | चंडीदास गांगुली |
पत्नी | डोना गांगुली (1997) |
अंतरराष्ट्रीय डेब्यू | टेस्ट- 20 जून 1996 vs इंग्लैंड (लॉर्ड्स) ODI – 11जनवरी 1992 vs वेस्ट इंडीज (ब्रिसबन) |
अंतरराष्ट्रीय सन्यास | टेस्ट – 6 नवम्बर 2008 vs ऑस्ट्रेलिया (नागपुर ) ODI – 15 नवम्बर 2007 vs पाकिस्तान ( ग्वालियर ) |
टर्निंग पॉइंट | इंग्लैंड के खिलाफ अपने पहले टेस्ट में लगातार दो पारियों में शतक जड़ा |
प्रिंस ऑफ़ कोलकाता जीवन परिचय
8 जुलाई 1972 को कोलकाता एक ब्राह्मण परिवार में सौरव गांगुली का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम चंडीदास गांगुली और माता का नाम निरूपा गांगुली है । इनके पिता शहर के अमीर लोगों में गिने जाते थे उनकी फ्लोरेंटाइन प्रिंटिंग का कारोबार था इनके एक बड़े भाई है स्नेहाशीष जो बंगाल क्रिकेट के जाने माने खिलाड़ी रह चुके है । स्नेहाशीष का इनकी लाइफ में बहुत बड़ा रोल रहा हैं । बचपन से ही इन्होंने अपने भाई को इंस्पिरेशन की तरह देखा है और उन्हें खेलता देख उनकी दिलचस्पी भी बढ़ गई। उन्हें पता था नैशनल लेवल का क्रिकेट खेलना इतना आसन नहीं है लेकिन उनके भाई हमेशा उनका उत्साह बढ़ाते रहे। गांगुली एक राइट हैंड बैट्समैन थे, लेकिन अपने भाई के इक्विपमेंट्स इस्तमाल करने के लिए लेफ्ट हैंड बैट्समैन बन गए । उन्हें बेहतर प्रैक्टिस के लिए उनके पिता ने इनडोर जिम बनवा दिया। उड़ीसा अंडर 15 में सेंचुरी लगाने के बाद सेंट ज़ेवियर स्कूल के कप्तान बने। 1989 में फर्स्ट क्लॉस डेब्यू किया।
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डोना और गांगुली की लव स्टोरी
डोना और प्रिंस ऑफ़ कलकत्ता बचपन से दोस्त रहे है। इनकी शादी एक फ़िल्मी कहानी से कम नहीं है। दोनों का शादी का इरादा था लेकिन परिवार के डर के कारण दोनों घर से भाग गए और घरवालों को शादी के लिए झुकना पड़ा और दोनों की शादी 21 फरवरी 1997 को हुई उनकी एक बेटी भी है जिसका नाम सना गांगुली है।
साधारण रहा आगाज़
इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने से पहले उन्होंने डॉमेस्टिक फ्रंट पर रणजी ट्राफी में बेहतरीन प्रदर्शन करके बंगाल को ट्राफी जिताने का काम किया। लेकिन जनवरी 1992 में अपने करियर की शुरुआत वेस्ट इंडीज के खिलाफ की लेकिन उसमे सिर्फ 3 रन बना कर आउट हो गए। पहला मैच खेलने के बाद उन्हें 4 साल का लम्बा इंतज़ार करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी डोमेस्टिक क्रिकेट में लगातार खेलते रहे। मई 1996 में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ शानदार 46 बनाए ।
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दादागिरी के सफ़र की शुरुआत
दूसरा मैच में मौका भुनाने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । उसी टूर के दौरान इन्होंने अपने टेस्ट करियर का आगाज़ किया एतिहासिक लॉर्ड्स ग्राउंड में और लगातार 2 शतक लगाकर सबको काफी प्रभावित किया । 2000 में उस समय के कप्तान रहे अजहरुद्दीन पर Match Fixing आरोपों के चलते कप्तानी सौरव गांगुली को दी गयी ।
उस समय गांगुली के लिए इन सब से टीम को उभारना इतना आसन नहीं था। पूरा देश टीम पर सी भरोसा खो चुका था और टीम भी लगातार बुरे प्रदर्शन से 8वे पायदान पर आ गीरी तब गांगुली की ही कप्तानी में भारत 2 पायदान पर आई । जो इंडियन टीम सिर्फ मैच ड्रा करने के लिए खेलती वो इनके अन्दर मैच को बड़े ही अग्रेस्सिवे तरीके से खलने लगे और हर मैच को जीतने के इरादे से मैदान पर उतरी। दादा की ही कप्तानी में भारत दूसरी बार 2003 फाइनल में पंहुचा। जहा एक समय लग रहा था इंडियन क्रिकेट सरवाइव नहीं कर पायेगा वो वर्ल्ड कप के फाइनल तक पहुच गया। ये गांगुली के ही पॉजिटिव एटीट्यूड का नतीजा था।
सौरव गांगुली ने एक बार कहा था “ When the going gets tough the tough get going”
लॉर्ड्स की यादगार जीत
2002 में लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में खेले गए उस मैच को भला कोई कैसे भूल सकता हैं। इंग्लैंड को सीरीज में हारने के बाद दादा ने लॉर्ड्स ग्राउंड की बालकनी में जर्ज़ी उतारी और वो मोमेंट लोगों के लिए यादगार बन गया ये सच में दादा की दादागिरी की झलक दिखाता है ।
भारत को दिए कई मैच विनर
एक अच्छा लीडर वही है जो अपनी टीम को हमेशा साथ लेकर चलता है और उनके बैक करता है। सौरव गांगुली हमेशा युवा प्लेयर्स को मौका देने के लिए जाने जाते हैं। दादा हमेशा उन खिलाडियों पर भरोसा दिखाया और वो इस पर खरे भी उतार आइए देखते है उन खिलाडियों के बारे में –
- वीरेंद्र सहवाग -इंडियन टीम के विस्फोटक सलामी बल्लेबाज़ इनकी ही खोज माने जाते है 7वे नंबर पर बल्लेबाज़ी करते थे दादा ने इन्हें ओपनिंग का मौका दिया और भारत को एक बेहतरीन ओपनर दिया जिसने टेस्ट क्रिकेट की परिभाषा ही बदल दी ।उन्होंने हमेशा सहवाग का साथ दिया और वो खाए भी उतारे ।
- युवराज सिंह – 2000 में इन्हीं की कप्तानी में अपने करियर के शुरुआत की दादा ने हमेशा इन पर विश्वास जताया था और इनकी कप्तानी में इन्होंने अपने हुनर को और निखारा एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा “ अब तक वो जितने भी कप्तानों के साथ खेले हैं, उनमें से सौरव गांगुली बेस्ट हैं।
- महेंद्र सिंह धोनी: इडियन टीम को बेहतरीन कप्तान और क्रिकेटर देना श्रेय इन्हें ही जाते है पाकिस्तान के खिलाफ एमएस धोनी को टीम में चुनने के लिए दादा चयनकर्ताओं से भी भिड़ गए थे । पाकिस्तान के खिलाफ धोनी ने 148 रनों की शानदार पारी खेली थी।
- ज़हीर खान – दादा ने न सिर्फ जहीर पर भरोसा जताया बल्कि हर कदम पर उनका साथ भी दिया।आगे चलकर जहीर टेस्ट क्रिकेट में इंडिया की तरफ से सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले दूसरे सबसे सफल तेज गेंदबाज बने।
- हरभजन सिंह – दुनिया के बेहतरीन गेंदबाजों में से एक हरभजन सिंह भी है मगर उन्हें इस मुकाम तक पहुचाने में दादा ने खूब मदद की। साल 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में उन्होंने 32 विकेट लिए थे इससे पहले उनकी चयनकर्ताओं से बहस भी हुई थी । भज्जी ने खुद एक बार कहा कि अगर ‘दादा’ का साथ नहीं होता तो वो कुछ नहीं कर पाते।
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ग्रेग चैपल एक गलती
दादा ने हमेशा इंडियन टीम की बेहतरी के लिए काम किया ।लेकिन उन्होंने कभी ये नहीं सोचा होगा की ग्रेग चैपल एक गलती साबित होगे। 2005 में इंडियन टीम के कोच बनाने के बाद इंडियन टीम फर्श तक पहुचने लगी। जिस टीम को गांगुली ने इतने प्यार से बनाया ग्रेग्ग चैपल ने उस टीम लगातार गलत एक्सपेरिमेंट किये और गांगुली को कप्तानी से हटा दिया गया गांगुली उसके बाद काफी टूट गए थे लेकिन एक योद्धा कैसे पीठ दिखा कर भाग सकता है।
रिटर्न ऑफ़ दादा
2006 में साउथ अफ्रीका के खिलाफ उन्होंने टेस्ट वापसी की और बंगाल टाइगर एक बार फिर दहाडा और ज़रूरी 51 रन बनाए । 2007 ODI में भी इनकी वापसी हुई 2007 में उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ आखरी मैच खेला। और 2008 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आखरी टेस्ट में महेंद्र सिंह धोनी ने उन्हें गुरुदक्षिणा के रूप में कप्तानी भी कराई ।
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रिकॉर्ड
- वनडे इंटरनेशनल में लगातार 4 मन ऑफ़ थे मैच जीतने वाले कुछ लोगो में से है।
- 11363 रनों के साथ विश्व के 8 वे सबसे ज्यादा रन बनाने वालो में शुमार है।
- 9000 रन बनाने वाले सबसे तेज़ बल्लेबाज़ है ।
- 10000 रन और साथ ही 100 विकेट और 100 कैच लेने वाले कुछ क्रिकेटर में से है ।
- विदेश ,में 28 में से 11 मैच जीते है ।
- सौरव गांगुली के वनडे में 22 शतक हैं और टेस्ट में 16। जिससे उनके नाम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कुल 38 शतक हैं।
- सौरव गांगुली ने भारत के लिए 49 टेस्ट मैच में कप्तानी की है, जिनमें से भारत ने 21 टेस्ट जीते हैं।
ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ
सौरव गांगुली की आत्म कथा ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ में इन्होंने अपने संघर्ष को बताया है कैसे इनकी कप्तानी में भारतीय टीम आक्रमक रूप में आ गयी और विरोधियो की जीत को हार में बदल दिया अपनी लीडरशिप से कैसे टीम को निखारा और उसे शीर्ष तक पंहुचा दिया ।
दादा की विरासत
वर्तमान में BCCI के अध्यक्ष सौरव गांगुली आज ऑफ फिल्ड होने के बावजूद हर प्लेयर भरोसा रखते है और चाहे कितनी भी आलोचना स गुजरना पड़े परवाह नही करते है इसका सबसे बेहतरीन उदहारण रिषभ पन्त है जिन्हें काफी क्रिटिसाइज़ किया गया लेकिन उन्होंने हमेशा उनका साथ दिया यहाँ तक इंग्लैंड के बल्लेबाज जोस बटलर उनके इंस्पिरेशन की तरह देखते है । इस पैंडेमिक सिचुएशन में भी उन्होंने खिलाडियों का ख्याल रखा है। मैचों को पूरा होने दिया क्योंकि ऐसा न करने पर काफी क्रिकेटरों को आर्थिक तंगी का समना करना पड़ेगा। साथ ही महिला क्रिकेट टीम को भी एक्सपोज़र दे रहे है जिससे इंडियन वीमेन टीम लेगसी बना सके ।
इंडियन क्रिकेट जगत सबसे रिस्पेक्टफुल लोगों में शूमार है। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के क्रिकेटर इन्हें एक इंस्पिरेशन और फाइटर की तरह देखते है। जो उस बुरे समय के सामने झुके नहीं और अपना रास्ता खुद बिना लिया। जैसे सौरव गांगुली अपने जीवन में डट कर खड़े रहे और उन्होंने ज्यादा से ज्यादा अवसरों का लाभ उठाया ये हम सबके लिए नही प्रेरणा लेनी की बात हैं।
पुरस्कार व सम्मान
- वर्ष 2004 में देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म श्री पुरस्कार से नवाजे गए।
- खेल के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने पर 1998 में सौरव गांगुली को अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
- इसी वर्ष इन्हे स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ़ दी ईयर के खिताब से नवाजा जा चूका हैं।
- बंगाल सरकार द्वारा वर्ष 2013 में बंगा विभूषण पुरस्कार से सम्मानित।
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सौरव गांगुली की दबंगई के 5 किस्से
- इंडिया का पाकिस्तान से मैच था। मोहम्मद यूसुफ़ क्रीज़ पर थे। यूसुफ़ थोड़ा सा चोटिल हो गए थे। ऐसे में गांगुली को यह लग रहा था कि अगर मैच समय रहते पूरा नहीं हुआ तो उनपे पर फाइन लग सकता था। ऐसे में उन्होंने मोहम्मद यूसुफ से कहा – “नहीं नहीं तेरी बात नहीं कर रहा हूं। मैं अपनी बात कर रहा हूं। तू रेस्ट ले मेरे को प्रॉब्लम नहीं है… नहीं मैं ये नहीं बोल रहा हूं जान बूझ के कर रहा है तू। तू टाइम नोट कर ले बस।”
- श्रीलंका के ऑल राउंडर रसेल अर्नाल्ड बैटिंग कर रहे थे। अर्नाल्ड पिच पर रन लेने के दौड़े और बीच में रुक के वापस आ गए। द्रविड़ ने तुरंत अर्नाल्ड को टोका, क्योंकि खिलाड़ियों के जूते के नीचे स्पाइक लगी होती हैं जिससे पिच ख़राब हो जाती है। अर्नाल्ड यही कर रहे थे। गांगुली उनके पास गए। गांगुली ने अर्नाल्ड को समझाया कि पिच पर नहीं दौड़ना है। उसके बाद दोनों के बीच बहस शुरू हो गई। गांगुली ने वहीं अर्नाल्ड को समझाया “बहस मत करो बस पिच पर मत दौड़ो।”
- 2001 बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के लिए टीम सेलेक्शन चालू था.सौरव गांगुली फिर अड़ गए कि उन्हें टीम में हरभजन सिंह चाहिए। सेलेक्टर्स भज्जी से उतना प्रभावित नहीं थे। तो इस पर दादा ने कहा “‘जब तक हरभजन टीम में नहीं आयेगा, मैं इस कमरे से बाहर नहीं जाऊंगा।”
- 2007 में भारत इंग्लैंड में वनडे सीरीज खेलने गई थी। एक मैच में युवा स्टुअर्ट ब्रॉड बार-बार दादा को तंग कर रहे थे. इसपे दादा ने ब्रॉड से कुछ कहा था। कमेंटरी बॉक्स में बैठे थे हर्षा भोगले और सुनील गावस्कर। इसपे सनी गावस्कर ने कहा “‘सौरव क्या कह रहे हैं ये सुनाई तो नहीं दे रहा है लेकिन वो स्टुअर्ट को शायद ये बता रहे हैं कि जब मैंने पहला मैच खेला था तब तुम नैपी पहन कर घूमते थे।”
- सौरव गांगुली जब टीम में नए-नए थे, तो दिग्गज खिलाड़ी और पूर्व कप्तान कपिल देव ने उन्हें अपना किट बैग उठाने के लिए कहा, जिसको दादा ने साफ़ मना कर दिया।
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FAQs
घर में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना आखिरी टेस्ट खेलने के बाद 2008 में “महाराजा” ने अंतत: अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया। सेवानिवृत्ति के बाद, गांगुली ने अपनी राज्य टीम, बंगाल के लिए क्रिकेट खेलना जारी रखा और 2008 में इंडियन टी 20 लीग के लिए कोलकाता के साथ अनुबंध किया।
सौरव गांगुली का पूरा नाम सौरव चंडीदास गांगुली है. सौरव गांगुली के अनेक नाम हैं, जैसे – दादा, प्रिंस ऑफ कोलकाता, बंगाल टाइगर. भारत की तरफ से एक सफल क्रिकेटर एवं सफल कप्तान भी रहें है. गांगुली का जन्म बंगाल में एक शाही परिवार में हुआ था।
सौरव गांगुली बाएं हाथ के बल्लेबाज सिर्फ इसलिए बने क्योंकि वह अपने भाई के उपकरण का इस्तेमाल करना चाहते थे। वास्तव में वह सीधे हाथ से ही बल्लेबाज़ी किया करते थे।
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